प्रियंवदा: एक प्रेम कहानी-1

(Priamvada Ek Prem Kahani- Part 1)

मेरे प्यारे दोस्तो, मेरी कहानी 12 इंची लम्बे लिंग वाले व एक रात में पांच सात बार ठोकने वाले सुपरमैन और रिमोट से बटन दबाते ही लड़की या औरत उनसे चुदने को तैयार करने वाले लोगों की तरह बनावटी या काल्पनिक नहीं है इसलिए मेरी सेक्स कहानी को केवल वे लोग पढ़ें जो सच में यकीन रखते हों, मुझे केवल वो पाठक ही चाहियें जो धैर्य से मजबूरी, प्रेम, वासना को दिल की आँखों से पढ़कर अपने आप को कहानी के किरदार के रूप में अहसास कर एक एक शब्द में प्रेम रस को महसूस कर सकें।

नौकरी की तलाश में शहर दर शहर भटकने के बाद काम की आस में नई दिल्ली पहुंच गया, बहुत सी कंपनियों में इंटरव्यू दिए लेकिन कहीं सैलरी कम तो कहीं काम ज्यादा।
मेरी इंजीनियरिंग की डिग्री मुझे बोझ लगने लगी।

लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था, मैं अंग्रेजी के एक अखबार में छपे वॉक इन इंटरव्यू का विज्ञापन देखकर एक कंपनी में इंटरव्यू देने गया, बदकिस्मती देखिए जिस पोस्ट के लिए मैं इंटरव्यू देने गया, उसके लिए मेरे पहुँचने से पहले ही किसी और को सलेक्ट कर लिया था।
मैंने इंटरव्यू लेने वालों से गिड़गिड़ाकर नौकरी की भीख मांगी तो उन्होंने कहा- हम तुम्हें हमारे कंपनी के मालिक के फार्महाउस की देखरेख के लिए सुपरवाइजर की नौकरी दे सकते हैं।

जेब के सारे पैसे खत्म हो चुके थे तो उनको हाँ कहने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं था।
कागजी खानापूर्ति करने के बाद मुझे कंपनी की गाड़ी से साउथ दिल्ली के आलीशान फार्महाउस पर ले जाया गया।

ऊंचे पेड़ों से घिरी इमारत किसी किले से कम न थी, ऊँची ऊँची दीवारों में चारों तरफ हरियाली ही हरियाली थी, मुझे वो किसी फाइव स्टार होटल, क्लब या रिसोर्ट से ज्यादा बेहतरीन दिखा, मुझे बैटरी वाली कार में बिठाकर पूरा फॉर्म घुमाया गया और मेरा काम समझाया गया।

विदेशी तर्ज पर बने फार्म हाउस की सुंदरता में कोई कमी नहीं दिख रही थी और साथ ही उसके पिछवाड़े में बना सेक्सी स्विमिंग पूल चार चांद लगा रहा था।

मुझे अब वही रहना था तो वहाँ के सभी कर्मचारियों से मेरा परिचय करा दिया गया और उन्हें समझा दिया गया कि अब मैं नए फार्म हाउस के सुपरवाइजर के रूप में काम करूंगा। जाते जाते कंपनी से आए आदमी ने मुझे एक सलाह दी कि फार्म हाउस पर जो भी हो, वो तुम तक सीमित रहना चाहिए, इसी में भलाई है, और नौकरी भी बची रहेगी.

दिन बीतते गए, मैं अपना काम पूरी जिम्मेदारी से करता था लेकिन मुझे आज तक यह नहीं पता चला कि कंपनी का और इस आलीशान फार्म हाउस का आखिर मालिक कौन है। मैं जब भी किसी से पूछता तो मुझे कहते ‘धीरे-धीरे सब समझ जाओगे।’

एक दिन दोपहर में मेरे पास कंपनी से फोन आया- फार्महाउस तैयार रखना, मैडम दो-तीन दिन के लिए आ रही है.
तब मैंने वहाँ कई सालों से काम कर रहे माली को विश्वास में लेकर पूछा- यह मैडम कौन है?
माली ने बताया कि मैडम कंपनी के मालिक की माशूका है, और महीने में एक दो बार यहाँ अय्याशी करने जरूर आती है, और जब मैडम यहाँ आती है केवल तब ही मालिक यहाँ आते हैं, बाकी दिन कोई नहीं आता।

यह करीब 10-12 दिन से मैं भी देख चुका था।

उन्होंने बताया कि यह फार्म हाउस कंपनी के मालिक ने मैडम के लिए ही बनवाकर उनको गिफ्ट किया है। यह केवल उनके और मैडम की अय्याशी का अड्डा है, बाकी तुम खुद देख लोगे.
इतना कहकर और मुझे इस बारे में किसी से कोई भी बात ना करने की चेतावनी देकर चला गया।
बात मेरे समझ में आ चुकी थी।

मैंने अपनी नौकरी पक्की करने के चक्कर में फार्म हाउस में जोर शोर से तैयारियां शुरू करवा दी, यूं तो मैं इंजीनियरिंग का स्टूडेंट रहा हूं लेकिन वक्त की मार ने मुझे कुछ और ही बना दिया। मैं बड़े मन से फार्म हाउस पर तैयारियां करने लगा, तो मुझे वहाँ के कर्मचारियों ने मना किया कुछ भी नया नहीं करना है साहब के आदेश हैं, साहब और मैडम दो-तीन दिन के लिए आते हैं और अंदर ही रह कर चले जाते हैं.

लेकिन मुझे तो अपनी नौकरी पक्की करनी थी, मैंने भी सोचा कि कुछ नया करते हैं।

मैंने फार्महाउस को किसी हनीमून डेस्टिनेशन की तरह सजवा दिया.
शुक्रवार शाम को मालिक को आना था, इसलिए उनके आने से पहले ही पूरा फार्म हाउस नई नवेली दुल्हन की तरह महक रहा था, चमक रहा था, दमक रहा था, चारों ओर फूल बिछे थे, नया रेड कार्पेट लगा था, बिल्डिंग के अंदर अलग-अलग तरह के फूलों से सजावट करवा दी गई।

वहाँ के सारे कर्मचारी मुझे बार बार यही कह रहे थे कि यहाँ तुम्हारा आज आखिरी दिन है।

शाम को करीब 6:30 7:00 बजे एक काले रंग की बी एम् डब्ल्यू कार फार्म हाउस में दाखिल हुई। गाड़ी के अंदर आते ही दरवाजा बंद कर दिया गया.

जैसे ही गाड़ी पोर्च में पहुंची, मैंने आगे बढ़कर फाटक खोला तो उसमें से 56-57 साल का आदमी जिसके सर पर केवल गिनने को ही बाल बचे थे, काले रंग का सूट पहने नीचे उतरा और दूसरी ओर से बाहर आई एक कयामत जो 30-32 साल की अप्सरा, बेहद खूबसूरत 5 फुट 7 इंच लंबी गदराए बदन की मालकिन काले रंग का लॉन्ग गाउन जो उसके गोरे बदन से लेमिनेशन की तरह चिपका हुआ था. स्तनों की गोलाइयों को मानो सांचे में ढाल कर बनाया हो, उभरे हुए पिछवाड़े पर पैंटी लाइन किसी कलाकृति की तरह उभर रही थी।

उस काले लिबास में वो जवानी से भरपूर नवयौवना बादलों से ढके चांद की भांति प्रतीत होती, चेहरे में इतना नूर था कि खुद चांद भी शरमा जाए, उसके बाल खुले हुए थे शरीर से किसी भी महंगे परफ्यूम की मादक खुश्बू आ रही थी, उसके अंग अंग से मादकता झलक रही थी, उसके शरीर के कण-कण से प्रेम रस टपक रहा था, जवानी अंगड़ाइयां ले रही थी। वो दुनिया की सारी औरतों में सबसे ज्यादा नवयौवना प्रतीत हो रही थी।

जैसे ही दोनों उतरे, गाड़ी आगे चली गयी।

मैंने दोनों का बड़े बड़े फूलों के गुलदस्ते से स्वागत किया- वेलकम सर वेलकम मैडम!
मालिक ने बड़े बेहूदा अंदाज में मुझे पूछा- तू कौन है हमारे घर में हमारा वैलकम करने वाला?
मुझे बहुत बुरा लगा लेकिन साथ खड़ी उस अप्सरा ने प्यारी सी मुस्कान के साथ थैंक यू कहा और मालिक का हाथ पकड़कर पिछवाड़े को मटकाती हुई अंदर ले गई।
मालिक मुझे बाद में मिलने का कह कर अंदर चले गए।

उनके जाने के बाद वहाँ के सभी कर्मचारी मुझ पर हंसने लगे और मुझे कहने लगे- अपना सामान बांध लो सुपरवाइजर साहब।

अंदर चाय कॉफी सर्व करके आये वेटर ने मुझे अंदर जाने के लिए कहा।

जैसे ही मैं अंदर गया, मालिक जिनका नाम मिस्टर सहगल था, वे बॉक्सर और बनियान पहने सोफे पर बैठे थे और मैडम रेड कलर का शार्ट गाउन पहले खिड़की की ओर खड़ी थी। मैंने हाथ जोड़कर मालिक का अभिवादन किया और कहा- आपने मुझे बुलाया सर!
तो मालिक ने कहा- तुझे पता है, जब से यह फार्म हाउस बना है, तब से लेकर आज तक इसमें कोई भी चीज नहीं बदली गई है और यहाँ की एक एक चीज मैडम ने खुद डिजाइन और पसंद करके लगाई थी, और तुमने सब कुछ बदल दिया। तुम्हारी इस गलती की क्या सजा दें तुम्हें? पता है इसके बदले तुम्हारी नौकरी भी जा सकती है, तुम्हें काम पर रखा किसने? और तुम्हारी क्वालिफिकेशन क्या है?

मैं डर गया और हाथ जोड़ने लगा- मालिक गलती हो गई!
और नौकरी जाने के डर से मैं उनके पैरों में बैठ गया.

फिर वे उठे और जोर से हंसे और यह कहा- हमें नहीं पता था कि हमारा फार्म हाउस इतना सेक्सी भी बन सकता है, मैडम को ये बदलाव पसन्द आया।
इतना कहते ही मैडम घूमी और उन्होंने कहा- थैंक्स फॉर मेकिंग एनवायरनमेंट सो रोमांटिक।

मेरी जान में जान आ गई और मालिक ने मेरी तनख्वाह दुगनी कर मुझे स्थाई कर दिया और मुझे सुपरवाइजर से मैंनेजर बना दिया।
मेरी खुशी का ठिकाना ना रहा… मैं उन्हें झुककर थैंक्स कह रहा था तो मालिक ने कहा- थैंक्स कहना है तो मैडम को कहो!
मैंने बिना उसकी और देखे गर्दन झुका कर ‘थैंक्स मैडम’ कहा।

मैडम ने मालिक के बगल में अपनी एक जांघ पर दूसरी जांघ रखकर बैठते हुए कहा- हम यहाँ 3 दिन रहेंगे, यहाँ का माहौल जितना ज्यादा रोमांटिक बना सकते हो, बनाओ।
मैं खुशी से झूम उठा और उसके बाद जैसे ही जाने लगा मालिक ने कहा- ड्रिंक्स भिजवा दो!

करीब आधा घंटा बीत जाने पर टेंशन मालिक गुस्सा होते हो बाहर आए और चिल्ला कर मुझे कहा- अभी तक ड्रिंक क्यों नहीं भेजे?
मैंने ‘एक्सक्यूज मी सर’ कहकर कहा- सर ड्रिंक पूल पर लगा दिए हैं।

मालिक गुस्सा हुए तो मैडम उनका हाथ पकड़कर स्विमिंग पूल पर ले गई और वहाँ की सजावट देखकर दोनों ही पागल हो हो गए।
पीछे धीरे धीरे म्यूजिक बज रहा था ‘आजा पिया… तोहे प्यार दूं, गौरी बैंया तो पे वार दूँ’

यह सब देख मालिक और मैडम दोनों फिर मुझ पर मेहरबान हो गए और शाबाशी में कहा- तुम्हारी खातिरदारी पसन्द आयी… अब तुम ही हमारी खातिर में रहोगे, दूसरा कोई ना आये।
मैंने जैसे ही मालिक को पैग बना कर दिया, मैडम ने झट से वह ग्लास मेरे हाथ से छीन लिया और कहा- इतनी भी तमीज नहीं है स्टूपिड? लेडीस फर्स्ट!
मैं उस नशीली आँखों वाली मादक औरत को देखता ही रह गया।

मैडम लाल रंग के शार्ट गाउन में थी जो मुश्किल से उनके 38 इंची नितंबों की गोलाइयों को ढक पा रहा था, उनकी लम्बी गौरी जाँघें केले के तने के अंदरूनी भाग जैसी दूधिया सफेद चमकदार थी एक पानी की बूंद भी गिरे तो बह चले इतनी चिकनी थी।

मैंने जोनी वाकर के पेग बनाकर देने शुरू किए, दो दो पैग अंदर जाते ही दोनों बहकने लगे। मैडम ने अपना गाउन खोल कर फेंक दिया और केवल लाल और सफेद पोल्का डॉट्स वाली ब्रा पैंटी में रह गई।
हाय… मैं मर गया था, मुझे ऐसा लगा जैसे किसी ने छः की छः गोलियां मेरे सीने में उतार दी हों!
मैं पत्थर के बेजान बुत की तरह उस हुस्न की मल्लिका को निहारता रहा।
कसम से इतनी हसीन, मादक, सैक्सी, सुंदर आजतक टीवी, फ़िल्म व इंटरनेट पर भी नही देखी थी।

मैं आँखें फ़ाड़ फ़ाड़ कर उस रूपसी को देखकर धरती पर ही स्वर्ग का अहसास कर रहा था। बड़ी बड़ी आँखें, गोल चेहरा और मधुशाला से शहद टपकाते लाल होंठ, घने लम्बे बाल उसके कंधे व पीठ के झूठे पहरेदार बने हुए दिखते थे, उसके 36 साइज के उन्नत स्तन हिमालय की तरह विकसित और तने हुए ब्रा को फाड़ने को आतुर दिखाई दे रहे थे, उनके ठीक नीचे चांदी सा गोरा सपाट पेट जिसमें उसकी नाभि चांद के दाग की तरह खूबसूरती बढ़ा रही थी, पैंटी में जकड़े हुए 38 इंची सुडौल आकार के नितम्ब अपनी आजादी की गुहार लगाते दिख रहे थे।

मुझे ऐसा लग रहा था मानो मैं अपने हाथों से उस जवानी को महसूस कर रहा था।

वो जैसे ही मुड़ी तो 30 इंची कमर ने काली नागिन की तरह बल खाया। उसके रोम रोम में अजीब सा नशा था. शराब हाथ में लिए वो शवाब किसी अल्हड़ नदी की तरह मस्ताती हुई अपने मादक हुस्न के घमण्ड में चल रही थी, या यूं कहें कि अपने हुस्न के बहाव में मुझे बहा रही थी।
जवानी और शराब के नशे में चूर उसका हर कदम किसी मदमस्त हथिनी की तरह जमीन पर पड़ता था। उसके यौवन को देख लगता था कि प्रेम रस यहीं से रचा गया है, वो प्रेम रस के सभी कवियों की प्रेरणा सी प्रतीत हो रही थी। दुनिया की कोई भी औरत उसके सामने फीकी नज़र आने लगी थी। उसका दमकता बदन पूनम के चांद की तरह चमक रहा था।

जाम खत्म कर वो अचानक पानी में जा कूदी और किसी जलपरी की तरह गोते लगाने लगी।

मेरे अंदर का मर्द चैलेंज कर रहा था ‘जा बेटा कूद जा… हुस्न और शबाब के दरिया में!
लेकिन बाहर का नौकर अंदर के मर्द पर कहीं भारी पड़ता हुआ मुझे मेरी औकात बता रहा था।

शेष अगले अंक में।
आपके हौसला अफजाई ईमेल के द्वारा जरूर चाहूंगा।
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कहानी का अगला भाग: प्रियंवदा: एक प्रेम कहानी-2

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