दोस्त की लुगाई की चुदाई-1

(Dost Ki Lugai Ki Chudai-1)

नमस्कार दोस्तो, मेरा नाम पंकज है, मैं जयपुर में रहता हूँ और मैं अन्तर्वासना का पिछले कई महीनों से नियमित पाठक हूँ।

मैंने अन्तर्वासना पर बहुत सी कहानियाँ पढ़ी हैं और मुझे अच्छी भी लगीं।

यह कहानी तब की है जब मेरा घर पर किसी कारण झगड़ा होने की वजह से मैं 3 साल के लिए घर से दूर एक कमरा किराए पर लेकर रहता था और खर्चे के लिए मिनी बस पर खलासी का काम करता था।

उस वक़्त मेरी मुलाकात एक बस ड्राईवर से हुई.. जिसका नाम अनिल था। मेरी अनिल से काफी अच्छी दोस्ती हो गई।

कुछ दिनों बाद अनिल का खलासी किसी काम से अपने घर चला गया।
अब उसे एक खलासी की आवश्कता थी.. तो उसने मुझसे बात की और कहा- तू मेरे साथ परमानेन्टली मेरी गाड़ी पर चल और मेरे साथ ही रह।

मैंने कहा- ठीक है.. पर मैं हफ्ते में एक दिन की छुट्टी करूँगा।

उसने कहा- ठीक है।

मैंने कहा- एक तारीख को आ जाऊँगा।

जब मैं एक तारीख को अनिल के घर पहुँचा तो अनिल की पत्नी ने दरवाजा खोला और पूछा- आप कौन हैं और किससे मिलना है?

तो मैंने कहा- मुझे अनिल ने गाड़ी पे चलने के लिए बुलाया है।

तो उसने मुझे बताया- अनिल तो किसी काम से अपने गाँव गए हुए हैं.. 4-5 दिनों में आयेंगे.. पर अनिल ने मुझे बताया था कि कोई आने वाला है।

यह कहकर उसने मुझे अन्दर आने को कहा और मुझे कमरा दिखाया और कहा- नहा-धोकर खाना खाने आ जाओ।

मैंने कहा- ठीक है..

मैं फ्रेश होकर खाना खाने आ गया।

खाना खाते समय मैंने पूछा- आपका नाम क्या है?

तो उसने अपना नाम राधिका बताया..

उसने मुझसे पूछा- क्या तुम यहाँ जयपुर में अकेले ही रहते हो?

तो मैंने कहा- यहाँ मैं अपने परिवार के साथ रहता हूँ.. पर किसी कारण से अभी अलग कमरा लेकर अकेले ही रहता हूँ..

अब हमने खाना खाया और काफी सारी बातें की।

खाना खाकर मैं अपने कमरे में आ गया और अपने कपड़े उतार कर सो गया।

मुझे पता नहीं.. मेरी आँख कब लग गई। जब आँख खुली तो देखा राधिका मेरे सामने चाय लेकर खड़ी थी।

मैं एकदम से चौंक गया.. तो राधिका ने मुझसे कहा- कोई बात नहीं.. घर पर ही तो हो.. पर आगे से ध्यान रखना।

मैंने कहा- ठीक है।

राधिका ने मुझे चाय दी और बाहर चली गई। कुछ देर बाद राधिका ने मुझे बुलाया और कहा- मेरे साथ बाजार चलो।

मैंने कहा- ठीक है।
मैं तैयार होकर राधिका के साथ बाजार निकल गया।

बाज़ार से खरीददारी करके जब हम घर लौट रहे थे.. तब बस में भीड़ होने के कारण राधिका मेरे आगे चिपक कर खड़ी हो गई.. राधिका की गाण्ड मेरे लौड़े के बिल्कुल नजदीक होने से और चिपकने के कारण मेरे लौड़े में एक अजब सा तनाव पैदा हो गया.. जो मेरे साथ पहले कभी नहीं हुआ था।

अब मेरा लौड़ा पूरा खड़ा हो चुका था। शायद जिसका अहसास राधिका को भी हो रहा था.. लेकिन राधिका ने मुझे कुछ नहीं कहा।

थोड़ी देर बाद हम घर पर आ गए। राधिका अपने कपड़े बदल कर रसोई में चली गई। मैं भी कपड़े बदल कर हॉल में टीवी देखने बैठ गया।

तभी राधिका ने मुझे बुलाया- पंकज जरा रसोई में आना।

मैं खड़ा होकर रसोई में चला गया।
मैंने देखा राधिका ने बिल्कुल ही पतला सा नाईट-गाउन पहन रखा है.. जिसके कारण राधिका का जिस्म मुझे बिल्कुल साफ दिख रहा था।
मेरी नजर एकटक राधिका को देख रही थीं।

तभी राधिका ने कहा- मुझे ऐसे क्या देख रहे हो.. पहले कभी किसी को नहीं देखा?

मैं डर गया और कहा- ऐसी कोई बात नहीं है.. आज से पहले कभी इतनी खुबसूरत स्त्री को नहीं देखा है.. खाश तौर पर ऐसी नाईट-ड्रेस में तो किसी को नहीं..

तो राधिका ने मुझसे पूछा- ऐसा इस ड्रेस में क्या है?

तो मैंने कहा- ड्रेस में नहीं.. इसे पहनने वाले में कुछ बात है।

तभी राधिका ने मुस्कुरा कर कहा- कोई तारीफ़ करना तो तुम बस वालों से सीखे.. अब तारीफ करना बंद करो और मेरी कुछ मदद करो।

मैंने कहा- ठीक है.. पर मुझे रसोई का काम नहीं आता।

तो राधिका ने कहा- कोई बात नहीं.. मैं सब सिखा दूंगी।

यह कहकर राधिका मेरे पीछे खड़ी हो गई जिससे राधिका के मम्मे मेरी कमर में चुभने लगे, मुझे बहुत आनन्द आ रहा था।

तभी राधिका ने मुझसे कहा- बस में तुम क्या कर रहे थे?

मैंने कहा- कुछ नहीं.. वो भीड़ होने के कारण.. मैं आपसे चिपक गया था और कोई बात नहीं।

राधिका ने कहा- ठीक है।

फिर मैं हॉल में बैठकर टीवी देखने लग गया।

राधिका ने खाना लगा कर मुझे बुलाया- पंकज खाना तैयार है.. आकर खा लो।

मैं खाना खाने चला गया.. खाना खाने के बाद मैं फिर टीवी देखने बैठ गया।

कुछ देर राधिका ने भी मेरे साथ बैठ कर टीवी देखा, फिर उसने मुझसे कहा- मैं सोने जा रही हूँ.. किसी चीज की जरूरत हो तो मुझे बुला लेना।

मैंने कहा- ठीक है।

वो कमरे में चली गई और मैं टीवी देखने लगा।

तभी राधिका ने मुझे आवाज लगाई- पंकज जरा कमरे में आना..

जब मैं कमरे में गया.. तो मैंने देखा राधिका सिर्फ ब्रा और पेटीकोट में थी। जिसे देखकर मैं पागल हो गया।

एक मन तो हुआ कि जाकर राधिका को चोद दूँ.. प्यार से नहीं तो जबरदस्ती ही चोद दूँ..

लेकिन मैंने खुद को संभाला और बोला- क्या बात है?

इस पर राधिका ने कहा- मेरी पीठ में दर्द हो रहा है.. जरा सी बाम लगा दो।

मैंने कहा- ठीक है आप लेट जाओ।

वो औंधी हो कर लेट गई.. और मैंने उसकी पीठ पर बाम लगानी शुरू कर दी।

जैसे-जैसे मैं उसकी नरम पीठ पर अपना हाथ फेर रहा था.. धीरे-धीरे मेरी हालत खराब होने लगी। मुझे फिर से बस वाला दौरा पड़ना चालू हो गया.. मेरा लौड़ा पूरी तरह से तन कर पैन्ट से बाहर आने के लिए उछलने लगा।

पीठ पर मालिश करवाते समय राधिका ने मुझसे कहा- पंकज.. जरा मेरी इस ब्रा के हुक को खोल कर.. ‘अच्छी’ तरह से मालिश कर दे।

मैंने ठीक वैसे ही किया.. राधिका के ब्रा का हुक खोल कर उसके नंगे जिस्म की मालिश करने लगा.. मालिश करते हुए धीरे-धीरे मैंने अपना हाथ राधिका के मम्मों पर लगाया और उसकी तरफ से कोई आपत्ति न होते देख मैं उसके मम्मों को मसलने लगा।

थोड़ी देर के बाद मैंने अपना हाथ हटा लिया.. इस पर राधिका ने कहा- क्या हुआ..? मालिश करो न.. मुझे बहुत मजा आ रहा है।

इस पर मैंने कहा- आपको तो मजा आ रहा है.. पर मेरी हालत ख़राब हो रही है।

तो राधिका ने हँस कर पूछा- क्यों.. क्या हुआ?

मैंने कुछ नहीं कहा.. तभी राधिका ने मेरा हाथ पकड़ कर बिस्तर पर खींच लिया और मेरी छाती पर बैठ गई।

कहने लगी- मुझे मालूम है.. तुम्हें क्या हुआ है।

यह कहकर उसने अपनी लटकती हुई ब्रा खोल दी.. अब मेरे सामने उसके मम्मे बिल्कुल नंगे थे।

राधिका ने अपनी चूचियों की तरफ इशारा करते हुए कहा- पंकज इनको पकड़ के इनका दूध निकाल कर पी जा..

मैंने भी ठीक वैसे ही किया। जब मैंने राधिका के मम्मों को छुआ तो मुझे यकीन ही नहीं हुआ कि किसी के मम्मे इतने नाजुक कैसे हो सकते हैं?

मैं राधिका के मम्मों को जोर से मसलने लगा.. तभी राधिका ने कहा- आह्ह.. जरा आराम से..

थोड़ी देर तक अपने मम्मों को दबवाने के बाद राधिका मेरे ऊपर से उठी और अपने पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया।

जैसे ही राधिका का पेटीकोट नीचे गिरा तो मैंने देखा कि उसने पेटीकोट के नीचे कुछ भी नहीं पहना था।

मैं उसे अपलक देखता ही रह गया।

तभी राधिका ने कहा- क्या हुआ मेरे राजा?

मैंने कहा- मैंने आज से पहले कभी किसी को ऐसे नहीं देखा।

तो राधिका ने पूछा- क्या आज से पहले तुमने कभी चुदाई नहीं की?

मैंने कहा- नहीं.. मगर ब्लू-फिल्म बहुत देखी हैं और मुठ मारकर रह जाता था।

तो राधिका ने कहा- मतलब मुझे ही तुम्हें सब कुछ सिखाना है।

मैंने कहा- मुझे कुछ-कुछ पता तो है.. जो नहीं मालूम है.. वो आप बता देना।

इस पर राधिका ने कहा- ठीक है.. मगर मेरी एक शर्त है।

मैंने कहा- मुझे आपकी सारी शर्त मंजूर हैं।

तो राधिका ने कहा- सुन तो लो.. मेरी पहली शर्त है कि तुम मुझे ‘आप’ नहीं बल्कि राधिका कहोगे..

मैंने कहा- ठीक है।

‘और दूसरी शर्त यह है कि मैं जब भी कहूँ.. तुम मुझे चोदोगे।’

मैंने कहा- ठीक है..

अब राधिका ने कहा- पहले अपने सारे कपड़े खोल दो और पलंग पर लेट जाओ।

मैंने अपने सारे कपड़े खोल दिए और पलंग पर लेट गया। राधिका मेरे पास आकर बैठ गई और मेरे लौड़े को हाथ में लेकर हिलाने लगी.. मेरा लौड़ा तन्ना गया।

फिर अचानक राधिका मेरे लवड़े को अपने मुँह में लेकर लॉलीपॉप की तरह चूसने लगी।

मुझे बहुत मजा आ रहा था.. तभी एकदम से मेरे शरीर में करंट सा दौड़ गया और मेरे लौड़े से कुछ रस सा निकला.. जो सीधा राधिका के मुँह में गिर गया।

इस पर राधिका ने कहा- कोई बात नहीं.. पहली बार ऐसे ही होता है।

थोड़ी देर बाद राधिका मेरे ऊपर आकर बैठ गई और मुझे चुम्बन करने लगी।

कम से कम 8 -9 मिनट बाद मैंने राधिका से कहा- राधिका.. चल कुछ नया करते हैं।

इस पर राधिका ने अपने मुँह में लौड़े को लेकर फिर चूसने लगी.. जिसके कारण मेरा लौड़ा दुबारा तन कर खड़ा हो गया।

अब राधिका ने कहा- पंकज तुम भी मेरी चूत को चाटो।

मैं राधिका की चूत को चाटने लगा.. जैसे ही मैंने चूत पर अपना मुँह लगाया.. राधिका ने सिसकारियाँ भरनी शुरू कर दीं।

कुछ देर बाद राधिका की चूत से कुछ पानी निकला.. मैं उसे पी गया।

ऐसा रस मैंने कभी नहीं पिया था। मुझे बहुत अच्छा लगा।

हम काफी देर तक ऐसे ही एक-दूसरे को चाटते रहे।

फिर मैंने राधिका से कहा- राधिका.. अब मुझे लगता है कि मेरा पानी निकलने वाला है..

तभी राधिका ने मेरे लौड़े को मुँह से बाहर निकाला और मुझसे कहा- पंकज अब तुम अपने लंड को नीचे मेरी चूत में पेल दो.. लेकिन आराम से.. क्योंकि तुम्हारा सुपारा बड़ा है।

मैंने कहा- ठीक है.. जब दर्द हो तो कह देना.. मैं रुक जाऊँगा।

अब मैं लंड लगाने को हुआ और राधिका की चूत पर अपने लौड़े को लगाया तो गीलेपन के कारण लौड़ा फिसल गया।

इस पर राधिका ने गुस्से में कहा- भोसड़ी के.. अब मुझे ही बताना होगा कि तेरे लंड को चूत में कैसे डालना है।

उसने मेरे लौड़े को पकड़ कर अपनी चूत पर लगाया और कहा- अब जोर से धक्का मार..

मैंने वैसे ही किया.. एक जोर का धक्का लगाया और इसके साथ ही मेरा सुपारा राधिका की चूत में घुस गया।

राधिका जोर से चिल्ला उठी और बोली- हरामी.. धीरे डालने के लिए कहा था न..

मैंने- सॉरी यार.. अनाड़ी हूँ..

तो उसने कहा- कोई बात नहीं.. मैं समझ सकती हूँ.. लेकिन किसी और के साथ ऐसे मत करना.. वरना वो कहीं मर न जाए।

मैंने कहा- गुरू जी.. तुम्हारे होते हुए मुझे क्या डर और वैसे तुम हो ना.. मुझे सिखाने के लिए।

इस पर राधिका ने मुझसे कहा- कभी मैं न हुई तो?

मैंने कहा- अभी तुम मुझे अच्छी तरीके से तैयार कर देना।

राधिका ने कहा- ठीक है.. लेकिन अभी तो जो काम कहा है.. वो तो करो.. मुझे चोदो और मेरी प्यास बुझा दो।

मैंने कहा- ठीक है..

मैंने एक जोर का झटका लगाया.. मेरा पूरा लंड राधिका की चूत में घुस गया। फिर मैंने जोर से धक्के लगाने शुरू कर दिए।

करीबन आधा घंटे के बाद मैंने उससे कहा- मेरा अब पानी निकलने वाला है..

तो राधिका ने कहा- मुझे तुम्हारा पानी पीना है.. तुम अपना पानी मेरे मुँह में निकाल दो।

मैंने वैसे ही किया.. अपना लंड राधिका के मुँह में डाल दिया और सारा पानी राधिका के मुँह में निकाल दिया.. और थक कर राधिका के पास ही लेट गया।
राधिका भी थक चुकी थी।

थोड़ी देर बाद राधिका ने कहा- पंकज आज के जैसा मजा मुझे पहले कभी नहीं मिला।

राधिका ने मुझे चुम्बन किया और सो गई रात को राधिका ने मुझे जगाया और चोदने के लिए कहा।

उस रात मैंने राधिका को कम से कम 4 बार चोदा.. सुबह मेरी आंख 9 बजे खुली जब राधिका मेरे पास चाय लेकर आई।

मुझे चाय पीकर फिर से रात का कार्यक्रम चालू करने के लिए कहा।

दोस्तों में पहले ही थका हुआ था.. मगर शर्त के कारण मना भी नहीं कर सकता था।

राधिका ने मुझसे अनिल के आने तक खूब चुदवाया और मुझे नए तरीके भी बताए।

दोस्तों आपको मेरी कहानी कैसी लगी मुझे जरूर बताईएगा..
मैं अपनी अगली कहानी में आपको बताऊँगा कि राधिका ने मुझसे अपनी एक सहेली को भी चुदवाया।

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