मुफ्त में हिजड़ों की गांड मारी

(Muft Me Hijadon Gaand Mari)

आज मैं आपको अपने एक दोस्त की बताई हुई कहानी सुनाने जा रहा हूँ। मुझे यह कहानी बहुत पसंद आई तो सोचा आपको भी सुना दूँ, शायद आप को भी पसंद आए।

मेरा नाम केवल कुमार है, मैं पुलिस में हवलदार हूँ।

बात कुछ महीने पहले की है, जब हमारी ड्यूटी इलैक्शन के कारण लगी। ड्यूटी भी कहाँ लगी- एक नदी के पुल पर!

मैं और मेरा एक सिपाही हम दोनों को उस पुल की सुरक्षा के लिए जाना था, हम दोनों अपना अपना समान बांध के चल पड़े।

सड़क से ही वो पुल करीब 2 किलोमीटर दूर था, बड़ी मुश्किल से पहुंचे, नजदीकी गाँव भी एक किलोमीटर के आस पास था, रेल गाड़ियाँ आती जाती थी, मगर इंसान कोई नहीं।

जब मैं और मेरा साथ वहाँ पहुंचे तो देखा पुल पर दो पुलिस वाले पहले से खड़े थे।

मैंने जाकर उनसे पूछा तो उनमें हवलदार से बोला- हमारी तो जी पक्की ड्यूटी लगी है यहाँ पर, हम तो दिन रात रहते हैं, पर यह समझ में नहीं आया कि जब हमारी ड्यूटी लगी है तो आपको क्यों भेज दिया।

खैर हमें तो हुक्म की पालना करनी थी तो बैठ गए उनके पास!
मैंने पूछा- यहाँ खाने पीने का क्या इंतजाम है?
वो बोला- खाने का कोई इंतजाम नहीं है, अपना खाना हम खुद यहाँ बनाते हैं, पीने को नदी का पानी है, और कुछ पीना हो तो अपना साथ ही लेकर आना पड़ता है।

मैंने कहा- तो अब तो दोपहर हो गई, अब क्या खाएँ।
वो बोला- हमने अपनी रोटी बनाई थी, आपसे बाँट लेते हैं।

थोड़ी देर बाद हम पुल से उतर कर नीचे नदी की तरफ चले गए। वहाँ पर उन्होंने एक छोटा सा झोंपड़ा सा बना रखा था, जिसमें स्टोव, और खाने पीने के लिए कुछ बर्तन वगैरह रख रखे थे।
हमने खाना खाया और वहीं छांव में लेट गए और आपस में बातें करने लगे। बहुत सी बातें की, बहुत कुछ जानने को मिला।

उसके बाद फिर ऊपर आकर पुल पल बैठ गए, ड्यूटी जो करनी थी।

करीब 6 बजे शाम को दोनों सिपाहियों को नीचे भेज दिया। नदी में मछली बहुत मिलती थी, उनकी ड्यूटी थी, काँटा डाल कर मछली पकड़ना और शाम की रोटी पकाना।

जब खाना बन गया, तो हम भी नीचे उतर आए।
बड़ी अच्छी खुश्बू आ रही थी खाने की, मगर अभी तो खाने का टाइम नहीं हुआ था, मैंने अपने बैग में से एक बोतल निकाली, सब के चेहरे खिल गए।
गिलास निकाले और ठंडा पानी नदी का, सबने चीयर्स कहा और पेग शुरू हो गया।

क्योंकि इतनी दूर कोई अफसर चेकिंग करने तो आने से रहा, इस लिए बेपरवाही थी।

पेग के साथ ही मछली भी खाई, हमारी तो यही दावत हो गई।

अभी एक एक पेग ही लगा था, तो ऊपर पुल से आवाज़ आई- अरे कोई है, नीचे कौन हो?
भारी मर्दाना आवाज़!

एक बार तो सबके टट्टे गले में आ गए कि कहीं कोई चेकिंग करने वाला अफसर तो नहीं आ गया?
मैं भागा भागा ऊपर गया।

ऊपर जाकर देखा, तो वहाँ पर दो हिजड़े खड़े थे।
मैंने पूछा- क्या हुआ?

उनमें से एक कोई 30 साल का था, नाम दलजीत, औरतों वाला सलवार कमीज़, सांवला सा रंग, सुंदर चेहरा, भारी मगर भरा हुआ बदन, ये मोटे मोटे बोबे।
दूसरा थोड़ा पतला मगर, उसके भी नाम किट्टू, जनाना सूट, थोड़े छोटे बोबे।

जो बड़े वाला था, वो बोला- हम इधर गाँव से आ रहे थे, इधर से गुजरे तो खाने की बहुत अच्छी खुशबू आ रही थी, तो सोचा अगर हमें भी कुछ खाने को मिल जाता।

पहले तो मैंने सोचा कि दोनों को भागा देता हूँ, या कह देता हूँ कि हमारे पास खाना कम है।
फिर सोचा कि ये भी तो इंसान हैं, इनको भी भूख लगी है, अगर हमारे साथ थोड़ा खाना बाँट भी लेंगे तो हमारे पास खाना कम थोड़े न पड़ जाएगा।

मैं उन्हें भी अपने साथ ही नीचे ले आया। हम तीनों नीचे आए तो दूसरा हवलदार बोला- रे भाई, इनको किस लिए पकड़ लाया?
मैंने कहा- अरे पकड़ कर नहीं लाया, खुशबू सूंघ के इनकी भूख जाग गई, सो इन्हें भी अपने साथ खाने के लिए ले आया। अब चार पुलिस वालों को देख कर पहले तो वो दोनों भी ठिठक गई।

मगर दूसरा हवलदार बोला- अब ले आया, तो आओ भाई बैठो।
वो दोनों भी हमारे साथ बैठ गए।

हम तो पी रहे थे, तो उनसे भी पूछा, उन्होंने भी हामी भर दी।

दो गिलास और लाये, उनको भी पेग बना कर दे दिये।
सब ने पी।

उसके बाद बातों का दौर फिर से शुरू हो गया।

अब दारू चीज़ ही ऐसी है कि दुश्मन को भी दोस्त बना देती है, अनजान लोगों से भी पहचान करवा देती है।
थोड़ी ही देर में हम सभी ऐसे हो गए जैसे दोस्त होते हैं।

पहली बोतल खत्म हो गई तो दूसरी बोतल निकाल ली गई, नदी का ठंडा पानी, और गरमा गरम मछली का सालन।

मगर सबसे पहले मुद्दे की बात पर आया मेरा सिपाही, बोला- यार, एक बात बताओ तुम! हमने आप लोगों के बारे में बहुत कुछ अजीब अजीब सा सुना है, पर असल में सच्चाई क्या है, आज हम देखना चाहेंगे।

तो दलजीत बोली- अरे यार, साफ बोल न हमको नंगा देखना चाहता है।
तो मेरा सिपाही बोला- अरे नहीं यार, नंगा नहीं देखना चाहता, पर जानना चाहता हूँ कि तुम्हारी सलवार के अंदर है क्या, ऊपर कमीज़ में तो पूरी औरत है, नीचे औरत है या मर्द है?
कह कर वो हंसा।

तो दलजीत उठ कर खड़ी हुई और अपनी सलवार का नाड़ा खोल कर पूरी सलवार ही उतार दी और उसके बाद कमीज उठा कर दिखाया, तो हम सबकी आँखें फटी की फटी रह गई।
जितना बड़ा लंड उसका था, इतना बड़ा तो हम में से किसी का भी नहीं था।

‘ये देख…’ दलजीत अपना लंड हिला कर दिखाती हुई बोली- और ये भी देख!
कह कर उसने अपनी कमीज़ भी उतार दी, नीचे काले रंग के ब्रा में कैद दो बहुत ही शानदार मोटे मोटे बोबे थे।

उसने ब्रा की हुक खोली और ब्रा भी उतार कर साइड पर फेंक दी, बिल्कुल नंगी हो गई। ऊपर 34 साइज़ के गोल, कटोरे जैसे, तने हुये बोबे, और नीचे केले जैसा, एक दम मस्त 7 इंच का लंड।

यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !

‘अब बोल, तुझे क्या चाहिए, बेटा बन के चुची पिएगा, या लौंडा बन के मेरा लंड चूसेगा?’

अब इस बात का जवाब तो हममें से किसी के पास भी नहीं था, हम सब चुप!
एक बार तो सोचा कि कहीं इनको बुला कर गलती तो नहीं कर ली।

मगर दलजीत फिर बोली- डरो मत, आपका नमक खाया है, कोई बदतमीजी नहीं करेंगे आपसे, आपके साथ जाम टकराया है, आप हमारे दोस्त हो, जैसे आपको ठीक लगे, वैसे ही चलेगा।

मुझे लगा के माहौल को थोड़ा बदलना चाहिए, मैंने कहा- यार, यहाँ बहुत गर्मी सी लग रही है, क्यों न पल के नीचे पानी में बैठ कर पेग लगाया जाए, पेग भी पिएंगे, और ठंडे पानी से गर्मी से बदन को राहत भी मिलेगी।

सबको यह आइडिया पसंद आया। हमने अपना अपना खाने पीने का सामान उठाया, और नीचे जहां पानी उथला था, वहाँ चले गए, वहीं पे साइड पे खाने पीने का सामान रख लिया और नदी के पानी में बैठने लगे।

दलजीत तो थी ही नंगी, वो तो पानी में लेट ही गई, उसको देख कर किट्टु ने भी अपने कपड़े उतार दिये और वो भी नंगी होकर पानी में घुस गई।
उसके चूचे छोटे छोटे थे, मगर लुल्ली किसी छोटे बच्चे जैसी थी।

अब हम सोच रहे थे कि हम क्या करें?
फिर सोचा कि यहाँ कौन देखने वाला है, हमने भी अपनी अपनी वर्दियाँ उतारी और सिर्फ कच्छे रहने दिये और बैठ गए पानी में।

क्या आनन्द आया, कमर तक पानी था, बाकी हम अपने हाथों से अपने ऊपर पानी डाल डाल कर अपने बदन को ठंडा कर रहे थे।
दलजीत बोली- क्यों क्या हुआ, बड़ी शर्म आ रही है मर्दों को, जो कच्छे पहने हो?
हमने एक दूसरे की तरफ देखा और उठ कर अपने अपने कच्छे भी उतार दिये।
हम चारों भी नंगे हो गए, मगर हम चारों में से किसी का भी लंड दलजीत जितना बड़ा नहीं था।

रात के करीब 8 बज चुके थे, अंधेरा हो गया था, मगर हमारी दारू और मछली खत्म नहीं हुई।
दारू पीते गए और नशा चढ़ता गया।

जब ज़्यादा ही नशा हो गया, तो दूसरे हवलदार ने दलजीत से पूछा- ओए दलजीत, नाच गाने के सिवा और भी कुछ करते हो?
दलजीत हमारी बात समझ गई, बोली- हाँ, गांड मरवाती हूँ, मैं भी और ये भी, बोलो, मारोगे?

हमारे तो लंड नाच उठे यह बात सुन कर!
मगर मैंने कहा- यार कोंडोम तो है नहीं हमारे पास, मारेंगे कैसे?

किट्टु बोली- कोंडोम की क्या ज़रूरत है, हम कौन सा प्रोफेशनल गांड मरवाती हैं, कभी कभी जब कभी दिल किया तो कर लेती हैं बस।

मेरा सिपाही उठा और दलजीत के पास बैठ गया।
मैंने देखा कि उसने दलजीत के बोबे पकड़े और दबा कर देखे- साली, तेरे तो बहुत सॉलिड है, इतने सख्त तो मेरी बीवी के भी नहीं!
बस इतना कहा और उसने तो जोड़ दिये अपने होंठ दलजीत के होंठों से।

शायद दलजीत को भी यह पता था कि उसके साथ ये सब होना है, वो भी बड़े आराम से बड़े मज़े से सिपाही के होंठ चूसने लगी।

यह देख कर हम सब भी शेर बन गए, और तीनों अपने अपने गिलास रख कर दलजीत के आस पास जाकर बैठ गए।
एक तो दारू का सुरूर, ऊपर से नंगा बदन सामने!

अगर दलजीत पूरी औरत नहीं थी, तो पूरी तरह से मर्द भी नहीं थी।
बस हर कोई उसका मुँह अपनी तरफ घुमाता और उसे चूमने लगता।

एक मिनट में ही उसका सारा चेहरा चाट गए हम, हर कोई उसके मोटे मोटे, सख्त बोबे दबा दबा के देख रहा था, कोई उसके लंड पकड़ के देख रहा था।
सबके अपने लंड भी अकड़े पड़े थे।

बस फिर क्या था, मैंने दलजीत टाँगे उठाई और अपने कंधो पे रखी, किट्टु से बोला- ओए किट्टु, ऐसा कर… ढेर सारा थूक लगा, मेरे लंड पर भी और इसकी गांड पर भी।

किट्टु ने पहले तो दलजीत की गांड पे थूक लगाया और फिर मेरा लंड अपने मुँह में लेकर चूसने लगी, चूसते चूसते उसने मेरे लंड को अपने थूक से गच्च कर दिया।

मैंने अपना लंड दलजीत की गांड पे रखा और उससे पूछा- डालूँ क्या?
वो बोली- रख कर पूछा नहीं करते, डाल देते हैं।

मैंने ज़ोर लगाया और मेरे लंड का टोपा उसकी गांड में घुस गया, पहले भी मरवाती होगी, इस लिए उसकी गांड ज़्यादा टाईट नहीं थी। 2-4 घस्से और मारे और मेरा सारा लंड दलजीत की गांड में घुस गया।

मैंने दलजीत को चोदना शुरू किया तो दूसरे हवलदार ने किट्टु को पकड़ लिया, उसको घोड़ी बनाया और उसकी गांड में भी लंड घुसेड़ दिया।
दोनों सहेलियों की साइड बाई साइड चुदाई शुरू हो गई और दोनों ऐसे शोर मचा रही थी, जैसे पहली बार किसी से चुद रही हों।
दोनों सिपाहियों ने दोनों के मुँह में अपने अपने लंड डाल दिया।

अब हम चारों जन उन दोनों को आगे और पीछे, दोनों तरफ से चोद रहे थे। दारू के नशे ने सबको वहशी बना दिया था, हम तो उन दोनों को जानवरों की तरह चोदने में लगे थे।
हर कोई यह चाह रहा था कि उन बेचारों के जिस भी छेद में हमने अपना लंड डाल रखा है, उस छेद को फाड़ कर रख दे।

उन दोनों बेचारियों की किसी चीख पुकार का असर हम पर नहीं हो रहा था।

करीब 10 मिनट की ताबड़तोड़ चुदाई के बाद मैं दलजीत की गांड में ही झड़ गया, अपना गर्म माल दलजीत की गांड में गिराने के बाद, मैंने अपना लंड बाहर निकाला और साइड पे ही ठंडी रेत पे लेट गया।

मेरे सिपाही ने जब देखा कि मैं फारिग हो चुका हूँ, तो उसने दलजीत के मुँह से अपना लंड निकाला और उसकी गांड में डाल दिया।
उधर वो दोनों किट्टु की तसल्ली करवाने में लगे थे।

दो मिनट बाद ही मेरा सिपाही और दूसरा हवलदार भी अपना अपना माल दलजीत और किट्टु की गांड में गिरा कर मेरे पास आकर लेट गए।

अब दूसरे सिपाही के पास दोनों थी, मगर उसने भी दलजीत को ही चुना।
औरत की तरह उसको सीधा लेटा कर, उसकी टाँगें उठाई और नीचे उसकी वीर्य से भरी गांड में अपना लंड डाल दिया।

उसके बाद तो उसके ऊपर लेट कर उसके बोबे दबाता हुआ, उसके होंठ चूसता हुआ, दलजीत की गांड मारने लगा। दलजीत भी पूरी किसी औरत की तरह ‘हाय मर गई, हाय मर गई’ बोल रही थी।

उस सिपाही ने यह नहीं देखा कि उससे पहले दलजीत को सभी ने अपना अपना लंड चुसवाया था, उसने तो दलजीत की होंठ काट खाये, उसकी गालों को चबा डाला और बड़े जोश से उसकी गांड मारने के बाद अपना माल से दलजीत की गांड भर दी।

किट्टु- सब मादरचोद इसी के पीछे पड़े हैं, मुझे तो सिर्फ चुसवाया, किसी ने ढंग से मेरी तो मारी ही नहीं?
दूसरा हवलदार बोला- तू थोड़ी देर रुक जा, अभी दुबारा गर्म होने दे, अगर तेरी माँ न चोद दी, तो कहना!
हम सब हंस पड़े।

फिर एक और दौर शुरू हुआ दारू का।
बिलकुल अंधेरा, सिर्फ चाँदनी, नदी से आने वाली ठंडी हवा, नीचे ठंडी रेत… ऊपर बैठे 6 जन, बिल्कुल नंगे।
दो-दो पेग और पीने के बाद हमने उनसे डांस करने को कहा।
और क्या क्या गीत सुनाये, उन लोगों ने हमें क्या डांस करके दिखाया… मज़ा ही आ गया।
हम भी साथ में नाचे।

नाचते नाचते खूब एक दूसरे के जिस्मों को नोचा, चूमा, चाटा और काटा।

फिर शुरू हुआ दूसरा दौर…

इस बार सबने किट्टु की ही गांड मारी और वो जम के मारी कि रोना आ गया उसे।
मगर दलजीत को सबने सिर्फ चूसा, और चूमा।

दूसरे शॉट के बाद सब मिल कर नदी के ठंडे पानी में नहाये, और फिर वहीं ठंडी रेत पर ही सो गए।

जिसकी जब आँख खुली उसने तब उठ कर दलजीत को चोदा।
सुबह 5 बजे के करीब दलजीत और किट्टु दोनों चली गई और हम नंगे ही सोते रहे।

करीब 8 बजे मेरी नींद खुली, देखा बाकी तीनों भी लंड अकड़ाये सो रहे थे।
मैंने सब को जगाया और ड्यूटी की याद दिलाई।

उसके बाद वहाँ पर हमने 5 दिन और ड्यूटी की मगर दोबारा कभी दलजीत या किट्टु नहीं आई।

हाँ, दारू और मछली की बहुत मौज उड़ाई।

कभी कभी मुफ्त में भी गांड मारने को मिल जाती है, और कभी कभी इतना दिल करता है चुदाई को मगर अपनी बीवी भी नहीं देती।
होता है कभी कभी…
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