क्या करूँ: मेरी अन्तर्वासना अतृप्त रह गई
(Kya Karun: Meri Antarvasna Atript Rah Gai)
अन्तर्वासना के सभी पाठकों को अर्चना का सप्रेम प्यार।
मुझे अन्तर्वासना की कहानियाँ पढ़ते हुए तो काफी समय हो गया है।
यह मेरी एक सच्ची कथा है जो आज पहली बार आप लोगों तक इस मंच के माध्यम से बता रही हूँ।
इसके लिए मैं आप सभी की बहुत आभारी हूँ जिन्होंने यह मंच इतना अधिक जनप्रिय बना दिया है, जहाँ अपने मन की बात हर किसी को बताई जा सकती है।
मैं अपनी कथा की शुरूआत करने से पहले आप लोगों से अपना परिचय करवा दूँ।
मैं एक शादीशुदा 28 साल की औरत हूँ। मैं दिखने में बहुत ही खूबसूरत हूँ, मेरे उठे हुए तीखे उभार 32 नाप के हैं एवम् मेरी पतली सी नाजुक कमर 28 इन्च की है। मर्दों को दीवाना बना देने वाले मेरे 34 इन्च के गोल-मटोल चूतड़ हैं। पतली सी सुराहीदार गर्दन, गुलाब की पंखुड़ी से रस भरे मेरे होंठ किसी का भी औजार खड़ा करने में सक्षम हैं।
मतलब यह कि मैं बिल्कुल कामिनी देवी सी लगती हूँ, जो भी एक बार देख ले वो तो शायद आहें भरने के सिवा और कुछ कर ही नहीं सकता है।
यह बात उन दिनों की है जब मैं राजस्थान के एक छोटे से कस्बे में घर करीब दस किलोमीटर की दूर पढ़ने जाती थी, अभी मेरी कमसिन छातियों पर अमरूद जैसे उभार भी झलकने लगे थे।
हमारी कक्षा का समय सुबह 7 से 12.30 का था इसलिए मुझे सुबह 6 बजे घर से निकलना पड़ता था।
मेरे साथ मेरे गांव की 3-4 सहेलियां भी होती थीं और गांव के 10-12 लड़के भी हमारे साथ जाते थे।
उस समय बस तो कोई मिलती नहीं थी, तो हम सब पैदल ही जाते थे। उन लड़कों में हमारे गांव के सरपंच का लड़का मोहन भी हमारे साथ ही जाता था।
मोहन पढ़ने में होशियार था और दिखने में भी मस्त लगता था। मेरी और उसकी जब भी नजर मिलती तो वो मुस्करा देता।
ऐसे ही दिन बीतते गए और पता भी नहीं चला कि कब हम एक-दूसरे के इतने करीब आ गए कि जिस दिन वो पढ़ने नहीं आता तो मेरा वो दिन खामोशी में बीत जाता।
जब मैं नहीं जाती तो उसका भी यही हाल होता।
जब भी एकांत मिलता तो हम लोग अमरबेल की तरह एक-दूसरे से लिपट जाते और वो मेरे होंठों को चूमता रहता, और मैं उसके… एक अजीब सी सिरहन हम दोनों के शरीर में दौड़ जाती।
आज भी जब मैं वो पल याद करती हूँ तो वही हाल होता है जो पहले होता था।
ऐसे ही समय बीतता गया और हमारी परीक्षाएं करीब आ गईं।
शायद किस्मत में हमारा मिलन लिखा था, तभी हमारा परीक्षा का समय पहली पारी में यानी सुबह 7 से 10 का और बाकी साथ वालों का दूसरी पारी में था।
हम दोनों सुबह 5.30 बजे घर से निकल जाते। बीच रास्ते में एक-दूसरे के गले में हाथ डाले चूमा-चाटी करते हुए जाते क्योंकि उस समय कुछ अंधेरा सा रहता और रास्ता भी सुनसान रहता था इसलिए किसी के देख लेने का डर भी नहीं रहता था।
ऐसे ही एक सुबह हम दोनों मस्ती करते हुए जा रहे थे कि पता नहीं मोहन को क्या हुआ, वो मेरा हाथ पकड़ कर घनी झाड़ियों में ले गया और बेतहाशा मेरे जिस्म को चूमने लगा।
उसके ऐसा करने से मेरे बदन मे झुरझुरी सी दौड़ने लगी, आंखों में लाल डोरे से आने लगे, बदन में जैसे मीठी सी आग सी दौड़ने लगी। मेरी शरमगाह से एक नदी सी बहने लगी, जो मेरी कच्छी को भिगो चुकी थी।
वो पागलों की तरह मेरे होंठों को चूमते हुए कभी मेरी गर्दन को तो कभी मेरे उभारों की घाटी को चूमते हुए बड़बड़ा रहा था- आई लव यू आचु.. आई लव यू..
मैं उसके आगोश में लिपटी मछली की तरह तड़फ रही थी।
फिर उसने मुझे वहीं जमीन पर लेटा दिया और मेरे सूट एवं शमीज को ऊपर करके मेरे उभारों की घुंडियों को मुँह में लेकर चुभलाने लगा।
मैं उसके बालों में हाथ फिराते हुए कह रही थी- बस करो मोहन.. एग्जाम के लिए देर हो रही है.. अब छोड़ दो मुझे प्लीज!
पर वो कहाँ मानने वाला था, अब तो उसका हाथ मेरी जाँघों के बीच मेरी शरमगाह पर रेंग रहा था।
अचानक उसने मेरी सलवार का नाड़ा पकड़ कर खींच लिया और मैं कुछ ना कर सकी।
फिर उसने मेरी कच्छी को भी नीचे खिसका दिया।
अब उसका एक हाथ मेरे मम्मों पर और दूसरा हाथ मेरे जननांग पर रेंग रहा था।
इधर मैं शर्म से दोहरी होती जा रही थी, पूरे बदन पर चींटियाँ सी दौड़ने लगी।
धीरे-धीरे वो मेरे बदन को चूमते चाटते हुए यौनांग तक पहुँच गया, फिर उसने वहाँ अपना मुँह लगा दिया और अपनी जिह्वा की नोक से मेरी भगनासा को कुरेदने लगा।
मेरे तन-बदन में एक सिरहन सी दौड़ने लगी, मैं अपने शरीर को आगे-पीछे उमेठने लगी। इतना सुखद अहसास जिन्दगी में पहली बार महसूस कर रही थी।
कुछ ही देर में मेरे अन्दर का लावा पिघल कर योनि से बाहर आने लगा, पर वो कमबख्त मुझे छोड़ने का नाम ही नहीं ले रहा था। उसने मेरा पूरा कामरस चाट कर साफ कर दिया।
उसके बाद वो अचानक मेरे ऊपर से उठ कर खड़ा हो गया और कहा- चलो आचु.. आज के लिए इतना काफी है, हमारी परीक्षा का समय हो गया है।
फिर मैं भी उठ कर खड़ी हो गई, अपने कपड़े ठीक किए और स्कूल के लिए रवाना हो गए।
उसके बाद स्कूल तो हम जाते पर वैसी मस्ती का मौका फिर ना मिल पाया।
परीक्षा के बाद वो किसी दूसरे शहर में पढ़ने चला गया।
मुझे उसके बिना कुछ भी अच्छा नहीं लगता था। कुछ ही दिनों बाद मैंने भी पढ़ाई छोड़ दी और पिताजी ने मेरी शादी कर दी।
मेरी शादीशुदा जिन्दगी तो अच्छी है पर मोहन की कमी आज भी दिल में खटकती है, दिल करता है कि एक बार उससे मिलूँ और जो अधूरा मिलन उसने छोड़ा था, वो पूरा कर लूँ।
इसी तड़फ लिए मेरी जिन्दगी गुजर रही है, पर वो कहीं खो सा गया है… पता नहीं वो कभी मिलेगा या नहीं।
आप लोग मेरे बारे में क्या सोच रहे हैं?
मुझे इन्तजार है आपके उन अनमोल सुझावों का!
तो लिख भेजिए मेरे ईमेल आईडी पर।
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