‘छोटी कहाँ हूँ ! पूरी 18 की हो गई हूँ। और फ़िर गरीब की बेटी तो घरवालों, रिश्तेदारों और मोहल्ले वालों, शोहदों की नज़र में तो इससे कम की भी जवान हो जाती है। हर कोई उसे लूटने खसोटने के चक्कर में रहता है।’
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