प्रशंसिका ने दिल खोल कर चूत चुदवाई-8
(Prashansika Ne Dil Khol Kar Chut Chudwayi- Part 8)
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हम दोनों वहीं सो गये।
सुबह लगभग आठ के आस-पास नींद खुली, देखा तो रचना अभी भी सो रही थी।
मैंने उसे जगाया तो वो कुनमुनाते सी उठी।
सबसे पहले हम दोनों ने मिलकर कमरा साफ किया। इतने देर हम दोनों ने एक दूसरे से कोई बात नहीं की। बाहर बारिश भी रूक गई थी लेकिन बादल जिस तरह से थे, कभी भी फिर से बारिश हो सकती थी इसलिये हम दोनों जल्दी-जल्दी फ्रेश हुए और एक साथ नहाकर तैयार हो गये, नाश्ता करने के लिये हम दोनों ही बाहर चल दिये।
चाय नाश्ता करके हम लोग कमरे में पहुंचे ही थे कि एक बार फिर जोर से बारिश होने लगी।
मुझे ऑफिस भी जाना था, पर कोई साधन न मिलने के वजह से मैं निकल पाने में असमर्थ था तो मैंने कम्पनी में फोन करके आ पाने में असमर्थता बता दी।
दोस्तो, नशा शराब का हो या शवाब का… एक ऐसी चीज होती है कि एक बार लगने की देर है बस!
बाहर बारिश और अन्दर मैं और रचना जो एक पल को भी छोड़ना नहीं चाह रहे थे।
खास तौर से रचना, जैसे ही उसने मेरे ऑफिस की ना जाने की बात सुनी, तुरन्त ही उसने अपने पूरे कपड़े उतार दिए और मेरे पास आकर बोली- कल रात तो तुमने मेरी गांड के छेद को तो खोल दिया पर मजा नहीं आया था। चलो आज खुल के मजा लेते हैं।
मैंने कहा- खुल कर ही तो मजा ले रहे हैं, होटल में होते तो इतना मजा नहीं आता।
मेरे से बाते करते-करते उसने मुझे भी नंगा कर दिया और बोली- आज हम दोनों बारिश का मजा लेते हैं।
उसकी बातें अब मुझे जल्दी-जल्दी समझ में आने लगी थी और अब वो बारिश वाले आसमान के नीचे चुदने को तैयार थी।
वो मुझे लेकर छत पर चल दी, वो आगे-आगे थी और मैं उसके पीछे था।
वो बिन्दास छत पर चल दी और बारिश में घूम-घूम के नाचने लगी जिससे उसकी चूचियाँ इधर उधर उछल रही थी, उसके खुले बाल भी नागिन की तरह बल खा रहे थे।
मैं थोड़ा सा संकोच कर रहा था कि कहीं किसी छत पर कोई न हो।
पर वो नि:संकोच थी।
तभी मेरी नजर छत की बाउण्डरी पर पड़ी जो कि चारों ओर से काफी उठी हुई थी, जिसका मतलब यह था कि हम लोग कुछ भी करें किसी को कुछ पता नहीं चलने वाला था।
फिर मैं भी तन कर छत पर प्रवेश कर गया, जहाँ पर मेरी महबूबा बहुत ही मस्ती में नाच रही थी, गोल-गोल घूमते घूमते वो मेरी बाँहों में समा गई थी।
मेरे हाथ अकस्मात ही उसकी पीठ और चूतड़ को सहलाने लगे थे जबकि उसकी साँसें बहुत फूल रही थी।
जैसे-जैसे उसकी साँसें उसके काबू में आ रही थी, वैसे-वैसे उसका भी हाथ मेरे पीठ और चूतड़ को सहलाने लगे थे।
तभी मेरी नजर छत पर एक कोने पर गई, जहाँ पर कुर्सी जैसी उँचाई की तरह दो लोगो के बैठने के लिये चबूतरा बना हुआ था। उस जगह को देखकर मेरे मन में उस मकान को बनाने वाले के लिये धन्यवाद दिया कि जिस आसन से मैं रचना को चोदना चाह रहा था उसके लिये वो जगह बहुत ही उपयुक्त थी। क्योंकि उसका और मेरा दोनों का वजन कम से कम इतना तो था कि एक प्लास्टिक कुर्सी आसानी से टूट सकती थी।
मेरा लंड पहले से ही तना हुआ था और ऊपर से रचना की खुला यौवन मुझे उत्तेजित भी कर रहा था, मैं रचना दोनो एक दूसरे के होंठों के रस को पीते हुए उस पत्थर वाले आसन पर बैठ गये।
मेरा लंड तना हुआ था, मैंने रचना के बुर में लंड को सेट किया और हल्के से रचना के कंधे को दबाया तो वो मेरे ऊपर बैठ गई और मेरा लंड एक ही बार में उसकी चूत में घुस चुका था।
मैं, रचना और बारिश, बारिश की बूँदें रचना के होंठों को चूम रही थी और मेरे होंठों भी रचना के अनार जैसे लाल-लाल होंठों को चूस रहे थे, उसके होंठों का रस और साथ ही साथ बरसात के पानी की बूँदें एक खास तरह का स्वाद लग रहा था और ऊपर से रचना की पीठ सहलाते सहलाते उसकी गांड की फांकों के बीच उँगलियों को रगड़ना बड़ा आन्नद आ रहा था।
हम दोनो ही उत्तेजना के चरम पर थे, तभी रचना ने धीरे-धीरे हिलना शुरू किया और उसके बाद उसने स्पीड पकड़ ली उसकी स्पीड बढ़ती ही जा रही थी और दोनों के मुंह से आह-ओह… आह-ओह… की आवाज आ रही थी और फिर कुछ देर बाद ढीली पड़ गई उसके बाद वो मेरे ऊपर से उतरी मुझे उस पत्थर पर लेटाया और अपनी चूत को मेरे मुँह से लगा दिया।
मैंने उसके सोमरस का पान किया और उसके सोम रस के एक-एक बूँद को चाट गया।
उसके बाद रचना मेरे ऊपर से उठी और पत्थर पर डॉगी स्टाईल में खड़ी हो गई, मैं उसके पीछे आया और उसकी गांड में लंड को सेट किया और हल्के-हल्के धक्के मारना शुरू किया।
अब रचना की गांड और मेरे लंड के बीच जंग छिड़ चुकी थी, धप्प-धप्प की आवाज बहुत तेज-तेज आ रही थी, वो मेरे तरफ देखते हुए अपने होंठों को चबा रही थी, बीच-बीच में मेरे हाथ उसके चूतड़ों पर जोर जोर से थपकी दे देते थे।
अब मेरा एक ही काम था कि जब तक मेरे लंड का पानी न निकले, तब तक रचना की गांड और चूत दोनों का बाजा बजाते रहो, थोड़ी देर तक चूत चोदो थोड़ी देर तक गांड…
मेरा माल निकलने का नाम ही नहीं ले रहा था तो मैंने रचना को उसी पत्थर पर लेटाया और आगे से उसकी चूत को चोदने लगा, फिर उसकी दोनों टांगों को अपने कंधे पर रख कर चुदाई शुरू की।
केवल रचना को गोद में उठा कर नहीं चोद सका नहीं तो जितने आसन वो भी आसानी के साथ चोदा जा सकता था, उतने आसन से रचना को उस हल्की हो चुकी रिमझिम के बीच चोद रहा था।
अब मेरा माल भी बाहर आने को था, मैंने तुरन्त ही अपना लंड उसकी चूत से निकाला और मुसके मुँह में ठूँस दिया दो-चार धक्के के बाद ही मेरा पूरा वीर्य उसके मुँह के अन्दर था, जिसे वो गटक गई।
मेरा लंड ढीला हो चुका था, तभी रचना बोली- तुझे पेशाब लगी है?
‘हाँ…’ मैंने बोला।
तो वो बोली- मुझे भी लगी है।
‘तो क्या करना है?’
इतने में बारिश होना बंद हो गई थी।
तभी रचना बोली कि चल तू मेरी चूत में मूत और मैं तेरे लंड में मूतूँगी।
अब मुझे भी उसके इस पेशाब वाली हरकतों से कोई आपत्ति नहीं थी तो मैंने पूछ लिया- ये बता, पहले तू मूतेगी या मैं?
बोली- तू ही पहले मूत ले!
कहकर वो उस पत्थर पर लेट गई और अपने चूत की फांकों को खोल दिया।
मैंने लंड सेट किया और पेशाब की धार उसके चूत की तरफ कर दी।
आधा पेशाब करने के बाद मैंने उसकी गांड में पेशाब करने के लिये कहा तो वो तुरन्त ही घूम कर खड़ी हो गई और अपने गांड के छेद को भी खोल दिया और बोली- मुंह में भी करना हो तो बता देना!
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मैंने उसकी बात को अनसुना कर दिया और उसके गांड से सट कर खड़ा हो गया और मूतने लगा।
मूतने के बाद अब मेरी बारी थी उसका मूत को झेलने के लिये, मैंने तुरन्त ही उससे पूछा- रचना तू पहले मेरी गांड की धुलाई करेगी या फिर लंड की?
बोली- अबे भोसड़ी के… पहले मैं तेरी गांड में मूतूँगी उसके बाद लंड पे।
मैं पीछे की ओर घूम कर कुत्ते की तरह खड़ा हो गया और अपने गांड के छेद को उसके मूतने के लिये खोल दिया।
उसने एक बहुत ही तेज चपत मेरे पिछवाड़े पर लगाई, जिससे मैं बिलबिला पड़ा।
चपत लगाते ही बोली- अपनी गांड और नीची कर, मेरे चूत के सेन्टर पर कर!
खुद ही कर मैंने अपने चूतड़ को सहलाते हुए कहा- तू ही पकड़ के सेट कर !
उसने तुरन्त ही मेरे कमर को अपने हिसाब से सेट की और खुद ही मेरे गांड को फैला कर चूत सटा कर मूतने लगी, उसका गर्म-गर्म मूत जब मेरी गांड के अन्दर गया, तो जो उसके मूत की धार थी उससे मेरी गांड में एक अलग ही तरह से कुछ हो रहा था, जिसको मैं शब्दों में ब्यान नहीं कर सकता।
दोस्तो यदि आपकी महबूबा या पत्नी जो कोई भी यदि ऐसा खुल कर मजा लेती हो और आपकी गांड में मूतना चाहती हो मूतवा कर जरूर देखना बड़ा मजा आयेगा।
खैर मूतना रोकर कर उसने मुझे सीधा होने का इशारा किया, तो मैं सीधा होकर जमीन पर ही लेट गया और अपने लंड के खाल को खींच कर नीचे की तरफ कर दिया, जिससे मेरा सुपारा खोल से बाहर आ गया।
रचना अपने दोनों पैरों को सिकोड़ कर लंड पर निशाना बना कर मूतने लगी।
कसम से दोस्तो, सेक्स का एक यह भी मजा था।
मूत की धार पड़ने से लंड महराज के होश उड़ गये थे, सोचिये, जब मुझे उस मूत की धार का मजा आ रहा था, जिसको मैं शब्दो में बयान नहीं कर पा रहा हूँ तो सोचिये कि जब मैं उसके चूत के अन्दर मूत रहा था तो उसको कैसा लग रहा था।
मैंने उससे पूछा तो वो भी बोली- मजा तो बहुत आ रहा था, ऐसा लग रहा था कि किसी कटी हुई जगह पर किसी ने गरम पानी डाल दिया हो।
जैसे ही हम लोगों का यह खेल खत्म हुआ, वैसे ही एक बार फिर जोर से बारिश होने लगी, बारिश की मोटी-मोटी बूँदें हम दोनों के नंगे बदन पर कहर ढा रही थी।
मैं नीचे भागने वाला था कि रचना ने मुझे पकड़ लिया और उस पत्थर पर मुझे लेटा कर मेरे ऊपर अपनी चूत रख दी और फिर झुकते हुए मेरे लंड को अपने मुँह में रख ली।
मतलब दोस्तो, हम दोनों 69 की अवस्था में थे और एक दूसरे के चूत और लंड को चाट रहे थे और ऊपर से तेज होती हुई बारिश खेल का आनन्द बढ़ने लगा था।
मैं कभी उसकी क्लिट को दाँतों से काटता तो कभी क्लिट को जीभ की टिप से सहलाता या फिर क्लिट को सक करता और प्रतिक्रिया स्वरूप उसके मुँह से सीईईईईईई आह ओह का संगीत चलता।
इस तरह करते-करते उसकी कमर के हिस्से को थोड़ा सा अपनी तरफ और उठा लिया, इससे उसके चूत का छेद और गांड का छेद एक साथ दिख रहा था।
उसके दोनों ही छेद गुलाबी और आकर्षक दिखाई पड़ रहे थे।
अकस्मात मेरी जीव्हा उसकी गांड के छेद में चली गई और उसके छेद को सहलाने लगी और उसके कसैले स्वाद का आनन्द लेने लगी। फिर उसके चूत के छेद जिसे शायद कण्ट बोलते है, उसके अन्दर जाकर घूमने लगी और उसकी कण्ट के अन्दर का चिपचिपा पदार्थ मेरी जीभ के स्वाद को बढ़ा रहा था।
इधर मैं उसके साथ कर रहा था, उधर उसने मेरे लण्ड को कभी पूरा मुँह में लेती तो कभी सुपाड़े को चाटती तो कभी मेरे अण्डकोष को हाथ से दबाती जिसकी वजह से एक मीठा सा दर्द होता तो कभी अण्डकोश को पूरा मुँह में भर लेती।
हम दोनों तब तक एक दूसरे की चूत-गांड, लंड-गांड को चाटने में खोये हुए थे जब तक कि हम दोनों का वीर्य का स्वाद एक दूसरे ने ले न लिया हो और शरीर अकड़कर ढीला न पड़ गया हो।
हम दोनों के ही ऊपर बरसात का असर नहीं था और न ही उस खुली छत पर बहने वाली हवा का।
ठंडी-ठंडी हवा तो हम लोगों का उत्साह और बढ़ा ही रही थी।
फिर हम लोग एक दूसरे से अलग हुए और थोड़ी देर तक बरसात में भीगने का आनन्द लिया, फिर नीचे आकर शावर के नीचे दोनों एक दूसरे से चिपक कर नहाये।
अब जाकर हम लोगो को ठंड का अहसास होने लगा था इसलिये दोनों ने नंगे रहने का इरादा छोड़ कर कपड़े पहन लिये और एक-दूसरे से चिपक कर बाहर होती बारिश को देख रहे थे।
भूख लग रही थी पर…
कहानी जारी रहेगी।
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