मनपसंद किराया
(College girl Sex: Manpasand Kiraya)
अन्तर्वासना पर बहुत सी शानदार कहानियाँ पढ़ने के बाद मेरा भी मन हुआ कि आप लोगों को अपनी एक कहानी बताऊं, उम्मीद है आप लोगों को यह कहानी पसंद आयेगी।
मैं पहली बार लिख रहा हूँ अतः लिखने में कोई त्रुटि हो तो मुझे माफ करना और आप लोग स्वयं से थोड़ा सुधार करके पढ़ लेना।
यह कहानी मेरे पड़ोस की एक लड़की की है, उसकी उम्र लगभग 20 वर्ष है, वह ग्रेजुएशन के अन्तिम वर्ष की छात्रा है। हमारी कभी-कभी हल्की-फुल्की बातें हो जाती थीं। अभी तक मेरे मन में उसके बारे में कोई बुरा ख्याल नहीं आया था।
एक शाम को वो मेरे घर आयी और बोली- कल मेरे कालेज का टूर जा रहा है तो सुबह 5 बजे बस पकड़ने कालेज जाना है और शाम को करीब 7 बजे तक आना है। क्य़ा आप मुझे सुबह कालेज पहुँचा दोगे और शाम को घर लेते आओगे?
कालेज हमारे यहाँ से 5-6 किमी दूर था अतः इतनी सुबह और इतनी शाम को उसे आने-जाने में परेशानी हो रही थी। मैंने उसे ले जाने और ले आने के लिये हाँ बोलते हुये मजाक में ही कह दिया कि किराये में क्या मिलेगा?
उसने कहा- जो चाहिये किराया ले लेना।
फिर उसने मेरा मोबाईल नम्बर लिया और चली गयी।
अगली सुबह 4 बजे ही उसका फोन आ गया, उसने कहा- तैयार हो ना चलने के लिये?
मैंने कहा- अभी तो 4 बज रहे हैं, 5 बजे चलना है ना?
वो बोली- हाँ 5 बजे ही चलना है, परन्तु सोचा कि याद दिला दूँ। अभी मैं नहाने जा रही हूँ, तैयार होकर फोन करूँगी।
पौने पाँच बजे के करीब उसने वापस फोन किया और सड़क पर आ गयी। मैं बाईक से उसके पास पहुँचा और वो बाईक पर बैठ गयी, हम कालेज की ओर चल दिये।
फरवरी का महीना चल रहा था और सुबह-शाम अभी ठंड हो रही थी। मैंने तो स्वेटर पहन लिया था लेकिन वो सिर्फ कालेज यूनिफार्म वाले सूट में थी। उसे हवा के कारण सर्दी का एहसास हुआ तो वो मुझसे थोड़ा चिपक कर बैठ गयी। सड़क के पहले स्पीड-ब्रेकर पर मुझे अपनी पीठ पर उसकी मुलायम चूचियों के स्पर्श का एहसास हुआ।
मेरे मन में अब पहली बार उसके लिये यह विचार आया कि मुझे यह स्पर्श पुनः करना चाहिये। मैंने बाईक की स्पीड थोड़ी बढ़ा दी और अगले स्पीड-ब्रेकर पर झटके से ब्रेक मारा। वो इस झटके को तैयार नहीं थी अतः खुद को सम्भाल नहीं पायी और तेजी से मेरी पीठ से टकरायी और मुझे पकड़ लिया।
इस टकराव ने मेरे लण्ड को सख्त कर दिया और वो लोअर में तम्बू बनाने लगा। मैंने उसकी चूचियोँ का अपनी पीठ पर स्पर्श 5-6 बार किया, इतने में कालेज आ गया। यहाँ पर बाईक रोकते हुये मैंने इस यात्रा में आखिरी बार उसकी मुलायम चूचियों का अपनी पीठ पर एहसास किया। अब वो उतरी और मुझसे बोली- शाम को वापस आते समय फोन करूँगी।
उसके इतना कहने के दौरान मेरी नजर उसकी चूचियों के साईज का एहसास ही करती रहीं। करीब 32-34 इंच की साईज का मुझे एहसास हुआ।
इसके बाद वो पलट कर जाने लगी तो मेरी नजरों ने उसके पूरे शारीरिक बनावट की छवि ली। हाईट करीब 5 फीट 2 इंच, 32 से 34 इंच का वक्षस्थल, 30 इंच की कमर और 32 से 34 इंच के चूतड़।
मेरा लण्ड अब शान्त होने का नाम ही नहीं ले रहा था। मैं उसे कालेज के गेट के अन्दर तक जाते हुये देखता रहा।
इसके बाद मैं घर आ गया।
दिन में मन बार-बार उसके बारे में ही सोचता रहा और लण्ड बार-बार खड़ा हो जा रहा था। लण्ड को शान्त करने के लिये मुठ भी मारना पड़ा। मैं अब जल्दी से शाम होने का इन्तजार करने लगा।
शाम के 7 बजे उसका फोन नहीं आया तो करीब साढ़े सात बजे मैंने खुद फोन किया तो वो बोली- अभी करीब 1 घंटा और लग जायेगा, अभी बस लगभग 50 किमी दूर है।
मैंने कहा- नजदीक आकर फोन करना।
मैं अब उस 1 घंटे का इंतजार करने लगा।
करीब पौने 9 बजे उसका फोन आया और उसने कालेज आने को कहा। मैं तो कब से तैयार बैठा था, अतः कुछ ही देर में कालेज पहुँच गया। जल्दी ही बस आ गयी। वो अपनी एक सहेली के साथ आयी और बोली- इसे रास्ते में इसके घर छोड़ना है।
मैंने कहा- बैठो!
तो उसकी सहेली पीछे और वो बीच में बैठ गयी।
अब तो मुझे स्पीड-ब्रेकर की भी जरूरत ना थी क्योंकि उसकी चूचियों और मेरी पीठ के बीच जगह ही नहीं थी और वो बिल्कुल मेरे से चिपक कर बैठी थी। मैं इस स्पर्श के मजे लेने के लिये बाईक धीरे चला रहा था और खुद थोड़ा आगे-पीछे को झुककर उसकी चूचियों में रगड़ पैदा कर रहा था। मेरा लण्ड तो उसके बाईक पर बैठते ही खड़ा हो गया था।
मुझे बहुत मजा आ रहा था, तभी करीब 1 किमी बाद ही उसने मुझसे कहा कि उसकी सहेली को यहीं उतरना है।
मैंने उसे वहीं उतार दिया और फिर हम दोनों आगे के सफर पर चल दिये। इस समय ठंड थोड़ी बढ़ गयी थी और वो सिर्फ सूट पहने थी, वो भी आधी बाँह का!
मैंने उससे पूछा- ठंड नहीं लग रही है क्या?
वो बोली- नहीं।
उसका शरीर जो बार-बार मुझसे छू जा रहा था, वो गर्म था अतः मैंने उससे पूछा- क्या तुम्हें बुखार है?
उसने कहा- नहीं तो!
मैंने कहा- जरा अपना हाथ दिखाओ?
उसने अपना हाथ आगे किया तो मैंने उसे पकड़ लिया। उसका हाथ मेरे हाथ से काफी गर्म था। मैंने कहा- मेरा हाथ तुम्हें ठंडा लग रहा है ना?
उसने कहा- हाँ।
मैंने कहा- तुम्हें बुखार है क्योंकि तुम्हारा पूरा शरीर तप रहा है।
उसने कहा- बुखार नहीं है।
मैंने उसका हाथ करीब 5 मिनट तक पकड़े रखा लेकिन उसने कुछ ना कहा। फिर जल्दी ही हम घर के पास पहुंच गये। मेरा घर उसके घर से पहले था तो मैंने बाईक वहीं रोक ली।
वो बोली- बाईक खड़ी करके मुझे मेरे घर तक छोड़ दो।
मैंने बाईक खड़ी की और उसके साथ चल दिया।
करीब 500 मीटर का सफर कच्ची पगडंडी से पूरा करना था, जिधर बाईक नहीं जा सकती थी। रात के 9 बज रहे थे, मैंने उससे कहा- तुम्हारा हाथ देखूँ कि अभी बुखार है या नहीं?
उसने हाथ मेरी तरफ बढ़ा दिया और कहा कि बुखार नहीं है।
उसका हाथ अभी भी गर्म था तो मैंने कहा- तुम कह रही हो कि बुखार नहीं है, लेकिन तुम्हारा हाथ तो अभी भी गर्म है?
उसने कुछ नहीं कहा तो मैंने अपना दूसरा हाथ उसके माथे पर रखा और उससे बोला- तुम्हारा माथा भी गर्म है, मतलब तुम्हें बुखार है।
उसने कुछ प्रतिक्रिया नहीं दी तो मेरे हाथ को मैंने उसके माथे से खिसका कर उसके गालों पर रख दिया और कहा कि तुम्हारा गाल भी गर्म है।
वो कुछ ना बोली तो मेरा हौसला बढ़ गया और मैंने अपना हाथ उसके गाल से हटाकर उसकी गर्दन पर रख दिया।
उसकी तरफ से किसी तरह का कोई अवरोध ना मिलने से मैंने अपने हाथ को अब उसकी एक चूची पर रख दिया और फिर उसकी चूची को धीरे से दबा दिया। ज्यों ही मैंने उसकी चूची दबायी तो वो थोड़ा चिहुँक कर मुझसे थोड़ा दूर होकर खड़ी हो गयी। उसका वहाँ रुक कर खड़ा हो जाना मेरे लिये हरा सिगनल लगा और मैंने उसे पीछे से पकड़ लिया।
उसकी साँसें तेज होने लगीं। मेरे हाथों की जो पकड़ उसके पेट पर थी, उस पकड़ को थोड़ा ढीला करते हुये मैंने अपने हाथों के पकड़ को उसकी चूचियों के सीध में लाकर उसे कस कर पकड़ लिया। उसके मुँह से एक धीमी ‘आहह हहह …’ निकल गयी।
मेरे होठ अब पहली बार अपने आप को काम में लाये और उसकी गर्दन के थोड़ा नीचे उसकी पीठ पर एक चुम्बन किया। मेरे इस चुम्बन से उसके मुँह से ‘ईश्शअअ अअअ … आहह … हहहह…’ सी सिसकती आवाज निकली, जिसने मेरे लिए उत्प्रेरक का कार्य किया और अगले 5 सेकेण्ड में ही मेरे होंठों ने करीब 15-20 चुम्बन उसकी गर्दन और पीठ के खुले भाग पर बरसा डाले।
मेरे हाथ उसकी चूचियों को दबाने लगे और लण्ड ने उसके चूतड़ों की दरार पर अपना प्रभाव कपड़ों के ऊपर से ही डालना शुरू कर दिया। उसके मुँह से सिसकारियों का आना तेज हो गया।
अब मैंने उसे घुमाया और उसके होठों पर अपने होंठ रख दिये। मेरे हाथ क्रमशः उसकी पीठ और कमर पर उसे सहलाने लगे थे। मैंने उसके होठों को चूसना चालू कर दिया। वो भी होठों को चूसने में मेरी मदद करने लगी और अपने हाथों से मेरी पीठ को सहलाने लगी।
हम अभी तक पगडंडी पर ही थे जहाँ कोई भी, कभी भी आ सकता था। अतः मैंने उसको उठा लिया और पगडंडी के बगल वाले खेत के दूसरे किनारे स्थित एक पेड़ के नीचे ले गया जहाँ पर दिन में लोगों के बैठे रहने से साफ-सफाई रहती थी। मैंने उसे वहीं पर लिटा दिया और उसके ऊपर चढ़कर उसके होठों को चूसने लगा। इस दौरान मेरा हाथ उसकी चूचियों को बारी-बारी से मसलता रहा।
थोड़ी देर बाद मैं उसके होठों को छोड़ कर थोड़ा नीचे खिसककर उसकी चूचियों को कपड़ों के ऊपर से ही चूमने और चूसने लगा और अपने हाथों से उसके बदन को सहलाता रहा। अब कपड़ों में थोड़ा अवरोध लगने लगा तो मैंने उसके ऊपर के कपड़े को उसके बदन से अलग कर दिया। इसके बाद अपने हाथ उसकी पीठ पर ले जाकर मैंने उसकी ब्रा को खोल दिया और आगे से उसकी ब्रा को अपने मुँह से पकड़ कर मैंने खींचते हुये उसके बदन से आजाद कर दिया और उसे वापस लिटाकर उसकी चूचियों को बारी-बारी से चूसने और हाथ से मसलने लगा।
करीब 15-20 मिनट उसकी चूचियों से खेलने के बाद मैं उसके पेट को चूमते हुये उसकी कमर को चूमने लगा। उसकी सिसकारियाँ तेज होती जा रहीं थीं। उसकी कमर के बाद मैं थोड़ा और नीचे की ओर फिसला और उसकी सलवार के नाड़े को मुँह से पकड़कर खींच दिया, फिर मैंने उसकी सलवार को हाथों से सरकाते हुये उसके बदन से आजाद कर दिया।
अब उसके बदन पर सिर्फ पैंटी बची थी और कुछ ही सेकेण्ड में उसे भी निकालकर मैंने उसे पूरी तरह नंगी कर दिया। तुरन्त ही अपने भी सारे कपड़े निकालकर मैं भी पूरा नंगा हो गया।
मैंने उसके पैरों को नीचे से सहलाते हुये अपने हाथों को उसकी जांघों तक पहुँचा दिया। अनायास ही मेरे हाथों की जगह मेरे होंठों ने ले ली और उसकी जांघों पर बरस पड़े। फिर मैंने उसके पैरों को थोड़ा चौड़ा करते हुये खुद को उनके बीच लाया। मेरे होठों ने अब उसकी जांघों को छोड़ दिया और उसकी चूत पर पहुँच गये।
ज्योंही मेरे होंठ उसके चूत पर पहुँचे, उसके मुँह से आने वाली सिसकारियाँ तेज होने लगीं और उसके हाथ मेरे बालों में चलने लगे। मैंने उसकी चूत को चूमना शुरू कर दिया। कुछ देर बाद मैंने उसकी चूत में अपनी जीभ डाल कर चूत को चाटना शुरू कर दिया।
उसका हाल बुरा था और वो तो मेरे सिर के बालों को उखाड़ देना चाह रही थी। चूत को चाटना शुरू करने के कुछ देर बाद ही उसके चूत से कामरस का सैलाब फूट पड़ा और उसका कुछ खट्टा सा स्वाद मेरी जीभ ने भी चखा। वो कुछ देर में ही शान्त हो गयी, मैंने उसकी चूत को चाटना जारी रखा और जल्दी ही उसकी सिसकारियाँ वापस निकलने लगीं।
फिर मैंने उसके कमर, पेट, नाभि को चूमते हुये खुद को उसके वक्षस्थल पर पहुँचा दिया और पुनः उसकी चूचियों को चूसने व दबाने लगा। फिर मैं उसके गर्दन को चूमते हुये उसके होठों पर पहुँच गया और पुनः हमने करीब 5 मिनट एक-दूसरे के होठों को चूमा और चूसा।
कुछ देर बाद खुद को उसके होठों से अलग करते हुये मैं उसके पैरों के बीच में घुटनों के बल पर बैठ गया और अपने सख्त लण्ड को अपने हाथ से पकड़कर उसकी चूत पर रगड़ने लगा। मेरे इस कार्य से वो मचलने लगी और उसकी सिसकारियाँ पुनः तेज होने लगीं।
मैंने अब देर ना करते हुये अपने लण्ड को उसकी चूत पर टिकाकर दबाव बनाया और धीरे-धीरे मेरा लण्ड उसकी गीली हो चुकी चूत में घुसने लगा। मैंने थोड़ा लेटते हुये उसकी चूचियों को अपने मुँह से लगाया और अपने लण्ड को एक जोरदार धक्के के साथ उसकी चूत में पूरा घुसा दिया। उसके मुँह से आह उम्म्ह… अहह… हय… याह… हहह हह … की तेज आवाज निकली तो मैंने अपने होठों को उसकी चूचियों से हटाकर उसके होठों पर रखते हुये उसकी आवाज को बाहर आने से रोक दिया और उसके होठों को चूमने लगा, फिर उसकी चूत में अपने लण्ड को आगे-पीछे करके धक्के लगाने लगा।
थोड़ी देर बाद वो थोड़ा अकड़ने लगी तो मैंने धक्कों की गति बढ़ा दी और फिर कुछ ही समय बाद हम दोनों अपने चरम सीमा तक पहुँच गये और दोनों लगभग एक साथ ही झड़ गये। हम दोनों करीब 5 मिनट साथ ही एक दूसरे की बांहों में ही लेटे रहे।
मैंने पुनः उसके होठों पर चुम्बन करना शुरू किया और उसकी चूचियों को थोड़ा सा चूसा कि तभी उसका फोन वाईब्रेट होने लगा तो हमारा ध्यान उस पर गया।
उसके घर से फोन आ रहा था, उसने फोन उठाकर कहा कि कालेज से निकल गयी हूँ, बस पहुँचने वाली हूँ।
रात के 10 बज चुके थे, उसने कहा कि अब रहने देते हैं, देर हो गयी है।
मेरा मन तो नहीं मान रहा था लेकिन फिर भी कह दिया कि ठीक है।
फिर हमने कपड़े पहन लिये।
मैंने पुनः उसे अपनी बांहों में कस कर जकड़ लिया और उसके होठों को चूम कर उसे जाने दिया।
इस तरह मुझे मनपसंद किराया मिल गया।
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