वो तोहफा प्यारा सा -4

(Vo Tohfa Pyara Sa- Part 4)

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समय पंख लगाकर उड़ता जा रहा था।
बात 4 जून 2012 की है जब श्वेता 2 दिन बाद होने वाले मेरे जन्मदिन के लिये एक नया सूट लेकर आई, और मुझे दिखाते हुए कहा- मैं चाहती हूँ कि जन्मदिन वाले दिन तुम ये ही सूट पहनो।

मेरे लिये तोहफा मांगने का अच्छा, मौका था।
मैंने श्वेता के लाये सूट देखकर उसकी बहुत तारीफ करते हुए श्वेता को ही लौटा दिया और कहा- Sweety, ये सब चीज तो मैं अपने लिये खुद भी ले सकता हूँ, तुम कुछ ऐसा तोहफा दो ना जो सिर्फ तुम ही मुझे दे सकती हो कोई और नहीं।

मैं न समझ सका कि श्वेता मेरी बात समझी ही नहीं या फिर समझ कर भी नासमझ बन रही थी पर मुझसे पूछने लगी कि ऐसा क्या तोहफा हो सकता है जो सिर्फ मैं ही दे सकती हूँ कोई और नहीं।
मैंने भी बात को वहीं खत्म कर दिया।

हालांकि मैंने जन्मदिन वाले दिन वो ही सूट पहना पर मेरा असली तोहफा तो अभी तक श्वेता पर उधार ही था।

हमारी अपने कुछ कपल्स मित्रों से मौजमस्ती ऐसे ही जारी थी।

इसी बीच एक दिन जयपुर के एक कपल मित्र सोनम-शिवम का संदेश आया कि वो दोनों यहाँ भोपाल में 2 दिन के लिये एक शादी कार्यक्रम के लिये आ रहे हैं। चूंकि पहले दिन सगाई है और दूसरे दिन रात की शा‍दी जो उनके पास पर्याप्त समय है और वो हमसे मिलना चाहते हैं।

हम उन दोनों को पहले से जानते थे और अनेक बार उनसे वीडियो चैट भी हो चुकी थी तो श्वेता ने भी मुझे उसने मिलने की सहमति दे दी।
मैंने खुद श्वेता को ही उसने बात करके मिलने का पूरा कार्यक्रम बना लेने को कहा।

उसने फोन पर बात करते पहले दिन शाम को मिलने का कार्यक्रम बना लिया।

उनके आने से पहले तक रोज ही हमारी उनसे बात होती।
अनेक प्रकार के फोटो का भी आदान प्रदान हुआ।

पर जब भी उन दोनों में से किसी ने भी स्वैपिंग शब्द प्रयोग किया तो श्वेता बात को प्यार से टाल जाती।

यूं तो श्वेता खुद को मेरी की जरूरत के हिसाब से ढालने की पूरी कोशिश करने लगी थी और सिर्फ मेरे लिये ही नहीं ये Life Style भी उसे अच्छा लगता था सभी मिलने जुलने वाले भी मेरे अन्दर हुए इस परिवर्तन की तारीफ करते तो मुझे बहुत खुशी होती।

परन्तु इस सबके बावजूद भी मेरी श्वेता को किसी कामुक मर्द का बाहों में देखने की तमन्ना तो अधूरी ही थी।
मैं भी ये देखने को उत्सुक था कि मेरी पत्‍नी के जलवे से लोग कैसे घायल होते हैं। साथ ही वो खुद कैसे अपने अन्दर की कामज्वाला से किसी मर्द को जलाती है।

हालांकि इसके पीछे मेरी परस्त्री को भोगने के चाह भी थी, और मैं श्वेता को धोखा देकर ये काम कभी भी नहीं करना चाहता था।

पर मेरी पहली प्राथमिकता श्वेता को किसी बलिष्ठ भुजाओं में मर्दन होते देखने की ही थी।

ऐसा नहीं था कि श्वेता ने इसके लिये कभी मना नहीं किया पर हाँ भी नहीं किया था।
अक्सर रात को जब हम बिस्तर में होते तो इस बारे में बातें होतीं, मैं उसका अपनी ये फैंटेसी बताता।
तो श्वेता भी हाँ करती और मेरा पूरा साथ देती।

पर दिन में जब भी बात होती तो वो मुस्कुरा कर टाल जाती।
मैं कभी ये नहीं समझ पाया कि‍ इसमें श्वेता की सहमति है या अहसमति।

पर इस बार कम से कम श्वेता ने एक कपल मित्र से मिलने की सहमति तो दी।
मेरे लिये तो ये भी एक सकारात्मक पहलू था।

चूंकि मैं जानता था कि शिवम एक बहुत ही अच्छा इंसान है और मेरा हमउम्र भी है तो मन में तो ये था कि इस बार श्वेता का चीरहरण करवा ही दूं।
बस बिना श्वेता की सहमति के तो मैं कभी भी ऐसा कोई काम नहीं करता।
भला अपनी जान से ज्यादा प्यारी पत्नि को मैं दुख कैसे पहुंचा सकता था।

तीन दिन बाद सोनम-शिवम के आने का कार्यक्रम था, और मैं चाहता था कि मेरी श्वेता उनके सामने बहुत सुन्दर दिखाई दे, बिल्कुल किसी मादक द्रव्य जैसी नशीली।

इसीलिये मैंने श्वेता को नये शृंगार के कुछ सामान के साथ साथ नये अंगवस्त्र और एक नई Western Dress दिलाई।
श्वेता खुद भी कहीं किसी मामले में कम नहीं लगना चाहती थी।

आखिर वो शनिवार भी आ ही गया जब सोनम-शिवम के आने का कार्यक्रम था।

सुबह ही शिवम का फोन आया तो मेरी बात हुई। शिवम ने बताया वैसे तो वो लोग सुबह‍ 9 बजे ही भोपाल पहुंच जायेंगे पर हमसे मुलाकात का कार्यक्रम शाम को 7 से 9 के बीच का रहेगा क्योंकि दिन में उन लोगों को सगाई में जाना उसके बाद वो कुछ देर आराम करने के बाद हमसे मिलेंगे।

शिवम से बात करने के पश्चात् मैंने पूरी बात श्वेता बताई तो उसने दो आपत्ति की। पहली तो ये कि शाम को 7 बजे घर से तैयार होकर हम जायेंगे तो बेटे को क्या घर में अकेला छोड़कर जायेंगे?
और दूसरी क्या इस तरह अपने ही शहर में होटल में किसी से मिलने जाना ठीक होगा?
यदि किसी भी जानकार ने देख लिया तो वो कुछ गलत तो नहीं समझ लेगा?
श्वेता की दोनों ही बातें मुझे ठीक लगी।

तो मैंने ही समाधान निकाला- एक काम करते हैं, बेटे को आज उसकी बुआ के घर ही भेज देते हैं फिर सोनम-शिवम को अपने घर पर बुला लेंगे। तो हमें भी तैयार होकर किसी होटल में नहीं जाना पड़ेगा।

इस बात पर श्वेता ने भी सहमति दे दी।
दिन में मैंने शिवम से बात करके पूरा कार्यक्रम उसको समझा दिया और शाम को श्वेता ने जल्दी ही बेटे को उसकी बुआ के घर रवाना कर दिया, रात्रि भोज भी जल्दी निपटा लिया।

डाइनिंग टेबल पर उनके लिये नाश्ता‍ भी लगा दिया, उम्मीद थी कि वे लोग 8 बजे तक आयेंगे और 10 बजे तक लौट जायेंगे तो उसके बाद रात को श्वेता के साथ मस्ती का भी पूरा कार्यक्रम बना लिया।

रात को 8.30 पर सोनम-शिवम आ गये, दोनों से मिलकर हम दोनों को बहुत खुशी हुई।

पहली बात तो दोनों लगभग हमारे आयु वर्ग के थे, दूसरी बात दोनों ही हमारी तरह बिल्कुल विनोदपूर्ण व्यवहार करने वाले थे।

उनसे मिलने के बाद सिर्फ 15 मिनट में ही हम चारों बिल्कुल दोस्तों की तरह घुल मिल गये, लग ही नहीं रहा था कि पहली बार मिल रहे हैं।

श्वेता और सोनम रसाई में जाकर बातें करने लगी जबकि मैं और शिवम हॉल में बैठकर गप्पें मार रहे थे।

कुछ देर बाद शिवम उठकर रसोई में ही गया और बोला- क्या यार, तुम औरतें भी ना कहीं भी लग जाती हो बातों में… चलो बाहर हमारे साथ बैठो।

और दोनों का हाथ पकड़ की खींचते हुए बाहर ले आया।

कुछ देर गप्पें मारने के बाद शिवम ने अंताक्षरी खेलने का प्रस्ताव रखा जिसे सबने तुरन्त स्वीकार कर लिया क्योंकि कुछ भी खेलना श्वे‍ता को शुरू से ही पसन्द था।
अंताक्षरी तो सदा से श्वे‍ता का सबसे अच्छा टाइमपास था।

हम सब हॉल में फर्श पर ही मैं और श्वेता एक टीम में आमने सामने बैठ गये और सोनम-शिवम को दूसरी तरफ आमने सामने बैठने को बोला।

तभी सोनम ने कहा- यार खेलना है तो टीम मेरे हिसाब से होगी, हम महिलायें एक टीम में और तुम पुरूष दूसरी टीम में। फिर देखो पुरूषों को हराने का मजा।

मैंने भी जोश में चुनौती स्वीकार करते हुए कहा- अरे देखती जाओ कौन जीतता है और कौन हारता है? बस इतना बता दो कि जीतने वाली टीम को तुम इनाम में क्या देने वाली हो?

‘हाँ भाई, बात तो सही है, जो भी टीम हारेगी उसको जीतने वाले का बताया कोई भी एक काम करना होगा।’ शिवम ने मेरा साथ दिया।

श्वेता ठहरी अंताक्षरी की चैम्पियन, दुनिया भर के गाने याद हैं उसको तो, भला कैसे हार मान लेती, उसने मेरी तरफ इशारा करते हुए कहा- ठीक है जी, तो आज तो आपके हाथ की बनी चाय पीने वाली हूँ मैं।

मैंने भी मस्ती के मूड में श्वेता की ओर आँख मारते हुए बोला- देखते हैं बेबी, तुम मेरी चाय पीती हो या मैं तुम्हारा दूध!

श्वेता ने खेल की शुरूआत की।
सब अपनी अपनी तरफ से बेहतर खेलने का प्रयास कर रहे थे पर श्वेता का दिमाग अंताक्षरी में बहुत तेज चलता था।
हुआ भी वही और हम दोनों पुरूष चारों खाने चित्त… पहली जीत हुस्न की मल्लिकाओं की हुई।
श्वेता ने जीतते ही दोनों पुरूषों को रसोई का रास्ता दिखाया और चाय बनाने को कहा।

मैं तो रसोई का कोई भी काम नहीं जानता था। तो मेरे लिये चाय बनाना बहुत मुश्किल काम था। पर शिवम रसोई के काम में Perfect था।
वो मेरा हाथ पकड़कर तेजी से रसोई में जा पहुंचा।
सिर्फ 5 मिनट में ही चाय तैयार थी।

श्वेता बहुत खुश हुई। इस घर में आने के बाद उसको आज पहली बार किसी दूसरे के हाथ की बनी चाय मिली थी।

चाय पीते पीते ही खेल फिर से शुरू हुआ।

अब हम पुरूष इतने अधिक गाने कहाँ जानते थे, आखिर फिर से हार गये।
जीत इस बार भी महिलाओं की ही हुई बस फर्क ये था कि इस बार पुरूषों से क्या काम करवाना है, ये जिम्मेदारी सोनम को सौंपी गई।
सोनम ने कुछ देर सोचने के बाद दोनों पुरूषों से हमारे सामने ही अपनी अपनी पैंट उतारने को कहा।

मुझे उसकी ये मांग थोड़ी अजीब सी लगी पर सोनम ने मुझे इशारा करके तुरन्त आदेश का पालन करने को कहा।

शिवम ने दूसरी बार सोनम की बात सुनते ही अपनी पैंट उतार दी तो मुझे भी मेमने का सा मुंह बनाते हुए अपनी पैंट उतारकर की फर्श पर बैठना पड़ा।

हम दोनों की शक्लें देखकर ही श्वेता और सोनम की हंसी छूट रही थी।
दोनों महिलाओं ने अतिउत्साह में खेल आगे शुरू किया।

हे ईश्वर ये क्या हो रहा था?
जीत इस बार भी महिलाओं की ही हुई।

श्वे‍ता ने जीतने के अतिउत्साह में तुरन्त हम दोनों पुरूषों को कमीज उतारने का आदेश दिया और जोर जोर से हंसने लगी।

सोनम ने हम दोनों की तरफ देखा और तुरन्त श्वे‍ता पीठ थपथपाते हुए बोली- आज आया ऊंट पहाड़ के नीचे।

हम दोनों ने एक बार एक दूसरे की तरफ देखा और चुपचाप अपनी अपनी कमीज भी उतार की साईड में रख दी।
अब हम दोनों पुरूष उनके सामने सिर्फ चड्डी और बनियान में बैठे थे।
दोनों के मुंह उतरे हुए थे।

दोनों महिलाओं के चेहरे पर जबरदस्त उत्साह के साथ विजयी मुस्कान थी।

मैंने गुस्से में तुरन्त आगे खेलने की चुनौती दे डाली, इस बार तो मैंने तय कर लिया था कि चाहे कितना भी दिमाग लगाना पड़े, इन महिलाओं को हराना ही है।
मैंने उन दोनों को ललकारा।

शिवम ने कहा- बहुत लेट हो रहे हैं, अब हमें चलना चाहिए। कहीं देर होने पर होटल वाला एन्ट्री देने में परेशान न करे।

मैंने कहा- शिवम भाई, बेइज्जती करवा कर मत जाइये, आज इनसे जीतना ही है। जहाँ तक रात को जाने की बात है तो आप आज रात यहीं सो जाना, कल सुबह होटल चले जाना।

थोड़ी ना-नुकुर के बाद शिवम भी रूकने को तैयार हो गया।

और इस बार अचानक बाजी पलटी।
एक जगह दोनों महिलायें हार गई और जीत पुरूषों की हुई।

सोनम और श्वेता हतप्रभ सी निगाह से एक दूसरे की तरफ देखा।
अभी वो दोनों कुछ बोल पातीं उससे पहले ही मैंने…

कहानी जारी रहेगी।
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