वीणा की गुफा-2
लेखक: मनीष शर्मा
प्रेषक : वीणा शर्मा
मैंने उसे उठा कर अपनी गोदी में बिठा दिया और मेरा लौड़ा उसकी गांड को छूने लगा, तब उसे याद आया कि वह तो मेरे लौड़े के नाप की बात कर रही थी, जो मालिश के कारण उत्तेजना और आनन्द में भूल गई थी।
वह तुरंत बोली- अब तो इसका नाप बता दीजिए, प्लीज़ !
मैंने कहा- पहले बताओ कि अंकुर का जिस्म कितना लम्बा और मोटा है, यह तो उसके जिस्म से छोटा ही होगा !
वह बोली- नहीं, यह तो उनके जिस्म से छोटा नहीं है, यह तो बहुत लम्बा और मोटा है ! उनका जिस्म तो सिर्फ छह इंच लम्बा और डेढ़ इंच मोटा है ! आप का तो मुझे सात इंच लम्बा और दो इंच मोटा लगता है !
मैंने कहा- तुम गलत हो, मेरा जिस्म तो आठ इंच लम्बा है और दो इंच मोटा है, और इसका सुपारा ढाई इंच मोटा है !
वह बोली- हाय राम, इतना बड़ा, यह जब अंदर जायेगा तो बहुत तकलीफ देगा !
मैंने कहा- कहाँ अंदर जायेगा?
वह बोली- मेरी गुफा में जायेगा और कहाँ !
मैं बोला- अब यह गुफा क्या है?
वह बोली- वही जिसे आप चूत कहते हैं लेकिन मैं तो उसे गुफा कहती हूँ !
यह सुन कर मैंने कहा- मेरा ऐसा करने का कोई इरादा नहीं है ! तुम्हारी संकरी सी गुफा में डालूँगा तो वह फट जायेगी और मेरा यह छिल जाएगा तो मैं क्या करूँगा !
वह बोली- एक बार डाल कर तो देखिये, फिर पता लगेगा कि यह मेरी गुफा में कितना फिट आयेगा !
मैंने कहा- फिट होगा या नहीं, इसका पता लगाने के लिए एक रास्ता है, तुम इसे मुँह में ले लो और जितना अंदर डाल सकती हो डाल लो ! अगर तो तुम इसे सारा अंदर डाल लोगी तब मैं समझूँगा कि यह जिस्म तुम्हारी गुफा में फिट हो जायेगा !
यह सुन कर वीणा मेरी गोद से उठ कर नीचे बैठ गई और मेरे लौड़े को पकड़ कर अपने मुँह में गड़पने लगी !
जब मैंने उसे समझाया कि ध्यान से अहिस्ते अहिस्ते अंदर डालेगी तो पूरा अंदर चला जाएगा, तब उसने मेरे कहे अनुसार अंदर डाला और वह सारा का सारा उसके मुँह और गले के अंदर तक चला गया ! इसके बाद वीणा ने मेरे लौड़े को बाहर निकला और खुशी से उछलते हुए मुझे कहा- देखा आपने, यह तो अब मेरे मुँह में बिलकुल फिट हो गया, अब तो आपको इसे मेरी गुफा में फिट करना ही पड़ेगा !
मैंने कहा- पहले हम मेरे जिस्म और तुम्हारी गुफा को तैयार तो कर लें, इसके लिए तुम मेरे जिस्म को चूसो और मैं तुम्हारी गुफा को !
फिर क्या था वीणा उलटी हो कर लेट गई और अपनी चूत को मेरे मुँह के ओर कर दिया तथा मेरे लौड़े को अपने मुँह में डाल कर चूसने लगी। मैंने भी उसकी चूत पर अपना मुँह लगा दिया और उसके छोले को कस कर चाटने लगा, उसकी चूत के बाहरी और अंदरूनी होंटों को चूसने लगा तथा उसकी मखमली गुफा में जीभ घुसा कर घुमाने लगा।
मेरा यह आक्रमण वीणा को बहुत भारी पड़ा, उसका बदन पांच मिनट में ही अकड़ने लगा और उसकी चूत से पानी का फव्वारा छुट गया। उसी समय, मैं भी बहुत देर से अपने पर रखे हुए नियंत्रण को खो बैठा और मैंने उसके मुँह में अपने रस की धार छोड़ दी। हम दोनों अपने अपने हिस्से का अमृत पी कर उठ बैठे और एक दूसरे को आलिंगन करके लेट गए।
कुछ देर बाद वीणा ने फिर लौड़े को उसकी गुफा में फिट करने की बात कही तो मैंने कहा- जाओ कंडोम तो ले आओ !
वह बोली- कंडोम नहीं हैं, वो तो अंकुर ने खत्म कर दिए थे ! उसके जाने वाले दिन तो हम दोनों को तीन बार तो बिना कंडोम के चुदाई की थी ! अब जल्दी करिये और बिना कंडोम के ही इस गुफा को चोद दीजिए ! मैं माला-डी खाती हूँ इसलिए कोई खतरा नहीं है।
यह सुन कर मैंने वीणा को पीठ के बल लिटा दिया, उसके चूतड़ों के नीचे एक तकिया रख दिया और उसकी टांगें चौड़ी करके उनके बीच में बैठ गया और अपने सुपारे को उसके छोले पर रगड़ने लगा। दस मिनट तक ऐसा करने से उसकी गुफा में हरकत आ गई और मेरा जिस्म भी तन गया !
फिर मैंने उसकी गुफा के होंटों को फैलाया और अपने जिस्म के सुपाड़े को वीणा की मखमली गुफा के मुँह पर टिका कर हल्का सा धक्का मारा क्योंकि गुफा बहुत गीली हो चुकी थी और जिस्म खाने के लिए मुँह खोले तयार बैठी थी, इसलिए मेरे हल्के से धक्के से ही मेरे जिस्म का पूरा सुपारा वीणा की गुफा में घुस गया !
वो एकदम चिल्लाई- हाईई… मरर… गईई…, आपने तो मेरी गुफा ही फाड़ दी, हाईईई.. माँआआ.. मैं.. मर गईई, मुझे बचाओ इस लोहे के डंडे से, इसने तो मेरी गुफा फाड़ के रख दी है !
मैं कुछ देर के लिए रुक गया और वीणा को शांत होने दिया !
जब वह शांत हुई तो मैंने कहा- फिट करवाना है या बाहर निकाल लूँ?
वह बोली- आपने तो मेरी जान ही निकल दी, शादी की पहली रात से आज तक मुझे इतने तकलीफ नहीं हुई जितनी आपने पिछले पांच मिनट में दे दी ! आप तो कह रहे थे कि सुपारा ढाई इंच मोटा है, लेकिन यह तो मुझे चार इंच मोटा लग रहा है !
मैं बोला- जो है सो है, अब बताओ फिट करूँ या छोड़ दूँ?
वह झट से बोली- नहीं, नहीं… निकालो मत, इसे तो अब तो आप पूरा ही फिट कर दीजिए !
तब मैंने उसकी कमर को पकड़ कर एक जोरदार धक्का दिया और आधा लौड़ा उसकी चूत में सरका दिया। इस बार तो वीणा खूब जोर से चिल्लाई- उइंई ईइ… माँआ आ.. मैंएंएं.. मरर.. गईई… उइंई इ… माँ आह आआ.. मैंएंएं.. मरर.. गई… मेरी गुफा के चीथड़े कर दिए इस सांड के जिस्म ने, माँ मुझे बचा ले !
कुछ देर बाद वह चुप हुई और बोली- क्या आपको पता नहीं कि किसी औरत को कैसे चोदते हैं? आप तो बस जानवरों की तरह घुसेड़ते जा रहे हैं ! मेरी गुफा का मलीदा बना दिया है आपने !
मैंने कहा- मैं तो पहली बार किसी औरत की चुदाई कर रहा हूँ और जानवर तो मैंने आज तक पाला ही नहीं तो चोदना कहाँ से ! इसलिए मुझे क्या मालूम औरत की चुदाई में और जानवर की चुदाई में क्या फर्क होता है ! मैंने तो तुम्हें मना किया था लेकिन तुम्हें पिछले आधे घंटे से तो जिस्म को गुफा में फिट कराने की जिद कर रही थी !
वीणा की गुफा बहुत ही कसी थी, जिस्म अंदर डालने में बहुत जोर लगाना पड़ रहा था और मुझे रगड़ भी बहुत लग रही थी। पर इसकी परवाह किये बिना मैंने एक बहुत तगड़ा धक्का लगा दिया और पूरा जिस्म वीणा की गुफा में फिट कर दिया।
इस बार तो वीणा बहुत जोर ही से चिल्लाई- उइं ईई ईइ… माँ आआ.. मैंएंएं.. मर.. गई…., उइं ईइ… माँआ आआ.. मैंएं.. मरर.. गईई…, मेरी चूत को तो अंदर तक फाड़ के रख दिया है इस हरामजादे सांड के जिस्म ने ! उइंइ… माँआआ… उइंई ईइ… माँआआआ… आन्हह्ह… आन्ह्हह्ह…
फिर बड़बड़ाने लगी- हाय राम, मैं भी कितनी पागल हूँ जो इतने बड़े जिस्म से चुदने को तैयार हो गई ! मेरे लिए तो मेरे अंकुर का ही ठीक है, कोई तकलीफ तो नहीं देता है और मजे तो दे ही देता है ! इस सांड का कोई आनन्द तो दे नहीं रहा और दर्द पर दर्द ज्यादा दे रहा है।
यह सुन मैं कर मुस्कराने लगा और मैंने लौड़े को बाहर खींच कर झटके के साथ अंदर डाल दिया! वह एक बार तो हड़बड़ाई लेकिन फिर अपने को एडजस्ट करने लगी। इसके बाद मैं अपने लौड़े को उसकी चूत के अंदर बाहर करने लगा।
वीणा को अब मज़े आने लगे थे इसलिए वह चुपचाप मेरा साथ देने लगी और मेरे धक्कों के अनुसार उछलने लगी। दस मिनट के बाद वह बोली- तेज़ी से करो, मैं छूटने वाली हूँ !
तो मैंने स्पीड बढ़ा दी और उसकी चूत की जकड़न का आनन्द लेने लगा ! वीणा भी अपनी स्पीड बढ़ा कर उछलने लगी और एकदम उंहह्ह्…. उंहह्ह…. करती हुए अकड़ गई तथा अपने पानी की धारा छोड़ दी !
जैसे ही उसकी अकड़न खत्म हुई, मैंने स्पीड तेज की तो वह बड़बड़ाने लगी- तेज़ी से करो, और तेज़ी से करो, मेरे राजा, बहुत तेज़ी से करो, मुझे बहुत ही आनन्द आ रहा है ! अंकुर ने तो ऐसा आनन्द कभी नहीं दिया, बहुत तेज़ी से चोदो मेरी जान, बहुत तेज़ी से ! जोर लगा के हाईशा, जोर लगा के हाईशा !
और बहुत तेज़ी से उछलने लगी !
दस मिनट तक ऐसे ही चुदाई होती रही और फिर इधर मेरा लौड़ा फड़फड़ाया और उधर वीणा की चूत सिकुड़ कर बहुत ही कस गई। मैंने दो धक्के और दिए ही थे कि वीणा ने उंहह्ह्ह…. उंहह्ह…. चिला कर अपना फव्वारा छोड़ा और मैंने भी अपनी टोंटी खोल दी !
वीणा की चूत दोनों के जीवन रस से लबालब भर गई थी और बाहर रिसने भी लगी। वीणा मदहोश सी बोल रही थी- उंहह्ह… उंहह… वाह मेरे राजा, मेरी जान, आज तो बहुत ही आनन्द दिया ! इतने दिन पहले कहाँ थे, पहले क्यों नहीं दिया यह आनन्द ! क्यों नहीं मारी मेरी चूत ! शादी के बाद के तीन साल मैंने ऐसे ही गवां दिए, मेरी शादी के बाद जब पहली बार आप आये थे मुझे तभी अंकुर के बदले ऐसा आनंद लेने के लिए आपसे मरवा लेनी चहिये थी ! चलो, देर-आयद दरुस्त-आयद ! आशा है कि अब तो यह आनन्द आप मुझे देते ही रहेंगे !
इसके बाद हम दोनों, थक कर उसी तरह लौड़े को चूत में डाले हुए एक दूसरे के ऊपर ही लेटे रहे। लगभग पन्द्रह मिन्ट के बाद हम उठ कर बाथरूम गए तथा एक दूसरे को साफ़ किया। इसके बाद हम दोनों मेरे बेड पर एक दूसरे से लिपट के लेटे गए और बातें करने लगे।
मैंने कहा- कैसी लगी यह चुदाई?
वह बोली- बहुत ही अच्छी ! मेरे जीवन की सबसे बढ़िया चुदाई थी !
मैंने पूछा- इस चुदाई में और दूसरी चुदाइयों में क्या अंतर था?
उसने बताया- आपके मोटे जिस्म की वजह से मेरी गुफा पूरी तरह भरी भरी लग रही थी और जब सिकुड़ती थी तो पता लगता था कि जैसे उसने अंदर कुछ पकड़ा हुआ है ! जब अंदर बाहर होता था तो चारों ओर रगड़ लगती थी। सबसे बड़ी बात जितना पानी मैंने आज छोड़ा है उतना तो मैंने शायद सारी जिंदगी में नहीं छोड़ा होगा ! पहले मैं चुदाई के बाद अपने को कभी हल्का नहीं महसूस करती थी, पर आज थकावट के बाबजूद मैं अपने आपको बहुत हल्का महसूस कर रही हूँ !
मैंने कहा- मोटाई के बारे में तो तुमने बहुत तारीफ़ कर दी, अब लम्बाई के बारे में क्या राय है वह भी बता दो !
वह बोली- आपकी लम्बाई ने तो मुझे मरवा दिया, जब यह अंदर जाकर बच्चेदानी की दीवार से टकराता था तो चूत में खलबली मच जाती थी ! इसीलिए तो मैं इतनी जल्दी छूट गई, अंकुर के साथ तो मैं बीस मिनट ले लेती हूँ !
आगे वह कहने लगी- आपका रस तो बहुत ज्यादा छूटता है, मेरी तो चूत के साथ बच्चेदानी भी भर गई थी !
मैंने यह सुन कर कहा- यह तो ठीक नहीं हुआ, बच्चेदानी में रस भर जाने से तो तुम गर्भवती हो सकती हो ! इसके बारे में अंकुर को क्या कहोगी?
वह बोली- इसका कोई डर ही नहीं है क्योंकि मैं तो माला-डी तो खाती ही हूँ !
उसका तैयार जवाब सुन कर मैं संतुष्ट हो गया तथा उसकी और चुदाई करने की इच्छा जाग उठी, लेकिन जल्दबाजी न करते हुए वीणा की चूचियों को पकड़ कर उसे अपनी छाती के साथ चिपका कर सो गया। वीणा ने भी मेरे जिस्म को कस के थाम लिया और मेरे साथ ही सो गई !
तो मेरे अन्तर्वासना के प्यारे प्यारे दोस्तो, आपने मनीष के द्वारा लिखी उस घटना विवरण पढ़ा जो पहली दिन हुआ था !
उसके बाद तो अगले पन्द्रह दिन भी हम दोनों उस घटना को हर रात दोहराते रहे और मैंने अपने जीवन के सबसे अच्छे और खूबसूरत पलों का आनन्द एवं संतुष्टि को प्राप्त किया !
आप सब मित्रों से मेरा अनुरोध है कि आप सब अपनी प्रतिक्रिया मेरे मेल आई डी [email protected] पर ज़रूर लिख कर भेजें !
प्रकाशित : 27 जुलाई 2013
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