पलक की चाहत-5

(Palak Ki Chahat-5)

This story is part of a series:

वो कहते कहते रुक गई …
“मैंने पूछा और क्या …?”
तो बोली- और तुझे यह भी बताना है कि मैं यह सब अंकित के साथ क्यों नहीं कर रही हूँ.. मैं तेरे साथ ही क्यों करना चाहती हूँ।
और वो मुझे तैयार होने को बोल कर बाथरूम में घुस गई और मुँह हाथ धोकर थोड़ी ही देर में बाहर आ गई।
मुझसे बोली- जा तू भी फ्रेश हो ले, तब तक मैं तैयार हो जाऊँ।

मैं अंदर गया और मुँह हाथ धोने के बजाय मैं नहा ही लिया। जब नहा कर मैं सिर्फ तौलिये में बाहर निकला तो तब तक वो कपड़े पहन कर लगभग तैयार हो चुकी थी…
मुझे तौलिये में देख कर बोली- तू शायद मुझे बाहर नहीं ले जाना चाहता?
मैंने कहा- मैंने क्या किया बे अब?
बोली- तेरा गीला बदन देख कर तेरे साथ सेक्स करने का मन कर रहा है!
मैंने कहा- बाद में कर लेना, फिलहाल भूख लगी है मुझे, चल कुछ खाकर आते हैं।

उसने खुद जींस और एक ढीली सी चेक कॉटन शर्ट पहनी थी और उसने मेरे लिए भी बिल्कुल वैसी ही शर्ट बनवाई थी तो उसने मेरे लिए भी वही कपड़े निकाल कर रख दिए थे।
मैंने जब तक कपड़े पहने उसने उसके बालों को रबर से बांध लिया।

मैं तैयार होकर उसके पास गया और उसे फिर से बाँहों में भर लिया, जवाब में उसने भी मेरी मेरी गर्दन में हाथ डाल कर मुझे होंठों पर चूमा और बोली- अब चलें? या तुझे जबरदस्ती करवानी है?
मैंने कहा- चल, चलते हैं!
और हम दोनों बाहर निकल गए…

हमने होटल के बाहर दुकान से दो पैक्ड लस्सी ली और पीते हुए पैदल ही घाट की तरफ चल दिए। रास्ते में ही पलक ने फोन करके घर पर बताया कि हम घाट पर जा रहे हैं और चिंता न करे घर पर कोई भी..

जब हम घाट पर पहुँचे तो लगभग साढ़े आठ हो रहे थे, ज्यादा भीड़ नहीं थी, पर रात चांदनी थी शायद पूनम के एक या दो दिन बाद की रात थी तो घाट पर चांदनी फैली हुई थी।

हम लोग घाट पर पहुँचे और पानी में पैर डाल कर बैठ गए। चांदनी रात, नदी का बहता हुआ पानी, सुहाना सा मौसम, और हल्की हवा! सब मिल कर ऐसे लग रहा था जैसे प्रकृति खुद कविता कह रही हो।
(इसके बाद की हमारी घाट पर की सारी बातें सिर्फ अंग्रेजी में ही हुई थी, मैं सिर्फ हिन्दी में ही लिख रहा हूँ )
हम दोनों थोड़ी देर तक ऐसे ही बैठे रहे, फिर मैंने कहा- अब बोल कि तू ..
और मैं चुप हो गया।

..अंकित के बजाय तेरे साथ क्यूँ करना चाहती हूँ? पलक मेरा अधूरा वाक्य पूरा करते हुए बोली।
मैंने कहा- हाँ!
तो पलक बोली- पहले मेरे कुछ सवालों के जवाब दे, फिर तुझे तेरे सवालों के जवाब मिल जायेंगे।
मैंने कहा- पूछ?
पलक बोली- जब मैंने तुझे कहा कि मेरी इच्छा है कि बिना कपड़े उतारे मुझे चरमसुख मिले तो क्या अंकित इस बात के लिए राजी होता?
“शायद नहीं!” मैंने जवाब दिया।
पलक बोली- पक्के से नहीं, वो इस बारे में मना कर चुका था जब मैंने उसे अपने दिल की बात बताई थी।
पलक फिर बोली- मेरे झड़ने के बाद जिस तरह से मेरे आराम के लिए तू बाथरूम की तरफ जा रहा था, क्या अंकित भी जाता? और इस बार तेरा जवाब निश्चित होना चाहिए!

मैं अंकित को अच्छी तरफ से जानता था, वो ऐसे हालातों में लड़की को छोड़ नहीं सकता था, चाहे लड़की की कोई भी हालत हो।
मैंने कहा- नहीं जाता!
“और तूने क्यूँ सिर्फ मेरी इच्छा का ध्यान रखा?” उसने पूछा।
मैंने कहा- तू जानती है कि मेरे लिए तेरी खुशी से ज्यादा जरूरी कुछ भी नहीं है तो कैसे ना ध्यान रखता?

पलक फिर बोली- शायद तुझे तेरे सवालों के जवाब मिल गए और सबसे बड़ी बात यह है कि वो मुझे प्यार नहीं करता, लेकिन तू करता है इसलिए मैं यह सब तेरे साथ करना चाहती हूँ अंकित के साथ नहीं!
मैंने कहा- मेरी बात मत कर! लेकिन अंकित तुझे प्यार नहीं करता, यह तो गलत है।
पलक बोली- नहीं, अंकित मुझे नहीं, मेरे शरीर को प्यार करता है और तू मेरी आत्मा को प्यार करता है। या अगर मैं यह कहूँ कि सिर्फ तू है जो मेरी आत्मा को प्यार करता है तो गलत नहीं होगा और मैं मेरा कौमार्य सिर्फ उसी इंसान के साथ खोना चाहती हूँ जो मेरी आत्मा को प्यार कर सके। मैं चाहती हूँ कि जब मैं अपनी आखिरी सांसें गिन रही हूँ और उस पल को सोचूँ तो भी मैं फिर से उस मंजर को वापस जी लूँ! और मुझे लगता है ऐसा सिर्फ तभी हो सकता है जब कोई मेरी आत्मा को प्यार करते हुए मेरे शरीर को प्यार करे और तेरे अलावा ऐसा कोई भी नहीं है।

मेरे पास कहने को कुछ नहीं था, मुझे लगता था कि मैं इस लड़की को अच्छी तरह से समझता हूँ लेकिन उस दिन मुझे पता चला कि मैं इसे नहीं समझता और आज तक भी मैं उस लड़की को पूरा नहीं समझ पाया हूँ। उस वक्त मैं एक अजीब से हालत से दो-चार हो रहा था..
मेरा दिल-दिमाग एक दूसरे से संतुलन ही नहीं बना पा रहा था।
तभी पलक बोली- चल यार, भूख लग रही है, खाना खाते हैं।
और तब मैंने ध्यान दिया कि उसकी आँखें गीली हो चुकी थी।

हम दोनों वहाँ से उठे, मैंने अपनी चप्पल हाथों में ही ले ली और और खाना खाने के लिए चल दिए।
कहानी अभी बाकी है।

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