कुंवारी भोली-4

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शगन कुमार

थोड़ी देर बाद भोंपू ने दोनों टांगों और पैरों की मालिश पूरी की और वह अपनी जगह बैठे बैठे घूम गया। मेरे पीछे के पूरे बदन पर तेल मालिश हो चुकी थी। उसने उकड़ू हो कर अपने आप को ऊपर उठाया और मेरे कूल्हे पर थपथपाते हुए मुझे पलट कर सीधा होने के लिए इशारा किया।

मैं झट से सीधी हो गई। वह एक बार फिर घूम कर मेरे पैरों की तरफ मुँह करके घुटनों के बल बैठ गया और तेल लगा कर मेरी टांगों की मालिश करने लगा। पांव से लेकर घुटनों के थोड़ा ऊपर तक उसने खूब हाथ चलाये। फिर वह थोड़ा पीछे खिसक कर मेरे पेट के बराबर घुटने टेक कर बैठ गया और उसने मेरी जाँघों पर तेल लगाना शुरू किया।

अब मुझे बहुत गुदगुदी होने लगी थी और मैं बेचैन होकर हिलने लगी थी। उसने मेरी टांगों को थोड़ा सा खोला और और जांघों के अंदरूनी हिस्से पर तेल लगाने लगा… उसके अंगूठे मेरे योनि के इर्द-गिर्द बालों के झुरमुट को छूने लगे थे… पर उसने मेरी योनि को नहीं छुआ… मेरी योनि से पानी पुनः बहने लगा था… उसके हाथ बड़ी कुशलता से मेरी योनि से बच कर निकल रहे थे।

मेरी व्याकुलता और बढ़ रही थी। अब मेरा जी चाह रहा था कि वह मेरी योनि में ऊँगली डाले। जब उसका अंगूठा या उंगली मेरी योनि के पास आती तो मैं अपने आप को हिला कर उसे अपनी योनि के पास ले जाने की कोशिश करती… पर वह होशियार था। उसे लड़की को सताना और बेचैन करना अच्छे से आता था।

कुछ देर मुझे इस तरह तड़पा कर उसने घूम कर मेरी तरफ मुँह कर लिया। वह मेरे पेट के ऊपर ही उकड़ू बैठा था। मैंने देखा कि उसका कच्छा बुरी तरह तना हुआ है। उसने हाथ में तेल लेकर मेरे स्तनों पर लगाया और उन्हें सहलाने लगा… सहला सहला कर उसने तेल पूरे स्तनों पर लगा दिया और फिर अपनी दोनों हथेलियाँ सपाट करके मेरे निप्पलों पर रख उन्हें गोल गोल घुमाने लगा। मेरे स्तन उभरने और निप्पल अकड़ने लगे। थोड़ी ही देर में निप्पल बिल्कुल कड़क हो गए तो उसने अपनी दोनों हथेलियों से मेरे मम्मों को नीचे दबा दिया। मुझे लगा मेरे निप्पल उसकी हथेलियों में गड़ रहे हैं।

अब वह मज़े ले ले कर मेरे मम्मों से खेल रहा था। मैं जैसे तैसे अपने आप को मज़े में उचकने से रोक रही थी। उसके बड़े बड़े मर्दाने हाथ मेरे नाज़ुक स्तनों को बहुत अच्छे लग रहे थे। कभी कभी मेरा मन करता कि वह उन्हें और ज़ोर से दबाए। पर वह बहुत ध्यान से उनका मर्दन कर रहा था।

भोंपू अब थोड़ा पीछे की ओर सरका और अपने चूतड़ मेरी जाँघों के ऊपर कर लिए। उसने अपने घुटनों और नीचे की टांगों पर अपना वज़न लेते हुए अपने ढूंगे मेरी जाँघों पर टिका दिए। इस तरह अपना कुछ वज़न मेरी जांघों पर छोड़ कर शायद उसे कुछ राहत मिली। वह काफी देर से उकड़ू बैठा हुआ था… उसके मुँह से एक गहरी सांस छूट गई।

कुछ पल सुस्ताने के बाद उसने आगे झुक कर मेरे दोनों मम्मों को एक एक करके चूमा। मैं इसके लिए तैयार नहीं थी और मैं सिहर उठी। उसने और आगे झुकते हुए अपना सीना मेरी छाती से लगा दिया। फिर अपने पैर पीछे को पसारते हुए अपना पेट मेरे पेट से लगा दिया। अब वह घुटने और हाथों के बल मेरे ऊपर लेट सा गया था और उसने अपना सीना और पेट मेरी छाती और पेट पर गोल गोल घुमाने लगा था।

वाह ! क्या मज़ा दे रहा था !! उसका कच्छे में जकड़ा लिंग मेरी नाभि के इर्द-गिर्द छू रहा था… मानो उसकी परिक्रमा कर रहा हो। मेरे तन-मन में कामाग्नि ज़ोर से भडकने लगी थी। मेरा मन तो कर रहा था उसका कच्छा झपट कर उतार दूं और उसके लिंग को अपने में समा लूं। पर क्या करती… लज्जा, संस्कार और भय… तीनों मुझे रोके हुए थे। जहाँ मेरा शरीर समागम के लिए आतुर हो रहा था वहीं मेरे दिमाग में एक ज़ोर का डर बैठा हुआ था। सुना था बहुत दर्द होता है… खून भी निकलता है… और फिर बच्चा ठहर गया तो क्या? यह सोच कर मैं सहम गई और अपने बेकाबू होते बदन पर अंकुश डालने का प्रयास करने लगी।

पर तभी भोंपू घूमते घूमते थोड़ा और पीछे खिसका और अब उसका लिंग मेरे निचले झुरमुट के इर्द-गिर्द घूमने लगा। मेरे अंग-प्रत्यंग में जैसे डंक लग गया और मेरी कामोत्तेजना ने मेरे दिमाग के सब दरवाज़े बंद कर दिए। मैं सहसा उचक गई और मेरी योनि से रस की धारा सी बह निकली।

भोंपू की आँखें बंद थीं सो वह मेरी दशा देख नहीं पा रहा था पर उसको मेरी स्थिति का पूरा अहसास हो रहा था।

“कैसा लग रहा है?” उसने अचानक पूछा।

उसकी आवाज़ सुनकर मैं चोंक सी गई… जैसे मेरी चोरी पकड़ी गई हो। मैं कुछ नहीं बोली।

“क्यों… अच्छा नहीं लग रहा?”

मुझे कोई जवाब नहीं सूझ रहा था। कुछ भी कहने से ग्लानि-भाव और शर्म महसूस हो रही थी। मैं चुप ही रही।

“ओह… शायद तुम्हें मज़ा नहीं आया… देखो शायद अब आये…” कहते हुए वह ऊपर हुआ और उसने अपने होंट मेरे होंटों पर रख दिए।

मैं सकपका गई… मेरे होंट अपने आप बंद हो गए और मैंने आँखें बंद कर लीं। भोंपू ने अपनी जीभ के ज़ोर से पहले मेरे होंट और फिर दांत खोले और अपनी जीभ को मेरे मुँह में घुसा दिया। फिर जीभ को दायें-बाएं और ऊपर नीचे करके मेरे मुँह को ठीक से खोल लिया… अब वह मेरे मुँह के रस को चूसने लगा और अपनी जीभ से मेरे मुँह का अंदर से मुआयना करने लगा। साथ ही उसने अपना बदन मेरे पेट और छाती पर दोबारा से घुमाना चालू कर दिया। कुछ देर अपनी जीभ से मेरे मुँह में खेलने के बाद उसने मेरी जीभ अपने मुँह में खींच ली और उसे चूसने लगा।

धीरे धीरे मैं भी उसका साथ देने लगी और मुझे मज़ा आने लगा। मेरा इस तरह सहयोग पाते देख उसने अपने बदन को थोड़ा और नीचे खिसका दिया और अब उसका लिंग मेरे योनि द्वार पर दस्तक देने लगा… उसके हाथ मेरे स्तनों को मसलने लगे। मेरे तन-बदन में आग लग गई… मेरी टांगें अपने आप थोड़ा खुल गईं और उसके लिंग को मेरी जाँघों के कटाव में जगह मिल गई। मेरी हूक निकल गई और मैंने अपने घुटने मोड़ लिए… मेरा बदन रह रह कर ऊपर उचकने लगा… मेरी लज्जा और हया हवा हो गई। मैं चुदने के लिए तड़प गई…

“एक मिनट रुको !” कहकर भोंपू मुझ पर से उठा और उसने पास पड़ा तौलिया मेरे चूतड़ों के नीचे बिछा दिया। फिर उसने खड़े होकर अपना कच्छा उतार दिया। मैं लेटी हुई थी और वह बिस्तर पर मेरी कमर के दोनों तरफ पांव करके नंगा खड़ा हुआ था। उसका तना हुआ लंड मानो उसके शरीर को छोड़ के बाहर जाने को तैयार था। मैं जिस दशा में थी वहां से उसका लंड बहुत बड़ा और तगड़ा लग रहा था। भोंपू खुद भी मुझे भीमकाय दिख रहा था…

अब मुझे डर लगने लगा। उसकी आँखों पर अब भी दुपट्टा बंधा था। पर अब उसे आँखों की ज़रूरत कहाँ थी !! कहते हैं लंड की भी अपनी एक आँख होती है… जिससे वह अपना रास्ता ढूंढ ही लेता है !

वह फिर से मेरे ऊपर पहले की तरह लेट गया… उसने अपनी दोनों बाहें मेरे घुटनों के नीचे से डाल कर मेरी टांगें ऊपर कर दीं और फिर अपने उफनते हुए लंड के सुपारे से मेरी कुंवारी योनि का द्वार ढूँढने लगा। वैसे तो उसकी आँखें बंद थीं पर अगर ना भी होतीं तो भी मेरी योनि के घुंघराले बालों में योनि नहीं दिखती… उसे तो ढूँढना ही पड़ता।

भोंपू योनि कपाट खोजने का काम अपने लंड की आँख से कर रहा था। वह शादीशुदा था अतः उसे यह तो पता था कहाँ ढूँढना है… उसका परम उत्तेजित लंड योनि के आस-पास हल्का हल्का दबाव डाल कर अपना लक्ष्य ढूंढ रहा था। मुझे इससे बहुत उत्तेजना हो रही थी… एक मजेदार खेल चल रहा था… मेरी योनि निरंतर रस छोड़ रही थी। मुझे अच्छा लगा कि भोंपू अपने हाथों का इस्तेमाल नहीं कर रहा है। इस आँख-मिचोली में शायद दोनों को ही मज़ा आ रहा था। आखिरकार, लंड की मेहनत सफल हुई और सुपारे को वह हल्का सा गड्ढा मिल ही गया जिसे दबाने से भोंपू को लगा ये सेंध लगाने की सही जगह है।

उसने अपने आप को अपने घुटनों और हाथों पर ठीक से व्यवस्थित किया… साथ ही मेरे चूतड़ों को अपनी बाहों के सहारे सही ऊँचाई तक उठाया और फिर अपने सुपारे को मेरे योनि-द्वार पर टिका दिया। मेरा दिल ज़ोर से धड़क रहा था… मैंने अपने बदन को कड़क कर लिया था… मेरी सांस तेज़ हो गई थी और डर के मारे मेरे हाथ-पैर ठन्डे पड़ रहे थे… पर नीचे मेरी योनि व्याकुल हो रही थी… सुपारे का योनि कलिकाओं से स्पर्श उसे पुलकित कर रहा था… योनि का मन कर रहा था अपने आप को नीचे धक्का देकर लंड को अंदर ले लूं… मैं सांस सी रोके भोंपू के अगले वार का इंतज़ार कर रही थी…

तभी मुझे आवाज़ सुनाई दी… “बोलो तैयार हो? पांव के दर्द का पूरा इलाज कर दूं?”

कितना गन्दा आदमी है ये… मुझे तड़पा तड़पा कर मार देगा… मैंने सोचा… पर जवाब क्या देती… चुप रही…

उसने अपने सुपारे से मेरे योनि-द्वार पर एक-दो बार हल्का हल्का दबाव डाल कर मेरी कामाग्नि के हवन-कुंड में थोडा और घी डाला और थोड़ा और प्रज्वलित किया और फिर से पूछा .. “बोलो ना…”

मैंने जवाब में उसके सिर पर प्यार से उँगलियाँ फिरा दीं और उसके सिर को पुच्ची कर दी।

“ऐसे नहीं… बोल कर बताओ?”

“क्या?”

“यही… कि तुम क्या चाहती हो?”

“तुम बहुत गंदे हो…” मैं क्या कहती… आखिर लड़की हूँ।

“तो मैं उठूँ?” कहते हुए उसने अपने लंड का संपर्क मेरी योनि से तोड़ते हुए पूछा।

मैं मचल सी गई। मैं बहुत जोर से चुदना चाहती थी यह वह जानता था। वह मुझे छेड़ रहा था यह मैं भी जानती थी। पर क्या करती? उसका पलड़ा भारी था… शायद मेरी ज़रूरत और जिज्ञासा अधिक थी। वह तो काफी अनुभवी लग रहा था।

“जल्दी बोलो…” उसने चुनौती सी दी।

“अब और मत तड़पाओ !” मुझे ही झुकना पड़ा…

“क्या करूँ?” भोंपू मज़े लेकर पूछ रहा था।

“मेरा पूरा इलाज कर दो।” मैंने अधीर होकर कह ही दिया।

“कैसे?” उसने नादान बनते हुए मेरे धैर्य का इम्तिहान लिया।

“अब जल्दी भी करो…” मैंने झुंझलाते हुए कहा।

यहाँ तक की कहानी कैसी लगी?

शगन

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