पहली चुदाई में सील टूटी और गांड फटी -1

(Pahli Chudai Me Seal Tuti Aur Gand fati- Part 1)

This story is part of a series:

सभी चूत वालियों को मेरे लण्ड का सलाम और सभी लण्ड वालों को मेरी गाण्ड का सलाम!
खैर यह तो हुई मजाक की बात.. अब आते हैं परिचय पर.. मेरा नाम रूपेश कुमार है.. मैंने कभी इस प्रकार की कहानी कभी नहीं लिखी.. पर पढ़ी बहुत हैं, उसी से प्रेरणा लेकर मैं पहली वास्तविक मतलब सत्य घटना पर आधारित कहानी लिख रहा हूँ।
इसमें थोड़ा मिर्च मसाला डाला है पर ज्यादा नहीं.. जैसे आटे में नमक चल जाता है.. पर नमक में आटा नहीं.. वो ही.. यहाँ पर आटे में नमक जैसा ही है।

अन्तर्वासना पर प्रकाशित अधिकतर कहानियाँ पढ़ चुका हूँ। आज जब मैं अकेला हूँ.. तो सिर्फ अन्तर्वासना ही है.. जो हमेशा मेरा साथ देती है। जब भी मेरे मन में किसी की चूत मारने की इच्छा होती है.. तो अपने ही हाथ को चूत बनाकर हस्त-मैथुन कर लेता हूँ और अन्तर्वासना की साईट को लेकर बैठ जाता हूँ। इसकी रसीली कहानियों को पढ़कर अपने लण्ड की प्यास बुझाता हूँ.. और चैन की नींद सोता हूँ।

वैसे तो चूत (लड़कियाँ) काफी देखने को मिलती हैं पर यार उन्हें पटाने के लिए उनकी गाण्ड के पीछे घूमना पड़ता है। अब हम ठहरे अध्यनरत छात्र.. तो चूतों के पीछे नहीं घूमा जाता और बेईज्जती से डर लगता है.. इसलिए अपने हाथ से काम चला लेते हैं। वो कहते हैं न अपना हाथ जगन्नाथ..

अब आते है कहानी पर..

मैं इस बात को शेयर तो नहीं करना चाहता था.. ना ही इसे कहानी के रूप में किसी को सुनाना चाहता था.. परन्तु जब अन्तर्वासना पर कहानियों को पढ़ता तो सोचता क्यों ना अपने साथ घटी घटना को आप लोगों के साथ शेयर किया जाए.. हो सकता है कुछ नई दोस्त मिल जाएँ।

यह कहानी 5 साल पुरानी है.. तब मैं स्नातिकी कर रहा था। यह ऐसी उम्र है.. जब सभी का अफेयर चलता है, मेरा भी चला.. वो भी मेरी गाँव की लड़की से।

मेरे गाँव की एक लड़की से मेरा प्रेम शुरू हुआ.. जो कि एक कमसिन और नाजुक कली थी.. जिसने जवानी की दहलीज पर अभी कदम रखा ही था। पांच फीट चार इंच की लम्बाई.. एकदम दूध सी गोरी.. भूरी.. स्लिम बॉडी.. छातियाँ अभी विकास की तरफ अग्रसर थीं। उम्र जवानी की दहलीज.. स्कूल में पढ़ने वाली..

उसके साथ मेरी जाने कैसे सैटिंग हो जाती है। वो कभी-कभार मेरी तरफ देखती तो मैं पूछ लिया करता था कि छोरी तू क्या देखती है? वो कहती कुछ नहीं.. बस ऐसे ही मुस्कुरा कर रह जाती थी।
वो मेरी बहन की सहेली भी थी.. तो अक्सर घर भी आ जाया करती थी।

अब मेरे बारे में.. मैं तो रंग में सांवला सलोना हूँ.. मेरे नैन नक्श और लम्बाई पूरी राजकुमारों जैसी.. सुडौल शरीर आकर्षक बदन.. और अपने ‘बाबूलाल’.. सोनू (मतलब लण्ड.. ये सभी मैंने लण्ड के उपनाम दे रखे हैं। मैं इसके लिए अभद्र भाषा का प्रयोग नहीं करूँगा। इसलिए जहाँ मैं इन शब्दों का प्रयोग करूँ.. वहाँ आप स्वत: ही समझ लेना)
मैं चूत को पिंकी कहता हूँ।

अब मैं अपने सोनू के बारे में क्या बताऊँ.. इसकी कार्यशैली और कारनामे तो आगे आप खुद ही पढ़ोगे.. इसने मुझे ऐसे चक्कर में डाल दिया कि मेरी खुद की फाड़ दी।
परिवार से मैं ठीक हूँ.. क्योंकि पिताजी की सरकारी नौकरी थी.. तो अच्छा खान-पान और पहनावा.. रहन-सहन आदि सब ठीक-ठाक था।

बस इसी को देखकर वो गांव की गोरी मुझ पर फ़िदा हो गई थी क्योंकि वो एक गरीब परिवार से थी। इससे पहले मेरी कभी कोई सैटिंग नहीं रही.. तो क्योंकि अभी तक उम्र भी नहीं थी.. और जब उम्र हुई तो खुद व खुद ही मिलने लग गई।

जब अपने से बड़े को किसी लड़की से बात करते देखते.. तो मेरा भी मन करता कि कोई मेरी भी कोई सैटिंग हो.. पर भाग्य से ज्यादा और समय से पहले कभी किसी को कुछ नहीं मिलता.. तो मेरे भी कुछ ऐसा ही साथ था।

अभी मेरी उम्र भी लौंडियाँ पटाने की चल रही थी.. और ऐसे ही धीरे-धीरे और बातों-बातों में वो मेरी गर्ल फ्रैंड बन जाती है। अब कैसी बनती है.. ये पूरी बात बताएगें.. तो शायद आपको नींद भी आने लगेगी।

उसका नाम प्रेमा (बदला हुआ नाम) था। जैसा नाम था.. उसकी वैसी ही सूरत भी थी। वो एकदम भोली-भाली.. हर बात से अनजान थी। जैसा कोमल शरीर वैसा ही मन था। दिखने में ऐसी कि जैसे उसके शरीर के प्रत्येक अंग को प्रकृति ने बड़े ही प्यार और फुर्सत से सांचे में ढाल के बनाया हो.. ऊपर से नीचे तक कोई कमी नहीं..

वो जब भी गली से गुजरती.. तो गली को महका जाती और हर शख्स उसे देखता ही रह जाता। जैसे-जैसे वो बड़ी हो रही थी.. लोगों की निगाहें उसे बीमार कर दिया करती थीं.. बार बार नजर लग जाती थी। फिर उसकी माँ किसी भगत सयाने से उसके लिए ताबीज लेकर आईं.. तब जाकर वो ठीक रहने लगी।

अब जब उससे मेरी सैटिंग हो गई.. तो दिन-रात उसी के बारे में सोचना और पढ़ाई तो मानो मैं भूल ही गया। उसने तो मुझे पागल सा कर दिया। हर समय उसी को सोचना और उसी से बात करने को मन करता.. कभी खेतों में मिलते.. तो कभी उसके घर पर.. अभी तक तो कुछ भी नहीं हुआ था… बस इसी तरह समय बीतता गया और इस प्रेम-मिलाप के चक्कर में दो साल गुजर गईं।

उसकी छाती के नींबू अब अमरुद हो चुके थे.. क्योंकि जब कभी हम खेतों में मिलते.. तो चूमा चाटी करते और मैं उसके नींबुओं को दबा दिया करता था। नींबू दबा-दबा कर उन नींबुओं को अमरूदों और अमरूदों को मैंने आम बना दिया था.. जिससे वो अत्यधिक आकर्षण का कारण बन गई थी।

वो सलवार सूट ही पहनती थी.. पर अभी तक मैंने उसे नंगी या सूट उतार कर उसके बोबों को नहीं देखा था क्योंकि उसे शर्म आती थी और मुझे कहने में झिझक होती थी। शायद हम दोनों डरते भी थे.. इसलिए कभी सरसों के खेत में.. तो कभी चरी बाजरों के खलिहानों में मिलते थे।

मैंने उसके बोबों को खूब दबाया और होंठों को खूब चुसाई की.. पर अभी तक उसे नग्न अवस्था में नहीं देखा था। जैसे-जैसे उसकी जवानी बढ़ती गई.. लोगों की नजरें भी उस पर गड़ती गईं। जब भी लोग उसकी तरफ देखते या मेरे हमउम्र लड़के उसकी तरफ देखते.. तो सालों को पीटने का मन करता.. पर क्या करता.. मन मार के रह जाता। मैं डरता हुआ सोचता कि कुमार कहीं कोई और इस पर हाथ साफ़ न कर जाए और तू हाथ मलता रह जाए।

पर मैंने उसकी नजरों में अपनी सूरत के अलावा और कोई नहीं देखा.. क्योंकि लड़की जब किसी के प्यार में होती है.. तो किसी को भी अपने शरीर से हाथ नहीं लगाने देती है, यही उसके साथ भी था।

मेरे दोस्त ने भी उस पर लाइन मारी.. पर कुछ हाथ नहीं लगा.. क्योंकि उसका कौमार्य तो मेरे सोनू से भंग होना लिखा था और हुआ भी ऐसा ही।

हमारा प्रेम और ज्यादा प्रगाढ़ होने लगा, वो भी अपनी जोबन की दहलीज पर थी और दो दाने हम में भी फूट रहे थे।
तो एक दिन उससे मिलने के लिए उसके घर चला गया।

यह गर्मियों की रात थी.. उसकी माँ और बहन कहीं बाहर गई हुई थीं। पिता जी भैसों के पास प्लाट में सो रहे थे और भाई अपने दोस्तों के साथ था।
अब वो ही एक कमरे में अकेली थी।

उसने मुझे में रात के 10 बजे बुलाया.. मैं उसके घर में पहुँच गया। हम दोनों काफी दिनों के बाद मिले थे.. तो जाते ही मैंने उसे लगे से लगा लिया और चूमाचाटी करने लगा.. तो वो भी साथ देने लगी।

मैं हल्के हाथ से उसके बोबों को दबाने लग गया और वो सीत्कार भरने लगी।
मैं थोड़ा अलग हुआ और मैंने उसे पिंकी (चूत) देने के लिए कहा।
उसने मना कर दिया.. बोली- कुछ हो गया.. तो क्या होगा?
मैंने कहा- कुछ नहीं होगा और क्या तुमको मुझ पर भरोसा नहीं है?
वो बोली- भरोसा तुम पर तो है.. पर खुद पर भरोसा नहीं है, मैं तो कहीं की भी नहीं रहूँगी।
मैं बोला- तू कहीं की भी रहे या न रहे.. पर मेरी तो रहेगी ही।
‘ठीक है..’ और उसने हामी भर दी।

इस तरह बातों ही बातों में मैं उसे किस करने लग गया और जाने कब उस स्थिति में पहुँच गए कि मैंने उसके कपड़े खोल दिए और उसको निर्वस्त्र कर दिया। कमरे में अँधेरा था.. तो कुछ नहीं दिख रहा था.. बस हाथ के स्पर्श से ही उसके अंगों के बारे में पहचान लगा सकता था।

मैंने अपने भी वस्त्र उतार दिए और उसे गले से लगा कर चूमने लगा। यह पहली बार था कि मैंने उसे नग्न अवस्था में और खुद भी नग्न अवस्था में अपने गले लगाया था, उसकी छाती मेरी छाती को छू रही थी।
आह्ह.. कितना आनन्द मिल रहा था कि मैं यहाँ ब्यान नहीं कर सकता… उसके बदन की महक मुझे मदहोश कर रही थी। वो स्थिति क्या स्थिति थी.. केवल अनुभव से द्वारा ही पता चल सकता है।

अभी तक तो कुछ हुआ भी नहीं था.. पर दोनों के बदन से आग निकल रही थी और उस आग में जलने को जी चाह रहा था। उसके बदन की आग और जिस्म का पसीना.. उसे अपने आगोश से छोड़ने का मन ही नहीं कर रहा था।
स्वत: ही वो सारी क्रियाएँ हो रही थीं.. जिनके बारे में न तो मैंने सोचा था और ना ही उसने सोचा था..

परन्तु ऐसी स्थिति कब तक कंट्रोल करते और ‘वहाँ’ तक भी पहुँच लिए।
और जाने कब मैंने उसकी चूत पर अपना लण्ड लगा दिया कि पता ही नहीं चला पर उसे पता चल गया।

वो बोली- नहीं.. यह गलत है..
मैं बोला- क्या गलत है?
प्रेमा- यही सब.. जो हम कर रहे हैं और मैं यह केवल अपने पति के साथ करूँगी।
मैं- तो ठीक है.. मैं तेरा पति बनने के लिए तैयार हूँ।

मैंने उससे उसकी माँग में सिंदूर लगाया और उसकी मांग भर दी ‘अब हम तेरे.. और तू हमारी.. अब ज्यादा ना नुकुर नहीं करना..’
पर वो अब भी नहीं मानी, बोली- मुझे डर लग रहा है।

साथियो, यह सच्ची सील टूटने की घटना को कहानी में लिख रहा हूँ.. इसमें एक रत्ती भी असत्य नहीं है.. आप सभी के विचारों से भी अवगत होना चाहूँगा.. आप अपने ईमेल जरूर भेजिएगा।
कहानी जारी है।
[email protected]

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