वो कौन था?-3
(Vo Kaun Tha-3)
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एक दिन माला और मनोरमा दोनों परीक्षा देने गई थी, तभी रोहित आ गया।
मेरे फ्लैट का दरवाजा खुला था, वो अंदर आकर माला को पूछने लगा।
मैंने कहा- वो इम्तिहान देने गई है, शाम तक नहीं आने वाली !
तब उसने मुझसे एक गिलास पानी माँगा, मैं पानी लेने जैसे ही रसोई में गई, वो मेरे पीछे आ गया और मेरी कमर में हाथ डाल कर मुझे पकड़ लिया।
मैं बौखला गई, लगभग चीखी- छोड़ो… ओ ओ ..ओ ओ…
उसने घबरा कर मुझे छोड़ दिया और चला गया।
यह घटना मैंने माला को बताई, उसने रोहित को फोन किया, रोहित ने फोन पर मुझसे और माला दोनों से माफी मांगी। उसके बाद मैंने माला से कहा- रोहित को समझा देना ! साला बड़ा कमीना है।
वो बोली- भाभी, जाने दो न, अब वो ऐसा नहीं करेगा। यार भाभी तुम न… चलो छोड़ो !’
मेरा मूड ख़राब था।
तभी मनोरमा ने मेरे गले में हाथ डाल कर कहा- भाभी, ऐसा गोरा लम्बा बदन और 38-26-40 का फिगर लेकर मटक कर चलोगी तो किसी का भी मन खराब हो जाएगा… प्लीज गुस्सा छोड़ो…
मैं सामान्य होने लगी थी।
इस बीच एक और घटना हो गई, मनोरमा का छोटा भाई जो 18 साल का था, वो अपनी बहन के पास आया था।
उसका नाम मयंक था वो बड़ा ही मासूम लगता था, वो मुझे टुकुर टुकुर देखा करता था और भाभी भाभी करके मेरे आगे पीछे घूमता था।
वो माही को खिलाने के बहाने वो अकसर मेरे फ्लैट पर आ जाता था, बड़े प्यार से मेरी ओर देखता था जैसे मैं कोई परी या अप्सरा हूँ। बड़ा ही मासूम लड़का था।
एक दिन मैं उसे खाना देने गई, वो बाथरूम में नहा रहा था, उसकी कॉपी मेज पर रखी थी।
मैंने उत्सुकतावश वो कॉपी उठा ली और खोल कर देखने लगी।
‘ओ गॉड…’ मैं हक्की बक्की रह गई, उसने कॉपी पर मेरा फोटो चिपका रख था और नीचे लिखा था- मालिनी भाभी, आई लव यू… तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो…
मैं सन्न रह गई कि कहीं दूसरी कहानी न चालू हो जाए, मैंने किसी को भी यह बात न बताने का फैसला किया, सोचा कि अभी यह बहुत छोटा है, थोड़े दिन बाद सब भूल जायेगा।
उसके तीन दिन बाद मनोरमा मेरे पास आई, वो भी गांव जा रही थी पर जाते जाते वो भी एक खास बात बता कर गई- माला को रोहित ने कहा है कि वो किसी भी लड़की पर गलत नियत नहीं डालेगा, बस एक बार वो आपको चोदना चाहता है ! और माला भी अपने होने वाले पति की ख़ुशी के लिए धोके से आपको रोहित से चुदवाने के लिए राजी हो गई है। आप रोहित और माला से सावधान रहना और मेरी शादी में जरूर आना !
मैंने कहा- ठीक है।
पर मैं कुछ परेशान हो गई कि यह हो क्या रहा है।
खैर मनोरमा की शादी में शामिल होने दो दिन पहले उसके गांव श्रीपुर पहुँची। माही को मैंने घर पर ही छोड़ दिया क्योंकि मेरी सास उस समय हमारे साथ ही थी।
वहाँ शाम को जब मैं और माला मंदिर से वापस आ रही थी तो मेरा सामना गांव के गुण्डे शंकरन से हो गया। वो अपने तीन चार लड़कों के साथ गली की चाय की दुकान पर बैठा था।
वो मुझे देख कर गंदे गंदे फ़िकरे कसने लगा, बोला- अरे मोन्टू, देख माला के साथ तो शहर की बहार आ गई है, साली बड़ी सेक्सी है। मेरी ओर देख कर बोला- जान… न जाने कितनों ने तेरे नाम की मुठ मारी होगी ! और जिसने नहीं मारी होगी, रात को बिस्तर ख़राब किया होगा ! हा..हा..हा..हा..
मोन्टू बोला- बोलो उस्ताद, साली को पकड़ कर बिछा दूँ?
‘नहीं रे… जेल जाना है क्या… आजकल कानून बहुत सख्त है, बस दूर से ही आँख सेक ले !’
मैं और माला जल्दी जल्दी वहाँ से निकल गई। वो लोग बड़े भद्दे तरीके से हसंते रहे।
मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि आजकल मेरे साथ क्या हो रहा है। माला ने मुझे बताया कि यह गांव का गुण्डा है और लड़कियों और औरतों को अकेले देख कर परेशान करता है, इससे बच कर रहना।
मनोरमा की शादी के एक दिन पहले, रात के 9 बजे थे, उस वक्त तक उसके घर पर मेहमान काफी सारे आ गए थे, रोहित भी वहीं था और मयंक की तो बहन की ही शादी थी, वो भी वहीं था था, शंकरन भी वहाँ गांव के नाते आ गया था।
तभी लाइट चली गई।
माला ने कहा- भाभी, तुम ऊपर के कमरे में चली जाओ, मैं भी वहीं आ रही हूँ !
मैं अँधेरे में किसी तरह मोबाइल के उजाले में बाथरूम गई, जहाँ मुझे करीब 15 मिनट लगे, फिर मैं ऊपर चली गई।
लाइट अभी भी नहीं आई थी, मैंने आवाज दी- अरे माला, तू तो चादर औढ़ कर सो गई, मैं जरा बाथरूम में लेट हो गई।
इतना कहकर मैं भी वहीं उसकी बगल में सो गई।
थोड़ी देर बाद हरकत शुरू हो गई, वो मेरे ब्लाउज़ के बटन खोलने की कोशिश करने लगी, मेरे पेट पर हाथ घुमाने लगी।
मैंने सोचा, अभी तो यह मुझे सहलाएगी, बाद में मुझसे सब करवायेगी इसलिए मैं नींद में होने का नाटक करने लगी।
वो ब्लाउज़ के ऊपर से बोबे दबाने लगी, साड़ी को ऊपर सरकाते हुए जांघ सहलाने लगी, मेरी चूत पर उंगली फिराने लगी।
थोड़ी देर में मैं उत्तेजित हो गई और मजे लेने लगी।
जब मैं पूरी तरह उत्तेजित हो गई तो उसने मेरे बोबे खोल कर आजाद कर दिए पेटीकोट छोड़ कर एक तरफ कर दिया और पेंटी निकाल कर रख दी।
मैं अभी भी आँखें बंद करके मजा ले रही थी।
इसके बाद मेरी टांगें फैला दी उसने !
मैंने मन ही मन गाली दी- साली कुतिया, यहाँ भी डिल्डो साथ लाई है।
मुझे लगा कि वो खड़ी हो गई है, साली डिल्दो कमर पर लगा कर मुझे चोदने वाली है।
मैं आँखें बंद करके नंगी टाँगें फैला कर चूत आगे करके पड़ी थी, चुदने को तैयार थी।
इसके बाद वो मेरे ऊपर छाती गई, होंट से होंट मिल गए, छाती से छाती, उसने मेरे दोनों हाथ कस कर पकड़ लिए।
तभी मुझे आभास हुआ कि यह माला नहीं कोई और है, और मर्द है।
उसने अपना चेहरा मेरे कंधे पर सटा दिया था, मैं उसे देख पाने में असमर्थ थी।
उसने पैंट और अंडरवियर नीचे कर लण्ड बाहर निकाल लिया था और सुपारा मेरी चूत पर जमा दिया था। हल्के से धक्के से ही गीली और गर्म चूत में लंड धसता चला गया।
चूत को बहुत आराम मिला।
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जब चूत में चुदास उठती है तो उसे चुदने के अलावा कुछ नहीं सूझता। मैं सब जान लेने के बाद भी उसे नहीं हटा सकी, चुदाई का आनन्द सब पर भारी पड़ रहा था।
बोबे दब चुके थे, शरीर पर एक कपड़ा नहीं था, लंड चूत में जा चुका था, अगर मैं आवाज लगा कर सबको बुला कर बोलती तो भी मेरी ही बदनामी थी कि जब नंगी हुई तब क्या हुआ? जब बोबे दबवाए तब क्यों नहीं बोली? अब चूत में लंड डलवा कर चिल्ला रही है?
इसका मेरे पास कोई जवाब नहीं था।
मेरे पास चुदवाने और उसका मजा लेने के अलावा कोई रास्ता नहीं था, मैं उसके साथ सहयोग करने लगी, मुझे भी मजा आ रहा था, बहुत दिन के बाद कोई मर्द मुझे चोद रहा था।
मैं आज दो साल बाद पराये मर्द से सरप्राइज चुद रही थी, इस ख्याल से ही मेरी चूत झनझना उठी।
वो धक्का मार रहा था, मैं नीचे से चूतड़ उछाल रही थी, वो धक्के की स्पीड बढ़ा रहा था !
हाय ! मैं उसके लंड की ताकत की दीवानी हो रही थी… पूरे जोर से मुझे चोद रहा था, मेरे मुख से आवाज निकल रही थी- हाय… हाय… हाय और और.. जोर से… जोर से… और जोर से चोदो… चोदो… आज तेरा दिन है कमीने चोद ले… चोद ले… हीउउउ… उउउ… अहहअह… अहह आह… आह.. वाह मजा गया… उफ़… उफ़… उफ़… उफ़.. उफ़.. उफ़… ओओ… ओ… ओ…ओ…ओ… हाय… मैं झड़ रही हूँ… पेल…पेल… जोर से पेल हरामी… आज मैं फिर फिर पराये मर्द से चुदवा रही हूँ… मादरचोद… चोद ले… चोद ले…
उसके वीर्य की तेज पिचकारी मेरी चूत में छूटी, गर्म गर्म वीर्य मेरी चूत में गिर रह था, उसका आभास मुझे बहुत अच्छा लग रहा था, बड़े दिन बाद चूत में वीर्य गिरा था।
रमेश तो कंडोम लगाकर चोदता था।
उसके लंड ने तीन चार बार पिचकारी मेरी चूत में छोड़ दी, मेरी चूत उसके गर्म वीर्य से भर गई।
अपना काम ख़त्म करने के बाद वो फ़ौरन उठ कर अँधेरे में भाग गया।
मैं थोड़ी देर पड़ी रही, फिर कपड़े पहन लिए।
एक बार फिर मुझे फिर पराये मर्द से चुद जाने का अफ़सोस हो रहा था।
इसके दो घंटे बाद लाइट आई, तब माला आई।
मैंने बुझे स्वर में कहा- तुम कहाँ चली गई थी? मैं तेरा इन्जार कर रही थी।
वो बोली- मैं मनोरमा को मेंहदी लगा रही थी, वहाँ हमने बैटरी से लाइट की व्यवस्था की थी।
दूसरे दिन मनोरमा की शादी हो गई, मैं शाम की बस से बंगलौर आ गई, प्रेग्नेंसी रोकने की दवाई ली।
रात को सोते वक्त मैं सोच रही थी कि ‘वो कौन था जिसने मुझे चोदा?’
मैं आज तक पता नहीं लगा पाई कि ‘वो कौन था?’
पर मुझे तीन लोगों पर शक था:
1- क्या वह मयंक था? जो जवानी के जोश में अपना प्यार पाने की लिए आया था और मुझे चोद कर चला गया?
२ क्या वो रोहित था? जिससे माला ने मुझे धोखे से चुदवा दिया?
3 या फिर इतनी हिम्मत सिर्फ गांव के गुंडे शंकर की हो सकती है? जिसे मालूम था कि मैं ऊपर हूँ।
इसका जवाब मैं पाठको, आप पर छोड़ती हूँ, इसका जवाब मुझे मेल करके दें।
और यह भी बताएँ कि कहानी कैसी लगी? मुझे आपकी प्रतिक्रिया का इन्तज़ार रहेगा।
आप सब दुआ करें कि मुझे फिर कोई कहानी न लिखनी पड़े और न ही पराये मर्द से चुदवाना पड़े ! न ही किसी लड़कियों से मेरे समलैंगिक सम्बन्ध बनें।
आपकी मालिनी शर्मा
[email protected]
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