ट्रेन में चाण्डाल चौकड़ी के कारनामे-1

(Train Me Chandal Chaukadi Ke Karname-1)

राहुल मधु 2016-05-26 Comments

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अगली सुबह 10 बजे हमारी ट्रेन थी भोपाल की… सभी लोग सुबह 7 बजे उठकर नहा धोकर तैयार हो गए और हम 9:40 पर स्टेशन पहुँच गए थे।
अभी ट्रेन लग ही रही थी, नीलेश ने पूछा- भाई अपना सीट नंबर और बोगी कौन सी है।
मैंने कहा- यार कहीं जगह नहीं थी, मैंने फर्स्ट क्लास में बुकिंग कर ली है। बस प्रॉब्लम यह है कि दो सीट एक कम्पार्टमेंट और बाकी दो अलग अलग कम्पार्टमेंट में मिली हैं। अब अंदर ही कुछ जुगाड़ करना पड़ेगा।

ट्रेन के आते ही हमने सामान एक ही कम्पार्टमेंट की बर्थ के नीचे रख दिया और मैं और नीलेश चले गए खाने पीने का सामान लेने। हमने कुछ पानी, पेप्सी, जूस, कुछ केक्स और चिप्स ले लिए थे। क्योंकि मैंने फर्स्ट क्लास में रिजर्वेशन कराया था तो अपने सामान में एक व्हिस्की की बोतल तो घर से ही ले के चला था।

नीलेश बोला- यार, तूने तो रंग जमा दिया। तूने बताया ही नहीं कि तूने फर्स्ट क्लास में बुकिंग की है।
मैंने कहा- बस यार, कहीं नहीं मिल रही थी तो इसमें ही करा दी। चल ट्रेन में चलते हैं, वैसे तो फर्स्ट क्लास है इसलिए टीटी जल्दी ही अपनी बात मान जायेगा पर फिर भी दूसरे यात्रियों को परेशानी न हो इसलिए पहले से व्यवस्था कर देनी चाहिए।

अभी अभी गाड़ी लगी ही थी, टीटी दूर दूर तक कहीं दिखाई नहीं पड़ रहा था।
हमने जाकर अपने कम्पार्टमेंट में खाने पीने का सामान रख दिया और पूछा- कोई और चीज़ की ज़रूरत तो नहीं है।

तभी टीटी भी आ गया, मैंने उसे पूरा किस्सा बताया तो उसने बोला- सर, मैं कोशिश करूँगा कि आपको तकलीफ न दूँ और आने वाले यात्रियों को समझा कर दूसरे कम्पार्टमेंट में शिफ्ट कर दूँ पर अगर कोई नहीं माना तो मुझे आप लोगों परेशान करना पड़ेगा। वैसे चिंता की कोई बात नहीं है, आम तौर पर फर्स्ट क्लास में सफर करने वाले थोड़े एडजस्टेबल होते हैं।

गाड़ी चल चुकी थी।
हम लोग ट्रेन के गेट पर सिगरेट पीते हुए ही बातें कर रहे थे। जब हम लौटे तो कम्पार्टमेंट का दरवाज़ा बंद था।
हमने खटखटाया तो अंदर से आवाज़ आई- कौन है?
हमने कहा- हम ही होंगे और कौन आएगा? खोलो।

अंदर देखा तो दोनों ने कपड़े चेंज कर लिए थे। घर से दोनों साड़ी पहन कर आई थी, पर ट्रेन में आकर दोनों ने छोटे टॉप और केपरी टाइप के कपड़े पहन लिए।
नीलेश बोला- ये क्या है?
मधु बोली- हमें थोड़े ही पता था कि हम फर्स्ट क्लास से जा रहे हैं, अब 12 घंटे कौन साड़ी पहन कर बैठेगा… आराम से जब भोपाल आने वाला होगा तब चेंज कर लेंगे।

मैंने भी अपने बैग से व्हिस्की की बोतल और गिलास निकाले और पूछा- हाँ भई, कौन कौन मेरा साथ देने में रुचि रखता है?
नीता और मधु बोली- हम लोग तो नहीं पी सकते क्योंकि हम तो ससुराल जा रहे हैं।
नीलेश बोला- इतना लम्बा रास्ता है, चलो धीरे धीरे पीते हुए रास्ता मस्त कटेगा।
हमने एक एक छोटा छोटा पैग बनाया और नीता और मधु को सॉफ्ट ड्रिंक्स दे दिए और चियर्स करके पीने लगे।

नीता बोली- अब तो हम भोपाल चले जायेंगे और आप लोग दिल्ली में रहोगे पर यह समय बहुत अच्छा बीता। आप लोग भी जल्दी जल्दी मिलने की कोशिश करना, हम लोग भी कोशिश करेंगे कि हमारे दिल्ली के चक्कर ज्यादा लगा करें।
मधु बोली- हाँ, तुम दोनों के साथ तो बहुत अच्छे वाले सम्बन्ध हो गए हैं अब तो जल्दी जल्दी मिलना ही पड़ेगा।
मैंने कहा- सम्बन्ध नहीं, अवैध सम्बन्ध!
कम्पार्टमेंट में कुछ पल के लिए ख़ामोशी छा गई, फिर सब हंस पड़े।
मैं भी हंसी में हंसने लगा।

नीता बोली- भैया, हमारे पास अभी भी 12 घंटे हैं, कोई गेम खेलते हैं न, कुछ सोचिये न?
मैंने कहा- आईडिया तो बुरा नहीं है।
मैं उठा और दरवाज़ा अच्छे से चटकनी लगा कर बंद कर दियाम मैं बोला- नीता तुम यहाँ आ जाओ मेरे पास, नीलेश तू मधु के बगल में बैठ, ट्रेन में कुछ धमाल करते हैं।

नीलेश बोला- वाह यार, मैंने तो ये सोचा ही नहीं, कम्पार्टमेंट का फायदा उठाया जा सकता है।
बोलते बोलते वो मधु के बगल में जाकर बैठ गया।

मधु आधी लेटी हुई थी, नीलेश मधु के बूब्स मसल कर बोला- क्यूँ भाभी है न?
मधु बोली- हाँ भैया, अब जो कुछ पल रह गए हैं उसमें कुछ मस्ती तो बनती है।
नीता बोली- हाँ मस्ती तो निश्चित रूप से करेंगे ही, पर हम लोग कोई फैंटम थोड़े ही हैं जो 12 घंटे तक चुदाई कर सकें। इसलिए जैसा भैया गेम बताएँगे, खेल खेल में कोई न कोई मस्ती तो ढूंढ ही लेंगे। क्यूँ भैया?
और मेरी तरफ आँख मार दी।

मधु बोली- बात तो तूने सही बोली है नीता, गेम खेलने में ज्यादा मज़ा आएगा।
नीलेश बोला- यार, कोई अच्छा सा गेम सोच जो यहाँ खेल सकें।
मैंने कहा- चलो फिर आज मैं एक नया खेल बताता हूँ, कोई बोतल नहीं घूमेगी। सबकी एक एक करके बारी आएगी। बाकी के तीन लोग मिलकर सामने वाले के लिए टास्क बताएँगे। अगर तीनों लोगों की सहमति होगी तो टास्क पूरा करना ही पड़ेगा, कोई बहाना नहीं चलेगा।

तीनों ने हाँ तो कर दी पर वो यही सोच रहे थे कि यह तो लगभग वही गेम है जो घर पर पहले दिन खेला था।

मैंने कहा- बताओ सबसे पहले टास्क लेने को कौन तैयार है?
नीता ने सबसे पहले हाथ खड़ा कर दिया।
मैंने कहा- तुम्हारे लिए बहुत ही आसान सा टास्क है, तुम्हें मेरे 3 सवालों का सच सच जबाब देना होगा।
नीता बोली- ओ के… पूछिए।

मैंने कहा- पहला सवाल यह है कि तुम्हें पिछले 2 दिनों में सबसे अच्छा पल कौन सा लगा और क्यूं?
नीता बोली- यह आसान सवाल नहीं है पर मैं जवाब ज़रूर दूंगी। पिछले 2 दिनों में सबसे अच्छा पल था जब मेरी इच्छा का काम अपने आप हुआ था। जब मुझे नीलेश ने खुद आपसे पहली बार चुदने के लिए गर्म करके भेज दिया था।

दूसरा सवाल: कल शाम को कालू से चुदाई का अनुभव कैसा रहा? क्या तुम इसे बार बार करना चाहोगी?

नीलेश की आँखों में देखती हुई नीता बोली- अगर मेरे पति को अच्छा लगता है कि मुझे कोई और चोदे तो मैं ऐसा करती रहूंगी… पर सच पूछिए तो मुझे बड़े काले मूसल से ज्यादा आनन्द आप दोनों के प्यारे से लंड में आता है। यह बात सही है कि यह मेरा पहला अनुभव था जब मुझे एक काला आदमी चोद रहा था, वो भी जिसको पैसे दिए गए थे कि वो मुझे खुश करे। उसने मुझे बहुत अच्छे से उत्तेजित किया पर सबसे ज्यादा उत्तेजित करने वाली बात यह थी कि ये सब मैं अकेली नहीं, आप लोगों के सामने कर रही थी। शायद अकेले में मैं इतनी प्रसन्न नहीं हो पाती।

तीसरा सवाल: तुमने शादी के पहले और शादी के बाद अब तक कितने लण्डों को देखा है? कितने लण्डों को छुआ है? और कितने लण्डों से चुदवाया है?

नीता अपनी जगह से उठी और नीलेश को बाहों में लेकर बोली- मैं चाहूँ तो इसका जो भी जवाब दूंगी, आप लोगों को मानना ही पड़ेगा पर मैं सच बोलना चाहती हूँ। शादी से पहले से ही मैं थोड़ी जिज्ञासु किस्म की लड़की रही हूँ। मैंने शादी से पहले अनगिनत लण्डों को देखा है। उसमें मेरे भाई, पापा, चाचा और भी कई लोग आते हैं। मैंने बाथरूम के रोशनदान में एक छेद ढूंढ लिया था जिसमें से मैं इन सभी को देख लेती थी।
जैसा कि मैंने बताया कि मैं जिज्ञासु थी तो मैं बस, ट्रेन में चलते समय लण्डों को छू भी लेती थी और कई बार तो मैंने उनकी चलती ट्रेन में खड़े खड़े अपने हाथों से मुठ भी मारी है। क्या करती वो अपना लंड मेरी गांड में चुभाये जा रहा था, मैंने हाथ पीछे किया तो उसका लंड मेरी हथेली को छू गया। मैंने उसे पकड़ लिया और हिलाती रही जब तक कि उसकी मलाई मेरे हाथ में नहीं गिर गई।
उसके बाद तो मुझे मज़ा आने लगा, चलती बस ट्रेन में बैठने की जगह भी होती तो भी नहीं बैठती बल्कि खड़े आदमियों के खड़े लण्डों को सहला आती थी।
हाँ चुदवाने के मामले में मैंने अपनी मर्जी से कोई लंड अपनी चूत में नहीं लिया। मुझे सबसे पहले मेरे चाचा ने गांड मारी थी, उसके बाद मैंने एक बॉयफ्रेंड बनाया था उससे भी मैं गांड ही मरवाती थी और चूत में सिर्फ उंगली करवाती थी। मेरी चूत में अब तक केवल तीन ही लंड गए हैं, एक नीलू, दूसरे आप और तीसरा वो कालू।

नीलेश ने नीता को बाँहों में भर के जकड़ लिया और एक बेहतरीन स्मूच में होंठों से होंठ जोड़ कर नीलेश शायद सिर्फ यही कहने की कोशिश कर रहा था कि क्या आज तक तुम्हें मुझ पर इतना भरोसा नहीं था कि ये सब बातें कह पाती।
और शायद नीता कह रही थी कि बताना तो कब से चाहती थी पर हिम्मत नहीं पड़ती थी, सोचती थी कि तुम क्या सोचोगे।
आज के इस स्मूच में केवल और केवल एक प्रेम का भाव था एक पति का अपनी पत्नी के लिए और एक पत्नी का अपने पति के लिए। सम्मान और प्रेम का ऐसा भाव मैंने उन दोनों में एक दूजे के लिए अब तक नहीं देखा था।

उनके इस चुम्बन से बाहर निकालने का एक ही तरीका था, मैंने कहा- हाँ तो अब अगला नंबर किसका है?
नीलेश अपने होंठों को होंठों से अलग करके बोला- तू जिसका भी बोले?
मैंने कहा- तो फिर तेरा ही नंबर है।

नीता के चेहरे पर असीम शांति का भाव था पर खेल को पूरे भाव के साथ खेलने के लिए बोली- हाँ भैया, इनको भी कोई अच्छा सा टास्क देना।
मैंने कहा- तुम्हीं दे दो कोई टास्क नीलू को?
नीता बोली -अगर ऐसी बात है तो चलो नीलू, तुम यहाँ से बाहर निकल कर जाओ और सामने आने वाली पहली लड़की या औरत को तुम्हें छेड़ना है। छेड़ने का मतलब है कि तुम्हें उसके बूब्स दबाने हैं।

नीलेश बोला- यह कैसा टास्क है? मेरी पिटाई हो गई तो?
नीता बोली- पिटाई न हो, इसका ध्यान रखना और हंसने लगी।
नीलेश कम्पार्टमेंट से बाहर निकला, हम लोग भी उसे देखने के लिए बाहर आये।

वहाँ बीच में जो अटेंडेंट बैठा होता है, वो खड़ा हो गया और बड़े अदब से पूछा- सर, मैं आपकी किस तरह सहायता कर सकता हूँ?
नीलेश बोला- मेरी मदद कोई नहीं कर सकता, आप बैठ जाओ, मुझे जैसे ही आपकी ज़रूरत होगी, मैं आपको बता दूंगा।

नीलेश वहाँ से सेकंड AC के डब्बे में घुसा। वहाँ तीसरी बर्थ पर ही एक सुन्दर सी 35-38 साल की महिला बैठी थी।
नीलेश ने पीछे मुड़ कर देखा, हमने इशारा किया ‘हाँ यही है जिसके नीलेश को बूब्स दबाने हैं।

नीलेश उससे बात करना शुरू किया- एक्सक्यूज़ मी, यहाँ नीचे आपका ही सामान रखा है?
महिला बोली- हाँ जी, क्यूँ क्या हुआ?
नीलेश बोला- मेरे पास थोड़ा सामान ज्यादा है, मैं थोड़ा सामान यहाँ रख दूँ?

तब तक मैंने नीलेश की मदद करने के लिए उसके पास पहुँचा और उसे उस औरत पर धक्का सा दे दिया।
नीलेश ने गिरते ही उसके दोनों बूब्स कस के दबा दिए।
मैंने उसे क्रॉस करते हुए कहा- साले अंधे, दीखता नहीं है, रास्ते में खड़े हो जाते हैं।
नीलेश औरत के ऊपर से खड़ा होता हुआ बोला- अँधा मैं हूँ या तू है?
और इधर औरत की तरफ मुंह करके बोला- मैं बहुत माफ़ी चाहता हूँ।

औरत के बूब्स नीलेश ने इतनी जोर से दबाए थे कि वो औरत बोली- आप जाइये यहाँ से… मैं आपका कोई सामान नहीं रख सकती।
और धीरे धीरे कुछ बड़बड़ाने लगी।

नीलेश वहाँ से सीधा कम्पार्टमेंट में आ गया, मैं थोड़ी देर बाद वापस पहुँचा।
जब मैं पहुँचा तो सभी लोग इसी घटना पर हंस रहे थे, मधु और नीता ताली पीट पीट कर नीलेश का मजाक उड़ा रहे थे, नीता बोली- अगर भैया नहीं होते तो तुम कभी भी उस औरत को छू नहीं पाते।

मैंने अंदर आकर कहा- नीलेश, तूने इतनी जोर से उसके मम्मे दबाए कि बेचारी अभी तक अपने बूब्स सहला रही है।
नीलेश बोला- साली थी ही एकदम क़यामत, उम्र कुछ भी हो पर थी साली गजब की बला! इसीलिए जोश जोश में थोड़ा जोर से दब गए होंगे।

मधु बोली- अब आपकी बारी!
मैंने कहा- ओके, मैं तैयार हूँ, बताओ क्या करना है?
मधु बोली- आप अपने आप को बहुत अफलातून समझते हो न, आज मैं आपको ऐसा टास्क दूंगी जो आप पूरा नहीं कर पाओगे। अगर आप टास्क पूरा नहीं कर सके तो आपकी सजा होगी कि आप पूरे 15 दिन-रात तक आप किसी भी तरह का सेक्स नहीं कर सकेंगे। यहाँ तक की बाथरूम में जाकर मुठ भी नहीं मार सकते।
मैंने कहा- यह हुई न बात, अब आएगा मज़ा… बताओ ऐसा कौन सा काम है जिसके लिए तुमने इतनी बड़ी शर्त रख दी। और साथ ही यह भी बता देना कि जीत गया तो क्या मिलेगा?

मधु बोली- आपको उसी औरत को किस करना है जिसके अभी नीलेश भैया ने मम्मे दबाये हैं। और हाँ अगर आप जीत गए तो आपकी मर्जी, जो आप चाहोगे, करूँगी।
‘मैं तुम्हारी चुनौती स्वीकार करता हूँ। जीत कर ही बताऊँगा कि मैं क्या करवाऊँगा तुमसे!’

कहानी जारी रहेगी।
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