रश्मि और रणजीत-4
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फारूख खान
रणजीत दोनों हाथों से उसकी दोनों चूचियों को दबाते हुए चुम्बन करने लगा।
सीमा भी चुम्बन का जवाब चुम्बन से देने लगी।
‘कैसा लगा मेरी जान?’
शरमाते हुए- बहुत अच्छा..
‘पहली बार में इतना मज़ा लिया, पर तुम तो कुंवारी थी?’
‘जी.. मैं कुंवारी हूँ.. कई बार सेक्स का मौका मिला, पर असफल रही। पहली बार कोई मिला है आपके रूप में.. मैं आपसे प्यार करने लगी हूँ, आप जब भी मन करे, मुझे बुला लीजिएगा। आपके लिए मैं रंडी भी बनने को तैयार हूँ।’
और दोनों हँसने लगे।
अब दोनों टब से बाहर आ गए और फव्वारा चालू कर दिया, दोनों नंगे होकर स्नान किया।
नहा कर दोनों ने कॉफी का ऑर्डर किया।
अब सीमा जीन्स पहन चुकी थी और रणजीत उसी अवस्था में थी, तभी रश्मि का फोन आया।
‘पापा आप कहाँ हैं? हम लोग खाने पर इन्तजार कर रहे हैं।’
‘बेटे आज मैं नहीं आ सकता, 3 बजे सुबह एक ऑपरेशन होना है इसलिए और फोन भी मत करना, डिस्टर्ब होता है। सुबह 5 बजे आऊँगा। तुम लोग खा कर सो जाओ।’
सीमा सब कुछ सुन रही थी, जब बात खत्म हुई तो कहा- सर आपकी बेटी है ये?
‘हाँ… ये मेरी इकलौती बेटी है, पर भाग्य ने इसके साथ बड़ा बुरा किया है।’
‘क्या हुआ सर?’
रणजीत- बेचारी विधवा हो गई है दो साल पहले एक कार एक्सिडेंट में ! मेरी बेटी डॉक्टर है और मेरा दामाद भी डॉक्टर था। दोनों एक दिन कार से आ रहे थे, बारिश हो रही थी। टायर ब्लास्ट हुआ और मेरी बेटी तो बच गई पर दामाद चला गया। तब से यह गुमसुम रहती है। बहुत कोशिश की सलाह भी दी कि दूसरी शादी कर लो, पर नहीं करती है। खैर भगवान ने उसे एक नौकरी दी है, नहीं तो पता नहीं क्या होता।
सीमा को रश्मि से सहानुभूति हो गई, वो आगे बढ़ कर रणजीत के गले लग गई और कहा- कोई बात नहीं सर.. भगवान सब ठीक कर देगा, चलिए अब चलते हैं। कॉलेज में कल मेरा पेपर है, सो अभी चलूँगी। ग्यारह बज रहे हैं।
‘ठीक है और हाँ ये लो 2000 रुपए..’
सीमा ने नहीं लिए- नहीं सर, मैं ये सब पैसे के लिए नहीं करती हूँ.. प्लीज़ सर मुझे रंडी मत बनाईए प्लीज़!
रणजीत ने पैसे वापस रख लिए और एक पेन उसे दे दिया।
‘ये लो.. यह तो रिश्वत नहीं है, इसे लेने के बाद तुम रंडी तो नहीं होगी। यह लो और खूब मन लगा कर पढ़ना और जब कभी भी पैसे और किसी चीज़ की ज़रूरत हो, मुझे याद करना। ये लो मेरा कार्ड और ‘हाँ’ रविवार को मेरे घर पर आना तुमको मेरा निमंत्रण है। मेरी बेटी का जन्मदिन है, सो प्लीज़ आना जरूर, ये मेरा आदेश है।’
रणजीत ने पता नोट करवाने के बाद उसे गले से लगा लिया और कपड़े पहन कर उसे कॉलेज हॉस्टल छोड़ दिया और फिर अपने घर की ओर चला गया।
आज जीवन में पहली बार चोदते हुए उसे मज़ा मिल रहा था, वाकयी बहुत खूबसूरत चूत थी।
सीमा थी भी काफ़ी हसीन… छरहरा बदन.. हल्का सांवला रंग और दुबली-पतली काया.. उसे बार-बार उसी की याद आ रही थी।
तभी रणजीत ने उसको फोन कर दिया- कैसी हो… पहुँच गई?
‘जी आप ही ने तो छोड़ा है।’
‘हाँ.. मालूम है.. सो हाऊ वाज़ नाइट?’
सीमा शरमा गई- वेल… गुड और आपको कैसा लगा?
‘क्या..?’
‘वही मेरी च..च..चूत..’
‘ग्रेट डार्लिंग.. तुम बहुत नमकीन हो.. देखो ना.. तेरी याद लेते ही ये खड़ा हो गया।’
‘उसे संभाल कर रखिए.. किसी और दिन काम आएगा… ओके मैं रखती हूँ.. मेरी सहेली आ गई है, गुड-नाइट।’
‘गुड-नाइट।’
रणजीत घर पहुँच गया। गेट ममता ने खोला- अरे आ गए.. आप तो कह रहे थे कि सुबह आएँगे?
‘अरे पुलिस वालों को क्या रात और क्या दिन… हर वक़्त काम ही काम.. दरअसल सूचना ग़लत मिली थी। एस.पी.साहब ने कहा कि कोई ने ग़लत सूचना दी थी। चलो खाना लगाओ।’
‘खाना तो मैंने बनाया ही नहीं.. मैंने सोचा कि आप तो आओगे ही नहीं.. तो मैं और रश्मि ने खा लिया, लेकिन बन जाएगा.. जैसा आप कहो।’
‘नहीं.. नहीं.. रहने दो.. मैं देख लूँगा।’
‘अरे ऐसे नहीं सोते.. मैं दूध गर्म कर देती हूँ।’
वो दूध और दो स्लाइस ब्रेड गर्म करके ले आई।
‘लो खाओ और दूध पी कर सो जाओ, दो बज रहे हैं।’
रणजीत ने जल्दी से ब्रेड खाई और दूध पी कर अपनी पत्नी के गले से लग कर सो गया।
सुबह रश्मि जब उठी तो देखा की पापा आ गए हैं। उसने अपनी माँ से पूछा- पापा कब आए माँ?
माँ ने कहा- दो बजे आए हैं.. कोई ग़लत सूचना मिली थी, सो आकर सो गए। तुम जाओ बेटी नहा लो, मैं नाश्ता बनाती हूँ, पता नहीं कब उठेंगे।
रश्मि तौलिया ले कर बाथरूम में चली गई। वो सारे कपड़े उतार कर नहाने लगी, उसने दर्पण में अपने आपको देखा और शरमा गई।
जब से उसने रवि को देखा है, तब से वो बिंदी और मेकअप करने लगी थी, कपड़े भी ढंग से पहन लगी थी। इस बात पर सभी ने गौर किया था।
सरकारी क्वॉर्टर में एक ही बाथरूम होता है और वो भी अटॅच्ड होता है।
रणजीत को ज़ोर से पेशाब लगी थी। वो भागा-भागा गुसलखाने में गया। दरवाजा ठीक से नहीं लगा हुआ था, जरा सा धक्का लगने से दरवाजा खुल गया और तौलिया जो खूँटी पर टंगी हुई थी, फर्श पर गिर गई।
उस समय रश्मि अपनी झांटों पर क्रीम लगा रही थी। अपने पापा को देखते ही शरमा गई और अपनी नजरें नीचे कर दीं और वहीं बिल्कुल नंगी फर्श पर बैठ गई।
उसने अपने मुँह को अपने हाथों से ढक लिया।
रणजीत ने ‘सॉरी’ कहा और वापस बाहर आ गया।
रश्मि ने दौड़ कर दरवाजा ज़ोर से लगाया और फिर अपने आप को साफ़ किया और चली आई।
जब वापस आई तो रणजीत जा चुका था, पूछने पर माँ ने कहा- कोई दोस्त आए थे, उनके साथ गए हैं… वो जल्दी में भी थे।
पता नहीं रश्मि को सब पता था। पर माँ को क्या कहती कि उन्हें ज़ोर से पेशाब लगी हुई थी।
वो चुपचाप अपने कमरे में चली गई।
कपड़ा बदल कर दूसरे कपड़े पहन लिए और घर से अस्पताल चली गई।
आज सारा दिन यही सोच रही थी कि क्या पापा मेरी जवानी को देख चुके थे, कब से वो दरवाजे पर थे.. कहीं मेरी झांटों पर क्रीम लगाते हुए तो नहीं देख लिया।
कई सवाल उभर गए, पर वो अपने पापा के स्वभाव के बारे में जानती थी कि वो किसी लड़की को भी घूर सकते हैं चाहे कोई भी हो। उन्हें रिश्तों का कोई डर नहीं था।
उनके स्वभाव के बारे में वो अपनी मौसी से सुन चुकी थी क्योंकि उसकी मौसी (कमली) जो अब शादीशुदा है, उसने सब कुछ अपने पापा के कुकर्मों के बारे में बता चुकी थी।
उसके पापा दिल के बहुत अच्छे थे। किसी का भी दु:ख-दर्द उनसे देखा नहीं जाता, वो मोहल्ले की नाक हैं।
लोग उनकी बहुत इज़्ज़त करते थे। रही बात लड़कियों की, तो लड़की-औरतें खुद उनके पास सेक्स के लिए आती हैं, इसका भी रश्मि को पता था।
पर उनका रिश्ता बाप-बेटी का होने की वजह से दोनों में कभी कोई बात इस बारे में नहीं हुई।
ममता तो पहले से ही जानती थी कि कमली की सील शादी से पहले यानी रणजीत ने ही तोड़ी थी और फिर जाकर उसकी शादी भी करा दी थी।
पुलिस में रहने के वजह से लोग उनसे पंगा भी नहीं ले सकते थे, वो काफ़ी चर्चित भी थे।
पर अपनी बेटी पर कभी बुरी नज़र नहीं डाली। पर आज उसे अपनी बेटी को देखकर अजीब सा लगा दो-तीन घंटे के बाद वो वापस घर आ गया।
तब तक रश्मि अपने अस्पताल जा चुकी थी।
आज ऑफिस में उसका मन नहीं लग रहा था, बार-बार पापा के बारे में सोच रही थी।
डॉक्टर नेहा तो कुछ और सोच रही थी कि शायद रश्मि रवि की याद कर रही हो, पर हकीकत कुछ और ही थी।
जब नेहा ने देखा कि रश्मि का मूड कुछ ज्यादा ही खराब है, तो उसने कहा- चलो कैंटीन चलते हैं.. चाय पीते हैं।
दोनों कैंटीन में चले गए, नेहा ने चाय का ऑर्डर किया और डॉक्टर के केबिन में बैठ गए।
‘अरे बाबा बोलो ना.. क्या बात है? मैं देख रही हूँ कि कब से तुम खामोश हो.. प्लीज़ बाबा बोलो न…!’
रश्मि को समझ में ही नहीं आ रहा था कि बोलूँ या नहीं.. अगर बोलती हूँ तो मेरे पापा की छवि खराब होती है और ना बोलूँ तो पक्की सहेली से बुराई होती है। सो उसने तय कर लिया कि चाहे जो भी हो वो डॉक्टर नेहा से ज़रूर बात करेगी।
तभी चाय आ गई, चाय पीते हुए रश्मि ने धीरे से कहा- यार मैं जो बोलने जा रही हूँ… उसे अपने पास तक रखना और मुझसे मज़ाक मत करना, पर मैं चाहती हूँ कि तुम एक सही निर्णय बताओ।
नेहा- तुम बताओ तो सही।
रश्मि- ओके.. पर वादा करो कि तुम ये बात किसी को नहीं बताओगी, मेरी माँ या पापा को भी नहीं।
नेहा- ठीक है मेरी माँ.. मैं नहीं बताऊँगी.. अब तो बक।
रश्मि मुस्कुराई फिर धीरे से बोली- आज मैं सुबह नहा रही थी, उस समय रवि की याद कर रही थी।
नेहा- ये बात.. मैं ना कहती थी कि मेरा भाई हीरा है हीरा.. उसने तुम्हारे मन में घर बना ही लिया है। अब देखना आगे क्या होता है.. तुम्हारी जान निकाल देगा।
रश्मि- अरे बाबा आगे तो सुनो.. बीच में ही बोल देती हो।
वो आगे बोलना चाह रही थी कि केबिन में दो पुरुष डॉक्टर्स आ गए और रश्मि के मुँह पर ताला लग गया।
‘मुझे शरम आ रही है बोलने में… मैं जा रही हूँ।’
नेहा- अरे इसमें शर्म की क्या बात है.. प्यार में तो सब जायज़ है, तुम बहुत शर्मीली हो।
रश्मि- चलो मैं जा रही हूँ और वैसे भी मंडी भी जाना है, सब्जी ख़रीदनी है।
‘कोई बात नहीं.. मैं बाइक से छोड़ देती हूँ।’
दोनों पैसा दे करके निकल गईं और रश्मि जो डॉक्टर नेहा से कहना चाहती थी वो नहीं कह पाई।
वो सोचने लगी कि कोई बात नहीं.. जब भी कोई उचित समय रहेगा तो मैं बता दूँगी क्योंकि नेहा ही एक ऐसी सहेली थी, जिससे वो अपने दिल की सभी बातें साझा करती थी।
कहानी जारी रहेगी।
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