जेम्स की कल्पना -1
(James Ki Kalpna-1)
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कहानी के बारे में –
दो दम्पति अपने साथियों की अदला-बदली के लिए मिलते हैं। जेम्स दूसरे दंपति की बीवी कल्पना के साथ सेक्स संबंध स्थापित करता है मगर एक दुखद घटनावश उसकी अपनी पत्नी डायना का दूसरे के पुरुष के साथ संभोग नहीं हो पाता और विनिमय कार्य अधूरा रह जाता है। यह उसी अधूरे विनिमय के अंतर्गत जेम्स और कल्पना के संयोग के बेहद उत्तेजक कामुक अनुभवों की कहानी है।
जेम्स की कल्पना -1
प्रिय पाठको,
आप अब तक मेरी सात-आठ कहानियाँ पढ़ चुके हैं, पर इस बार मैं अपने जीवन में घटित वास्तविक घटना की कहानी प्रस्तुत कर रहा हूँ। इसे मैं काफी दिन से लिखना चाह रहा था लेकिन मेरी पत्नी इजाजत नहीं दे रही थी।
मेरी पत्नी और मैं बिल्कुल दोस्त की तरह हैं और मेरी हर कहानी की पहली पाठिका वही होती है। उसकी नजर से गुजरकर ही कहानी अन्तर्वासना और आप तक आती है।
इस बार चूँकि वह खुद कहानी की पात्र थी, इसलिए मुझे इजाजत देने में हिचक रही थी।
फिर भी तीन-चार साल लग ही गए कहानी को आप तक लाने में!
खैर, उम्मीद है, देर आए दुरुस्त आए।
***
दरवाजा बंद हो गया।
अंदर से चिटखिनी लगने की खट-खुट मेरे कानों में गूंजती रह गई…
बाहर का ताला कुछ क्षण तक झूलकर स्थिर हो गया। मैं कुछ देर तक उस बंद दरवाजे के सामने खड़ा रहा। एक बार इच्छा हुई कि घूमकर पीछे की तरफ जाऊँ और खिड़की से झाँककर अंदर देखूँ। लेकिन निश्चित लगा कि खिड़की बंद होगी। इतनी सावधान और संकोची स्त्री खिड़की खुला थोड़े ही रहने देगी।
अंदर उसके साथ एक पुरुष मिल रहा था – पहली बार
जेम्स…
अभी भी सोचता हूँ कि अंदर क्या हुआ था। उससे पूछो तो कुछ बताती ही नहीं है। बस कह देगी मालूम तो है तुम्हें कि क्या हुआ था। यही न चाहते थे? और क्या होना है?
लेकिन मैं तो घटना का विवरण जानना चाहता था। एक-एक ब्योरा। क्या-क्या हुआ, कैसे-कैसे हुआ, चरण-दर-चरण।
यही बात डायना भी कहती है अपने पति जेम्स के बारे में… कि वह बताता ही नहीं है।
बोलती है पहली बार जेम्स को किसी औरत ने इस तरह ‘प्रभावित’ किया है।
उन लोगों ने पहले भी दो-तीन दंपतियों से स्वैपिंग की है, सबके बारे में दोनों खुलकर बात करते थे पर कल्पना के साथ पहली बार जेम्स रिजर्व है, बस कहता है ‘इट वाज ए फैन्टास्टिक एक्सपीरिएंस (यह एक विलक्षण अनुभव था)।’
उल्टे डायना मुझी से पूछती है- कल्पना क्या कहती है?
अब भला मैं क्या कहूँ!
जेम्स..
बाइक पर मैं उसे दूर से ही पहचान गया था। ईमेल से भेजी अपनी फोटो जैसा ही था – सजीला, हँसमुख, भरे बदन का।
मुझसे काफी युवा!
बाइक रोककर उत्साह से मिला।
हम दो साल से संपर्क में थे और आपसी फोन-वार्ता के साथ-साथ फोटो का आदान-प्रदान कर चुके थे।
जब मैं उसे साथ लेकर होटल के कमरे में गया और अपनी पत्नी से उसका परिचय कराया तो वह हिचका नहीं, तुरंत किसी परिचित की तरह ‘हाय’ बोला।
मुझे उम्मीद कम ही थी कि कल्पना जवाब देगी।
जेम्स उसे कभी सीधे, कभी तिरछी नजर से देख रहा था… इसी औरत के साथ… कितने दिनों से वह उसके सपने देख रहा था।
फोन पर उसकी आवाज ही उसे काफी रोमांचित कर देती थी।
यद्यपि कल्पना उससे बड़ी थी – 8 साल, मगर वह उम्र से बहुत कम लगती थी। प्रत्यक्ष में सामने बैठी हुई तो और प्रभावशाली लग रही थी। उसके शरीर की गठन और चेहरे पर ताजगी देखकर जेम्स के मन में उत्साह की तरंगें उठ रही थीं।
मैं भी उसकी नजर से अपनी पत्नी को देख रहा था। नीले बुश्शर्ट और जीन्स में पलंग पर बैठी वह कोई एरिस्टोक्रैट फैमिली की कन्या लग रही थी। नहाने से बाल अभी भी गीले थे और पीठ पर नीली चौकोर धारियों वाली पतली शर्ट पर फैले थे। उसकी बदन और बालों की खुशबू अभी भी हवा में तैर रही थी।
जेम्स के विपरीत मैं पहली मुलाकात की हिचक और अटपटापन महसूस कर रहा था। हमारे लिए किसी दम्पति से स्वैपिंग (पत्नियों की अदला-बदली) के लिए मिलने का यह पहला मौका था।
लेकिन जेम्स अनुभवी था, अगर मैं फ्रैंक होता तो वह भी खुल जाता।
उसके पास ज्यादा समय नहीं था। दुर्भाग्यवश कल डायना की माँ को बड़ा हार्ट अटैक आया था, डायना उसके पास अस्पताल में थी। हम इतनी दूर से कोलकाता से आ चुके थे इसलिए इस काम को छोड़ा भी नहीं जा सकता था।
पहले हम चारों साथ मिलने वाले थे लेकिन माँ की घटना के बाद डायना ने कल्पना को बताया था कि पहले जेम्स जाकर ‘कर’ लेगा।
उसके बाद जेम्स हॉस्पिटल आएगा और तब वह स्वयं आएगी।
इस तरह से बारी-बारी से ‘विनिमय’ कार्य पूरा होगा।
यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
जेम्स के साथ हमने बहुत थोड़ी देर रस्मी बातें कीं, जरूरी बातें फोन पर पहले हो चुकी थीं। जेम्स ने हमारी हिचक तोड़ने के लिए अपना मोबाइल निकाला और उसमें अपनी पत्नी और एक दूसरे दम्पति की स्त्री के साथ सेक्स की एक वीडियो क्लिपिंग दिखाई। दोनों स्त्रियाँ बारी बारी से उसका लिंग चूस रही थीं।
मुझे देखकर कैसा तो लगा। मैं जानता था मेरी पत्नी यह नग्नता नहीं सह पाएगी, मैंने मोबाइल उसे लौटा दिया।
जेम्स ने अपनी पत्नी को फोन लगाया और उसे बताया कि वह हमारे पास पहुँच गया है। हम दोनों ठीक तरह से हैं। उसने बात करके मुझे फोन दे दिया ताकि मैं डायना से बात कर लूँ।
डायना ने मुझे गुड माँर्निंग किया और दुहराया कि माँ की बीमारी की वजह से एक साथ नहीं आ पा रही है।
बोली- जेम्स बोल रहा है कि तुम बहुत स्मार्ट-लुकिंग और हैंडसम है। आय एम ईगर टु सी यू। लेट हिम फिनिश फर्स्ट देन आय विल कम… (मैं तुम्हें देखने को उत्सुक हूँ। उसे निपट लेने दो फिर मैं आऊंगी।)
मैंने पत्नी की ओर देखा, वह अटपटेपन से बचने के लिए कभी बिस्तर, कभी टेबल, कभी दीवार को देख रही थी।
मैं समझ नहीं पा रहा था क्या करूँ।
वैसे हम पति-पत्नी आपस में चर्चा कर चुके थे कि अकेले कमरे में करना बेहतर रहेगा ताकि पूरी तरह फ्री महसूस कर सकें पर यहाँ मैं मौके के अनुसार अलग निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र था।
कल्पना ने समर्पित पत्नी की तरह सबकुछ मुझ पर छोड़ दिया था, मुझे लग रहा था, पहले से तय नीति पर चलना ही बेहतर होगा। सामने रहूंगा तो वह संकोच में पड़ जाएगी।
हालाँकि मुझे अफसोस हो रहा था बाहर निकलने में… मेरी इच्छा थी यहीं साथ रहकर उन दोनों के बीच की क्रिया को देखूँ।
इसके अलावा, एक अनजान पुरुष के साथ अपनी सुंदर, कोमलहृदय, कोमलांगी पत्नी को अकेले छोड़ते डर भी लग रहा था। कुछ कर बैठे तो? दिल को काफी कड़ा करके मैंने दोनों को बाइ किया, अच्छे अनुभव के लिए विश किया और… बाहर निकल आया।
दरवाजा लगाने जेम्स ही उठा था।
पीछे ‘खट’ की हिचकती सी आवाज के साथ पल्ला बंद हुआ और अंदर से छिटकिनी लगने की छोटी सी ‘खुट खुट’… मेरी चेतना पर जैसे कील-हथौड़े से खुद गई।
बाहर कुंडी में झूलता ताला मुझे मुँह चिढ़ा रहा था। मैं कुछ देर उसे देखता खड़ा रहा। अपने को फालतू महसूस कर रहा था। होटल का लम्बा गलियारा आखिरी सिरे तक सूना था। अगर किसी कमरे से कोई बाहर निकले तो उसे मुझे यों ही बंद दरवाजे के सामने खड़े देखकर कैसा अजीब लगेगा!
बाहर लॉन में जाड़े की गुनगुनी धूप थी। बंगलोर में वैसे भी गरमी नहीं पड़ती। शाल के पेड़ों की विरल छाया में सीमेंट के बेंच खाली पड़े थे। होटल सुंदर था। चारों तरफ हरियाली के घेरे के बीच कुछेक कमरों का छोटा-सा होटल… विलासितापूर्ण नहीं, सुरुचिपूर्ण।
जेम्स ने ही बुक कराया था।
हल्की हवा में हिलते पेड़ मानों किसी बुजुर्ग की तरह सिर हिलाकर मेरी मानसिक स्थिति समझने का इशारा कर रहे थे। खयाल आया कि यहीं बाहर बेंच पर बैठकर उन दोनों के ‘निपटने’ का इंतजार करूँ।
पर यूँ बैठना बुरा लगा।
गलियारे से लॉन में उतरकर एक बार मैंने पीछे खिड़की की तरफ जाने के लिए कदम बढ़ाए पर अजीब लगा, खिड़की जरूर बंद होगी। और उन लोगों ने मुझे झाँकते देख लिया तो कैसा बुरा लगेगा।
मैं वापस घूमा और निकलकर बाहर चला आया, बाहर बजरी की सड़क पर।
एक बार घूमकर उस गलियारे को देखा जिसके आखिरी छोर पर मेरी पत्नी का कमरा था।
दूर से दिखता सपाट बंद दरवाजा… अंदर कैसी गरम उत्तेजक गतिविधि चल रही होगी। दिल में एक लहर-सी उठी, मैंने सिर घुमा लिया।
बजरी की सूनी सड़क पर पेड़ों की छाया थी। सूखे पीले पत्ते गिरे हुए थे। कुछ दूर जाकर यह रास्ता मुख्य सड़क से मिलता था, जहाँ इक्का-दुक्का गाड़ियाँ दौड़ रही थीं।
आज रविवार का दिन था। मैं पैरों को ठेलता मुख्य सड़क पर चला आया। कुछ देर यात्रियों के लिए बनी शेड में बैठा रहा… कहाँ जाऊँ!
दो तीन बसें आईं, गुजर गईं। एक बार सोचा पैदल ही चलता दूर चला जाऊँ… उठा भी, पर फिर बैठ गया।
पैदल चलने की इच्छा मर गई थी।
सामने दुकानों के पल्ले बंद थे, आज संडे है।
एक खाली ऑटो आ रही थी, शोर करती… मैंने उसे इशारा किया। कल आते समय रास्ते में लगभग पंद्रह मिनट पहले एक पार्क और उससे सटा बिग बाजार का मॉल दिखा था।
मैंने ऑटो वाले को जगह बताई और उसमें सवार हो गया।
जेम्स-डायना… इंटरनेट पर स्वैप के कितने ही विज्ञापन आजमाने के दौरान मिले अनुकूल दंपति। चैटिंग, फोन से एसएमएस और वार्तालाप और फिर तस्वीरों की अदला-बदली। दोनों सरल, ईमानदार और उत्साही प्रतीत हुए थे। चारों की आपसी बातचीत का सिलसिला चल निकला था।
जेम्स उम्र में कुछ छोटा होने के कारण कभी कभी कुछ किशोर-सी भावुक या बचपने जैसी बातें कह देता – ‘आई लव यू!’ वह फोन पर कुछ ज्यादा खुलकर कामुक बातें करना चाहता।
कल्पना को अखरता पर वह समझदारी से सम्हाल लेती।
फोन पर जेम्स उसकी ‘स्वीट’ आवाज पर फिदा होता। आज उसे उस ‘स्वीट’ आवाज की आनंदभरी सिसकारियाँ सुनने को मिलेंगी… उसे कैसी लगेंगी?
पर क्या जेम्स उसे आज ‘फक’ कर पाएगा? कल्पना बड़ी मजबूत मन वाली है। फोन पर भी कल्पना ही प्रबल रहती थी, जेम्स उसके सामने प्रार्थना ही करता नजर आता था।
पता नहीं आज क्या होगा, कहीं कल्पना उसे डाँट या टाल न दे? यह खयाल मुझे असह्य लगा। नहीं नहीं, कल्पना मस्ट बी फक्ड टुडे। इतनी दूर से इसीलिए आए हैं। वो एक बार चुद जाए, बस।
लेकिन अगर बंद कमरे में संभोग के लिए तैयार बैठी औरत के साथ नहीं कर पाया तो? तो फिर लानत है ऐसे मर्द पर। जेम्स की कल्पना के प्रति दीवानगी मुझे भरोसा दिलाती थी कि जब वह करेगा तो पूरे दिल से करेगा और कल्पना की पसंद को ऊपर रखेगा।
पर इस समय सचमुच के मौके पर मुझे शंका भी हो रही थी। खाली हाथ आया तो एक लात दूंगा साले की चूतड़ पर। किस बात के लिए मर्द पैदा हुआ है बे? कमरे में चुदने के लिए परोसी हुई औरत से डर गया? धिक्कार है!
पर मेरा मन नहीं मानता। सेक्स के लिए ही मिले दो जवान स्त्री-पुरुष के बीच अकेले कमरे में सेक्स न हो, असंभव है। उस पर से जेम्स तो और भी स्वैपिंग का अनुभवी और बेशर्मी की हद तक बेझिझक है, वह कल्पना को नहीं छोड़ेगा।
मेरा मन उल्टे कल्पना करता है – वहाँ बंद कमरे में यौवन की नदी उमड़ रही होगी। जेम्स उसमें डूब-डूबकर नहा रहा होगा। कल्पना की भरी-भरी मांसल बाँहें, जो मुझे अपनी गर्दन और कंधों पर महसूस होती थीं, वे जेम्स के गले में कस रही होंगी… मुझे आश्चर्य हुआ क्या सचमुच ऐसा हो रहा होगा?
वैसी ही जोर से? या फिर कल्पना संकोच में होगी? उसके होंठों का अनूठा स्वाद, उसकी साँसों की मादक गंध! क्या जेम्स उन पर…? मुझे पैंट के अंदर एक सुगबुगाहट महसूस हुई।
साले अपनी बीवी को दूसरे के पास छोड़ के आया है, कैसा मर्द है बे तू? मैंने खुद को गाली दी।
कहानी जारी रहेगी।
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