और वो चली गई- भाग 3

(Group Sex Story: Aur Vo Chali Gai- Part 3)

और वो चली गई- भाग 1
और वो चली गई- भाग 2

मध्य प्रदेश में गर्मियां बड़ी भयानक होती हैं. आप सभी को पता होगा कि अक्सर मर्द लोग गर्मियों में घर में अपने कपड़े उतार कर कच्छे-बनियान में ही घूमते रहते हैं. औरत ज्यादा से ज्यादा मैक्सी वगेरह ही डाल लेती हैं. ऐसे ही शहज़ाद भी करते थे घर पहुँच कर सबसे पहले ये भी कच्छे-बनियान में ही आ जाते थे.

एक बार मैंने इन्हें टोक दिया कि आप मर्दों की मौज है, गर्मियों में आराम से कच्छे बनियान में घूमते रहते हो!
तो इन्होंने बोला- तुम भी घूम लिया करो, तुम्हें कौन रोकता है!

मैं बोली- ऐसा थोड़ी होता है, शर्म-हया भी कोई चीज़ होती है, और फिर अचानक कोई आ जाए तो?
इन्होंने बोला कि पति-पत्नी में शर्म कैसी? मैं तो तुम्हारे सामने कच्छा उतार कर भी घूम सकता हूँ, दूसरी बात फ्लैट का दरवाज़ा तो बंद ही होता है कोई आएगा तो डोरबेल ही बजाएगा.

इन्होंने तो बस जिद ही पकड़ ली कि मैं भी कपड़े उतार कर घर में घूमूँ!
मैंने एक दो बार टाला परन्तु ये मेरे पीछे ही पड़ गए और रसोई में आ कर मेरी कमीज़ उतारने लगे. मैं अपने आप को छुड़वा कर बेडरूम में भाग गई. इन्होंने भी बेडरूम में आकर मुझे बेड पर गिरा दिया और ज़बरदस्ती मेरी सलवार-कमीज़ उतार दी.

मुझे बड़ी शर्म आ रही थी. इन्होंने आर्डर दिया कि उसी हालत में मैं रसोई में जा कर उनके लिए चाय बना कर लाऊं.

मैं रसोई में सिर्फ ब्रा और पेंटी में गई और चाय बना लाई और हम बेड पर उसी हालत में बैठे-बैठे चाय पीने लगे. अब तक मैं भी सहज हो गई थी.
फिर तो हमारी आदत ही बन गई, हम घर में घुसते ही सबसे पहले अपने कपड़े ही उतारते, घर का काम करते-करते एक दूसरे के अंगों से छेड़खानी भी कर देते.
वाकयी में मज़ा बहुत आता.

मैं भी अब सारी शर्म घर के बाहर ही छोड़ आती और घर में बिल्कुल बेशर्म ही रहती. अब तो घर में हमारी भाषा भी लंड, चूत माँ चोद, बहनचोद वाली हो गई.

हमने एक 20-21 साल की नौकरानी रखी हुई थी जिसका नाम सैफिना था. सैफिना वैसे तो थोड़ी सांवली थी पर उसकी कद-काठी और नैन-नक्श बड़े सुंदर थे. उसको हमने फ्लैट की एक चाबी दी हुई थी. वो सुबह हमारे पीछे से घर में आती और सफाई, बर्तन और कपड़े आदि करके चली जाती. कोई खास काम होता तो मैं उसे फ़ोन पर ही समझा देती. कभी-कभार जब उसने नहीं आना होता तो वो मुझे फ़ोन पर बता देती और अपने बदले अपनी भाभी को भेज देती जो उसकी ही उम्र की थी.
रविवार को नहीं आती थी. हमारी उसकी मुलाकात महीने बाद ही होती थी जब उसको पगार देनी होती थी. रविवार को हम भी आराम से उठते.

एक रविवार अचानक ही सुबह वो आ गई. उस समय हम सोए हुए थे. मैंने डोरबेल की आवाज़ सुन कर अपनी मैक्सी पहनी और दरवाज़ा खोलने गई. उसको ड्राइंगरूम में बिठाया और आने का कारण पूछा तो उसने बताया कि उसे कुछ पैसो की ज़रूरत थी.
मैंने उसे बोला कि वो थोड़ा इंतज़ार करे, मैं तब तक बाथरूम से हो कर आती हूँ.
मैं बाथरूम चली गई.

सैफिना ने सोचा कि आई तो हूँ ही क्यों न थोड़ा सा घर का काम ही कर दूँ. उसने झाड़ू उठाया और हमारे बेडरूम में झाड़ू लगाने पहुँच गई. जैसे ही उसने लाइट जलाई तो रूम से बाहर भाग गई. बेडरूम में शहज़ाद बड़ी गहरी नींद में पीठ के बल बिल्कुल नंगे लेटे थे.
जैसा कि आप सभी जानते होंगे कि गर्मियों में जवान लड़कों या मर्दों के लंड सुबह-सुबह सोते हुए अक्सर खड़े हो जाते हैं जिसका कई बार उन्हें भी नहीं पता होता. बिल्कुल उसी तरह शहज़ाद की भी हालत थी और पूरी तरह सख्त लंड तना हुआ खड़ा था.

मैं जब बाथरूम से बाहर आई तो सैफिना बेडरूम के दरवाजे पर खड़ी अंदर झांक रही थी. मैंने पूछा- क्या बात है अंदर क्यों झांक रही हो?
तो वो शर्माती हुई ‘कुछ नहीं दीदी’ कह कर हॉल में झाड़ू लगाने लगी.

मैंने जब बेडरूम में झाँका तो मुझे सारा मामला समझ आया और मेरी ज़ोर से हंसी निकल गई. मैंने उससे मजाक किया- चोर कहीं की, चोरी-चोरी क्यों देख रही थी, क्या कभी देखा नहीं है, चल आ तुझे दिखाऊं!
मैंने उसका हाथ पकड़ लिया और बेडरूम की तरफ ले जाने लगी.
उसने अपना हाथ छुड़वा लिया और बोली- देखा तो है लेकिन साहब का थोड़ा ज़्यादा मोटा और लम्बा है.
मैंने पूछा- किससे ज़्यादा लम्बा और मोटा है?
तो वो बात को टालने लगी.

मैंने भी जिद पकड़ ली और बोली- अब पैसे मैं तुझे तब दूँगी जब तू मुझे बताएगी.
तो उसने बताया कि उसके मामू का लड़का है, उसने उसके साथ 2 बार सेक्स किया है.

मेरे मन में शरारत आ गई, मैंने उससे पूछा- साहब का लम्बा और मोटा उसको पसंद है?
तो वो शर्मा गई और बोली- दीदी, आप मुझे पैसे दे दो मुझे जल्दी जाना है.
मैंने जोर देकर पूछा- पहले बता?
तो बोली- जो चीज़ मिल ही नहीं सकती उसकी पसंद और न पसंद का क्या मतलब?
मैं बोली कि अगर उसकी इच्छा हो तो मिल भी सकती है.

तो वो बोली तो कुछ नहीं पर उसकी आँखों की चमक से मैं समझ गई. मैंने उसे और गर्म करने की सोची. मैंने उसे बोला- चल आ तुझे एक चीज़ दिखाती हूँ.
मैं उसको उसी बेडरूम से निकाल कर बालकोनी में ले गई और उसे बोला कि वो खिड़की के परदे के पीछे से सावधानी से अंदर झांके. बेडरूम के अंदर जा कर मैंने बालकोनी के दरवाजे की चिटकनी लगा दी और पर्दे को थोड़ा सा सरका कर उसमें झिरी बना दी ताकि सैफिना अंदर देख सके.
कमरे की बत्ती मैंने बंद नहीं की ताकि बाहर वाले को अंदर तो नज़र आ सके लेकिन अंदर वाले को बाहर नहीं.

फिर मैंने अपनी मैक्सी उतार दी और शहज़ाद के पास बैठ गई. मैं इस तरह बैठी कि बाहर सैफिना को नज़र आता रहे. मैंने शहज़ाद का लंड हाथ में लिया और फिर उसे चूसने लगी. शहज़ाद की नींद खुल गई.
उसने हैरानी से पूछा- आज सुबह-सुबह क्या हुआ तुम्हें?
मैं बोली- बस दिल कर गया.

पहले तो एक-दो मिनट वो आह-आह करते रहे, फिर उसने मेरे चूतड़ को दबा कर इशारा किया, जिसका मतलब मैं समझ गई. मैं उनके ऊपर आ गई और हम 69 हो गए. हमने ज्यादा देर नहीं लगाई और शहज़ाद ने मुझे नीचे किया और लंड मेरे अंदर डाल दिया. थोड़े ही झटकों में ही हम फ्री हो गए.

शहज़ाद उठ कर जैसे ही बाथरूम गए मैंने वैसे ही जैसे मैं नंगी बैठी थी, भाग कर बालकोनी का दरवाज़ा खोला ताकि सैफिना को चुपके से बाहर भेज सकूँ. वो उस समय अपनी चूत में उंगली कर रही थी. मैंने उसे जल्दी करने को बोला. वो एक मिनट में ही निबट कर जल्दी से बेडरूम से निकल गई.
मैंने उसे जल्दी से घर से बाहर भेज दिया और बोली कि 15-20 मिनट बाद डोरबैल बजा के आये तब मैं उसे पैसे देती हूँ.

लगभग आधे घंटे बाद सैफिना आई, मैंने दरवाज़ा खोला और उसे बिठाया. शहज़ाद को मैंने बताया कि उसे कुछ पैसे चाहिएँ!
शहज़ाद बोला- पॉकेट में नहीं हैं, अभी उसे ए टी एम से लाकर देता हूँ.

जब तक शहज़ाद ने ए टी एम से आना था तब तक मैंने सैफिना को बोला कि वो नाश्ते की तैयारी कर ले, मैं नहा लेती हूँ.
शहज़ाद के आने तक नाश्ता तैयार था, मैं भी नहा चुकी थी, सैफिना ने डाइनिंग टेबल पर नाश्ता लगा दिया.
मैंने उसे कहा कि वो भी नाश्ता हमारे साथ करे तो वो भी डाइनिंग टेबल पर बैठ गई. टेबल के एक साइड में शहज़ाद, उनके साथ वाली दूसरी साइड में मैं और शहज़ाद के बिल्कुल सामने वाली साइड में सैफिना बैठी थी.

मैंने नोटिस किया कि सैफिना लगातार मुझसे नज़र बचा कर शहज़ाद को ही देखे जा रही थी.

तभी उसने जैसे ही टेबल से दही का डोंगा जो उससे काफी दूर था उठाने के लिए आगे को झुक कर बाजू आगे बढ़ाई, उसका दुपट्टा बिल्कुल नीचे हो गया और शहज़ाद की नज़र सैफिना की छाती में घुस गई.
आप समझ सकते हैं कि उसने क्या देखा होगा. मुझे ये भी समझ में आया कि यह सैफिना ने जानबूझ कर किया था वरन वो डोंगे के लिए मुझे भी बोल सकती थी.

वो पैसे ले कर चली गई.

अब वो शाम किसी न किसी बहाने शाम को आने लगी. कभी वो सुबह काम पर नहीं आती तो शाम को आ जाती.
फिर उसने बोला कि वो सुबह ज्यादा बिजी हो जाती है अगर वो शाम को आ जाए तो?
हमें भला क्या ऐतराज़ हो सकता था, हमें तो काम से मतलब था, वो सुबह करे या शाम को. बल्कि इसका सुख हमें यह हुआ कि जब हम थक कर घर आते तो वो घर पर होती और हमें चाय वगैरह बना देती और खुद भी पीती और चली जाती.

मैंने नोटिस किया कि अब वो पहले से ज्यादा बन ठन कर या हल्का फुल्का मेकअप करके आती. मैं भी औरत हूँ सब समझ रही थी. अब शहज़ाद की और सैफिना की बातचीत भी होती रहती. कभी कभार मजाक आदि भी.
पर मैंने नोटिस किया कि सैफिना ही शहज़ाद को रिझाने की कोशिश करती, शहज़ाद का कोई ज्यादा ध्यान इस तरफ नहीं था.

बरसात का मौसम शुरू हो चुका था. हम अपने ऑफिस कभी गाड़ी से तो कभी मोटर साइकिल से जाते थे. ये अपने ऑफिस से छुट्टी करके मुझे मेरे ऑफिस से पिक करते हुए आते थे. सुबह इसका उल्ट होता था.

एक दिन हम सुबह मोटर साइकिल से निकले. शाम को ऑफिस के टाइम बरसात शुरू हो गई. हम पूरी तरह भीग कर घर पहुंचे. रास्ते में बारिश की बौछार से बचने के लिए मैं शहज़ाद से पूरी तरह चिपक कर बैठी थी और अपने दोनों हाथ उसकी छाती पर कसे हुए थे. मेरे बूब्स शहज़ाद की पीठ पर पूरी तरह दबाव बना रहे थे. मेरा चिकन का सूट भी पूरी तरह मेरे शरीर से चिपक गया था. नतीजा यह हुआ कि मैं भी गर्म हो गई और शहज़ाद भी.
जब हम घर पहुंचे तो सैफिना नहीं आई हुई थी.

शहज़ाद ने मेन डोर खोला और अंदर घुसते ही उसने मेरी तरफ देखा. आँखों ने आँखों को एक पल में ही एक सन्देश दिया और शहज़ाद ने मुझे उठा लिया.
मैंने उसे बोला कि दरवाज़ा तो बंद कर लेने दो.
तो वो बोला- इतनी बरसात में कौन आने वाला है. अगर आ भी जायेगा तो यही देखेगा कि जवान पति-पत्नी प्यार कर रहे हैं.

मैंने फिर भी जोर दिया तो वो मुझे उठाये उठाये ही दरवाजे के पास ले गया और अपने एक पैर से दरवाजे को भिड़ा दिया. मैंने भी उसके गले में बाहें डाल रखी थी.

शहज़ाद ने मेरे होठों से होंठ चिपका दिए और उसी अवस्था में मुझे बेडरूम ले गया. अगले ही पल उसने मेरे और अपने सारे कपड़े उतार दिए और मेरे मुंह में अपना लंड दे दिया और मैं बड़े प्यार से उसे चूसने लगी.
लगभग 10 मिनट तक मैं उसको चूसती रही, फिर हम 69 की अवस्था में आ गए. जब मैं लंड को चूस रही थी तो उसके कम्पन से मैंने महसूस किया कि अब ये ज्यादा देर नहीं रुकेगा तो मैंने शहज़ाद को लंड चूत में डाल कर जल्दी से चोदने को बोला.
शहज़ाद ने मुझे बड़ी तेज़ी से चोदना शुरू किया और बहुत जल्द ही हम झड़ गए.

अभी हमारी सांसें नियंत्रित भी नहीं हो पाई थी कि हमें हाल में कोई खटका सुनाई दिया. मैंने सोचा कि दरवाज़ा खुला था शायद कोई बिल्ली आ गई होगी इसलिए मैं नंगी ही उठ कर हाल में आई तो देखा कि ये तो दो टांगों वाली बिल्ली यानि की सैफिना थी जो बेडरूम के दरवाज़े के थोड़ा साइड में ही अपनी सलवार खोल कर अपने दाने को मसल रही थी.

मैंने उससे धीमी आवाज़ में पूछा- तुम कब आई.
इससे पहले कि वो कुछ बोलती शहज़ाद ने पूछ लिया- कौन है?
तो मेरे मुंह से निकल गया- दो टांगों वाली बिल्ली है.

तभी शहज़ाद भी चादर लपेट कर बाहर आ गया.
सैफिना हड़बड़ाहट में खड़ी हो गई और उसकी सलवार घुटनों से नीचे हो गई. उसने फटाफट अपनी सलवार ऊपर करके बाँधी और सॉरी बोलने लगी कि आगे से ऐसी ग़लती नहीं करेगी.
हम दोनों को गुस्सा आ रहा था लेकिन वो हल्का-फुल्का गुस्सा ही था. तभी मुझे शहज़ाद ने बोला की मेनडोर बंद करके आऊँ इसकी गलती की सज़ा तो इसको देनी है.
मैंने वैसा ही किया पर मुझे ये समझ नहीं आया कि शहज़ाद करना क्या चाहता था.

जब मैं वापिस आई तो शहज़ाद ने उससे पूछा कि उसे क्या सज़ा दी जाए. सैफिना चुप रही तो शहज़ाद ने बोला कि तुम काम छोड़ कर चली जाओ.
वो हाथ जोड़ने लगी कि हम ऐसा न करें उसे हमारे जैसे अच्छे लोग फिर नहीं मिलेंगे.
मैंने शहज़ाद को कहा- कुछ और सज़ा दे दो.

इससे पहले कि वो कुछ बोलता, सैफिना बोल पड़ी- हमें कुछ और सज़ा दे दें, वैसे थोड़ी सी गलती तो आप लोगों की भी है, आप को दरवाज़ा बंद कर लेना चाहिए था. जो दृश्य मैंने देखा उस दृश्य को कोई भी देखता तो ऐसा ही करता.
उसकी बात में तर्क था परन्तु शहज़ाद ने बोला- सज़ा तो उसे मिलेगी ही!

वो उसे बेडरूम में ले गया और सारे कपड़े उतारने को बोला. सैफिना ने मेरी तरफ देखा तो मुझे भी कुछ समझ नहीं आया कि शहज़ाद क्या चाहता है और सैफिना को मैं क्या कहूँ.
शहज़ाद ने दोबारा बोला तो सैफिना ने मेरी तरफ फिर देखा मैंने उसे आँखों से इशारा किया कि वो उतार दे, हालाँकि मेरी समझ में भी कुछ नहीं आ रहा था. सैफिना ने जैसे ही उतारने के लिए अपनी कमीज़ ऊपर उठाई तो शहज़ाद ने उसे रोक दिया और मुझे बोला- तुम इसके सारे कपड़े उतारो.

मैंने सैफिना की सलवार उतार दी. पेंटी उसने पहनी नहीं थी. जैसे ही मैं उसकी कमीज़ उतारने लगी शहज़ाद ने बोला कि कमीज़ वो उतरेगा और सैफिना को नीचे बैठने को बोला. शहज़ाद जैसे ही कमीज़ उतार रहा था तो उसकी लपेटी हुई चादर खुल कर नीचे गिर गई. जैसे ही कमीज़ गले से निकली शहज़ाद का खड़ा लंड सैफिना की आँखों और मुंह के बिल्कुल सामने था.

शहज़ाद ने सैफिना को हुक्म दिया- इसे चूसो.
सैफिना ने मेरी तरफ़ देखा और बोली कि उसे अच्छा नहीं लगता और उसने कभी चूसा नहीं है. लेकिन शहज़ाद ने बोला कि जब चूसने लगोगी तो अच्छा भी लगने लगेगा और कभी न कभी किसी न किसी का तो चूसोगी ही.

सैफिना के पास कोई चारा नहीं था, जैसे ही उसने लंड हाथ में पकड़ा तो बोली- साहब इसे अभी-अभी आपने दीदी के अंदर से निकाला है इसलिए इसे धो लें.
शहज़ाद बाथरूम चला गया. वो जब वापिस आया तो सैफिना अब तक सहज हो चुकी थी उसने शहज़ाद का लंड हाथ में ले लिया, पहले कुछ देर वो उसके टोपे को होठों में ले कर चूसती रही जैसे कोई आइसक्रीम चूसते हैं, फिर धीरे-धीरे वो बिल्कुल सहज हो गई और लंड को थोड़ा ज्यादा फिर और ज्यादा मुंह में लेकर चूसने लगी.

मेरे अंदर भी अब चींटियाँ रेंगने लगी थी और करंट दौड़ने लगा था लेकिन मैं अपने मुंह से न तो कुछ बोलना चाहती थी और न ही कोई हरकत करना चाहती थी.

शहज़ाद ने सैफिना को बेड पर चलने को कहा. वो दोनों बेड पर पहुँच गये मैं खुद ही चली गई अब सैफिना शहज़ाद का लंड एक हाथ से पकड़ कर चूस रही थी और दूसरे हाथ से अपने मम्मे दबा रही थी.
शहज़ाद की आँखें बंद थी और वो आनन्द के कारण आहें भर रहा था.

मैंने सैफिना का हाथ उसके बूब्स से हटाया और खुद उसके बूब्स दबाने लगी और चूसने लगी. सैफिना के मुंह से आहें निकलने लगीं तो शहज़ाद ने अपनी आँखें खोली. जब उसने मुझे इन्वाल्व देखा तो वो बहुत उत्तेजित हो गया और सैफिना के मुंह में ही छूट गया.

सैफिना को ज़ोरदार उबकाई आई, जैसे वो उलटी कर देगी. वो दौड़ कर बाथरूम में भागी और बहुत देर तक उबकाई लेती रही और अपना मुंह साफ़ करती रही. जब वो नार्मल हुई और बाहर आई तो उसकी आँखें लाल हो चुकी थी.
मैंने उसे समझाया कि किसी-किसी लड़की को पहली बार ऐसा होता है फिर सब कुछ नार्मल हो जाता है.

हम बारिश में भीग कर आये थे इसलिए दोनों ही को नहाने की इच्छा हो रही थी. मैं पहले बाथरूम में गई और शावर चला कर नहाने लगी. मैं कभी भी बाथरूम का दरवाज़ा बंद नहीं करती थी. मैं नहा ही रही थी कि शहज़ाद भी अंदर आ गया फिर उसने सैफिना को भी बुला लिया. अब हम तीनों ही एक दूसरे के अंगों से खेल रहे थे, साबुन लगा रहे थे और मज़े ले रहे थे.

सैफिना अब पूरी तरह खुल चुकी थी और अब उसे कोई भी डर या झिझक नहीं थी, वो बोली- साहब आपने तो मुझे नौकरी से निकालने की बात कह कर डरा ही दिया था.
शहज़ाद ने बोला- अरे वो तो नकली गुस्सा था, मैं जानता हूँ कि तुम बहुत दिनों से मुझ पर नज़र रख रही थी. मैं इसलिए चुप था कि एक तो मैं साबिया से डर रहा था और दूसरा मैं इसे प्यार भी बहुत करता हूँ. जब बारिश में हम आ रहे थे तो मैंने दूर से तुम्हें अपने घर की तरफ आते देख लिया था. मैंने शरारत इसलिए की कि अगर साबिया को बुरा लगा तो बात खत्म हो जाएगी और अगर न बुरा लगा तो… तो… तो… तो…
शहज़ाद ने मेरे से पूछा- साबिया, तुम्हें बुरा तो नहीं लगा?
और उसने अपनी हम दोनों को बाँहों में भरकर अपनी छाती से कस कर चिपका लिया और हम जोर से हंस पड़े.

नहा कर हम बाहर आए, मैंने सैफिना को अपना ही एक सूट दे दिया क्योंकि उसके कपड़े भी तो गीले हो चुके थे. बाहर अब भी बारिश बाहर हो रही थी.
मैंने सैफिना को कहा- तू थोड़े से आलू और प्याज़ के पकोड़े और चाय बना ले, तब तक मैं रात के खाने की तैयारी करती हूँ.

रात का खाना खाते-खाते 10 बज गए. शहज़ाद ने सैफिना को बोला कि मैं तुम्हें गाड़ी में तुम्हारे घर छोड़ आता हूँ.
वो दोनों जब नीचे पार्किंग में पहुंचे तो वहाँ और सड़क पर बहुत पानी भरा हुआ था, दोनों वापिस आ गये.

हमने उसे बोला कि अगर उसके घर वाले चिंता न करते हों तो वो रात हमारे यहाँ ही सो जाए और अपने घर फ़ोन कर दे. सैफिना ने अपने घर फ़ोन कर दिया.
सैफिना ने बोला कि वो दूसरे बेडरूम में सो जाती है तो शहज़ाद ने बोला कि दूसरे क्यों हमारे ही बेडरूम में हमारे साथ सो जाओ. वो हंस पड़ा और उसे आँख मार दी.
सैफिना भी हंस पड़ी और बोली- अगर आप को असुविधा न हो तो मुझे क्या ऐतराज़?

शहज़ाद ने उसे बोला- हम तो बिल्कुल नंगे ही सोते है तुम्हें भी… कह कर उसने वाक्य अधूरा छोड़ दिया.
“वो सब मुझे पता है साहब!” सैफिना ने बोला.
“तुम्हें कैसे पता है?” सैफिना ने मेरी तरफ देखा- अरे इसमें क्या सीक्रेट है, आप पति-पत्नी हो, अकेले रहते हो, बच्चा कोई है नहीं तो नंगे ही सोओगे.
उसने बात सम्भाल ली.
हम सभी हंस पड़े.

आधा-पौना घंटा हमने टीवी देखा और फिर लाइट बंद कर दी. नाईट लैंप जल रहा था. दो नंगी औरतें किसी आदमी के दोनों तरफ लेटी हों तो 80 साल के बूढ़े का भी मन मचल जाए और यहाँ तो हम तीनों भरपूर जवान थे.
शहज़ाद ने मेरे और सैफिना के बूब्स पर हाथ दबाना शुरू कर दिया. मैंने भी अपनी एक जांघ उसके ऊपर इस तरह रखी कि मेरा पैर दूसरी तरफ लेटी सैफिना को भी छू रहा था. मैंने अपनी जांघ से शहज़ाद के लंड को रगड़ना शुरू कर दिया. मेरे टांग के हिलने से सैफिना की टांग पर भी हरकत हो रही थी.

वो शहज़ाद के ओर नज़दीक हो गई जिससे मेरी आधी जांघ शहज़ाद के लंड को रगड़ रही थी और आधी जांघ सैफिना के उपर उसकी जांघ से रगड़ खा रही थी. सैफिना तो शहज़ाद से ओर चिपक गई जिससे शहज़ाद दो 104 डिग्री बुखार जैसे तपती औरतों के बीच सैंडविच बन गया और वो आह-आह करने लगा.

सैफिना ने अपना हाथ बढ़ा कर मेरे मम्मे को दबाना शुरू कर दिया फिर वो अपना हाथ नीचे ले गई और मेरे दाने को एक उंगली से मसलना शुरू कर दिया.

शहज़ाद ने सैफिना को उठाया और उसे 69 की पोजीशन में अपने ऊपर लिटा लिया. अब वो एक दूसरे के लंड और चूत चूस रहे थे और मैं साइड में पड़ी थी. मैंने अपनी पोजीशन बदली और अपना सिर शहज़ाद के पैरों की तरफ कर दिया जिससे मेरी टांगें शहज़ाद की तरफ हो गई और मेरी चूत उसके नजदीक हो गई. मैंने शहज़ाद की एक उंगली को दबाया तो वो समझ गया और उसने मेरी चूत में पहले एक, फिर दो और फिर तीन उंगलियाँ डाल दी. साथ-साथ वो सैफिना की चूत भी चाट रहा था.

फिर मैंने सैफिना को हटा दिया और शहज़ाद का लंड चूसने लगी. 2-3 मिनट बाद मुझे लगा कि शहज़ाद का काम नजदीक है. इधर मैंने भी पानी छोड़ दिया. फिर मैंने शहज़ाद को सैफिना की चूत मारने को बोला.
शहज़ाद सैफिना के ऊपर आया तो मैंने अपने हाथ से पकड़ कर शहज़ाद का लंड सैफिना की चूत में डाला और उसके मम्मे जोर जोर से रगड़ने लगी.
थोड़ी देर बाद सैफिना और शहज़ाद दोनों ही एक ज़ोरदार कंपकपी के साथ छूट गए.
फिर हम सो गए.

आधी रात को मैं बाथरूम जाने के लिय उठी तो देखा कि सैफिना वहाँ नहीं थी. मैंने हॉल में और फिर दूसरे बेडरूम में जा कर देखा तो वो वहाँ सो रही थी.

सुबह बरसात बंद हो चुकी थी. हम सैफिना को सोती हुई ही छोड़ कर ऑफिस चले गए. फिर तो ये हमारी जिंदगी का हिस्सा ही बन गया. सैफिना ने ओर सबका काम बंद कर दिया. उसको जितना नुक्सान उधर से हुआ उससे ज्यादा हमने उसकी पगार बढ़ा दी, उसने घर पर बोल दिया कि हम लोगों के लिए वो रात का खाना वगैरह भी बनाएगी इसलिए रात को हमारे पास रहेगी.

वो रात को हमारे साथ सोती सुबह अपने घर चली जाती. शाम को हमारे आने से एक घंटा पहले आ जाती. कभी कभी जब हम मूवी वगैरह देखने जाते तो उसको भी साथ ले जाते. शहज़ाद उसको नए कपड़े वगैरह भी ले देता या उसको किसी और चीज़ की ज़रूरत होती वो भी ले देता. मुझे भी कोई ऐतराज़ नहीं था क्योंकि हमारे पास पैसे की कोई कमी तो थी नहीं.

धीरे-धीरे ऐसा माहौल बन गया कि जैसे शहज़ाद की दो बीवियां हों. फिर मैं प्रेग्नेंट हो गई और डॉक्टर ने मुझे बेडरेस्ट की सलाह दी तथा जहाँ तक संभव हो सेक्स से परहेज की सलाह दी.
अब सैफिना सारा दिन मेरे साथ ही रहती. रात को शहज़ाद और सैफिना खुल कर मेरे सामने ही सेक्स करते. मैं भी नंगी ही उनके साथ देखती रहती और मज़े लेती. वे दोनों भी मेरी सेक्स की ज़रुरत का ध्यान रखते और मुझे मिल कर तृप्त कर देते.
जिन्दगी मज़े से चल रही थी.

जब मेरा 7वां महीना चल रहा था तो सैफिना प्रेग्नेंट हो गई. उसने जब हमें बताया तो हम सोच में पड़ गए. हम चाहते तो नहीं थे पर फिर भी हमने उसको बोला कि वो एबॉर्शन करवा ले, परन्तु वो मानी नहीं और शहज़ाद पर निकाह करने को जोर देने लगी.

तब शहज़ाद और मैंने सलाह की कि निकाह तो मुझे मंज़ूर नहीं. वैसे अगर वो हमारे साथ शहज़ाद की दूसरी बीवी की तरह रहना चाहती है तो रहती रहे हम लोगों को बोल देंगे कि वो शहज़ाद की दूसरी बीवी है.
हमने ऐसा निर्णय इसलिए लिया था कि अगर हम इंकार करते तो उसकी जिंदगी तो ख़राब होती सो होती, बच्चे की जिंदगी तो पक्का खराब होनी ही थी. इंसानियत के नाते हम यह होने नहीं देना चाहते थे कि हमारी ऐशपरस्ती के कारण दो जिंदगियां खराब हों.

सैफिना भी मान गई और उसने अपने घर बोल दिया कि उसने शहज़ाद के साथ उसने निकाह कर लिया है.

फिर मैंने एक बेटी को जन्म दिया. वो बहुत ही सुंदर है और बिल्कुल अपने पापा पर गई. हमने उसका नाम रखा ‘शहज़ादी’.

उसके बाद हमने अपना एक डुप्लेक्स मकान खरीद लिया कि आगे-आगे हमारी ज़रूरतें बढ़ेंगी ही.
समय का चक्र चल रहा था 3 महीने बाद जब डॉक्टर ने सैफिना को अल्ट्रासाउंड करवाने को बोला तो पता लगा कि उसकी कोख में 2 बच्चे थे. हमने सैफिना को पूरा आराम देना शुरू कर दिया और उसके खाने-पीने दवाइयों आदि का पूरा ध्यान रखा.
फिर उसने दो जुड़वां बेटों को जन्म दिया.

समय बीतता गया. इस दौरान हमने जिस तरीके से सोचा जा सकता है उन सब तरीकों से सेक्स का मज़ा लिया. 6 साल बीत गए. मैं ऑफिस जाती और सैफिना घर और बच्चों को संभालती. फिर एक दिन सैफिना ने बोला कि उसने माँ और भाई-भाभी के साथ किसी रिश्तेदारी में निकाह पर जाना है.

हम सैफिना की रिश्तेदारियों में ज़्यादा किसी को नहीं जानते थे और हमने ज्यादा पूछा भी नहीं.
शहज़ाद ने उसको कुछ नए कपड़े, ज़रूरत के मुताबिक एक दो सोने के गहने और 5 हज़ार रूपये दे दिए.

जब वो एक सप्ताह तक नहीं आई तो हमें चिंता होने लगी. हम उसके घर गए तो वहाँ ताला लगा था. उसके बाद कई दिन तक हम उसके घर जाते रहे और वहाँ ताला लगा मिलता.

फिर एक दिन हमें वो घर खुला हुआ मिला तो हम बहुत खुश हो गए, परन्तु वहाँ जा कर पता लगा कि वहाँ नये किरायेदार आ गए थे. सैफिना और उसके भाई का मोबाइल भी नहीं मिल रहा था.
फिर हम आराम से बैठ गए कि शायद उनके साथ कोई हादसा वगैरह न हो गया हो जिससे कि सारे परिवार का ही कुछ अता-पता नहीं था.

अब हमारे 3 बच्चे है और ज़िदगी आराम से कट रही है.

कहानी पर अपने ख्यालात [email protected] पर भेजें!

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