कमाल की हसीना हूँ मैं-14
(Kamaal Ki Haseena Hun Mai- Part 14)
This story is part of a series:
-
keyboard_arrow_left कमाल की हसीना हूँ मैं-13
-
keyboard_arrow_right कमाल की हसीना हूँ मैं-15
-
View all stories in series
मेरे जेठ फ़िरोज़ मेरे इस तरह उन्हें बुलाने से बहुत खुश हुए और मेरी बगल में लेट गये। हम दोनों की ओर देख कर जावेद दूसरी तरफ़ सरक गया और हमें जगह दे दी।
अब मेरा मजनूं मेरी बाँहों में था इसलिये मुझे कहीं और देखने की जरूरत नहीं थी। मैं उनके जिस्म से चिपकते ही सारी दुनिया से बेखबर हो गई। मुझे अब किसी बात की या किसी भी आदमी की चिंता नहीं थी। बस चिंता थी तो सिर्फ इतनी कि यह मेरा जेठ जो मुझे बेहद चाहता है, उसे मैं दुनिया भर की खुशियाँ दे दूँ।
फिरोज़ मेरे नंगे जिस्म से बुरी तरह लिपट गये, मैं भी उनसे किसी बेल की तरह लिपट गई। हम दोनों को देख कर ऐसा लग रहा था मानो जन्मों के भूखे हों और पहली बार सामने स्वादिष्ट भोजन मिला हो। उनके होंठ मेरे होंठों को रगड़ रहे थे। मैं भी उनके निचले होंठ को कभी काट रही थी तो कभी उनके मुँह के अंदर अपनी जीभ घुमाने लगती और वो अपनी जीभ से मेरी जीभ को सहलाने लगते।
“बहुत प्यासे हो?” मैंने उनके कानों में फुसफुसा कर कहा जिसे हम दोनों के अलावा किसी ने नहीं सुना।
“हम्म्म !” उन्होंने सिर्फ इतना कहा और मेरे जिस्म को चूमना जारी रखा।
“आज की सारी रात तुम्हारी है। आज जितना जी चाहे मुझे अपने रस से भिगो लो फिर पता नहीं कब मिलना हो। ना तो आज की रात मैं सोऊँगी ना एक पल को तुम्हें सोने दूँगी।”
मैंने अपने दाँतों से उनके कान के नीचे की लौ को काटते हुए कहा, “आज रात भर हम दोनों एक दूसरे की प्यास बुझायेंगे।”
उन्होंने मेरे उरोजों को अपने हाथों में थाम लिया और उसे चूमने लगे। मेरी नज़र अचानक पास में दूसरे जोड़े पर गई। उनकी चुदाई शुरू हो चुकी थी। जावेद नसरीन भाभी जान को पीछे से ठोकते हुए हम दोनों को देख रहा था।
नसरीन भाभी जान ‘आआहऽऽऽ ऊऊहहहऽऽऽ’ कर रही थीं। मुझे उस तरफ़ देखते देख फिरोज़ ने भी उनको देखा तो मैंने तड़प कर उनके सिर को अपनी दोनों छातियों के बीच दबाते हुए कहा, “नहीं आज और कहीं नहीं, आज सिर्फ मैं और तुम। सिर्फ हम दोनों.. क्या हो रहा है कहाँ हो रहा है…. कुछ भी मत देखो। सिर्फ मुझे देखो मुझे प्यार करो। मैं तड़प रही हूँ। मैं तुम्हारे भाई की बीवी हूँ मगर तुमने मुझे पागल बना दिया। मैं तुम पर पागल हो गई हूँ।”
मैं उनके सिर को पकड़ कर अपने निप्पल को उनके होंठों से रगड़ रही थी। आज तक मैंने कभी किसी के साथ सैक्स में इस तरह की हरकतें नहीं की थीं। मुझ पर शराब और कामुकता का मिलाजुला नशा सवार था। मैं जोर-जोर से बोल रही थी। मुझे अब किसी की परवाह नहीं थी कि कौन क्या सोचता है। मेरे निप्पल एक दम कड़क और फ़ूले हुए थे। मैं उन्हें फिरोज़ भाईजान के सीने पर रगड़ रही थी।
उनके छोटे-छोटे निप्पल से जब मेरे निप्पल रगड़ खाते तो एक सिहरन सी पूरे जिस्म में दौड़ जाती थी।
मैंने अपने हाथों में उनके लण्ड को थाम कर उसे अपनी चूत के ऊपर सटा कर दोनों जाँघों के बीच दबा लिया।
फिरोज़ भाईजान तो पूरे मस्त हो रहे थे। वो उसी हालत में अपने लंड को आगे पीछे करने लगे। दोनों जाँघों के बीच उनका लंड रगड़ खा रहा था। मैं करवट बदल कर उन्हें नीचे बिस्तर पर गिरा कर उनके ऊपर सवार हो गई, मैं उनके चेहरे को बेहताशा चूमे जा रही थी, सबसे पहले उनके होंठों को फिर दोनों बंद आँखों को फिर अपने होंठ उनके गालों पर फ़िरते हुए गले तक ले गई।
मैंने अपने दाँतों से फिरोज़ भाईजान की ठुड्डी को पकड़ लिया और अपने दाँतों को उन पर गड़ाते हुए उनकी ठुड्डी को चूसने लगी।
वो मेरे दोनों निप्पल को पकड़ कर उनसे खेल रहे थे। मैंने अपने जिस्म को कुछ ऊपर किया और उनके मुँह तक अपने मम्मों को ले आई। अपने एक निप्पल को उनके होंठों के ऊपर ऐसे लटका रखा था कि उनके होंठ लालच के मारे खुल गये और मेरे उस निप्पल को किसी अंगूर की तरह मुँह में लेने के लिये लपके लेकिन मैंने झटके से अपने जिस्म को पीछे करके उनके वार से अपने को बचाया।
मैं उनकी मायूसी पर हँस पड़ी, मैंने उनके सिर को बालों से पकड़ कर तकिये से दबा दिया। अब वो अपने सिर को नहीं हिला सकते थे। इस तरह उनको जकड़ कर उनके होंठों पर अपने निप्पल को हल्के-हल्के छुआने लगी। उन्हें इस तरह तरसाने में बहुत मज़ा आ रहा था।
उनके होंठ मेरे निप्पल को अपने मुँह में लेने के लिये तरस रहे थे। मैं साथ-साथ अपनी जाँघों को उनकी जाँघों के ऊपर मसल रही थी। मेरी चूत के ऊपर का उभार उनके लंड को पीस देने के लिये मसल रहा था।
मैं अपने निप्पल को उनके होंठों पर कुछ देर तक छुआने के बाद पूरे चेहरे के ऊपर फ़ेरने लगी। उनके जिस्म में सिहरन सी दौड़ती हुई, मैं महसूस कर रही थी।
मैं अपने निप्पल को उनके चेहरे पर फ़िराते हुए गले के ऊपर से होते हुए उनके सीने पर रगड़ने लगी। उनके सीने पर उगे घने काले बालों पर अपने निप्पल फ़िराते हुए मुझे बहुत मज़ा आ रहा था। उत्तेजना के मारे उनका लंड झटके खा रहा था। मैं अपने निप्पल से उनके सीने को सहलाते उनके पेट और उसके बीच उनकी नाभि पर छुआने लगी। सिहरन से उन्होंने पेट को अंदर खींच लिया था। मुझे उनको इस तरह उत्तेजित करने में बहुत मज़ा आ रहा था।
पास में नसरीन भाभी जान और जावेद में घमासान छिड़ा हुआ था। दोनों ही एक दूसरे को पछाड़ने के लिये जी जान से जुटे हुए थे। दोनों की चुदाई की रफ़्तार काफी बढ़ गई थी और दोनों के जिस्म पसीने से लथपथ हो रहे थे।
तभी जावेद ‘आआऽऽहहऽऽऽ.. उम्म्म्म’ करता हुआ अपनी भाभीजान के नंगे जिस्म के ऊपर पसर गया, उसका साथ देते हुए नसरीन भाभी भी अपने रस से जावेद के लंड को धोने लगीं। वो दोनों खलास हो कर एक दूसरे को चूमते हुए बुरी तरह हाँफ रहे थे।
हम दोनों इस रात को एक यादगार बना देना चाहते थे, इसलिये हमें सैक्स के खेल को शुरू करने की कोई जल्दबाज़ी नहीं थी। सारी रात हम दोनों को एक दूसरे के साथ ही रहना था इसलिये हम खूब मजे ले-ले कर एक दूसरे के साथ चुदाई से पहले के खेल का मज़ा ले रहे थे।
मैंने फिरोज़ भाईजान के लंड के ऊपर अपने निप्पल को फिराना शुरू किया। लंड की जड़ से लेकर टोपे के ऊपर तक अपने लंड को किसी रुई की तरह फ़िरा रही थी। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
उनका लंड तो उत्तेजना से फूल कर कुप्पा हो रहा था। उनके लंड की टिप पर कुछ बूँद प्री-कम चमकने लगा। वो बस लुढ़क कर बिस्तर को छूने वाला ही था कि मैंने लपक कर अपनी जीभ निकाल कर उसे चाट कर अपने मुँह में भर लिया। उसका स्वाद बहुत मज़ेदार लगा।
फिरोज़ भाईजान ने मेरे मम्मों को पकड़ कर उन्हें अपने लंड के ऊपर दाब कर मुझे इशारा किया कि मैं उनको अपने मम्मों से चोदूँ। मैं अपने दोनों मम्मों के बीच उनके मोटे लंड को दबा कर अपने जिस्म को आगे-पीछे करने लगी।
उन्हें इसमें मुझसे चोदने जैसा मज़ा मिल रहा था। इसलिये वो मुझे सहलाते हुए ‘आआहहऽऽ ऊऊहहऽऽऽ’ कर रहे थे।
कुछ देर उनके लंड को अपनी दोनों छातियों के बीच लेकर निचोड़ने के बाद मैंने उनके लंड पर अपनी जीभ फ़िरानी शुरू कर दी। अब फिरोज़ भाईजान के लिये अपनी उत्तेजना पर काबू कर पाना मुश्किल हो रहा था। उन्होंने मेरी कमर को खींच कर अपनी ओर किया। वो मेरी चूत को अपने मुँह में लेना चाहते थे इसलिये मैंने अपने दोनों घुटने मोड़ कर उनके सिर के दोनों ओर रख कर अपनी चूत को उनके होंठों से सटाया।
अब हम एकदम 69 के आसन में थे। मैं उनके लंड को चाट और चूस रही थी और वो मेरी चूत पर अपनी जीभ फ़िरा रहे थे।
जावेद और नसरीन भाभी एक दूसरे के नंगे जिस्म से खेलते हुए हमें देखते-देखते नींद की आगोश में चले गये थे। दोनों नंगे ही एक दूसरे की बाँहों में सो गये थे। लेकिन हम दोनों की आँखों से नींद कोसों दूर थी।
आज तो पूरी रात थकना और फिरोज़ भाईजान को थकाना था। फिरोज़ भाईजान मे री चूत की फाँकों को अपने दोनों हाथों की उँगलियाँ से फैला कर अपनी जीभ मेरे भगांकुर से लेकर अंदर तक फिराने लगे।
मैंने भी उनके उस मोटे लंड को अपने हाथों से पकड़ कर अपने मुँह में लिया। बीच-बीच में अपनी जीभ निकाल कर उनके लंड पर ऊपर से नीचे तक फिराने लगती।
मैं उनके लंड के नीचे लटकते हुए टट्टों को अपने मुँह में भर कर चूसने लगी। मैंने उन्हें सताने के लिये उनके लंड के टोपे पर हल्के से अपने दाँत गड़ा दिये।
वो ‘आआआह’ कर उठे और मुझसे बदला लेने के लिये मेरी भगनास को अपने दाँतों के बीच दबा लिया। मैं उत्तेजना से छटपटा उठी।
कहानी जारी रहेगी।
What did you think of this story??
Comments