मेरे प्यार की कीमत-4

(Mere Pyar Ki Keemat- Part 4)

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वो हमें इसी हालत में छोड़ कर अपने कपड़े पहन कर कमरे से निकल गया। कई घंटों तक शीतल मेरी तीमारदारी करती रही, जब तक मैं चल सकने लायक हो गई। फिर हम किसी तरह घर लौट आए।

मैं अपने घर तो शाम को पहुँची। वहाँ से सीधे शीतल के घर गई थी। भगवान का शुक्र है किसी को पता नहीं चला।

शीतल ने अपने वादे के मुताबिक मेरे रिश्ते की बात अपने मम्मी पापा से चलाई और वो मान भी गये। साथ ही साथ उसका रिश्ता भी आनन्द के साथ पक्का हो गया। छः महीने में ही हम दोनों की शादी की तारीख तय हो गई।

इन छः महीनों के दौरान आनन्द ने मुझे कई बार अलग अलग जगह पर बुला कर चोदा। उसके पास मेरी मूवी थी, वो तो एक वजह थी ही, लेकिन मुझे भी आनन्द के लंड का चस्का लग चुका था लेकिन मैं बता नहीं पा रही थी क्यूंकि वो शीतल का होने वाला था।

आनन्द ने एक दिन हम दोनों को वो मूवी दिखाई। मैं तो शर्म से पानी पानी हो गई पर शीतल ने खूब चटखारे लिए। मैं अब पूरी तरह आनन्द के चंगुल में थी। उसने मुझे अकेले में धमकी भी दे रखी थी कि उसकी बात अगर मैंने नहीं मानी तो वो यह फिल्म अंशु को दिखा देगा।

खैर मैंने समझौता कर लिया। शादी से कुछ ही दिन पहले आनन्द के किसी रिश्तेदार की मौत हो गई इसलिए उसकी और शीतल की शादी कुछ दिनों के लिए टल गई। मेरी और अंशु की शादी निश्चित दिन को ही होनी थी।

हमारे घर में शादी की तैयारियाँ चल रही थी। शीतल आनन्द को भी हमारे घर ले आती थी। दोनों की सगाई हो चुकी थी इसलिए किसी को किसी बात पर ऐतराज नहीं था।

हल्दी की रस्म शुरू होनी थी, मेरे घर वाले उसमें व्यस्त थे। मेरे कमरे में आकर शीतल मुझे लेकर बाथरूम में घुसी- अपने ये कपड़े खोल कर यह सूती साड़ी लपेट ले!

उसने कहा और मैं अपने कपड़े खोलने लगी।
तभी दरवाजे पर ठक ठक हुई।
‘कौन?’
पूछने पर फुसफुसती हुई आनन्द की आवाज़ आई..
शीतल ने हल्के से दरवाजा खोला और वो झट से बाथरूम में घुस गया।

‘मरवाओगे आप! इस तरह भरी महफ़िल में कोई देख लेगा तो बड़ी मुश्किल हो जाएगी! जम कर जूते पड़ेंगे!’ शीतल ने कहा।

मगर वो इतनी जल्दी मान जाने वाला इंसान था ही नहीं। वैसे भी यह बाथरूम हमारे बेडरूम से अटैच्ड था। इसलिए किसी को यहाँ आने से पहले दरवाजा खटखटाना पड़ता। आनन्द पहले से ही सारा इंतज़ाम करके आया था, दरवाजा अंदर से बंद कर दिया था।

‘आज तो रेखा बहुत ही सुंदर लग रही है!’ आनन्द ने कहा- आज तो इसे मैं तैयार करूँगा! तू हट!

शीतल मेरे पास से हट गई। आनन्द उसकी जगह आ गया। उसने मेरे कुर्ते को ऊँचा करना चालू किया। मैंने भी हाथ ऊँचे कर दिए। अब तक में इतनी बार आनन्द की हमबिस्तर हो चुकी थी कि अब उसके सामने कोई शर्म बाकी नहीं बची थी। सिर्फ़ किसी के आ जाने का डर सता रहा था।

उसने मेरे कुर्ते को बदन से अलग कर दिया, फिर मुझे पीछे घुमा कर मेरे ब्रा के हुक खोल दिए, फिर दोनों स्ट्रॅप को पकड़ कर कंधे से नीचे उतार दिए। मेरी ब्रा खुलकर उसके हाथों में आ गई। उसने उसे मेरे बदन से अलग कर अपने होंठों से चूमा और फिर शीतल को पकड़ा दिया।

फिर उसने मेरी सलवार के नाड़े को पकड़ कर उसे ढीला कर दिया। सलवार टाँगों से सरसराती हुई नीचे मेरे कदमों में ढेर हो गई।

फिर उसने मेरी पेंटी के एलास्टिक को दो ऊँगलियों से खींच कर चौड़ा किया। फिर अपने हाथ को धीरे धीरे नीचे ले गया। छोटी सी पेंटी बदन से केंचुली की तरह उतर गई। मैं उसके सामने अब बिल्कुल नंगी हो गई थी। उसने खींच कर मुझे शावर के नीचे कर दिया। फिर मेरे बदन को मसल मसल कर नहलाने लगा।

शीतल ने रोकना चाहा कि अभी यह सब करने का वक्त नहीं है लेकिन उसने कहा- तुम दोबारा नहला देना!

मुझे नहलाने के बाद उसने मेरे सारे बदन को पौंछ पौंछ कर सुखाया।

‘लो, रेखा को यह साड़ी पहनानी है। देर हो रही है उसे हल्दी लगवानी है।’ शीतल ने एक साड़ी आनन्द की तरफ बढ़ाई।

‘पहले मैं इसे अपने रस से नहला दूँ, फिर इसे कपड़े पहनाना।’ कह कर आनन्द ने मुझे बाथरूम में ही झुकने को मजबूर कर दिया। पहले आनन्द की ऐसी बदतमीजियों से मुझे सख़्त नफ़रत थी मगर आज कल जब भी वो मुझे ऐसे करता तो पता नहीं मुझे क्या हो जाता था, मैं चुपचाप उसके कहे अनुसार काम करने लगती थी और चुदाई के मज़े लेती थी मानो उसने मुझे किसी मोहपाश में बाँध रखा हो।

उसने पीछे से अपना लंड मेरी चूत में डाल दिया और मेरे उरोजों को मसलते हुए धक्के मारने लगा।

‘जल्दी चोदो! लोग बाहर खोजते हुए यहाँ आते होंगे!’ शीतल ने आनन्द से कहा।

वो मुझे धक्के खाते हुए देख रही थी- मेरी सहेली को क्या कोई रंडी समझ रखा है तूने। जब मूड आए टाँगें फैला कर ठोकने लगता है?’

आनन्द काफ़ी देर तक मुझे इस तरह चोदता रहा। फिर मेरी एक टाँग को ऊपर कर दिया। उस वक़्त मैं दीवार का सहारा लिए हुए खड़ी थी, मेरा एक पैर ज़मीन पर था दूसरे को उठा कर अपने हाथों में थाम रखा था। मेरी फैली हुई चूत में अपना लंड डाल कर फिर चोदने लगा। मगर इस पोज़िशन में वो ज़्यादा देर नहीं चोद सका और उसने मेरी टाँग को छोड़ दिया। अब उसने मुझे शीतल का सहारा लेने को मजबूर कर दिया और फिर चोदने लगा..

मैंने उसकी इस हरकत से तड़पते और मज़े लेते हुए अपने रज की वर्षा कर दी। वो भी अब छूटने ही वाला था। उसने अचानक अपना लंड बाहर निकाल लिया और मुझे घुटनों के बल झुका कर मेरे बदन को अपने वीर्य से भिगो दिया, चेहरे पर, वक्ष पर, पेट, टाँगों और यहाँ तक कि बालों में भी वीर्य के कतरे लगे हुए थे।

कुछ वीर्य उसने मेरी ब्रा के कप्स में डाल दिया। उसने फिर मसल कर मेरे बदन पर अपने वीर्य का लेप चढ़ा दिया। मेरा पूरा बदन चिपचिपा हो रहा था। फिर उसने मुझे उठा कर अपने वीर्य से भीगी हुई ब्रा को मुझे पहना दी। उसने फिर मुझे बाकी सारे कपड़े पहना दिए।

मैं बाथरूम से बाहर आ गई, शीतल ने आगे बढ़ कर दरवाजा खोल दिया और हम बाहर निकल गये।आनन्द दरवाजे के पीछे छुप गया था हमारे जाने के कुछ देर बाद जब वहाँ कोई नहीं बचा तो चुपचाप निकल कर चला गया। उसकी हरकतों से तो मेरा दिल काफ़ी देर तक ज़ोर ज़ोर से धड़कता रहा। शीतल के माथे पर भी पसीना चू रहा था।

हल्दी की रस्म अच्छी तरह पूरी हो गई। फिर कोई घटना नहीं हुई।

शादी के दिन में ब्यूटी पार्लर से मेकप करवा कर लौटी थी शाम को 6 बजे।

ब्यूटीशियन ने बहुत मेहनत से सँवारा था मुझे। मैं वैसे भी बहुत खूबसूरत हूँ इसलिए थोड़ी मेहनत से ही एकदम अप्सराओं की तरह लगने लगी, सुनहरी लहंगा-चोली में एकदम राजकुमारी सी लग रही थी, शीतल हर वक़्त साथ ही थी, काफ़ी देर से आनन्द कहीं नहीं दिखा था।

शादी के लिए एक मैरेज हॉल बुक किया गया था। उसकी दूसरी मंज़िल पर मेरे ठहरने का स्थान था। मैं अपनी सहेलियों से घिरी हुई बैठी थी। शाम को लगभग नौ बजे बैंड वालों का शोर सुनकर पता चला कि बारात आ रही है।

मेरी सहेलियाँ दौड़ कर खिड़की से झाँकने लगी। वहाँ अंधेरा होने से किसी की नज़र ऊपर खिड़की पर नहीं पड़ती थी। अब मेरी सहेलियाँ वहाँ से एके एक कर के खिसक गई। कुछ को तो बारात पर फूल वर्षा करनी थी और कुछ दूल्हे और बारात देखने के लिए भाग गई। यह कहानी आप अन्तर्वासना.कॉम पर पढ़ रहे हैं।

मैं कुछ देर के लिए बिल्कुल अकेली पड़ गई। एक दरवाजा पास के कमरे में खुलता था। अचानक वो दरवाजा खुला और आनन्द अंदर आया।

मैं इस वक़्त उसे देख कर एकदम घबरा गई, मन में चल रहा था कि आज भी मुझे चोद कर विदा करेगा क्या।

उसने आकर बाहर के दरवाजे को बंद कर दिया।

‘आनन्द, अब कोई ग़लत हरकत मत करना, किसी को पता चल गया तो मेरी जिंदगी बर्बाद हो जाएगी, सब थूकेंगे मुझ पर, मैं किसी को मुँह दिखाने के काबिल भी नहीं रह जाऊँगी।’ मैंने अपने हाथ जोड़ दिए वो चुप रहा।

‘देखो शादी के बाद जो चाहे कर लेना, जहाँ चाहे बुला लेना, मगर आज नहीं! आज मुझे छोड़ दो!’

‘अरे, आज तू इतनी सुंदर लग रही है कि तुमसे मिले बिना नहीं रह पाया। बस एक बार प्यार कर लेने दे!’ वो आकर मुझ से लिपट गया। मैं उससे अपने को अलग नहीं कर पा रही थी, डर था सारा मेकअप खराब नहीं हो जाए।

मैंने अपने शरीर को ढीला छोड़ दिया। उसने मेरे वक्ष पर हल्के से हाथ फेरा। शायद उसे भी मेकअप बिगड़ जाने का डर था।

‘आज तुझे इस वक़्त एक बार प्यार करना चाहता हूँ।’ कहकर उसने मेरे लहंगे को पकड़ा। मैं उसका मतलब समझ कर उसे मना करने लगी। मगर उसने सुना नहीं और मेरे लहंगे को कमर तक उठा दिया। फिर उसने मेरी गुलाबी पारदर्शी पेंटी को खींच कर निकाल दिया, उसे अपने पैंट की जेब में भर लिया।

फिर मुझे खुली हुई खिड़की पर झुका कर मेरे पीछे से सट गया। उसने अपने पैंट की ज़िप खोली और अपने खड़े लंड को मेरी चूत में पेल दिया।

मैं खिड़की की चौखट को पकड़ कर झुकी हुई थी और वो पीछे से मुझे ठोक रहा था। सामने बारात आ रही थी उसके स्वागत में भीड़ उमड़ी पड़ी थी और मैं दुल्हन किसी और से चुद रही थी। लगता था सब बारातियों के सामने चुद रही हूँ।

वहाँ अंधेरा और सामने एक पेड़ होने के कारण किसी की नज़र नहीं पड़ रही थी वरना ग़ज़ब ढा जाता। सामने नाच गाना चल रहा था। सब उसे देखने में व्यस्त थे और हम चुदाई कर रहे थे। कुछ देर में उसने ढेर सारा वीर्य मेरी चूत में डाल दिया। मेरा भी उसके साथ ही वीर्य निकल गया।

बारात अंदर आ चुकी थी..

तभी किसी ने दरवाजा खटखटाया तो आनन्द झपट कर बगल वाले कमरे की ओर लपका।

मैंने उसके हाथ को थाम लिया- मेरी पेंटी तो देते जाओ!’ मैंने कहा।

‘नहीं यह मेरे पास रहेगी।’ कह कर वो भाग गया।

दोबारा दरवाजा खटखटाया गया तो मैंने उठ कर दरवाजा खोल दिया। मेरी दो तीन सहेलियाँ अंदर आई।

‘क्या हुआ?’ उन्होंने पूछा।

‘कुछ नहीं! आँख लग गई थी थकान के कारण।’ मैंने बात को टाल दिया मगर शीतल समझ गई कि मैं आनन्द से चुदी हूँ। मैंने उसे अपने को घूरते पाया।

मैंने अपनी आँखें झुका ली।

‘चलो चलो, बारात आ गई है। आंटी-अंकल ज़यमाला के लिए बुला रहे हैं!’ सबने मुझे उठाया और मेरे हाथों में माला थमा दी। मैं उनके साथ माला थामे लोगों के बीच से धीरे धीरे चलते हुए स्टेज पर पहुँची। आनन्द का वीर्य बहता हुआ मेरे घुटनों तक आ रहा था।

पेंटी नहीं होने के कारण दोनों जांघें चिपचिपी हो रही थी।

मैंने उसी हालत में शादी की। पूरी शादी में जब भी आनन्द नज़र आया उसके हाथों के बीच मेरी गुलाबी पेंटी झांकती हुई मिली।

एक आदमी से शादी हो रही थी और दूसरे का वीर्य मेरी चूत से टपक रहा था। कैसी अजीब स्थिति थी…

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