कुंवारी भोली–8

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शगन कुमार

कोई 4-5 बार अपना दूध फेंकने के बाद भोंपू का लंड शिथिल हो गया और उसमें से वीर्य की बूँदें कुछ कुछ देर में टपक रही थी। उसने अपने मुरझाये लिंग को निचोड़ते हुए मर्दाने दूध की आखिरी बूँद मेरे पेट पर गिराई और बिस्तर से उठ गया। एक तौलिए से उसने मेरे बदन से अपना वीर्य पौंछा और मेरे ऊपरी अंगों को एक एक पुच्ची कर दी और लड़खड़ाता सा बाथरूम चला गया।

हालाँकि उसने मेरे पेट को तौलिये से पौंछ दिया था फिर भी वह चिपचिपा हो रहा था। मैं भी उठ कर गुसलखाने चली गई। भोंपू अपने लिंग को धो रहा था। मैंने अपने पेट को धोया और जाने लगी तो उसने मुझे बाहों में ले लिया और प्यार करने लगा। अब तक जब भी उसने मुझे अपने आलिंगन में भरा था उसके लिंग का उभार मुझे हमेशा महसूस हुआ था… भले ही हम नंगे थे या नहीं… पर इस बार उसका लिंग लटका हुआ था। मुझे अजीब सा लगा… शायद अब मैं उसे आकर्षक नहीं लग रही थी।

मुझे कुछ मायूसी हुई… मैं नहीं जानती थी कि सम्भोग के बाद लंड का लुप्त होना सामान्य होता है। बाद में मुझे इस बात का पता चला… अच्छा हुआ प्रकृति ने इस तरह की पाबंदी लगा दी है वर्ना मर्द तो लड़कियों की जान ही निकाल देते। भोंपू ने मुझे प्यार करके मेरे कन्धों पर हाथ रखा और नीचे की ओर ज़ोर डाल कर मुझे घुटनों के बल बैठाने का प्रयत्न करने लगा। मुझे उसका कयास समझ नहीं आया पर उसके निरंतर ज़ोर देने से मैं अपने घुटनों पर बैठ गई।

अब उसने मेरे नज़दीक खड़े हो कर अपना लटका हुआ लिंग मेरे मुँह के सामने कर दिया और अपना एक हाथ मेरे सिर के पीछे रख कर मेरे सिर को लिंग के करीब लाने लगा। अब मुझे उसकी इच्छा का आभास हुआ। अपने जिस अंग को मैं गन्दा समझती थी उसे तो उसने चाट-पुचकार कर मुझे सातवें आसमान पर पहुँचा दिया था… अब मेरी बारी थी।

मैं अब उसके लिंग को गन्दा नहीं कह सकती थी। वैसे भी वह धुला हुआ और गीला था। उसका सुपारा वापस अपने घूँघट में चला गया था। लिंग सिकुड़ कर छोटा और झुर्रीदार हो गया था… एक भोले अनाथ बच्चे की तरह जिसे प्यार-दुलार की ज़रूरत थी। उसमें वह शरारत और अभिमान नज़र नहीं था जो कुछ ही देर पहले वह मुझे दर्शा चुका था। लग ही नहीं रहा था यह वही मूसल है जो मेरी कोमल ओखली पर इतने सख्त प्रहार कर रहा था। उसका अबल रूप देखकर मुझे उसपर प्यार और तरस दोनों आने लगे और मैंने उसे अपने हाथों में ले लिया। कितना लचीला और मुलायम लग रहा था।

मैंने पहली बार किसी मर्द के लिंग को हाथ में लिया था… इसके पहले तो सिर्फ गुंटू की लुल्ली को नहलाते वक्त देखा और छुआ था। उस एक इंच की मूंगफली और इस केले में बड़ा फर्क था। यह मुरझाया हुआ मद्रासी केला जोश में आने के बाद पूरा भूसावली केला बन जाता था। उसे हाथ में लेकर मुझे अच्छा लग रहा था… एक ऐसी खुशी मिल रही थी जो कि चोरी-छुपे गलत काम करने पर मिलती है। मैं उसको अपने हाथों में पकड़ी हुई थी… समझ नहीं आ रहा था क्या करूँ।

भोंपू ने मेरी ठोड़ी पकड़ कर ऊंची की और मेरी आँखों में आँखें डाल कर उसे मुँह में लेने का संकेत दिया। मैंने सिर हिला कर आपत्ति जताई तो उसने मिन्नत करने की मुद्रा बनाई। मुझे अपनी योनि पर उसके होंठ और जीभ का स्मरण हुआ तो लगा उसे भी ऐसे आनंद का हक़ है। मैंने उसे पलक मूँद कर स्वीकृति प्रदान की और कुछ अविश्वास के साथ अपने मुँह को उसके लिंग के पास ले गई। अभी भी मेरा मन उसको मुँह में लेने के लिए राज़ी नहीं हो रहा था। मैं सिर्फ उसको खुश करने के लिए और मेरी योनि चाटने के एवज़ में कर रही थी। मेरी अंतरात्मा अभी भी विरोध कर रही थी। मुझे डर था उसका सुसू मेरे मुँह में निकल जायेगा… छी !

भोंपू ने अपनी कमर आगे करते हुए मुझे जल्दी करने के लिए उकसाया… वह बेचैन हो रहा था। मैंने जी कड़ा करके अपने होंट उसके लिंग के मुँह पर रख ही दिये… मुझे जिस दुर्गन्ध की अपेक्षा थी वह नहीं मिली… मैंने होठों से उसके सिरे को पकड़ लिया और ऊपर नज़रें करके भोंपू की ओर देखा मानो पूछ रही थी- ‘ठीक है?’

भोंपू ने सिर हिला कर सराहना की और फिर अपनी ऊँगली के सिरे को मुँह में डाल कर उसे चूसने और उस पर जीभ फिराने का नमूना दिया। मैंने उसकी देखा-देखी उसके लिंग के सिरे पर अपनी जीभ फिराई और उसकी तरफ देख कर मानो पूछा ‘ऐसे?’

उसने खुशी का इज़हार किया और फिर अपनी उंगली को अपने मुँह के अंदर-बाहर करके मुझे अगला पाठ पढ़ाया। मैं एक अच्छी शिष्या की तरह उसकी सीख पर अमल कर रही थी। मैंने उसके लिंग को अपने होटों के अंदर-बाहर करना शुरू किया। मेरा मुँह सूखा था और मेरी जीभ उसके लिंग को नहीं छू रही थी… सिर्फ मेरे गोल होंट उसके लिंग की बाहरी सतह पर चल रहे थे।

उसने कहा ‘एक मिनट’ और वह गया और अपनी पेंट की जेब से एक शीशी ले कर आया। उसने मुझे दिखाकर शहद की नई शीशी को खोला और उंगली से शहद अपने लिंग पर लगा दिया। फिर मेरी तरफ देखते हुए अपनी शहद से सनी उंगली को मुँह में लेकर चाव से चूसने लगा।

मैंने उसके शहद लगे लिंग को पकड़ना चाहा तो उसने मुझे हाथ लगाने से मना किया और इशारा करके सिर्फ मुँह इस्तेमाल करने को कहा। उसने अपने दोनों हाथ अपनी पीठ के पीछे कर लिए और मुझे भी वैसे ही करने को कहा।

मैंने अपने हाथ पीछे कर लिए और अपनी जीभ निकाल कर उसके लिंग को मुँह में लेने की कोशिश करने लगी। उसका मुरझाया लिंग लटका हुआ था और शहद के कारण उसके टट्टों से चिपक गया था। सिर्फ मुँह और जीभ के सहारे उसके लचीले और चिपके हुए पप्पू को अपने मुँह में लेना मेरे लिए आसान नहीं था। मुझे लिंग और टट्टों के बीच अपनी जीभ ले जाकर उसे वहाँ से छुड़ाना था और फिर मुँह में लेना था। लिंग को टट्टों से छुड़ाना तो मुश्किल नहीं था पर उसको जैसे ही मुँह में लेने के लिए मैं अपना मुँह खोलती वह छूट कर फिर चिपक जाता। मेरी कोशिशें एक खेल बन गया था जिसमें भोंपू को बहुत मज़ा आ रहा था।

पर हर असफलता से मेरा निश्चय और दृढ़ होता जा रहा था… मैं हर हालत में सफल होना चाहती थी। अचानक मुझे सूझा कि मेरी असफलता का कारण लिंग का लचीलापन है… अगर वह कड़क होता तो अपने आप टट्टों से अलग हो जाता और मुँह में लेना आसान हो जाता।

इस सोच को प्रमाणित करने के लिए मैंने लिंग को उत्तेजित करने का मंसूबा बनाया… और अपनी जीभ फैलाकर उसको नीचे से ऊपर चाटने लगी। मैं अपने आप को आगे खिसका कर उसकी टांगों के बीच में ले आई जिससे मेरा सिर उसके लिंग के बिल्कुल नीचे आ गया… अब मैंने मुँह ऊपर करके, जैसे बछड़ा दूध पीता है, उसके लिंग और टट्टों को नीचे से दुहना शुरू किया।

भोंपू को इसका कोई पूर्वानुमान नहीं था… उसको मेरी यह कोशिश उत्तेजित कर गई… उसने मेरे सिर के बालों में हाथ फिरा कर मुझे सराहा। मेरे निरंतर प्रयास ने असर दिखाया और उसके लटके लिंग में जान आने लगी… उसकी सिकुड़न कम होने लगी और झुर्रियाँ गायब होने लगीं… वह थोड़ा सा मांसल हो गया।

जैसे ही वह टट्टों से जुदा हुआ मैंने घप से अपना मुँह ऊपर करके उसे अंदर ले लिया। वह अभी भी छोटा ही था सो पूरा मेरे मुँह में आ गया… मैंने लिंग की जड़ पर होट लपेटते हुए अपने आप को उसकी टांगों से बाहर सरकाया और उसकी तरफ देखने लगी… मेरी आँखों से “देखा… मैं जीत गई” फूट रहा था। उसने मेरा लोहा मानते हुए नीचे झुक कर मेरे माथे को चूमना चाहा पर उसके झुकने से उसका लिंग मेरे मुँह से निकल गया। उसने झट से मेरे सिर पर एक पप्पी की और फिर से सीधा खड़ा हो गया। मैंने भी जल्दी से उसके लिंग को पूरा मुँह में ले लिया। शहद से मेरे मुँह में पानी आना शुरू हो गया था और मैं स्वाद के साथ उसको चूसने लगी।

भोंपू ने मेरी तरफ देखते हुए अपनी जीभ को अपने मुँह के अंदर गालों पर घुमाया। वह मुझे लिंग पर अपनी जीभ चलाने के लिए कह रहा था। मैंने उसके लिंग पर मुँह के अंदर ही अंदर जीभ चलाना शुरू किया। मुझे उसका लिंग मुँह में अच्छा लगने लगा था… लिंग के प्रति मेरी घिन गायब हो गई थी… कोई गंध या गंदगी नहीं लग रही थी… बल्कि मुँह में उसका मुलायम और चिकना स्पर्श मुझे भला लग रहा था। मैं मज़े ले लेकर लिंग पर जीभ फिराने और उसे चूसने लगी…

मैंने महसूस किया उसका लिंग करवट ले रहा है… वह बड़ा होने लगा था… धीरे धीरे उसकी जड़ पर से मेरे होंट सरकने लगे और वह मुँह से बाहर निकलने लगा। कुछ देर में वह आधे से ज़्यादा मेरे मुँह से बाहर आ गया… पर जितना हिस्सा अंदर था उससे ही मेरा मुँह पूरा भरा हुआ था।

अब मैंने पाया कि उसका सुपारा मेरे मुँह की ऊपरी छत पर लगने लगा था। लिंग लंड बन चुका था और वह तन्ना रहा था… स्वाभिमान से उसका सिर उठ खड़ा हुआ था। मुझे अपने आप को घुटनों पर थोड़ा ऊपर करना पड़ा जिससे लिंग को ठीक से मुँह में रख सकूँ। उधर भोंपू ने भी अपनी टांगें थोड़ी मोड़ कर नीची कर लीं।

शहद कब का खत्म हो गया था। भोंपू और शहद लगाने के लिए शीशी खोलने लगा तो मैंने उसे इशारा करके मना किया। अब मुझे शहद की ज़रूरत नहीं थी… उसका लंड ही काफ़ी अच्छा लग रहा था हालांकि उसमें कोई स्वाद नहीं था। भोंपू को मज़ा आने लगा था… उसने धीरे धीरे अपनी कमर आगे-पीछे हिलानी शुरू कर दी। मैं उसके लंड को पूरा मुँह में नहीं ले पा रही थी पर वह शायद उसे पूरा अंदर करना चाहता था… सो वह रह रह कर उसे अंदर धकेलने लगा था। उसका आधा लंड ही मेरे हलक को छूने लगा था… पूरा अंदर जाने का तो सवाल ही नहीं उठता था।

एक बार फिर भोंपू ने मुझे कुछ सिखाना चाहा। उसने अपनी फैली जीभ को पूरा बाहर निकालने का नमूना दिखाया और फिर जीभ को नीचे दबाते हुए मुँह में अपनी बीच की उंगली को पूरा अंदर डाल दिया। मैंने उसका अनुसरण करते हुए पहले लंड को बाहर निकाला फिर अपनी जीभ फैलाकर पूरी बाहर निकाली… भोंपू ने मेरी मदद करते हुए मेरे सिर को पीछे की तरफ मोड़ा और लंड से मेरी जीभ नीचे दबाते हुए लंड को अंदर डालने लगा।

पहले के मुकाबले लंड ज़्यादा अंदर चला गया पर मेरा दम घुट रहा था… जैसे ही भोंपू ने लंड थोड़ा और अंदर डालने की कोशिश की मुझे ज़ोर की उबकाई आई और मैंने लंड बाहर उगल दिया। मेरी आँखों में आँसू आ गए थे और थोड़ी घबराहट सी लग रही थी। भोंपू ने मेरे सिर पर सांत्वना का हाथ फेरा और थोड़ा सुस्ताने के लिए कहा।

मैं बैठ गई … भोंपू अपने लंड को कायम रखने के लिए उस पर अपना हाथ चला रहा था और उसकी उँगलियाँ मेरे कन्धों, बालों और गर्दन पर प्यार से चल रहीं थीं।

हमारे मुँह की गहराई लगभग तीन से चार इंच की होती है… उसके बाद खाने की नली होती है जो कि करीब 90 डिग्री के कोण पर होती है। खाने की नली काफी लंबी होती है। मतलब, 5-6 इंच का कड़क लंड अगर पूरा मुँह में डालना हो तो उसको मुँह के आगे हलक से पार कराना होगा और लंड का सुपारा खाने की नली में उतारना होगा। भोंपू को शायद यह बात पता थी।

थोड़ा आराम करने के बाद भोंपू ने अपने सूखे हुए लंड पर शहद लगा लिया और मुझे लंड के ठीक नीचे घुटनों पर बिठा दिया… फिर मेरा सिर पूरा पीछे मोड़ कर मुँह पूरा खोलने का कहा जिससे मेरा खुला मुँह और उसके अंदर की खाने की नली कुछ हद तक एक सीध में हो गई। फिर जीभ पूरी बाहर निकालने का इशारा किया। अब उसने ऊपर से लंड मेरे मुँह में डाला और जितना आसानी से अंदर जा सका वहाँ पर रोक दिया। शहद के कारण मेरे मुँह में पानी आ गया जिससे लंड की चिकनाहट और रपटन बढ़ गई।

भोंपू ने इसका फ़ायदा उठाते हुए मेरी गर्दन को और पीछे मोड़ा, अपने एक हाथ से लंड का रुख नीचे की तरफ सीधा किया और ऊपर से नीचे की तरफ लंड से दबाव बनाने लगा। मेरी गर्दन की इस दशा से मुझे कुछ तकलीफ़ तो हो रही थी पर इससे मेरे मुँह और खाना खाने वाली नाली एक सीध में हो गई जिससे लंड को अंदर जाने के लिए और जगह मिल गई।

भोंपू ने धीरे धीरे लंड को नीचे की दिशा में मेरे गले में उतारना शुरू किया। लंड जब मेरे हलक से लगा तो मुझे यकायक उबकाई आई जो घृणा की नहीं एक मार्मिक अंग की सहज प्रतिक्रिया थी। भोंपू ने अपने आप को वहीं रोक लिया और मेरे चेहरे पर हाथ फेरते हुए उस क्षण को गुजरने दिया।

मैंने भी अपने आप को संभाला और भोंपू का सहयोग करने का निश्चय किया। मेरे हलक में थूक इकठ्ठा हो गया था जो कि मैंने निगल लिया और एक-दो लंबी सांसें लेने के बाद तैयार हो गई। भोंपू ने मुझे अपनी जीभ और बाहर खींचने का इशारा किया और एक बार फिर लंड को नीचे दबाने लगा। मुझे लंड के अंदर सरकने का आभास हो रहा था और मुझे लगा उसका सुपारा मेरी खाने के नली को खोलता हुआ अंदर जा रहा था…

भोंपू को बहुत खुशी हो रही थी और वह और भी उत्तेजित हो रहा था। मुझे लंड के और पनपने का अहसास होने लगा। भोंपू लगातार नीचे की ओर दबाव बनाये हुए थे… मेरा दम घुटने सा लगा था और मेरी आँखों से आंसू बह निकले थे… ये रोने या दर्द के आंसू नहीं बल्कि संघर्ष के आंसू थे। आखिर हमारी मेहनत साकार हुई और लंड की जड़ मेरे होटों से मिल गई…

भोंपू अति उत्तेजित अवस्था में था और शायद वह इसी मौके का इंतज़ार कर रहा था।जैसे ही उसके मूसल की मूठ मेरे होटों तक पहुंची उसका बाँध टूट गया और लंड मेरे हलक की गहराई में अपना फव्वारा छोड़ने लगा। उसका शरीर हडकंप कर रहा था पर उसने मेरे सिर को दोनों हाथों से पकड कर अपने से जुदा नहीं होने दिया। वह काफ़ी देर तक लावे की पिचकारी मेरे कंठ में छोड़ता रहा। मुझे उसके मर्दाने दूध का स्वाद या अहसास बिल्कुल नहीं हुआ … उसने मेरे मुँह में तो अपना रस उड़ेला ही नहीं था… उसने तो मेरे कंठ से होली खेली थी। अपनी बन्दूक पूरी खाली करके उसने अपना हथियार मेरे कंठ से धीरे धीरे बाहर निकाला… इतनी से देर में ही उसका लंड अपनी कड़कता खो चुका था और हारे हुए योद्धा की मानिंद अपना सिर झुकाए मेरे मुँह से बाहर आया।

उसके बाहर आते ही मेरी गर्दन, मुँह और कंठ को आराम मिला। मैंने अपनी गर्दन पूरी तरह घुमा कर मुआयना किया… सब ठीक था… और फिर भोंपू की तरफ उसकी शाबाशी की अपेक्षा में देखने लगी। उसकी आँखों में कृतज्ञता के बड़े बड़े आंसू थे… वह खुशी से छलकती आँखों से मेरा धन्यवाद कर रहा था।

“तुमने तो कमाल कर दिया !” बड़ी देर बाद उसने कुछ कहा था। इस पूरी प्रक्रिया में मेरे कुछ कहने का तो सवाल ही नहीं उठता था… मेरा मुँह तो भरा हुआ था… पर उसने भी इस दौरान सिर्फ मूक-भाषा का ही प्रयोग किया था। मुझे अपनी इस सफलता पर गर्व था और उसकी तारीफ ने इसकी पुष्टि कर दी।

कहानी ‘कुंवारी भोली-9’ में जारी रहेगी। यहाँ तक कहानी कैसी लगी?

शगन

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