जिस्म की मांग-4

(Jism Ki Maang-4)

leelaraani1111 2009-12-15 Comments

प्रेषिका : लीला

“बाबू, तू मेरा प्यार है, चाहे अब मैं तेरी बाहर वाली बन कर रह गई हूँ, तुझसे चुदवाते हुए मैं किसी और को सामने नहीं रखती। बस पेलता जा मुझे !

उससे चुदने के बाद मैं जब अलग हुई तो कमरे का तूफ़ान थम गया। उसने रस से लथपथ अपने लौड़े को मेरे मुँह में घुसा कर साफ़ करवाया।

“अब कब मिलना होगा जनाब को?”

“जब दिल करेगा, आंखें बंद कर याद करूँगा !”

“और मैं चली आऊँगी !”

आज मैं बाबू की रखैल बन गई थी।

कुछ दिन बीते थे कि मुझे चोदने वालों में एक और नाम जुड़ गया।

मेरा जीजा ने मुझे कहीं बाबू से मिलते देख लिया था, बस अब उनकी आँख मेरी जवानी पर थी, मुझे इल्म ना था कि जीजा की नियत खराब है। हंसी मज़ाक तो आम बात थी अक्सर चलता रहता था, हल्की-फुल्की छेड़छाड़ भी होती रहती थी, लेकिन उस रात छेड़छाड़ अलग थी.

एक साथ बैठ हम टी.वी देख रहे थे, दीदी माँ के साथ कुछ ज़रूरी काम कर रही थी, मैं बिल्कुल ही जीजू के बाजू में अधलेटी सी पड़ी थी, हल्का कंबल ले रखा था, डबलबैड का कंबल था, दूसरी तरफ़ मेरी छोटी चचेरी बहन बैठी थी, वो बच्ची थी, मैं एक करवट करके अधलेटी थी इसलिए मेरे मम्मे एक-दूजे से घिस कर साफ़ फड़फड़ा रहे थे।

तभी एकदम बिजली चली गई, जीजा मेरी तरफ खिसके, मैं वहीं रही उनका हाथ मेरे हाथ पर था वो उसको प्यार से सहलाने लगे और मेरी तरफ सरके, उन्होंने अपना हाथ मेरी जांघ पर टिका दिया, सहलाने लगे। जब वो खतरनाक जगह में गए तो मेरे मुँह से सिसकी निकल गई- जीजू क्या कर रहे हो यह आप?

“प्यार-दुलार कर रहा हूँ, तू बाहर भी तो करे ! यहाँ मैं तो तेरा अपना जीजा हूँ, साली आधी घरवाली होवे !”

“क्यूँ आप दो बहनों में लड़ाई डलवाने लगे हो?”

“लड़ाई कैसी? वो कौन सी सामने है? उधर ही है, कंबल में ही मंगल कर रहा हूँ !”

“अचानक बिजली आ गई तो?”

“दो घंटे का कट है, यह मेरा महकमा है !” जीजा ने अब हाथ मेरी कुर्ती में घुसा दिया।

“हाय मत दबाओ इन्हें जीजा ! कुछ हो रहा है !”

उन्होंने मेरा हाथ अपने पजामे में घुसा दिया, उनका लौड़ा तो और भी कयामत लग रहा था, बिना देख जान गई कि यह कोई आम लौड़ा नहीं हो सकता।

“सहला सहला ! लीला, तेरे लिए खड़ा हुआ है !” जीजू ने हाथ सलवार में ठूंस दिया और मेरी गीली हुई पड़ी पैंटी छू कर बोले- देख यह भी तो तैयार है लीला !

“जीजा, यहाँ कुछ नहीं होने वाला !”

वही हुआ ! बहन मोबाइल पकड़ रोशनी कर देखती देखती कमरे की तरफ आने लगी। मैं अलग हो गई, काफी फासला कर लिया।

“मैंने कहा जी, लाईट का कब आना होगा?”

“तुझे मालूम है कि दो घंटे का कट है, जरा मेरे साथ बाहर चलेगी, बोर हुआ पड़ा हूँ, रात में सैर करने से मन शांत होता है !”

दीदी बोली- मेरा मन शांत ही शांत है, अपना शांत करो।

“तो चल न मेरे साथ !”

उन्हें मालूम था कि बहन यह सब पसंद नहीं, बोले”ना जा ! लीला कहाँ है तू?”

“जीजा, क्या आप भी? यही हूँ, आँख लग गई थी, जगा दिया!”

मेरे साथ सैर पर चल जरा !”

“जीजा, बहन को ले जाओ !”

माँ बोली- तुझे क्या पाँव में मेहँदी लगी है? अगर जमाई जी का दिल है तो चली जा !”

“ठीक है !”

मैं और जीजा नहर की तरफ निकल आये, वहां नियाई वाले खेत पर मोटर का कमरा था, हम दोनों वहीं पहुँच गए, कोई था नहीं, मौसम सरदाना था, जीजा मुझे बाँहों में कसने लगे, मेरे होंठ चूमने लगे।

मैं भी धीरे धीरे से गर्म होने लगी, जीजा ने हाथ सलवार में घुसा दिया और उंगली फुद्दी में ! और फिर मेरा नाड़ा खोला, जीजा वहाँ बनी छोटी सी बनेरी पर बैठ गए, टाँगें खोल ली- आजा मेरी लीला !

मैं गई, जीजा का पजामा ढीला किया और कैदी को निकाला- हाय जीजा, बहुत बड़ा है यह तो !

“समय ना है हमारे पास ! मुँह में ले ले बस !”

“हाय !” कह में चूसने लगी।

थोड़ा ही चुसवा रुक गए, बोले- खुलकर कभी बाद में ! अभी अपनी फुद्दी दिखा !”

मैंने पैंटी भी खिसका दी।

“हाय लीला ! क्या माल हो ! हल्की-हल्की झांटें भी रखती हो !” जीजा बोले- उस बोरे पर लेट जा !

मैं लेट गई, दोनों टांगें उठा जीजा ने अपना मोटा लंबा लौड़ा घुसा दिया।

“हाय जीजा ! जरा आराम से ! आपका ज्यादा बड़ा है !”

“हाय मेरी बिल्लो ! मजा आता है !”

“चुद कर मुझे बहुत मजा मिलता है जीजा !”

“कितने लौड़े फुद्दी में लिए हैं?”

“जीजा, तीन के !”

“हाय, मेरा चौथा है क्या?”

“हाँ जीजा !”

“अभी तो तू जवान है ! नए-नए लौड़ों का स्वाद लिया कर !”

“हाँ जीजा जोर से करो अब !”

“हाय लीला ! यह ले ! यह ले ! ले ले मेरा ! मेरा हाय !”

“जीजा दो, दो, दो मुझे !”

“ले, ले, ले साली !” कहते हुए हम दोनों का पानी निकल गया।

आज फिर से वही हुआ, एक और शादीशुदा, क्या कहूँ जीजा ! यह जिस्म कुछ और भी मांगता है, इसलिए इसके बिना रहा नहीं जाता।

कहे तो तेरा ऐसे घर में रिश्ता करवा दूँ, ऐश करेगी और मेरे साथ भी रहेगी !

बाकी फ़िर कभी !

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