बाबा ने बड़े प्यार से मेरी टाँगों को चूमा और चाटा जो मेरी कैप्री के बाहर दिख रही थी, मेरी जांघों को सहलाया, मेरे चूतड़ों को ज़ोर ज़ोर से दबाया, सहलाया, चूमा।
मैं भी समझ चुकी थी कि आज मेरी कौमार्य का आख़िरी दिन है, सो जो होना है होने दो, अगर आज मुझे चुदना है तो क्यों ना इस पल का मज़ा लूँ.. बजाए बेकार का विरोध करके उसकी भी मुश्किल बढ़ाऊँ।
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