भाभियों का दुःख

(Bhabhi Ka Dukh)

फ़ुलवा 2009-09-02 Comments

सुनिये जी ! कल रात फिर आपसे भूल हो गई है । इतनी जल्दबाजी में क्यूं रहते हैं ?

वैधानिक चेतावनी: अविवाहित व्यस्क इस व्यंग्य लेख को माँ-बाप से छिप कर पढ़ें (क्योंकि पढ़े बिना तो आप मानोगे नहीं)

सवेरे-सवेरे अनुलोम-विलोम, कपालभाति आदि निबटा कर जब चाय के साथ दुनिया जहान की खबरें पढने बैठता हूँ तो एक पता नहीं कौन सी भाभी जी हैं, आजकल हर दूसरे-तीसरे पेज पर अपना मुखड़ा सहित दुखड़ा लेकर चली आती हैं।

क्या कहूँ, “कल रात मेरे पति से फिर भूल हो गई !”

भाई साहब इधर शेयर मार्केट में आग लगी है, गठबन्धन सरकार की गाँठे खुल रही है, ट्रेनें बहक-बहक कर पटरियों को तलाक दे रही हैं, मेडिकल परीक्षापत्र लीक हो रहे हैं, सालियाँ प्रेममयी जीजाओं को ठेंगा दिखा यारों संग चम्पत हो रहीं हैं, मतलब कि और भी बहुत से गम हैं अखबार में इसके सिवाय कि इधर इनके पति से सोमवार रात भूल हुई थी इधर शुक्र की रात साला फिर भूल भलैया में फंस गया।

घोर विपदा में पड़ी इन भाभी जी के बारे में मैं विचार करने लगा कि इनके पति को कौन सी बीमारी हो सकती है? अल्जाईमर रोग हो सकता है क्योंकि इस बीमारी में मरीज की याद्दाश्त जाती रहती है या फिर भाईसाहब ने शादी ही प्रौढ़ावस्था में की होगी। उम्र के साथ साथ याद्दश्त पर भी असर पड़ने लगता है लेकिन ऐसी क्या बात है कि भाई साहब सप्ताह में दो-तीन बार ऐसी जरूरी बात भूल जाते हैं और दूसरे दिन भाभी जी इस हादसे की खबर शहर के हर अखबार के पहले पन्ने पर प्रकाशित करवा देती हैं।

मेरे नौ वर्षीय भतीजे से जब नहीं रहा गया तब वह जिज्ञासु पूछ ही बैठा- ताऊजी, इन आंटी के अंकल जी हर रात ऐसी क्या चीज भूल जाते हैं कि आंटी जी बार बार अखबार में इनकी शिकायत करती रहती हैं?

मैं क्या जवाब देता?

मैं खुद इस सवाल का जवाब ढूंढ रहा था।

अब भाभी जी भी कम भुलक्कड़ नहीं हैं। हर दूसरे तीसरे ये खबर छपवा देती हैं कि कल रात मेरे पति से भूल हो गई, पर अपने घर का पता या मोबाईल नम्बर छपवाना भूल जाती हैं। भई कुछ अता-पता दो, हम लोग घर पहुँच कर मामले की गंभीरता को समझें और गहराई से इस पहेली की पड़ताल करें कि साला मामला कहाँ से शुरू होता है और कहाँ जाकर खत्म होता है।

यह रोज रोज एक अबला का दर्द हम लोगों से अखबार में नहीं पढ़ा और सहा जायेगा।

बात क्या है? अगर भाई साहब इतने ही बड़े भारी भुलक्कड़ हैं तो दुनिया में भाई साहब लोगों का अकाल नहीं पड़ा है। आप इन भुलक्कड़ भाई साहब से अपना पल्लू झटक कर किसी दूसरे दिमागदार और याद्दाश्त के धनी भाई साहब से गठबंधन कर सकती हैं। पूज्य भाई साहब अगर कोई बहुत जरूरी जीच हर दूसरी-तीसरी रात भूल ही जाते हैं तो भाभी जी हमें बतायें, हम लोग उनकी इस भूल को दुरूस्त करने का भरसक प्रयास करेंगे।

तो मित्रों, सवेरे सवेरे एक सांवली सलोनी, हृष्ट पुष्ट (क्यूंकि भाभी जी यह खबर फोटो के साथ छपवाती हैं), मातम मनाती सुदंर स्त्री का विलाप पढ़ते-पढ़ते जब दिल और दिमाग दोनों जवाब दे गये तब जाकर पता चला कि भाई साहब रात में टोपी पहनना भूल जाते हैं और भाभी जी इस भरी जवानी में पैर भारी होने की टेंशन से पीड़ित हो कर सवेरे-सवेरे अपने नादान पति की कारगुजारी अखबार में छपवा देती हैं।

अब आप सोच रहे होंगे कि ये अखबार वाले भी न, एक नम्बर के शैतान होते हैं। इसी बहाने एक सुंदर महिला रोज-रोज इनके दफ्तर अपने पति की नादानियाँ सुनाने पहुँच जाती है और ये लोग भी अपना सारा काम-धाम छोड़कर, खूब चटकारे लेकर उनके पतिदेव की नादानियाँ सुनने में लग जाते होंगे।

नहीं मित्रों, ऐसी कोई बात नहीं है। न तो उन हसीन भाभीजी के पतिदेव रोज-रोज कोई भूल करते हैं और न ही वो अप्सरा अपना दुखड़ा लेकर रोज-रोज अखबार के दफ्तर पहुँची रहती हैं।

बात यह है कि एक दवा की कम्पनी है जिसकी एक दवा 72 घंटे के अंदर ऐसी किसी भी हसीन भूल-चूक, लेनी-देनी के कारण हुई टेंशन का निवारण करती है। सारा कसूर साली इस कम्पनी का था और हम बेवजह इन हसीन भाभी जी के पेट-पिरावन कष्ट को याद कर कर के पिलपिला रहे थे।

एक तो कम्बख्त आजकल यह भी पता नहीं चलता है कि अखबार में कौन सी चीज खबर है और कौन सी चीज विज्ञापन।

वैसे इस प्रकार की दवा कम्पनियाँ भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय पर उपकार ही कर रही हैं। यह एक हसीन सी जिस्मानी भूल-चूक, लेनी-देनी को माफ और साफ कर देती हैं और इसकी वजह से बाद में बेवजह के गर्भपात से भी छुटकारा मिल जाता है।

लेकिन इस दवा के कारण अब प्रेमी प्रेमिकाओं, स्कूली छात्र-छात्राओं, अपने धर्मपति से नाउम्मीद धर्मपत्नियों को या अपनी धर्मपत्नी से नाउम्मीद धर्मपतियों को, शादी का वादा करके एडवांस में सुहागरात मनाने वाले गंधर्व पुरूषों को एक सहूलियत मिल गई है। इस व्यभिचार को बढ़ावा देने के लिए भारत की पुरातन संस्कृति सदैव इन समाज सेवी दवा कम्पनियों की ऋणी रहेंगी।

तो यह कहानी थी दोस्तो, हसीन दुखियारी भाभी जी की।

इसके अलावा कुछ विज्ञापन और भी छपते हैं हृष्ट-पुष्ट, स्वस्थ नारियों के फोटो सहित, जिसमें उनके जिस्म के उभारों को नारी सौंदर्य का प्रतीक बताया जाता है और इन उभारों के प्राकृतिक, सामाजिक और आर्थिक महत्व को दर्शाया जाता है और साथ ही बताया जाता है कि इस प्राकृतिक नारी सौंदर्य के बिना आप अधूरी हैं । आपके इस अधूरेपन को पूरा करने का ठेका भी इनकी चिकित्सा के क्षेत्र में नोबेल प्राईज विनर दवाओं ने ले रखा है।

इसलिए अगर आप ठीक तरह से अपने प्रेमियों और पतियों को प्रेमरस से परिपूर्ण जिस्मानी सेवा नहीं दे पा रहीं है तो आपकी इस दुविधा को दूर करने के लिए हमें एक बार सेवा का मौका दें और एक बार हमारे बॉडी टोनर का प्रयोग करके देखें।

मित्रों, अब इन विज्ञापनों को पढ़ कर सत्तर-अस्सी प्रतिशत महिलाओं के मन में हीन भावना आ जायेगी कि मेरा शरीर मेरे साथी को संतुष्ट करने लायक नहीं है और दूसरी तरफ मर्दजात के मन में एक ख्वाईश पैदा हो जायेगी कि साथी हो तो ऐसा हो, नहीं तो न हो।

अब यह मेडिकल के छात्रों के लिए शोध का विषय है कि इस प्रकार के बॉडी टोनर से क्या वाकई में सभी महिलाओं के उभार पामेला एंडर्सन जैसी ऊंचाईयाँ प्राप्त कर लेंगे ?

खुदा जाने !

मेरी जानकारी में तो भगवान ने आपको जैसा शरीर दिया है उसमें बिना कॉस्मेटिक सर्जरी की मदद के कोई बदलाव नहीं लाया जा सकता है। लेकिन सवेरे-सवेरे इन हसीन भाभियों का दुःख पढ़ कर दिल भर आता है और फिर यह लगता है कि काश मैं इनकी कोई मदद कर पाता।

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