तृप्ति की वासना तृप्ति-2
(Tripti Ki Vasna Tripti-2)
लेखक : संजय शर्मा उर्फ़ संजू
सम्पादक एवं प्रेषक : सिद्धार्थ वर्मा
कहानी का पहला भाग: तृप्ति की वासना तृप्ति-1
नितिन ने 6-7 अत्यधिक तीव्र गति से धक्के मारे और चाची के साथ खुद भी झड़ गया तथा पस्त होकर उसके ऊपर ही लेट गया।
इस सीधे प्रसारण की समाप्ति के होने तक मेरा हथियार भी पैन्ट में तन कर खड़ा हो गया था।
उस समय मेरा मन तो कर रहा था कि मैं अन्दर जाकर नितिन को वहाँ से हटा दूँ और खुद मोर्चा सम्भाल कर चाची की चूत का बाजा ही बजा दूँ।
लेकिन समय की नजाकत को समझते हुए मैंने वहाँ से निकल जाने में ही अपनी भलाई समझी और तुरंत बाथरूम का दरवाज़ा बंद किया तथा लाइब्रेरी की किताब उठा कर घर से बाहर निकल गया।
अगले पीरियड के शुरू होने से पहले मैं कॉलेज तो पहुँच गया था, लेकिन वहां मेरा मन बिल्कुल नहीं लगा और चाची तथा नितिन की चुदाई का दृश्य मेरी आँखों के सामने घूमता रहा।
पीरियड के अंत होने पर जब मैं कॉलेज से घर वापिस पहुँचा तब देखा कि नितिन जा चुका था तथा चाची भी कपड़े बदल कर हरे रंग की चमकली साड़ी पहने बैठक में टीवी देख रही थी।
मैं चुपचाप ऊपर अपने कमरे की ओर बढ़ने लगा, तभी रसोई में काम कर रही मम्मी एकदम से पलटी और मुझे देख कर बोली- अरे संजू क्या हुआ? तू जल्दी कैसे आ गया? अभी तो सिर्फ दो ही बजे हैं?
मैंने उत्तर दिया- कुछ नहीं मम्मी, एक प्रोफ़ेसर नहीं आये थे इसलिए अंतिम पीरियड खाली थे और मेरे सिर में थोड़ा दर्द हो रहा है तथा मुझे कुछ कमजोरी भी महसूस हो रही है।
मम्मी बोली- शायद रात को देर तक पढ़ने से नींद पूरी नहीं हुई होगी इसी कारण से ऐसा लग रहा होगा। मैं तेरे लिए चाय बनाकर लाती हूँ, पीकर तुम आराम कर लेना, जल्दी ही आराम महसूस होगा।
चाय पीकर मैं लेट गया लेकिन आँखे बंद करते ही फिर वही दृश्य एक चल-चित्र की तरह मेरी आँखों के सामने तैरने लगे।
मेरी आँख लगने ही वाली थी कि मम्मी की आवाज सुनाई दी- तृप्ति, मैं जरा बाहर जा रही हूँ, छः बजे तक आ जाऊँगी। संजू की तबियत ठीक नहीं है तुम कुछ देर उसके पास ही बैठ जाना।
चाची बोली- अच्छा जीजी, आप निश्चिन्त हो कर जाइए, मैं संजू को देखती रहूंगी।
मम्मी और चाची की बात सुनते ही मेरे मन का शैतान जाग उठा और मैंने सोचा कि चाची को सेट करने के लिए यही सब से बढ़िया मौका था।
मैंने फ़ौरन अपने सारे कपड़े बदल कर सिर्फ लुंगी तथा बनियान पहन कर चाची की इंतज़ार में बैड पर लेट गया।
थोड़ी देर के बाद चाची आई और मुझसे पूछा- संजू तुम्हें क्या हुआ? सुबह तो तुम बिल्कुल ठीक थे?
मैं बोला- चाची ऐसा कुछ चिंता करने की बात नहीं है, थोड़ा सिर में दर्द कर रहा है और शरीर भी टूट रहा है।
चाची मेरे सिरहाने बैठती हुई बोली- संजू, आ मैं तेरा सिर दबा देती हूँ इससे तुम्हे कुछ आराम मिलेगा और नींद भी आ जाएगी। जब सो कर उठोगे तब अपने आप को ठीक एवं तरो-ताज़ा महसूस करोगे।
इतना कह कर उन्होंने मेरा सिर अपनी गोदी में रख लिया और सहलाने एवं दबाने लगी।
कुछ देर लेटे रहने के बाद मैंने चाची से कहा की मेरे कन्धों के जोड़ों में बहुत दर्द हो रहा है इसलिए कृपया आप थोड़ा वहाँ पर भी दबा दें।
चाची ने जब मेरे कंधे दबाने शुरू किये तब मैंने धीरे से अपना दायाँ बाजू उठा अपने माथे पर रख दिया और जब वह कन्धा दबाने के लिए आगे झुकती तब मेरा हाथ उनकी चूचियों से टकरा जाता।
जब चाची ने मेरी इस हरकत पर कुछ नहीं कहा तब मेरी हिम्मत बढ़ गयी और मैंने उस हाथ को धीरे-धीरे सरका कर उनकी बायीं चूची पर टिका दिया और अंदाजे से उनके चुचुक को मसल दिया।
मेरी इस हरकत से वह शायद सोते से जागी हो और मेरा हाथ अपनी चूची से हटाते हुए बोली- यह क्या कर रहे हो नितिन? बहुत बदतमीज हो गए हो। आने दो तुम्हारी मम्मी को मैं उन्हें इस हरकत के बारे में ज़रूर बताऊँगी।
चाची की बात सुन कर और उनके तेवर देख कर एक बार तो मैं डर गया लेकिन हिम्मत करके बोला- चाची, तुम मेरे बारे में क्या बताओगी? आज तो मैं ही तुम्हारे और नितिन के बीच में पकने वाली खिचड़ी का पर्दाफाश कर दूंगा। आज सुबह 11 बजे से 12 बजे के बीच में आपके कमरे में जो कुछ भी हुआ था वह सब कुछ मैंने भी देखा और सुना था।
मेरी कही बात सुन कर चाची के होश उड़ गए तथा उसके चेहरे का रंग सफ़ेद पड़ गया और वह अपना सिर पकड़ कर धम से मेरे बैड पर ही बैठ गई।
मैंने अपना तीर निशाने पर लगता देख उसके पास जा कर कहा- यदि तुम मुझे भी खुश कर दोगी तो मैं मम्मी को क्या किसी और को भी कुछ नहीं बताऊँगा।
मुझे नहीं पता था कि चाची ने मेरी बात सुनी या नहीं क्योंकि वह निर्जीव सी हो कर बैड पर बैठी हुई थी।
मेरे दिमाग में तो शैतान का वास हो चुका था इसलिए मैंने उन की चुप्पी को मौन स्वीकृति मान कर उनके होंठों पर अपने होंठ रख कर चूमने लगा और उनकी चूचियों से खेलना शुरू कर दिया।
जब कोई विरोध नहीं मिला तब मैंने उनके ब्लाउज के हुक खोल कर उसे उनके बदन से अलग कर दिया और उनकी ब्रा को ऊपर उठा कर उनकी चूचियों को चूसना शुरू कर दिया।
फिर धीरे से मैंने एक एक कर के उनके शरीर से सारे कपड़े उतार कर उन्हें पूर्ण नग्न कर दिया और मेरे इस कार्य के लिए चाची ने एक चाबी वाली गुड़िया की तरह निर्विरोध मेरा पूरा साथ दिया।
इसके बाद मैंने उन्हें अपने दोनों हाथों में उठा कर बैड पर सीधा लिटा दिया और उनकी चौड़ी करी हुई टाँगों के बीच बैठ कर उनकी चूत चाटने लगा।
शुरू में तो चूत का नमकीन स्वाद थोड़ा अजीब लगा था लेकिन कुछ देर के बाद जब मैं उस स्वाद से अभ्यस्त हो गया तब मैंने मैंने उनकी चूत के होंटों को चाटने लगा।
उसके बाद मैंने अपनी जीभ से उनके भगनासा को मसला और अपनी जीभ को उनकी चूत के अंदर बाहर करके उनके जी-स्पॉट को रगड़ा तब मुझे सब कुछ बहुत अच्छा लगा।
चाची की चूत पर मेरे मुँह के आक्रमण से वह उत्तेजित हो उठीं और यह सब उनके शरीर की कंपकंपी और चेहरे के भाव बता रहे थे कि उन्हें बहुत आनन्द मिल रहा था।
चाची की चूत को चाटने से मैं इतना उत्तेजित हो गया की मेरा लंड खड़ा हो कर इतना तन गया की मुझे लगने लगा कि अगर देर करी तो उसकी नसें फट जायेंगी।
तब मैं उठ कर अपने को चाची की टांगों के बीच में घुटनों के बज बैठ कर अपने लंड को उनकी चूत के मुहाने पर टिकाया और एक हल्का सा धक्का मार दिया।
क्योंकि मेरा लंड नितिन की अपेक्षा कुछ अधिक मोटा था इसलिए मेरे पहले धक्के से वह चूत के अंदर सिर्फ आधा ही जा सका।
चाची के मुँह से एक सीत्कार निकली लेकिन उन्होंने अपने पर काबू कर के चुपचाप लेटी रही और तब मैंने अपनी धुन में ही एक जोर का धक्का मार कर अपना पूरा लंड उनकी चूत में प्रवेश करा दिया।
उनकी चूत में फंस के घुसते हुए मेरे मोटे लंड से हुए दर्द के कारण चाची के मुँह से न चाहते हुए भी एक चीख निकल गई और उन्होंने मुझे कस का पकड़ लिया तथा उनकी आँखें गीली हो गई।
चाची को दर्द में देख कर मैं थोड़ी देर के लिए रुक गया और उनकी होंठों, गालो, गीली आँखों और चुचियों को चूमा और फिर उनकी चुचुक को चूसने लगा।
लगभग पांच मिनट रुकने के बाद जब मुझे लगा कि चाची सामान्य हो गयी तब मैं धक्के मारने लगा और किसी स्त्री के साथ पहली बार सेक्स का मजा भी लूटने लगा था लेकिन वह सब था एक-तरफा ही।
लगभग 15-16 धक्के मारने के बाद मैंने चाची की चूत में सिकुड़न की लहरें महसूस करीं और मेरा लंड उसमे फंस फंस कर अंदर बाहर हो रहा था।
मैंने धक्के मारने जारी रखे और अभी दो या तीन धक्के ही मारे थे कि चाची के मुख से दबे स्वर में आह्ह्ह… आह्ह्ह… की सिसकारी सुनाई दी।
मैंने धक्के मारना रोका नहीं और महसूस किया कि मेरे अगले धक्कों में मेरा लंड आराम से फिसलता हुआ चूत के अंदर बाहर होने लगा क्योंकि चाची की चूत द्वारा छोड़े गए रस से काफी फिसलन हो गई थी।
उसके बाद तो मेरे धक्कों की गति भी तेज़ हो गई और अगले 20-22 धक्कों के बाद मुझे मेरे अंडकोष में कुछ गुदगुदी महसूस हुई और उधर चाची ने एक बार फिर से सिसकारी भरी।
देखते ही देखते चाची और मैं दोनों ही एक साथ झड़ गए तथा मेरे वीर्य और चाची के रस का मिलन उनकी चूत के अंदर ही होने लगा।
मैं दस मिनट के लिए पस्त हो कर चाची के ऊपर लेटा रहा और फिर उठ कर बाथरूम गया और अपने को साफ़ किया।
जब मैं वापिस कमरे में आया तो देखा कि मेरी गुमसुम चाची अपने कपड़े पहन रही थी।
तब मैं उनके होंठों और गालों को चूम कर बैड पर लेट गया।
चाची कपड़े पहन कर पता नहीं क्या सोचती हुए मेरे पास ही बैड पर बैठ गयी और मुझे थकावट के कारण शीघ्र ही मेरी आँख लग गई।
शाम छः बजे जब मेरी आँख खुली और मैं नीचे की मंजिल पर गया तो देखा कि मम्मी आ चुकी थी।
कहानी जारी रहेगी।
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कहानी का तीसरा भाग: तृप्ति की वासना तृप्ति-3
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