अब तो श्वेता का योनिप्रदेश शिवम के एकदम सामने उठा हुआ प्रतीत हो रहा था, श्वेता के प्रफुल्लित योनिओष्ट की फड़फड़ाहट शिवम के कामदण्ड को अपने अन्दर समाने को बेचैन थी।
मेरी श्वेता को किसी कामुक मर्द का बाहों में देखने की तमन्ना तो अधूरी ही थी। मैं देखने को उत्सुक था कि मेरी पत्नी के जलवे से लोग कैसे घायल होते हैं। साथ ही वो खुद कैसे अपने अन्दर की कामज्वाला से किसी मर्द को जलाती है।
अब कल तक हम दोनों घर में सारा दिन नंगे ही रहने वाले हैं, और एक दूसरे से बिना किसी औपचारिकता के बिल्कुल खुले भाव से पेश आयेंगे, कुछ गंदी-गंदी बातें भी करेंगे।
मैंने एक दिन अपने पति को किसी से फोन पर छुप छुप कर बात करते देखा। मुझे तो यकीन नहीं हुआ कि मेरे पति अपना हर सुख दुख मुझसे बांटते हैं, वो मुझसे छुपकर किससे बात कर रहे हैं।
अपनी बीवी की गैर मर्द से यौन सन्तुष्टि होते देख मुझे ख्याल नहीं रहा कि कोई और भी है जो अपनी वासना तृप्ति की आस लिए यहाँ थी, उसकी सन्तुष्टि मेरा फ़र्ज़ है।
दोनों जोड़े बाग में बारिश में अपनी अपनी बीवियों से रोमांस और काम क्रीड़ा से पूर्व के खेल खेलने लगे। अति उत्तेजनावश सब होटल की ओर भागे। होटल में क्या हुआ!
नीरस दाम्पत्य जीवने से ऊबे पति ने घर से बाहर रस खोजने की कोशिश की तो उसे पता लगा कि और लोग कैसे जी रहे हैं. उसने ऐसा क्या किया कि उसकी पत्नी भी कह उठी…
लिंग का अगला हिस्सा खुद ही मेरे मुंह में सरक गया। मैं उस पर जीभ फेर कर सॉस का स्वाद लेने लगी। अब तो वो मेरी मक्खनी योनि को पूरा मुंह में भरकर चाटने लगा, मेरी तो सांस ही रूकने लगी, इतना मजा जीवन में कभी नहीं आया…
मुझे अपने पास खींच लिया, अपने सामने खड़ा करके वो मेरे दोनों चुचुकों से खेलने लगा। अजीब सी मस्ती मुझ पर छाने लगी, मेरा अंग-अंग थरथरा रहा था, टांगों में खड़े होने की हिम्मत नहीं बची थी।
मैं सिर्फ तौलिये में ही बाथरूम से बाहर आ गई, मैंने जानबूझ कर अपना बदन भी नहीं पोंछा। मैं शीशे में देखकर अपने बाल ठीक करने लगी, मुकुल पीछे से मेरी गोरी टांगों को मेरी पिंडलियों को मेरी जांघों को लगातार घूर रहा था।
आशीष लगातार मेरे स्तनों को दबा रहे थे, मेरे निप्पलों से खेल रहे थे परन्तु चूंकि मैं आशीष की टांगों के बीच में थी तो उनको बार बार मेरे स्तनों को सहलाने में परेशानी हो रही थी।
आशीष अपने एक हाथ से मेरी इस चिकनी चमेली को सहला रहे थे और दूसरे हाथ से मेरी चूचियों से खेल रहे थे, उनके होंठों का रस लगातार मेरे चुचूकों पर गिर रहा था।
उन्होंने मेरी केपरी के साथ ही कच्छी भी निकालकर फेंक दी। अब मैं आशीष के सामने पूर्णतया नग्न अवस्था में थी परन्तु फिर भी दिल आशीष को छोड़ने का नहीं हो रहा था।
मुझे उनका चुम्बन बहुत ही अच्छा लग रहा था, बल्कि मैं तो ये चुम्बन सिर्फ माथे पर नहीं अपने पूरे बदन पर चाहती थी, उम्मीद लगने लगी थी कि शायद आज मेरी सुहागरात जरूर होगी।
उन्होंने मुझे खींचकर अपनी छाती से चिपका लिया और एक मीठा सा चुम्बन दिया। मैं तो शर्म से धरती में गड़ी जा रही थी पर उनकी छाती से चिपकना बहुत अच्छा लग रहा था।
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