फेसबुक सखी-1

अन्तर्वासना के सभी पाठकों को नमस्कार। आपने मेरी लिखी कहानियों को सराहा और अपनी राय से मुझे अवगत कराया, इसके लिए धन्यवाद।

मेरी अभी हाल की कहानी ‘उतावली सोनम’ पढ़ने के बाद मुझे जिस तरह के मेल आए, और इतने ज्यादा मेल आए कि उन सबका जवाब देना मुझे मुश्किल हो गया, सो जितने को जवाब दे सका ठीक, जिन्हें जवाब नहीं दे पाया, वे मुझे माफ करेंगे, उनसे बात फिर कभी।

इस बार अभी हाल में ही मेरी फेसबुक फ्रेन्ड बनी युवती की कहानी को आपसे शेयर कर रहा हूँ।

इनका नाम मैंने अपनी पत्नी के अनुरोध पर गलत लिखा है, साथ ही यह अनुरोध भी आपसे कर रहा हूँ कि इनका नाम व फोन नंबर मुझसे ना मांगें क्योंकि वह मैं किसी को नहीं दूँगा। कहानी लिखने में मैंने कोशिश की है कि मेरी बात से आपका, खासकर मेरी इस कहानी की नायिका का, जिसे मैंने रीमा नाम दिया है, दिल न दुखे, पर किसी को मेरी कोई बात बुरी लगे तो कृपया मुझे माफ करेंगे। तो अब आपका ज्यादा समय न लेते हुए अपनी कहानी पर आता हूँ।

ड्यूटी से घर लौटने के बाद मैं अपना पीसी ऑन करके उसमें ही मेल का जवाब देते या फिर फेसबुक पर अपने पेज को अपडेट करने में लगा रहता। इससे मेरी बीवी स्नेहा परेशान होती, व मुझे इसके लिए ताने भी मारा करती।

अभी कल ही मैं ड्यूटी से आकर पीसी पर बैठा तभी स्नेहा मेरे पास पहुँची, और खाना खाने के लिए पूछा।

मैंने कहा- बस 10 मिनट में आता हूँ !

स्नेहा बोली- घर आने के बाद ऐसे 10 मिनट का जवाब आप चार बार दे चुके हो। चलिए जल्दी खाना खाइए, फिर बैठे रहना।

यह बोलकर वह मेरे पास पहुँच गई, इस वक्त मैं अपनी एक फीमेल फैन से याहू मैसेंजर पर चैट कर रहा था। हमारी चैट बहुत सैक्सी या यूँ कहें कि इस चैट में ही हम चुदाई कर रहे थे।

स्नेहा ने हमारी चैट देखी और पूछा- कौन है यह सेक्सी बाला।

मैंने कहा- अभी दोस्त बनी है, मुझे इसके बारे में ज्यादा नहीं पता है।

स्नेहा बोली- क्या बात है ! अब आप जिनको जानते नहीं हैं, उनसे भी सैक्स कर रहे हैं क्या?

मैं बोला- हाँ, उन्हें भी तो सैक्स का मजा मिलना चाहिए ना !

स्नेहा बोली- अब के हालात पर मैंने एक दोहा बनाया है, सुनो !

“जस्सू बैठा झाड़ पर दियो लंड लटकाए, जिसको जितना चाहिए काट-काट ले जाए।”

मैं समझ गया कि इसका साहित्यिक प्रवचन शुरू हो गया है, मैं अब चैट नहीं कर पाऊँगा। सो अपनी दोस्त से विदा लेकर नेट व पीसी बन्द किया और रसोई की ओर बढ़ लिया।

खाना खाने व घर के दूसरे काम निपटाने के बाद मैं वापस पीसी रूम पहुँचा व नेट पर अपने दोस्तों से चैट करने लगा। तभी मेरी एक बहुत अच्छी मित्र रीमा का मैसेज आया कि उसे एक काम के सिलसिले में मेरे शहर भिलाई आना है, आपके शहर में सिविक सेंटर एरिया रेलवे स्टेशन से कितनी दूर पड़ेगा।

मैंने उससे पूछा- यहाँ आप किस काम से आ रही हैं और आने-जाने का कोई साधन हैं या नहीं?

वो बोली- वहाँ एक कोचिंग इंस्टीट्यूट है, मुझे उसमें जाना है और यदि संभव हुआ तो मैं कोचिंग भी यहीं से लूँगी। अभी आपका शहर मेरे लिए एकदम नया है, इसलिए जानना चाहती हूँ।

मैंने कहा- रीमा, तुम मेरे शहर में आ रही हो, इसलिए अब किसी भी चीज की चिन्ता मत करना। तुम वहाँ से जब ट्रेन में बैठोगी, तब मुझे सूचना दे देना, बाकी यहाँ तुम्हारे रहने खाने,घूमने के सब इंतजाम मैं कर दूँगा।

वह बोली- वहाँ मुझे बस एक दिन का काम है। वहाँ से कुछ दूर बिलासपुर में ही मेरे एक रिश्तेदार भी रहते हैं, पर उन्हें मेरी वजह से परेशानी ना हो इसलिए अभी उन्हें सूचित नहीं किया।

मैं बोला- तु्म यहाँ की कोई चिन्ता मत करो, पापा मम्मी को बता दो कि निश्चिंत रहें, हम यहाँ तुम्हारा पूरा ख्याल रखेंगे।

वह बोली- पापा नहीं मानेंगे ना !

मैं बोला- तुम अपने पापा का नंबर मुझे दो, मैं बात करता हूँ उनसे।

उसने नंबर दिया व अपनी एक सहेली रश्मि का नाम देकर बोली- आप उसके परिचित हो बताकर यह बोलना कि उसने ही रीमा की कोचिंग के बारे में पता लगाकर यहाँ उसकी सहायता करने को कहा है।

मुझे भी लगा कि रीना ने यह सही किया, क्योंकि यदि मैं सीधा उन्हें रीना की मदद की बात करता तो वे ‘मैं कौन हूँ?’ इसकी चिंता में आ जाते, फिर रीमा उनके सवालों का जवाब देते-देते परेशान हो जाती।

मैंने स्नेहा को बुलाकर उसे पूरी स्थिति से अवगत कराया, व अब उसके पापा को फोन कर रीमा हमारे यहाँ रूकेगी, यह रिक्वेस्ट करने कहा।

स्नेहा बोली- जस्सूजी, रीमा यहाँ आ रही है, यह ठीक है पर मैं आपसे कह चुकी हूँ ना कि आप किसी कुंवारी लड़की से सैक्स नहीं करना, यह गलत होगा।

मैं बोला- सही में मैं उससे सैक्स नहीं करूँगा, वह तुम्हारे साथ ही रहेगी, और उसकी कोचिंग भी तुम्ही अपने साथ लेकर जाना।

इस तरह कुछ देर मनाने के बाद स्नेहा मानी। मैंने उसे रीमा के पापा का नंबर लगाकर फोन स्नेहा को दिया। स्नेहा ने रीमा के पापा को बताया कि रीमा की सहेली रश्मि हमारी रिश्तेदार है, उसने ही मुझे रीमा के यहाँ कोचिंग के लिए आने की जानकारी दी है। साथ ही आपका फोन नंबर देकर आपको चिंता न करने कहा है।

स्नेहा ने उन्हें कहा कि वह यहाँ हमारे घर में ही रहेगी और मैं उसे लेकर कोचिंग इंस्टीट्यूट व और जहाँ वह जाना चाहे लेकर जाऊंगी। स्नेहा की बात से रीमा के पापा काफी संतुष्ट लगे, उन्होंने बताया- नए शहर में उसे अकेले भेजने में बहुत टेंशन था, पहले मैं उसे लेकर आ रहा था, पर छुट्टी नहीं मिली। मेरा आना रूका, फिर बिलासपुर में रीमा की बुआ हैं, उन्हें फोन किया तो उनके लड़के की अभी दूसरे शहर में नौकरी लगी है। वो उसके साथ उसका नया घर जमाने चली गई है। सो उनके यहाँ से भी कोई नहीं जा पा रहा है। अब रीमा आपके शहर में बस आपके ही भरोसे है, उसका ध्यान रखिएगा।

स्नेहा बोली- आप उसकी चिंता बिल्कुल न करें, निश्चिंत होकर भेज दें, हाँ, उसे वहाँ से किस ट्रेन में बैठाएँगे, यह जरूर बता दीजिएगा, ताकि हम उसे यहाँ समय पर रिसीव कर सकें।

रीमा के पापा ने रीमा को फोन देते हुए कहा- इसे आना हैं, आप इससे ही बात कर लीजिए।

अब रीमा और स्नेहा में बात हुई। स्नेहा को उसने बताया कि वह तीसरे दिन वहाँ से निकलेगी और चौथे दिन सुबह हमारे शहर पहुँच जाएगी। उसने स्नेहा को ट्रेन का नाम भी बताया। स्नेहा से मैंने रीमा से बात करने के लिए फोन मांगा, पर उसने मुझे फोन नहीं दी और रीमा से खुद ही बात करती रही। आखिर में उसने कहा कि तुम ट्रेन से उतरकर स्टेशन पर ही हमारा इंतजार करना, मैं व जस्सूजी जल्दी ही तुम्हें लेने पहुँच जाएंगे। हाँ अपना फोन तुम आन ही रखना, क्यूंकि हमने तुम्हें देखा नहीं है, इसलिए पहचान नहीं पाएंगे।

कुछ इस तरह की बातों के बाद स्नेहा ने फोन रखा और बताया- उसे आने में चार दिन का समय है, पर जस्सूजी, मेरा यह निवेदन है कि आप लोग प्लीज यहाँ सैक्स नहीं करेंगे, क्योंकि उसके बारे में मैंने उनके पापा को निश्चिंत रहने का आश्वासन दिया है। रीमा खुद कहे तब भी आप उसे नहीं चोदेंगे, आप यह वादा करिए तभी मैं उसे यहाँ रहने दूंगी, नहीं तो उसके पापा को बोल दूंगी कि हम लोग बाहर जा रहें हैं सो वे यदि रीमा को यहाँ भेज रहें हो तो खुद आएं या किसी और को उसके साथ भेजें।

स्नेहा का अब यह रूख देखकर मेरी हवा गुल हो गई, और तुरंत स्नेहा की चिरौरी करने लगा। आखिरकार मैंने स्नेहा को आश्वासन दिया कि मैं यहाँ उसके साथ सैक्स नहीं करूँगा। तब कहीं स्नेहा उसे अपनी कस्टडी में रखने तैयार हुई।

दूसरे दिन रीमा मुझसे फेसबुक में मिली तब मैंने उसे बताया कि बाकी सब तो ठीक हैं यार पर हम इतने दिन की दोस्ती के बाद अब जब मिल रहे हैं तो भी कोई फायदा नहीं होगा, क्योंकि हम सैक्स नहीं कर पाएंगे। स्नेहा तुम पर नजर रखेगी और मुझसे भी यह कमिट्मेंट ले ली है।

रीमा बोली- यहाँ मम्मी-पापा भी आपकी कस्टडी में मेरे यहाँ के प्रवास पर खुश हैं, और वो जैसा भरोसा जता रहे हैं, उससे मुझे भी वहाँ सैक्स करना चोरी जैसा लग रहा है।

मैं बोला- वाह, स्नेहा तो पहले ही ‘नजर रखूंगी’ बोल रही है, अब तुम्हें भी सैक्स नहीं करना। तुम दोनों के इस दिल-बदल से मेरा लंड तो रह गया ना भूखा बिचारा।

रीमा बोली- आप सही कह रहे हो, मैं कुछ सोचती हूँ आपके बारे में।

मैं बोला- हाँ हाँ ! सोचो, ताकि मेरा कुछ भला हो सके।

इसके बाद रीमा से मेरी चैटिंग एक दो बार और हुई, पर तब भी वो ‘जुगाड़ लगा रही हूँ, जम जाएगा तब आपको बताऊंगी।’ कहती रही।

पर वह क्या जुगाड़ कर रही है, इसके बारे में पूछने पर भी नहीं बताया। हाँ, रीमा को जिस दिन यहाँ के लिए निकलना था, उस दिन शाम को स्टेशन से ही रीमा का फोन आया, रीमा बोली- जस्सूजी, मैं यहाँ ट्रेन में बैठ चुकी हूँ। कल सुबह आपके पास होऊँगी।

मैं बोला- ठीक है ना, आइए। अपना काम करके और मेरा खडा लंड छोड़कर चले जाइए, आइए स्वागत है आपका।

रीमा बोली- पापा, हमें छोड़ने स्टेशन आए हैं, ट्रेन छूटती है, तब मैं आपको बताती हूँ कि मैं आपके लिए क्या ला रही हूँ। हाँ, तब मैं

स्नेहाजी को भी अपने आने की सूचना दूंगी, इसलिए तब उनसे भी मेरी बात करा देना।

अब मैं सोच में पड़ गया- क्या ला रही होगी रीमा अपने साथ?

तभी पहले एक बार हुई बात का ध्यान आया, जब रीमा की किसी सहेली ने अपने ब्वाय फ्रेंड को सैक्स के लिए शादी तक रूकने की सलाह देते हुए उसे अपना काम निकालने के लिए एक सैक्सी डॉल गिफ्ट की थी। यह रबर की थी, व इसे फुग्गे की तरह फूंक मारकर ही फुलाना होता हैं, तब यह अपने आकार में आ जाती। इसमें चूत, गांड व मुंह में छेद बने हुए थे, आदमी जिसमें लंड डालकर चुदाई करता तो उसे ऐसा अहसास होता कि वह सही में किसी औरत को चोद रहा हैं।

यह ख्याल आते ही मैं दुखी हो गया, और सोचा कि रीमा मुझे डॉल देगी तो उसे बोलूंगा कि मैं चूत के लिए तरसता कोई कुंवारा लड़का नहीं हूँ रीमा, जिसे तुम यह बेजान डॉल दे रही हो। इससे मुझे मजा नहीं आता है, ऐसी डॉल पहले ही मेरे पास पड़ी हुई है, यह बोलकर उसे अपने पास पड़ी डॉल दिखा भी दूंगा।

इसी प्रकार के सब विचार मेरे दिमाग में आते रहे। थोड़ी देर बाद ही फोन की घंटी बजने से मेरी तन्द्रा भंग हुई। देखा तो रीमा का फोन था, वह मुझे डॉल देने वाली है, इस ख्याल से मेरा मूड बिगड़ा हुआ था, मैंने स्नेहा को आवाज दी और कहा- रीमा तुमसे बात करना चाहती है, लो !

बोलकर फोन उसे दे दिया, स्नेहा रीमा से बात करने लगी।

रीमा उसे कुछ बोली, बदले में स्नेहा बोली- ठीक है, यह अच्छी बात हैं हमें इससे कोई तकलीफ नहीं होगी, कोई बात नहीं आ जाओ।

यह बोलकर स्नेहा ने फोन बंद कर दिया।

मैंने पूछा- क्या बात है? क्या कहा उसने?

कहानी जारी रहेगी !
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