मुझे जीना सिखा दिया-3

(Mujhe Jeena Sikha Diya- Part 3)

अरे हाँ.. काजल कहाँ है? सोचते हुए मैंने भी निगाह दौड़ाई, तभी सफेद रंग के तौलिये में लिपटी काजल बाथरूम के दरवाजे पर दिखाई दी।

वो हम सब को देखकर मुस्‍कुरा रही थी, उसके पूरे बदन पर पानी की बूंदें उसकी सुन्‍दरता में चार चांद लगा रही थी।

काजल बोली- अब तुम सब इतने व्‍यस्‍त थे कि मैं क्‍या करती मुझे बहुत गर्मी लग रही थी तो मैं नहाने चली गई।
‘अरे गर्मी निकालने को तो हम हैं ना जानेमन, नहाने से क्‍या होगा।’ मैंने रोमांटिक अंदाज में कहा।
‘हुह… तुम तो बहुत निष्‍ठुर हो, सारा ध्‍यान सिर्फ अपनी शशि पर ही? मेरी तरफ देखा होता तो मुझे गर्मी निकालने को नहाना क्‍यों पड़ता?’ स्‍त्रीयोचित प्राकृतिक नखरा दिखाते हुए जैसे काजल ने मुझे ताना मारा।

तब तक शशि भी उठकर बाथरूम में जाने लगी, उसको जोर की पेशाब लगी थी।

बाथरूम के दरवाजे पर काजल के बराबर से निकलते ही शशि ने काजल का तौलिया खींचा संगमरमर जैसे बदन की पानी की बूंदों से सराबोर नग्‍न काजल को मेरी तरफ ढेलती हुई बोली- जाओ अब तो गर्मी वहीं दूर होगी तुम्‍हारी।
औेर खुद बाथरूम में घुस गई।

मैंने भी तेजी दिखाते हुए अपनी तरफ आती गिरती हुई काजल को अपनी बलिष्‍ठ बाहों में थाम लिया।

मैंने पहली बार गौर से देखा काजल के बूब्‍ज बहुत ही बड़े और खूबसूरत थे। हालांकि काजल का रंग बहुत ज्‍यादा गोरा नहीं था पर वो बहुत ही कामुक प्रतीत हो रही थी। उसके भूरे रंग के अरोला के बीच लगभग 1 इंच बड़े चुचुक की घुंडियाँ पूरी तरह से तनी हुई थी।

मैंने काजल को पकड़ते ही अपनी जीभ से उन घुंडियों को एक एक करके चूसना शुरू कर दिया।
काजल शायद इस हमले के लिये तैयार नहीं थी।
‘सीईईई ईईईईईई… धीईईई… रेरेरे… करो… पर… करते रहो।’ काजल ने अटकते अटकते कहा।
काजल का पूरा शरीर थरथराने लगा।

मेरे हाथ काजल की कमर और बहुत ही गुदाज नितम्‍बों को सहलाने लगे, काजल भी बहुत ही कातिल अंदाज में मेरा साथ देने लगी।
तभी मेरी एक उंगली फिसलकर उसके नितम्‍बों के बीच की दरार में लहराने लगी, मैंने भी शैतानी करते हुए अपनी उंगली काजल के पीछे के रास्‍ते में सरका दी।

‘आहह हहहहह…’ चीखती हुई काजल दूर बिस्‍तर पर जा गिरी, मेरी तरफ देखकर बोली- तुम बहुत बदमाश हो।
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तब तक शशि भी बाथरूम से फ्रैश होकर बाहर निकल आई, और काजल के जवाब में बोली- मैं तो 12 साल से इनकी बदमाशियाँ देख रही हूँ पर पहले मुझे इनकी बदमाशियाँ बहुत बुरी लगती थी, गुस्‍सा आता था, अब बहुत ही अच्‍छी लगने लगी हैं।

पर काजल कहाँ हार मानने वाली थी, उसने पलंग पर बैठे-बैठे ही मेरे बरमूडा को पकड़ कर मुझे अपनी तरफ खींचते हुए कहा- अभी करती हूँ इस बदमाश का इलाज…!!
पास आते ही उसने अपने एक हाथ से मेरे बरमूडा के ऊपर से ही मेरे कड़े लिंग को अपनी मुट्ठी में दबाकर मेरी तरफ घूरा जैसे मुझसे पूछ रही हो कि ‘कर दूं क्‍या आज तुम्‍हारा इलाज…?’

मैंने भी नजरों-नजरों में ही काजल को इसकी इजाजत भी दे दी।

काजल ने एक झटके से मेरा बरमूडा नीचे कर दिया, मेरा उत्‍तेजित लिंग रबड़ की भांति बाहर निकला और सीधा काजल के होठों से टकराया।
आजशाम से जितना मैंने काजल को जाना था मैं समझ चुका था कि यह काजल की सबसे प्रिय लॉलीपॉप है।
भला मैं ऐसा स्‍वर्णिम अवसर कैसे गंवा देता, मैंने भी काजल का पूरा साथ दिया।

पर मैं भी तो काफी समय से खुद पर काबू रखे था, मेरे तो जैसे रोंगटे खड़े हो गये, मेरे लिये और ज्‍यादा खुद पर नियंत्रण मुश्किल होने लगा तो मैंने खुद ही अपने लिंग को काजल के मुंह से बाहर खींच लिया।

इससे पहले कि काजल दोबारा मुझ पर हमला करती, मैंने उसको उठाकर सीधा लिटा दिया और अपनी टागें फैलाकर उसके ऊपर बैठ गया।
काजल बिल्‍कुल पतली दुबली कामायिनी लग रही थी।
मैंने काजल के दोनों हाथों को अपने हाथों से दबोचा ओर उसके तपते हुए अंगारे जैसे होठों पर अपने होंठ रख दिए।
काजल को इस अवस्‍था में देखकर बराबर में ही लेटे विवेक को भी जोश आने लगा, उसने वहीं से थोड़ा सरक कर जगह बनाई और काजल के मोटे मोटे खरबूजों को दबाने लगा।

अब काजल पूरी तरह से हमारे हाथों में छटपटा रही थी, मुझे उसका इस तरह झटपटाना और ज्‍यादा अधिक उत्‍तेजित कर रहा था।
मैंने काजल का ऊपरी हिस्‍से विवेक के हवाले करते हुए नीचे का रूख किया और उसकी दोनों टागों के बीच आकर काजल की भगोष्‍ठों को अपनी जीभ से सहलाना शुरू कर दिया।

मैं चाहता था कि काजल उत्‍तेजना में पागल हो जाये इसीलिये अपनी एक उंगली भी उसकी योनि में सरकाकर अन्‍दर बाहर करने लगा। काजलकामोत्‍तेजना के सागर में गोते लगाती हुई अपने नितम्‍बों को ऊपर नीचे करके बिस्‍तर पर पटकने लगी।
मुझे ऐसा लगा जैसे मेरा स्‍खलन कुछ ही दूर है अत: कुछ देर काजल का रस पीने के बाद मैं नीचे उतर गया, और काजल को भी पलंग से नीचे खींच लिया।

मेरे नीचे आते ही पीछे से शशि भी मुझसे लिपट गई।
मैं काजल को छोड़कर तुरन्‍त शशि की तरफ मुड़ा तो शशि ने मुझे दोबारा काजल की तरफ ही घुमा दिया और बोली- कुछ उस बेचारी का भी ख्‍याल करो, कब से तड़प रही है।

शशि की इजाजत मिलते ही मैंने काजल को अपनी तरफ पीठ करके पलंग की तरफ घुमा दिया।
शायद काजल समझ चुकी थी कि मैं क्‍या चाहता हूँ इसीलिये वो खुद ही आगे की तरफ पलंग पर झुक गई।

अब काजल के मोटे मोटे तरबूज जैसे चिकने नितम्‍ब बिल्‍कुल मेरे सामने थे और काजल सिर्फ अपनी दोनों टांगों पर आगे की तरफ झुकी मुद्रा में मेरा इंतजार कर रही थी।
मैंने भी समय न गंवाते हुए अपने लिंग को पकड़कर पीछे से काजल की काली घनी गुफा में धकेलने का प्रयास किया पर ज्‍यादा चिकनाहट की वजह से वो अन्‍दर न जाकर नीचे सरक गया।

तभी शशि मेरी मदद करने को आगे आई, वो काजल के बराबर में नीचे बैठ गई और मेरा लिंग पकड़कर काजल की योनिमुख पर लगा दिया।
मैंने एक जोर का झटका मारा तो मेरा शेर एक ही बार में पूरा का पूरा शिकारी के बिल में सीधा अन्‍दर तक घुसता चला गया।
‘आईईईई ईईईईई… तुम सच में बहुत बदमाश हो।’ काजल चिल्‍लाई।

मैंने कुछ पल रूक कर काजल को आराम देना जरूरी समझा पर वो बोली- करो ना अब क्‍या सोचने लगे?

बस मैं तो जैसे इसी इंतजार में था, मैंने पिछले 4 घंटे का पूरा जोश एक साथ काजल पर चला दिया।
काजल भी भूखी शेरनी की तरह मेरा शिकार करने को तैयार होकर अपने नितम्‍ब आगे पीछे हिलाकर मेरा साथ थप… थप… थप… की थाप के साथ तबला बजाने लगी।

शशि ने नीचे बैठकर काजल के दोनों उरोजों को मसलना शुरू कर दिया तो अब तो काजल काम सुख के चरम पर थी, कुछ ही झटकों के बाद काजल तो निहाल हो गई।

जिस अवस्‍था में खड़ी थी, उसी अवस्‍था में बिस्‍तर पर जा पड़ी।

मेरा शेर बेचारा ऐसे खड़ा था जैसे शिकार दिखाई देने का बाद हाथ से निकल गया हो।
पर बिस्‍तर पर लेटते ही काजल ने पलटी ली और तुरन्‍त मेरी तरफ फिर से अपनी टांगें फैला दी।
मैंने भी एक झटके में उसकी दोनों टांगों को पकड़ा अपनी तरफ खींचा ही था कि काजल ने खुद ही देर न करते हुए मेरे प्रत्‍यंचा पर चढ़े तीर को फिर से शिकार का रास्‍ता दिखाया।

इस बार मेरे धक्‍के पहले से अधिक शक्तिशाली थे, आह… आह… आह… उफ्फ्फ… उफ्फ्फ… आह… की कामुक सीत्‍कार के साथ काजल भी हर धक्‍के में मेरा सहयोग कर रही थी।

कुछ ही क्षण में मेरा सारा जोश काजल के अन्‍दर ठण्‍डा हो गया, मेरा स्‍खलन इतना जोरदार था कि कामरस काजल की योनि के बाहर तक बहता हुआ टपक रहा था।

मैं भी सांड की तरह डकारता हुआ काजल के बराबर में जा गिरा, शशि भी मेरे बराबर में आकर बैठ गई, उसने बराबर में पड़े तौलिये से मेरे शेर से चूहा हो चुके यौनांग को साफ किया।

हम चारों ने लगातार बहुत मेहनत की थी, इतने थक चुके थे कि अब हिलना भी वश में नहीं था।

शशि मेरे बराबर में आकर मुझसे लिपटकर लेटती हुई बोली- बात सिर्फ सैक्‍स की नहीं है पर आपने मुझे जीना सिखा दिया वरना मैं तो वही रसोई को अपनी जिन्‍दगी समझकर खुश थी। मेरे माता-पिता ने मुझे पैदा अवश्‍य किया पर जीना तो आपने ही सिखाया। कुछ दिनों पहले तक मैं हमेशा परिवार के लिये ही जीती थी। आपने ही मुझे सिखाया कि खुद के लिये भी जीना होता है। आप ही हैं जिन्होंने मुझे बताया कि मेरी भी कोई खुशी है मेरी भी कोई पहचान है मेरा भी कोई अस्‍तित्‍व है। पिछले कुछ दिनों में आपने कम से कम मुझे जिन्‍दगी का मतलब समझाया, मैं सच में आपको पाकर धन्‍य हो गई हूँ।

हालांकि मैं शशि की बात का जवाब देना चाहता था पर उस समय थकान इतनी थी कि मैंने चुपचाप शशि के बदन को अपनी बदन से चिपकाया और उसकी बाहों में सो गया।

विवेक और काजल भी तो उसी अवस्‍था में पता नहीं कब सो गये।

अभी हमारे पास एक और दिन शेष था।
पर उस दिन क्‍या हुआ वो फिर कभी बताऊँगा, अभी के लिये इतना ही!

आपको मेरे जीवन की यह घटना कैसी लगी, मुझे जरूर लिखिएगा, आपके विचार ही मेरा उत्‍साहवर्धन करेंगे।
किसी भी प्रकार के विचार आप मुझे [email protected] पर मेल करें।
राजीव खन्‍ना

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