जोगिंग पार्क-2
नेहा वर्मा एवं शमीम बानो कुरेशी
“कल आऊँगी… अब चलती हूँ !”
“मत जाओ प्लीज… थोड़ा रुक जाओ ना !” वह जैसे लपकता हुआ मेरे पास आ गया।
“मत रोको विजय… अगर कुछ हो गया तो… ?”
“होने दो आज… तुम्हें मेरी और मुझे तुम्हारी जरूरत है… प्लीज?” उसने मुझे बाहों में भरते हुये कहा।
मैं एक बार फिर पिघल उठी… उसकी बाहों में झूल गई। मेरे स्तन उसके हाथों में मचल उठे। उसका तौलिया खुल कर गिर गया।
मेरा शॉल भी जाने कहाँ ढलक गया था। मेरी बनियान के अन्दर उसका हाथ घुस चुका था। स्कर्ट खुल चुका था। मेरी बनियान ऊपर खिंच कर निकल चुकी थी। बस एक लाल चड्डी ही रह गई थी।
मैं उससे छिटक के दूर हो गई और…
अपनी लाल चड्डी भी उतार दी। विजय तो पहले ही नंगा था, उसका लण्ड तन्ना रहा था, चोदने को बेताब था…
मैं हिम्मत करके उसके लण्ड का स्वाद लेने के लिये बैठ गई और उसे पास बुला लिया।
उसका सुन्दर सा लण्ड का सुपारा बड़ा ही मनमोहक था। पहले तो शरम के मारे मेरी हिम्मत नहीं हुई, फिर मैंने उसे सहलाते हुये अपने मुख में ले लिया।
“नेहा.. छीः यह गन्दा है मत करो !”
“विजय, कुछ मत कहो … तुम क्या जानो, मेरा पानी निकालने वाला तो यही है ना… प्यार कर रही हूँ !”
वो छटपटाता रहा और मैं उसके लण्ड को मसल मसल कर चूसती रही। उसका मोटा लम्बा लण्ड मुझे बहुत भाया।
“नेहा… आओ बिस्तर पर चलें, वहीं प्यार करेंगे… ” लगता था कि उससे अब और नहीं सहा जा रहा था।
हम दोनों अब बिस्तर में थे, एक दूसरे के शरीर को सहला रहे थे, अधरपान कर रहे थे। वो मेरी चूचियाँ और चुचूक मसल रहा था। मैं उसका लण्ड हाथ में लेकर सहला रही थी और हौले हौले मुठ मार रही थी।
मेरी उत्तेजना बढ़ती जा रही थी। मेरी चूत गरम हो चुकी थी। चूत बेचारी मुँह फ़ाडे लण्ड का इन्तज़ार कर रही थी। जीवन में नंगे होकर इस प्रकार मस्ती मैं पहली बार कर रही थी थी।
मैंने नंगापन छिपाने के लिये पास पड़ी चादर दोनों के ऊपर डाल ली। कुछ ही देर में विजय का लण्ड मेरी गीली और चिकनी चूत में दबाव डाल रहा था। उसके सुपारे की मोटाई अधिक होने से पहले तो चूत के द्वार में ही अटक गया। मुझसे और बर्दाश्त नहीं हो रहा था। दोनों जिस्मो का संयुक्त जोर लगा तो लण्ड फ़ंसता हुआ घुस गया।
हाय इतना मोटा…
फिर तो विजय का बलिष्ठ शरीर मेरे पर जोर डालता ही गया। मेरी चूत की दीवारें जैसे लण्ड को रगड़ते हुये लीलने लगी।
अभी अभी तो लण्ड घुसा ही था … पर मेरी धड़कन तेज हो उठी। अचानक उसने अपना बाहर खींच कर फिर से अन्दर तक उतार दिया। मैंने आनन्द के मारे विजय को जकड़ लिया। चुदी तो मैं खूब थी… पर ऐसे कड़क लण्ड की चुदाई पहली बार ही महसूस की थी। धीरे धीरे चुदाई रफ़्तार पकड़ने लगी। ऐसा मधुर अहसास मुझे पहले कभी नहीं हुआ था। मैंने अपने हाथ और अपनी टांगें पूरी पसार दी थी। इण्डिया गेट पूरा खुला था। ओढ़ी हुई चादर जाने कहां खो गई थी। मेरी चूचियों की शामत आई हुई थी। विजत उन्हें दबा कर मसल रहा था, घुण्डियों को खींच-खींच कर मुझे उत्तेजना की सीढ़ियों पर चढ़ा दिया था। मैं नीचे दबी बुरी तरह चुद रही थी। विजय का बलिष्ठ शरीर मुझे चोदने में अपने पूरे योगाभ्यास के करतब काम में ले रहा था। दोनों ही जवानी की तरावट में तैर रहे थे। उसके लण्ड की साथ साथ मेरी चूत भी ठुमके लगा रही थी।
अचानक मेरे अंग कठोर होने लगे…
मैंने विजय को अपनी ओर भींच लिया।
“विजय… आह्ह्ह्ह विजय… ” मेरा तन जैसे टूटने को था, लगा कि मेरा पानी अब निकल पड़ेगा।
“मेरी नेहाऽऽऽऽऽऽऽ… … मैं भी गया… ” उसका लण्ड जैसे भीतर फ़ूल उठा।
“मेरे राजा… ये आह्ह्ह … हाय बस कर… विजय… ” मेरी चूत पहले तो कस गई, फिर एक तेज मीठी सी उत्तेजना के साथ मेरा पानी छूट पडा। मेरी चूत में मीठी-मीठी लहरें चल पड़ी। मैं झड़ रही थी। उसके मोटे लण्ड ने भी एक फ़ुफ़कार सी भरी और चूत के बाहर आ गया। विजय ने अपने हाथो से लण्ड को बेदर्दी से हाथ से दबा डाला और उसमें से एक मधुर पिचकारी उछाल मारती हुई निकल पड़ी… कई शॉट्स में लण्ड अपना वीर्य मेरे पर निछावर करता रहा। मैंने वीर्य को अपनी चूचियों पर व नाभि पर मल लिया। कुछ ही देर में वीर्य ने मेरे जिस्म पर एक सूख कर एक पर्त बना ली। यह मेरी चिकनी और नर्म चूचियों के लिये एक फ़ेस पेक की तरह था।
मेरा दिल अब विजय से बहुत लग चुका था। शायद मैं उसे प्यार करने लगी थी। हम लगभग रोज ही मिलते थे और बिस्तर में घुस कर खूब प्यार करते थे, चुम्मा-चाटी करते थे। दोनों के शरीर गरम भी हो जाते थे। फिर मन करता तो अपने शरीर एक दूसरे में समा भी लेते थे। मैं मस्ती से चुद लेती थी।
फ़िर एक दिन मैं जब सवेरे विजय के यहाँ गई तो वहाँ उसका एक दोस्त और था। मैं उसे नहीं जानती थी… पर वो मुझे जानता था। उसने अपना नाम प्रफ़ुल्ल बताया था, पर लोग उसे लाला कहते थे। मुझे वहाँ रोज आता देख कर वो भी विजय के यहाँ आने लगा था। शायद वो मेरे कारण ही आता था। धीरे धीरे वो भी मेरे दिल को छूने लगा था लेकिन लाला के कारण हमारा खेल खराब हो चला था।
एक दिन शाम को विजय मेरे घर आ गया…
मेरे घर में एकांत देख कर उसने राय दी कि यहाँ मिलना अच्छा रहेगा। पर हमें जगह तो बदलनी ही थी, उसके घर के आस पास वाले अब हम दोनों के बारे में बातें बनाने लग गये थे।
अब हम दोनों मेरे ही घर पर मिलने लगे थे। पर मुझे लाला की कमी अखरने लग गई थी तो उसे मैंने पार्क में ही मिलने को कह दिया था। अब हम तीनों ही पार्क में जॉगिंग किया करते थे। मैं लाला से भी चुदना चाहती थी… मेरी दिली इच्छा थी कि दोनों मिल कर मुझे एक साथ चोदें।
अगले भाग में पढ़िये कि मैंने लाला की पैन्ट कैसे खुलवाई !
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