जिस्म की जरूरत-7

(Jism ki Jarurat Chut Chudai Sex-7)

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उफ्फ… वो मखमली एहसास उन चूचियों का… मानो रेशम की दो गेंदों पर हाथ रख दिया हो।

मैंने धीरे से उनकी दोनों चूचियों को सहलाने के लिए अपने हाथों का दबाव बढ़ाया ही था कि अचानक से किसी के आने की आहट सुनाई दी।

‘माँ… माँ… आप यहाँ हो क्या?’ वन्दना चीखती हुई दरवाज़े के बाहर आ गई।

हम दोनों को एक झटका लगा और हम छिटक कर एक दूसरे से अलग खड़े हो गए… हमें काटो तो खून नहीं।
लेकिन जल्दी ही रेणुका जी ने हालत को संभाला और रसोई में अचानक से चाय का बर्तन उठा लिया और बाहर की तरफ निकलीं…

‘अरे वन्दना तुम तैयार हो गईं क्या… देखो न समीर जी अभी अभी उठे हैं और उनकी तबियत भी ठीक नहीं है इसलिए मैं उनके लिए चाय बना रही थी।’
रेणुका जी एक कुशल खिलाड़ी की तरह उस हालात को सँभालते हुए वन्दना को समझाने लगी और मेरी तरफ ऐसे देखने लगीं मानो सच में उन्हें मेरी चिंता है और वो मेरी मदद करने जा रही थीं, मानो अभी अभी जो कुछ होने जा रहा था वो कभी हुआ ही नहीं।

मैं उनके इस खेल से बहुत प्रभावित हुआ। इतनी समझ तो बस दिल्ली की खेली खाई चुदक्कड़ औरतों में ही देखी थी लेकिन आज पता चला कि चूत रखने वाली हर औरत अपनी चुदाई के लिए हर तरह की समझदारी रखती हैं… फिर चाहे वो बड़े बड़े शहरों की लण्डखोर हों या छोटे शहरों की शर्माती हुई देसी औरतें !

‘अरे… क्या हुआ समीर जी को?’ वन्दना यह कहते हुए अन्दर आ गई और मुझे रसोई के बाहर पसीने में भीगा देखते हुए तुरन्त मेरे पास आ गई और मेरा हाथ पकड़ कर मेरी नब्ज़ टटोलने लगी मानो मेरा बुखार चेक कर रही हो।

अभी थोड़ी देर पहले ही मैं उसकी माँ की चूचियों को सहला रहा था जिस कारण से मेरा शरीर गर्म हो गया था… यह गर्मी उसने महसूस की और अपने चेहरे पर चिंता के भाव ले आई।

‘हाँ माँ, इन्हें तो सच में बुखार है।’ वन्दना ने अपनी माँ की तरफ देखते हुए कहा।

‘मैंने तो पहले ही कहा था कि इनकी तबियत ठीक नहीं है।’ रेणुका जी ने वन्दना को जवाब दिया।

‘फिर तो आप आज इनका खाना भी बना देना और देखना कि ये बिस्तर से नीचे न उतरें।’ वन्दना ने अपनी माँ को हिदायत देते हुए मेरी तरफ दुखी शक्ल बनाकर कहा।

‘तू चिंता न कर वन्दना, मैं इनका पूरा ख्याल रखूँगी… आखिर ये हमारे पड़ोसी हैं और हमारा फ़र्ज़ बनता है कि हम इन्हें कोई तकलीफ न होने दें।’ रेणुका ने वन्दना को समझाते हुए कहा।

‘अगर आज हमारा पिताजी के साथ बाहर जाने का प्लान न होता तो मैं खुद इनकी सेवा करती… ‘ वन्दना ने बड़े ही भावुक शब्दों में कहा और अपनी माँ की तरफ लाचारी भरी निगाहें डालीं।

‘कोई बात नहीं बीटा… तुम अपने पिताजी के साथ जाओ और कल शाम तक लौट आना… जब तक तुम वापस आओगी मैं समीर जी को बिल्कुल ठीक कर दूँगी।’ रेणुका जी ने वन्दना को दिलासा दिलाते हुए कहा और एक बार मेरी तरफ शरारती अंदाज़ में देख कर मुस्कुराई।

मैं मुस्कुराने लगा और वन्दना को मेरी इतनी चिंता करने के लिए धन्यवाद दिया।

‘चलो मैं तुम लोगों को विदा कर देती हूँ फिर वापस आकर समीर जी के लिए चाय और नाश्ता बना दूँगी।’ रेणुका ने चाय का बर्तन रखने के लिए रसोई की तरफ कदम बढ़ाये और इधर वन्दना मेरे पास आकर खड़ी हो गई।

‘समीर जी, अपनी सेहत का ख्याल रखिये और आराम कीजिये, आशा करती हूँ कि मेरी माँ आपकी हर तरह से मदद करेंगी ताकि आप जल्दी ठीक हो जाएँ… फिर मैं कल वापस आकर चैक करुँगी कि आपकी तबियत ठीक हुई या नहीं।’ यह कहते हुए वन्दना ने मुझे ऊपर से नीचे तक देखा और वही हुआ जिसका डर था।

उसकी नज़र मेरे बरमूडा में छिपे सर उठाये शैतान पे चली गई जो अभी अभी उसकी माँ की गाण्ड को रगड़ कर तन गया था और लोहे की छड़ की तरह कड़क हो गया था।

उसकी आँखे खुल सी गईं और एक पल को वहीं अटक गईं।
उसने एक नज़र मेरी तरफ देखा मानो पूछना चाह रही हो कि यह क्या और क्यूँ है।
वन्दना की उम्र इतनी हो चुकी थी कि उसे इसका मतलब समझ में आ सकता था।
लेकिन उस वक़्त उसके मन में क्या सवाल आ रहे थे, यह बताना मुश्किल था।

उसके चेहरे पर बस उस तरह के भाव थे जैसे एक चूत को लंड देख कर होता है।

मेरे लिए यह एक अच्छी बात थी कि माँ तो माँ बेटी को भी इसका चस्का है। यानि मेरे लिए तो मज़े ही मज़े थे।

वन्दना की आँखें मेरे लंड पे टिकी थीं और तभी रेणुका जी बर्तन रख कर आईं और वन्दना का हाथ थम कर बाहर जाने लगीं।

उन्होंने मुड़कर मेरी तरफ देख और मुस्कुराते हुए कहा- समीर बाबू, आप तबतक फ्रेश हो लीजिये मैं अभी तुरन्त वापस आकर आपके लिए चाय और नाश्ते का इन्तजाम करती हूँ।

मैं तो ख़ुशी से पागल हो गया… एक तो रेणुका जी के मन में मुझसे चुदने का ख्याल भरा पड़ा था और ऊपर से यह भी पता चला किउसके पति अरविन्द जी और उनकी बेटी वन्दना कल शाम तक के लिए घर पर नहीं होंगे।
यानि कल शाम तक मैं रेणुका को नंगा करके उनकी खूबसूरत काया का जी भर के रसपान कर सकूँगा और उन्हें रहते दम तक चोदूँगा…
तीन महीनों के उपवास का इतना अच्छा फल मिलेगा, यह सोचा भी नहीं था।

मैंने फटाफट अपने ऑफिस में फोन कर दिया कि मेरी तबियत ठीक नहीं है और मैं दो दिन नहीं आऊँगा।

फिर जल्दी से बाथरूम में गया और फ्रेश होकर नहाने लगा।
नहाते नहाते अपने तड़प रहे लंड को सहलाने लगा और उसे मनाने लगा कि बेटा बस थोड़ी देर ठहर जा, फिर तो आज तेरा उपवास टूटने ही वाला है।
लेकिन वो हरामी माने तब न… ठुनक ठुनक कर अपनी उत्तेजना दर्शाने लगा… तब मज़बूरी में मुझे मुठ मरकर उसे शांत करना पड़ा।

मैंने यह सोच कर भी मुठ मार लिया था ताकि रेणुका जी को देर तक और मज़े ले लेकर चोद सकूँगा।

मैंने ख़ुशी के मारे बाहर का दरवाज़ा बंद ही नहीं किया था और बस बाथरूम में घुस कर नहाने लगा था।

जब बाथरूम से बाहर निकला तो मैंने एक तौलिया लपेट रखा था।

जैसे ही बाहर आया तो देखा की बाहर का दरवाज़ा लॉक है और रसोई से बर्तनों की आवाज़ आ रही है, मैं समझ गया कि रेणुका ही होगी…

मैं दबे पाँव रसोई की तरफ बढ़ा तो देखा कि रेणुका दीवार की तरफ मुँह करके चूल्हे पर दूध गर्म कर रही थी।

मुझसे रहा न गया और मैंने आगे बढ़कर पीछे से उन्हें अपनी बाहों में जकड़ लिया।

मेरी दोनों बाहों में सिमट कर रेणुका चौक पड़ी और गर्दन घुमाकर मुझे देखने लगी।

उनकी आँखों में एक शर्म, एक झिझक और इन सब के साथ लंड लेने की तड़प साफ़ दिखाई दे रही थी।

‘ओह्ह… छोड़िये भी समीर जी… क्या कर रहे हैं… कोई देख लेगा तो मुसीबत आ जाएगी !!’… रेणुका ने मुझसे लिपटते हुए बड़े ही सेक्सी आवाज़ में कहा।

बस इतना इशारा काफी था… दोस्तो, जब कोई लड़की या औरत आपसे यह कहे कि कोई देख लेगा तब समझो कि उसकी चूत में कीड़ा काट रहा है और वो चाहते हुए भी न चाहने का नाटक कर रही है।

मैं तो पहले से ही इन बातों का आदी था… सो मैंने उनकी एक न सुनी और उन्हें घुमाकर अपनी बाहों में भर लिया।

उनका चेहरा मेरी चौड़ी छाती से चिपक गया और उन्होंने तेज़ तेज़ साँसों के साथ अपनी आँखें बंद कर लीं।

उनके हाथ अब भी बिना किसी करकट के शिथिल पड़े थे और मैं उन्हें अपने बाहों में मसल रहा था।

उनकी गुन्दाज़ चूचियों को अपने बदन पे साफ़ महसूस कर सकता था मैं जो धीरे धीरे अपना आकार बढ़ा रही थीं।

‘उफ… छोड़िये न समीर बाबू… दूध उबल जायेगा…’ रेणुका ने मुझसे चिपके हुए ही मुझे छोड़ने की मिन्नत की लेकिन वो खुद हटना नहीं चाह रही थी।

मैंने धीरे से उन्हें अपनी बाहों से आजाद किया और उन्हें अपने सामने खड़ा किया ताकि मैं उन्हें ठीक से देख सकूँ।

रेणुका काँप रही थी और उनकी साँसें बहुत तेज़ चल रही थीं।

जब मैंने उसे अलग किया तब उन्होंने अचानक अपनी आँखें खोली मानो यूँ अलग होना उन्हें अच्छा नहीं लगा हो।
उन्होंने प्रश्नवाचक अंदाज़ में मेरी आँखों में देखा।
‘आप ठीक कह रही हैं… दूध तो सच में उबल रहा है… इसे तो शांत करना ही होगा…!!’ मैंने अपने हाथ उनकी चूचियों पे रखते हुए कहा।
‘उफ्फ… बड़े वो हैं आप!’ रेणुका ने लजाते हुए कहा और फिर वापस मुझसे लिपट गई।

‘हाय… वो मतलब… जरा हमें भी तो बताइए कि हम कैसे हैं..?’ मैंने उनकी चूचियों को दबाते हुए पूछा।

‘जाइए हम आपसे बात नहीं करते…’ रेणुका ने बड़े ही प्यार से कहा और मेरे सीने पे मुक्के मारने लगी।
कहानी जारी रहेगी।
आप अपने विचार मुझे भेज सकते हैं।

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