एक और अहिल्या-11
(Ek Aur Ahilya- Part 11)
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मैंने अपना हाथ पैंटी के अंदर ही हथेली का एक कप सा बना कर, जिसमें मेरी चारों उंगलियां नीचे की ओर थी वसुन्धरा की तपती जलती योनि पर रख दिया.
“आ … आ … आ … आह!” उत्तेजना-वश वसुन्धरा ने मेरी उँगलियों पर ज़ोर से काट लिया. मैंने फ़ौरन अपना हाथ वसुन्धरा के मुंह से निकाल लिया और उसी हाथ से वसुन्धरा के दोनों उरोजों से खिलवाड़ करने लगा.
वसुन्धरा की योनि से कामरस का अत्यधिक प्रवाह हो रहा था. मेरा हाथ वसुन्धरा के योनि-रज से पूरा सन गया था. लगता था कि वसुन्धरा एक-आध बार स्खलित भी हो चुकी थी.
मैंने अपने बाएं हाथ की मध्यमा उंगली को योनि के निचले सिरे से शुरू कर के, योनि की दरार के ऊपर-ऊपर, अंदर की ओर मोड़ना शुरू किया। तत्काल वसुन्धरा के जिस्म में थिरकन सी होने लगी. मेरी उंगली का सिरा तो योनि की दरार के ऊपरी हिस्से पर स्थित चने के दाने के साइज़ के भगनासे पर आ कर ठहर गया लेकिन वसुन्धरा के मुंह से जोर-जोर से कराहें … कराहें क्या एक तरह से चीखें निकलने लगी.
” रा..!..! …!..ज़! सी … ई … ई … ई! … उफ़..फ़..फ़ … बस..! मर गयी … मैं..!!! … सी..सी..सी … आह … ह … ह … ह!”
अब तक तो मेरी उंगली ने वापसी का सफर शुरू कर दिया था.
” राज … बस … बस … बस करो … नईं..ईं … ईं … और आगे नहीं … आ … ह …! आ … आ … आ … ह … आह …!!!”
लेकिन इन चीखों का कोई मोल नहीं था, ये चीखें आनन्द … बल्कि परमानन्द वाली थी. धीरे-धीरे मेरी उंगली वसुन्धरा की योनि के निचले सिरे पर वापिस अपने मुकाम तक पहुंची और फिर उसने योनि की दरार के साथ-साथ ऊपर की ओर दोबारा गश्त शुरू कर दी. मध्यमा उंगली से सितार बजाने की सी जुम्बिश मैंने बारह-पंद्रह बार दोहरायी. वसुन्धरा के मुंह से निकलने वाली सिसकारियाँ बदस्तूर जारी थी.
अभी तक तो मैं वसुन्धरा की योनि से सिर्फ हल्की-फ़ुल्की छेड़-छाड़ ही कर रहा था ताकि वसुन्धरा आगे की काम-केलि की परम काम-उत्तेजना को सहन करने लायक हो जाए. अभी तक मैंने अपनी उंगली से वसुन्धरा की योनि को हल्का सा भी कुरेदा नहीं था.
लेकिन अब वक़्त आ गया था कि थोड़ा आगे बढ़ा जाए. मैंने अपनी तर्जनी उंगली और अनामिका उंगली से वसुन्धरा की योनि की दरार को ज़रा सा फैलाया और इस बार भगनासा की ओर बढ़ती मेरी मध्यमा उंगली, वसुन्धरा की योनि की दरार के ऊपर नहीं अपितु योनि की पंखुड़ियों के जरा सी अंदर-अंदर ऊपर को उठ रही थी.
वसुन्धरा के मुंह से निकलती आहों-कराहों में भयंकर वृद्धि हो गयी थी. जैसे ही मेरी उंगली से वसुन्धरा की योनि के शीर्ष पर सजे भगनासा को छुआ, मैंने अपने अंगूठे और उंगली के बीच में लेकर भगनासा ज़रा सा मसल दिया.
वसुन्धरा का शरीर पलंग से करीब फुटभर उछला- हे राम! रा … आ … अ … ज़! मर गयी … मैं! उफ़..फ़..फ़ …!
मेरी प्रेयसी की योनि ने तत्काल बहुत सारा काम-रस छोड़ा. वसुन्धरा ने तत्काल रजाई परे फेंक मारी और हाँफते हुए अपना बायां हाथ अपनी पैंटी के अंदर लेजा कर मेरे बाएं हाथ पर रखकर उसे अपने योनि से जबरन उठाने की कोशिश करने लगी.
अब इंसान की सारी कोशिशें तो कामयाब नहीं होती न … तो वसुन्धरा की यह कोशिश भी कामयाब नहीं हुई. लेकिन इस धींगा-मुश्ती में वसुन्धरा का जिस्म करवट लिए होने की बजाये बिस्तर पर सीधा हो गया और मैं अभी भी दायीं करवट ही था. मैंने मौक़े की नज़ाकत को देखते हुए वसुन्धरा के बाएं निप्पल को अपने मुंह में लिया और चुमलाने लगा.
वसुन्धरा ने तत्काल अपना बायां हाथ मेरे हाथ पर से हटाया और अपने दोनों हाथों से मेरे सर को जकड़ा और मेरे सर को अपने स्तन की ओर दबाने लगी. इधर मैंने अपने बाएं हाथ को वसुन्धरा की योनि से उठा कर हल्के हाथ से वसुन्धरा की पैंटी घुटनों तक उतार दी और फिर उसी हाथ से वसुन्धरा की रेशमी जाँघों पर हाथ फेरते-फेरते, वसुन्धरा के घुटने खड़े करके वसुन्धरा की पैंटी को भी उसकी ड्यूटी से फ़ारिग कर दिया.
और साथ ही उसी हाथ से अपने जॉकी को भी अपने जिस्म से अलग कर दिया.
अब हम दोनों एक से हो गये थे … एकदम नग्न! लेकिन वसुन्धरा को इसका अभी अहसास नहीं था और बिना एहसासों के न तो जिंदगी सार्थक होती है न कामक्रीड़ा. तो मैंने अपने बायें हाथ से वसुन्धरा का दायां हाथ अपने सर पर से उठाया और पकड़ कर नीचे ले जा कर अपने लिंग पर धर दिया.
जैसे ही वसुन्धरा समझ में आया कि उसके हाथ में मेरा कौन सा अंग है, उसका सारा जिस्म ऐसे काँपा जैसे उसे चार सौ चालीस वाल्ट का झटका लगा हो. वसुन्धरा ने तत्काल अपना हाथ मेरे लिंग पर से परे झटकने की कोशिश तो की लेकिन वसुन्धरा के हाथ के ऊपर तो मेरे बायें हाथ की मज़बूत पकड़ अभी भी बनी हुई थी.
मैंने सर उठा कर वसुन्धरा की आँखों में देखा. अपने हाथ में मेरे लिंग का साइज़ अनुभव करते हुए उसका मुंह और आँखें यूं खुली हुई थी जैसे कोई न-काबिल-ए-यक़ीन चीज़ से दो-चार हो रही हो.
दो-चार पल की ज़ोर-आजमाईश के बाद वसुन्धरा ने अपना हाथ मेरे लिंग पर से उठाने की कोशिश को विराम दे दिया और अपनी उँगलियों से मेरे लिंग को थाम कर उसके आकार-प्रकार का ज़ायज़ा लेने लगी.
अब मैंने तो अपना लिंग थामे वसुन्धरा के हाथ पर से अपना हाथ उठा लिया लेकिन वसुन्धरा बदस्तूर मेरे लिंग को थामे रही. मारे उत्तेजना के मेरा लिंग पत्थर सा सख़्त हो रहा था और उसमें से प्री-कम भी बहुत निकल रहा था जिस के कारण वसुन्धरा की उंगलियां मेरे प्री-कम से सनी सनी जा रही थी. लेकिन अब वसुन्धरा को इस से कोई ऐतराज़ नहीं था, वो कभी अपनी उँगलियों के पोरुओं से मेरे मेरे प्री-कम से सने हुए लिंग-मुंड को दबाती और कभी अपनी उंगलियों की गोलाई में मेरे लिंग को दबा दबा कर लिंग की जड़ तक ले जाती और मैं अपने बाएं हाथ से वसुन्धरा की पेशानी से लेकर वसुन्धरा का सर धीमे-धीमे सहला रहा था.
कुछ पल ऐसे ही बीते. अचानक ही वसुन्धरा ने मेरी तरफ करवट ली और अपनी दायीं टांग उठा कर मेरे जिस्म पर रखकर अपने पाँव को मेरे नितम्बों के पीछे लगा कर मेरे जिस्म के निचले भाग को अपने जिस्म के के निचले भाग के साथ रगड़ने का प्रयास करने लगी.
इस प्रक्रिया में मेरा लिंग जोकि वसुन्धरा के दायें हाथ में ही था, वसुन्धरा की जलती-धधकती योनि से सट गया और वसुन्धरा मेरे लिंग को अपनी योनि की पंखुड़ियों पर ऊपर से नीचे, नीचे से ऊपर रगड़ने लगी और इसी के साथ वसुन्धरा के मुंह से आहों-कराहों का बाज़ार बुलंद होने लगा.
मैंने फ़ौरन वसुन्धरा को अपने बाएं हाथ से अपने आलिंगन में लेकर कस लिया और लगातार उसके चेहरे पर यहां-वहाँ चुम्बन लेने लगा. मैंने नोट किया कि वसुन्धरा अपनी योनि के भगनासा पर मेरा लिंग-मुंड सख्ती से गोल-गोल रगड़ रही थी, यकीनन इस में उसे ज्यादा मज़ा आ रहा था.
जहां तक मेरा सवाल है, वसुन्धरा की योनि की पंखुड़ियों की मेरे लिंग पर लगती मुतवातिर(अनवरत) रगड़, मुझे सरासर जन्नत का नज़ारा करवा रही थी.
अब चूंकि काम-क्रीड़ा की कमान वसुन्धरा के खुद के हाथ में थी इस लिए वसुन्धरा के मुंह से निकलने वाली आहों-सिसकारियों में भी फर्क था- ओ राज! तुम … आह! इतनी देर से … स..सी … इ..इ.. क्यों मिले? … आ … आ … आ … आ … आह! हाय … सी! ओह … आए … ह … ओह … ओ … ह … हां … हा … मर गयी … सी … इ … इ..इ … ई … ई!
वसुन्धरा काम-उत्तेजना के शिखर-बिंदु से ज्यादा दूर नहीं थी अब.
इससे पहले कि वसुन्धरा के जिस्म में काम-विस्फोट हो जाए, मुझे इस काम-केलि की कमान अपने हाथ में लेनी थी. मैंने फ़ौरन वसुन्धरा का ऊपर वाला कन्धा (दायां) अपने ऊपर वाले (बायें) हाथ से बिस्तर पर लगा कर वसुन्धरा को सीधा किया और खुद उसके ऊपर चढ़ गया. इसी चक्कर में वसुन्धरा के (दाएं) हाथ से मेरा लिंग छूट गया. मैंने अपने बाएं हाथ से वसुन्धरा का दायां हाथ वसुन्धरा की कमर के ख़म के पास बिस्तर पर दबा लिया और ख़ुद वसुन्धरा की दोनों टांगों के बीच में घुटनों के बल उकडू बैठ कर दायें हाथ से अपना लिंग-मुण्ड वसुन्धरा की योनि पर रगड़ने लगा.
वसुन्धरा ने तत्काल अपनी दोनों टांगें हवा में उठा कर मेरे लिंग का अपनी योनि के मुख पर स्वागत किया. मैंने तत्काल वसुन्धरा के दोनों पैर अपने कन्धों पर टिकाये और अपने लिंग-मुण्ड को अपने दाएं हाथ में लेकर वसुन्धरा की योनि की पंखुड़ियों को ज़रा सा खोल कर योनि के ऊपर भगनासा तक घिसने लगा.
वसुन्धरा के मुंह से सिसकारियाँ मुतवातिर जारी थी लेकिन अब वक़्त था कर्म करने का.
अचानक ही मेरा लिंग-मुण्ड वसुन्धरा की योनि के मध्य से ज़रा सा नीचे, किसी गुदगुदे से गड्ढे में अटक गया. मैं अपना लिंग-मुण्ड वहीं टिका छोड़ कर वसुन्धरा के जिस्म के ऊपरी भाग पर छा गया. इस प्रक्रिया में वसुन्धरा की दोनों टाँगें मेरी निचली पीठ तक फ़िसल गयी. वसुन्धरा ने अपने पांवों की कैंची सी बनाकर जुड़ी हुईं अपनी दोनों एड़ियां मेरे नितम्बों पर टिका दी.
मैंने अपने लिंग पर धीरे-धीरे दबाव बढ़ाना शुरू किया. काम-रस से मेरा लिंग और वसुन्धरा की योनि, दोनों बुरी तरह सने हुए थे. मेरा लिंग वसुन्धरा की योनि में करीब डेढ़ इंच प्रवेश कर चुका था कि वहीं अटक गया. मैं समझ गया कि आगे हाईमन है. हाईमन बोले तो … अक्षत-योनि की पहचान या आम भाषा में योनि की ‘सील’.
मैंने बहुत नर्मी से अपने लिंग पर दबाव बढ़ाया, तत्काल वसुन्धरा के चेहरे पर पीड़ा की लक़ीरें उभरी. मैंने अपना लिंग थोड़ा सा वापिस बाहर खींचा तो वसुन्धरा के चेहरे पर राहत के भाव आये. मैंने फिर हल्के से अपने लिंग को वसुन्धरा की योनि में वापिस आगे उसकी पुरानी जग़ह तक पहुँचाया.
और इससे पहले वसुन्धरा कोई प्रतिक्रिया करती, फ़ौरन अपने लिंग को वसुन्धरा की योनि से वापिस बाहर खींच लिया लेकिन लिंग की योनि के अंदर आने-जाने की प्रक्रिया में मेरे लिंग-मुण्ड की जो योनि की दीवारों पर रगड़ लगी उसके कारण वसुन्धरा की उत्तेजित योनि ने और काम-रस उगल दिया.
यह प्रक्रिया मैंने बार-बार दोहराई. बारह-चौदह बार मेरे लिंग वसुन्धरा की योनि के अंदर योनि के हाईमन को बस छू कर वापिस लौट आया. कमरे के अंदर वसुन्धरा की आहों-सीत्कारों का बाजार खूब गर्म हो उठा था.
“ओह … ओह … सी … इ … इ … ओ … ह … हां … हा … मर गयी … सी … इ … इ..इ … ई … ई!”
” रा..!..! …!..ज़! सी … ई … ई … ई! … उफ़..फ़..फ़ … बस..! बस..! … हा … आह … ह … ह … ह..!!! … सी..सी..सी …!”
” राज … बस … बस … बस करो … नईं..ईं … ईं … और नहीं … आगे नहीं … आ … ह …! आ … आ … आ … ह … आह …!!!”
मेरे नितम्बों पर वसुन्धरा के पैरों की कैंची की पकड़ हर पल संकीर्ण होती जा रही थी. वसुन्धरा ने अपने दोनों हाथ मेरी गिरफ़्त से छुड़वा कर मेरी पीठ पर कस कर बाँध रखे थे. वसुन्धरा अब पहले से ज्यादा सहज़ हो चुकी थी और अब वक़्त आ गया था कि एक मर्द, इक मर्द की तरह पेश आकर एक स्त्री के नारीत्व को संपूर्णता प्रदान करे.
हालांकि इस प्रक्रिया में मर्द को पल भर के लिए क्रूर होना पड़ता है. लेकिन यह क्रूरता उस डॉक्टर जैसी होती है जो किसी अस्वस्थ व्यक्ति को स्वस्थ करने के लिए इंजेक्शन लगाता है या उसका ऑपरेशन करता है.
बाहर बादल टूट कर बरस रहे थे और बाहर की ठिठुरती सर्दी में, कमरे के अंदर आदम और हव्वा के सम्पूर्ण जीवन के सब से जादुई पल आन पहुंचे थे. दो से एक होने की घड़ी बस … आने को ही थी. वसुन्धरा की जिद, वसुन्धरा का मान, वसुन्धरा का नारीत्व, वसुन्धरा का प्यार … ये सब पूर्णता को प्राप्त होने को थे और वसुन्धरा चौदह साल के जमे हुए काल-खण्ड की क़ैद से से बस … बाहर निकलने को ही थी.
फिर आया वो पल … मैंने वसुन्धरा के दोनों होंठों को अपने होंठों में लिया और लगा वसुन्धरा के दोनों होंठ चूसने. वसुन्धरा के दोनों बाज़ू मेरी पीठ के इर्द-गिर्द सख्ती से लिपट गए और वसुन्धरा के दोनों पुष्ट स्तनाग्र मेरी छाती में छेद करने पर आमादा थे.
मैंने कामाग्नि से जलते-धधकते हुए अपने साढ़े छह सात इंच के काम-ध्वज को वसुन्धरा की काम-रस से भीगी योनि से बाहर खींचा और वापिस बिजली की गति से वसुन्धरा की योनि के हाइमन को चीरते हुए वसुन्धरा की योनि में जड़ तक गाड़ दिया.
एक क्षण लगा वसुन्धरा को समझने के लिए और उसी क्षण ही वसुन्धरा ने अपने दोनों हाथों से मेरे कंधे पकड़ कर मुझे अपने ऊपर से उठाने की कोशिश की.
मैं तो वसुन्धरा के ऊपर से क्या उठता पर इस ज़ोर-आज़माईश में मेरे होंठों की पकड़ से वसुन्धरा के दोनों होंठ छूट गए. जैसे ही मेरे होंठों की पकड़ वसुन्धरा के होंठों पर से हटी.
” आह … ह … ह … ह..!!! ” एक गगनभेदी चीख़ वसुन्धरा के मुंह से फ़ूट पड़ी और वसुन्धरा मुझे अपने ऊपर से हटाने के लिए संघर्षरत हो उठी. पर अब इन सब का क्या फ़ायदा था! अब तो जो होना था वो हो चुका था और हम दोनों भी यही तो चाहते थे.
वसुन्धरा की दोनों आँखों से आंसुओं की मोटी-मोटी बूँदें टपक रही थी और मैं अपने होंठों से वसुन्धरा का एक-एक आंसू बीन रहा था. हम दोनों के निचले धड़ बिल्कुल स्पंदनहीन थे. दोनों के जिस्मों के नाभि के नीचे के भाग इक-दूसरे से ऐसे सटे हुए थे कि लोहे के दो टुकड़े वैल्ड हो गए हों.
मेरे लिंग पर वसुन्धरा की योनि का रह-रह कर स्पंदन हो रहा था जैसे कोई नर्म-गर्म मख़मल अपने हाथ में लपेट कर मेरे लिंग की सख़्ती की थाह ले रहा हो.
मैंने अपने नितम्ब थोड़े ऊपर को उठाये. मेरा लिंग कोई दो इंच वसुन्धरा की योनि से बाहर आया और मैंने तत्काल अपना लिंग वापिस वसुन्धरा की योनि में धकेल दिया. वसुन्धरा के मुंह से एक ‘सी … इ … इ..इ … ई … ई’ की सिसकी सी निकल गयी.
मैंने फिर दोबारा वही हरक़त दोहरा दी. वसुन्धरा के मुंह से फिर एक ‘सी..सी..सी … इ … इ..इ!’ की सिसकारी निकली लेकिन इस बार सिसकी में दर्द में आनंद का थोड़ा सा समावेश था.
अगले चार-पांच मिनट मैं यही हरक़त बार-बार दोहराता रहा लेकिन हर बार अपने लिंग को पिछली बारी से ज़रा सा ज्यादा बाहर निकाल कर वापिस वसुन्धरा की योनि में उतार देता और हर बार वसुन्धरा के मुंह से निकलने वाली सिसकारियों में दर्द की मात्रा क्रमश: कम और आनंद की मात्रा बढ़ती गयी. हर बार मेरा लिंग जैसे ही वसुन्धरा की योनि के दीर्घतम छोर को जाकर छूता, वसुन्धरा का मुंह भी इसी अनुपात में खुल जाता.
पाँचेक मिनट बाद अचानक वसुन्धरा ने अपने दोनों घुटने मोड़ कर अपनी दोनों टाँगें दाएं-बाएं फैला ली और अपने दोनों हाथों से मुझे आलिंगन में ले कर मेरी पीठ पर अपने दोनों हाथ कस दिए और मेरी ताल से ताल मिलाने लगी. जैसे ही मैं अपना लिंग, अपने लिंग-मुण्ड तक उसकी योनि से बाहर खींचता, वसुन्धरा अपनी कमर को ख़म दे कर थोड़ा पीछे ले जाती. और जैसे ही मैं अपने लिंग को तेज़ी से उसकी योनि में अंदर को धकेलता, वसुन्धरा भी अपनी कमर के ख़म को सीधा कर के अपनी योनि ऊपर को धकेलती.
वसुन्धरा के गोरे और पुष्ट नितंबों से मेरी जांघें जा कर ज़ोर से टकराती, एक ‘टप्प’ की आवाज़ आती. वसुन्धरा की योनि से निकलते काम-ऱज़ और मेरे लिंग से निकले प्री-कम के कारण मेरे लिंग का उसकी योनि में आवागमन थोड़ा आसान हो गया था. लेकिन फिर भी अपने लिंग को वसुन्धरा की योनि से बाहर खींच कर दोबारा अंदर घुसाने में वसुन्धरा की योनि की उत्कृष्ट संकीर्णता आड़े आ रही थी और अपने लिंग को दोबारा योनि-प्रवेश करवाने के लिए मुझे बल प्रयोग करना पड़ रहा था. परिणाम स्वरूप योनि की दीवारों से मेरे लिंग-मुण्ड का घर्षण हर गुज़रते पल के साथ-साथ बढ़ता जा रहा था.
हर बार मेरा लिंग-मुण्ड वसुन्धरा की योनि में गर्भाशय के मुंह पर हल्की सी चोट करता और उधर वसुन्धरा के मुंह से ‘आह … ह … उफ़्फ़्फ़ … उम्म्ह… अहह… हय… याह… हाय … सी … इ … ई … ई’ की ऊँची-ऊँची सीत्कारें निकल रही थी. उत्तेजना वश वसुन्धरा की दोनों टांगें हवा में लहरा उठी थी और ऐसा प्रतीत होता था कि जैसे वसुन्धरा अपनी योनि के रास्ते मेरे लिंग को नहीं अपितु मुझे अपने अंदर समा लेना चाहती हो.
और इधर मैं वसुन्धरा को अपने आगोश में कस कर समेटे हुए नीचे बिजली की तेज़ी से अपनी कमर चलाते हुए ऊपर मैं अनवरत वसुन्धरा के माथे पर, गालों पर, आँखों पर, होठों पर, गर्दन पर, दोनों छातियों के बीच में चुंबनों की बौछार किये जा रहा था.
उत्तेजना-वश वसुन्धरा की दसों उँगलियों के तीखे नाख़ून मेरी पीठ में गड़े जा रहे थे लेकिन अब मुझे इसकी क़तई कोई परवाह नहीं थी. मेरे तीव्र आवेश के कारण वसुन्धरा के मुंह से निकलने वाली ऊँची-ऊँची काम-कराहों से सारा कमरा गुंजायमान था. कामदेव की सार्वभौमिक सत्ता सर्वत्र विराजमान थी.
काम-शिखर अब ज्यादा दूर नहीं था. अचानक ही वसुन्धरा के जिस्म में ज़बरदस्त थरथराहट होने लगी. दो पल बाद ही उसका जिस्म अकड़ने लगा और वो मुझे यहां-वहां काटने की कोशिश करने लगी. मैंने फ़ौरन वसुन्धरा के दोनों हाथ अपने हाथों में लेकर उसके सर के आजु-बाज़ू टिकाये और खुद कोहनियों पर हो कर अपनी कमर को और ज्यादा तेज़ी से चलाना शुरू कर दिया.
अचानक ही मेरे लिंग पर योनि का स्पंदन और सख़्त हो गया. तभी वसुन्धरा के मुंह से ज़िबह होते पशु की ‘गुर्र.. गर्र.. गर्र.. गुर्र.. गुर्र!’ सी दीर्घ आवाज़ें निकलने लगी. फिर अचानक ही वसुन्धरा की योनि ने काम-ऱज़ की जम कर बौछार कर दी और इस के साथ ही उसकी आँखें उलट गयी और वसुन्धरा बेहोश सी हो गयी. वसुन्धरा का गर्म-गर्म ऱज़ मेरे लिंग के साथ-साथ योनि से बाहर टपकने लगा.
अपनी जिंदगी के पहले सम्भोग में वसुन्धरा स्खलित हुई थी लेकिन मैं अभी भी डटा हुआ था. हालांकि मैं भी अपनी मंज़िल से कोई ख़ास दूर नहीं था. मेरी कमर अब बिजली की तेज़ी से चलने लगी थी.
दो-एक मिनट बाद अचानक मेरा लिंग वसुन्धरा की योनि के अंदर फूलने लगा और मैंने अपना लिंग अपने लिंग-मुंड तक वसुन्धरा की योनि से बाहर खींच कर पूरी शक्ति से वापिस वसुन्धरा की योनि में धकेलना शुरू कर दिया.
टप्प … टप्प … टप्पा … टप्प टप्प … टप्प … टप्पा … टप्प! टप्प … टप्प … टप्पा … टप्प!
फिर अचानक ही वसुन्धरा की योनि के अंदर आँखिरी बिंदु पर पहुँच कर जैसे मेरे लिंग में विस्फ़ोट हो गया. गर्म-गर्म वीर्य की एक ज़ोरदार धार सीधी वसुन्धरा वसुन्धरा के गर्भाशय के मुख पर पड़ी … फिर एक और … एक और … एक और! और इस के साथ ही मैं वसुन्धरा के पसीने से लथपथ अर्ध-बेहोश जिस्म पर ढह गया. अर्ध-बेहोशी में भी वसुन्धरा ने मुझे अपने अंक में कस लिया.
वसुन्धरा आज पहली बार अपने स्त्री-रूप अतित्व के रु-ब-रू हुई थी. एक नारी लगभग अपनी आधी जिंदगी गुजरने के बाद आज पहली बार अपने नारीत्व को प्राप्त हुई थी. एक काल्पनिक भार्या ने अपने काल्पनिक पति को अपने असली कामौर्य की भेंट चढ़ा दी थी.
आज वसुन्धरा के पैरों में पड़ी चौदह साल पुरानी ज़ंज़ीर कट चुकी थी. आज एक और अहिल्या शाप मुक्त हो चुकी था.
मैंने अपना वादा निभा दिया था, अब बारी थी वसुन्धरा की … अपना अहद निभाने की.
अपने इस अफ़साने पर पाठकों की सुबुद्ध राय का मेरे ईमेल [email protected] पर मुझे बेसब्री से इंतज़ार रहेगा.
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