मेरी अय्याशियाँ पिंकी के साथ-4
(Meri Ayyashiyan Pinki Ke Sath- Part 4)
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मैंने पिंकी को फिर से बिस्तर पर गिरा लिया, पहले तो उसके गालों को चूमा और फिर धीरे धीर होंठों पर आ गया। पिंकी अब और भी जोर से कसमसाने लगी, पिंकी का मुँह मैंने अपने होंठों से बन्द कर दिया था इसलिये वो अपने दोनों पैरों को जोर से बैड पर पटकते हुए ‘उ्उउउ… गूँगूँगूँ… ऊऊऊ… उ्उउउ… गूँगूँगूँ… ऊऊऊ…’ की आवाज करने लगी।
कुछ देर पिंकी के होंठों का रसपान करने के बाद मैंने होंठों को छोड़ दिया और गर्दन पर से होते हुए उसके उरोजों की तरफ बढ़ने लगा। होंठों के आजाद होते ही पिंकी फिर से ‘ओय..छोड़…ना…
हो गया ना… अब बस भी कर… प्लीज… हो तो गया… अब और क्या करेगा… मान भी जा ना… प्लीज…’ कहते हुए उठने की कोशिश करने लगी, पिंकी का इशारा खुद की तरफ था वो कहना चाह रही थी कि उसका काम हो गया है।
मगर मैं तो अभी प्यासा ही था, इसलिये मैंने अपने एक पैर को उसकी दोनों जाँघों के नीचे से व दूसरे पैर को जाँघों के ऊपर से करके अपने पैरों के बीच उसकी दोनों जाँघों को भींच लिया, मैं लगभग अब पिंकी के बदन से चिपट सा गया था। तब तक मेरे होंठ भी पिंकी के उरोजों पर पहुँच गये और मैं उसके एक चुचूक को मुँह में भरकर गप्प कर गया, साथ ही मेरे एक हाथ ने भी उसके दूसरे नन्हे उरोज को दबोच लिया.
मैं बारी बारी से उसके दोनों नन्हे उरोजों को भींच रहा था, छेड़ रहा था, साथ ही अपनी जीभ से भी उसके निप्पलों को चूम-चाट रहा था। पिंकी की साँसें अब फिर से तेज होने लगी थी मगर फिर भी वो मेरे पैरों को हटाने की कोशिश करते हुए अब भी यही दोहरा रही थी ‘छोड़ मुझे… अब बस भी कर… प्लीज… भाभी आ जायेगी… अब मान भी जा ना… प्लीज…’ लेकिन मैंने अपने पैरों का जोर कम नहीं किया, उसकी दोनों जाँघों को अपने पैरों के बीच समेटे रहा.
मैं भी अब अपना हाथ जो उसके नन्हे उरोजों को मसक रहा था, उसे पिंकी के मखमली पेट पर से सहलाते हुए उसकी जाँघों के जोड़ पर पहुंचा दिया, लेकिन मेरा हाथ उसकी योनि को छुये उससे पहले ही पिंकी ने जाँघों को भींच कर अपनी योनि को छुपा लिया।
उसने दोनों जाँघों को अंग्रेजी के अक्षर ‘X’ की तरह जोरो से जांघें भींच लिया था जिनको आसानी से खोलना मुश्किल था इसलिये मैं उसकी जाँघों के ऊपर ही धीरे धीरे सहलाने लगा.
पिंकी को ये भी गवांरा नहीं गुजरा और वो अब मेरे हाथ को अपनी जाँघों पर से भी हटाने की कोशिश करने लगी।
तभी मैंने पिंकी के निप्पल को दांतों से हल्का सा काट लिया जिससे पिंकी ‘ओय्ययय… अआआ…ह्ह्हहहह… अ..आउच…’ कह कर चिहुंक पड़ी और उसकी जाँघों की पकड़ कुछ हल्की हो गई.
मैंने उसी वक्त अपना एक पैर दोनों जाँघों के बीच फंसा दिया जिससे पिंकी की जांघें अलग हो गई और फिर पहले तो अपनी उंगलियाँ, फिर धीरे धीरे करके पूरा हाथ ही उसकी जाँघों के बीच घुसा दिया.
मेरा हाथ अब पिंकी की छोटी सी योनि पर था जो अभी तक प्रेमरस से भीगी हुई ही थी, पिंकी ने मेरे हाथ को अपनी योनि पर से हटाने की एक बार कोशिश तो की, मगर कामयाब नहीं हो सकी।
मैं अब उसकी कच्ची कुंवारी योनि को हथेली से सहला रहा था, मसल रहा था… मेरी उंगलियाँ भी योनि की दोनों फांकों के बीच योनिद्वार पर गोल गोल घूम रही थी तो कभी योनि की फांकों को सहला रही थी.
पिंकी की सांसें अब तेज होती जा रही थी, उसको भी अब मजा आने लगा था इसलिये उसने अपनी आँखें बंद कर ली और मुँह से हल्की हल्की सिसकारियाँ भरने लगी।
मैं उसके चेहरे की तरफ ही देख रहा था तो वो अब बिल्कुल शांत सी हो गई थी, मगर जैसे जैसे मेरी उंगलियाँ उसकी नन्ही योनि के साथ खेल रही थी वैसे वैसे उसके चेहरे की भाव-भंगिमायें भी लगातार बदल रही थी।
पिंकी का चेहरा देखते देखते मेरा हाथ जो उसकी योनि पर हरकत कर रहा था वो रुक गया, जिससे पिंकी ने एक बार थोड़ी सी आँखें खोल कर देखा और उसकी नजरें सीधा ही मेरी नजरों से टकरा गई क्योंकि मैं भी उसके चेहरे की तरफ ही देख रहा था.
पिंकी अब शर्मा गई और उसने फिर से दोनों हाथों से अपने चेहरे को छुपा लिया।
तभी मेरी उंगली के साथ मेरे अंगूठे ने अब ऊपर कुछ ढूंढना शुरू किया और जैसे ही उसने चुचूक को छुआ…
पिंकी ने झटके से अपने चूतड़ ऊपर उछाले और उसके मुँह से ‘ओह्ह ओह्ह्ह्ह… ओय…’ की आवाज निकल गई। पिंकी अब पूरी तरह से उत्तेजित हो चुकी थी इसलिये मैं उसके उरोजों को छोड़ कर अब नीचे की तरफ बढ़ने लगा, मैंने पहले तो उसके केले के पत्ते जैसे चिकने पेट पे चुम्बनों की बारिश की और फिर मेरी जीभ की लौ उसकी गहरी नाभि में गोल गोल चक्कर लगाने लगी, साथ ही मैं अपनी बीच वाली उंगली उसके योनि द्वार पर हल्के हल्के गोल गोल घूमाने लगा और अब पहली बार मेरी उंगली उसकी योनि में थोड़ी सी घुसी।
मैंने बस हल्के से दबाया ही था, अन्दर डालने की कोशिश किये बिना मगर उसकी योनि इतनी गीली हो चुकी थीं की मेरी उंगली का एक पौरा बल्कि पौरे का भी आधा घुस गया जिससे पिंकी उचक गई और ‘अआआहहह… अआउऊचच…’ की आवाज के साथ पिंकी ने जाँघों को सिकोड़कर अपनी अनछुई कमसिन कुंवारी प्रेम गुफा को छुपा लिया।
मेरे होंठ भी अब पिंकी की नाभि से बाहर निकल के उसकी योनि के ऊपरी भाग तक आ पहुंचे थे, वो सोच रही थी कि शायद अब मैं ‘नीचे’ चुम्बन लूँगा लेकिन मैं भी… उसे तरसाना चाहता था इसलिये मैंने एक बार उसकी योनि के चारों ओर चूमा और फिर सीधा नीचे जाँघों के एकदम ऊपरी भाग पर उतर आया जिससे पिंकी सिसकार उठी और उसने खुद ही अपने नितम्बों को खिसका कर मेरे होंठों से अपनी योनि को लगा दिया।
मैं भी अब उसकी योनि को कभी चूमने लगा तो कभी अपनी जीभ से सहला रहा था, साथ में ही मेरी मंझली उंगली अब तेजी से उसके योनि की फांकों को, तो कभी योनि द्वार पर गोल गोल रगड़ दे रही थी।
मस्ती के मारे पिंकी की हालत खराब थी.
एक पल के लिए मैंने उसे छोड़ा और झट से अपने सारे कपड़े उतार कर बिल्कुल नंगा हो गया।
पिंकी ने मस्ती के मारे आँखें बंद कर रखी थी मगर मेरे छोड़ने पर उसने अपनी आँखें खोल ली और अब वो आँखें फाड़ कर मेरे तन्नाये मूसल लिंग की तरफ देख रही थी।
पिंकी पहली बार लिंग देख रही थी इसलिये उसकी आँखों में आश्चर्य के से भाव उभर रहे थे।
मैं अब पिंकी की जाँघों के बीच आ गया और फिर से उसके उरोजों के साथ खेलने लगा। मेरा तन्नाया जोश में पागल मूसल लिंग पिंकी की योनि में अन्दर घुसने के लिए बेताब था मगर मैंने घुसाया नहीं बल्कि एक हाथ से उसे पकड़ कर पिंकी की योनि पर रगड़ने लगा.
‘ओय… ये… नहीं… नहीं.. क्या कर रहा है… ये सब नहीं प्लीज… नहीं… अब बस कर…’ पिंकी ने कहा और मगर उत्तेजना के मारे फिर से उसकी आँखें बंद हो गई।
पिंकी की योनि काफी गीली हो रही थी, उस पर मेरा लिंग अपने आप ही फिसल रहा था और मैं अपने उत्तेजित लिंग को उसकी योनि के मुंहाने पर, तो कभी चुचूक पर बार बार रगड़ रहा था.
पिंकी काफी उत्तेजित हो गई थी इसलिये उसने खुद ही अपनी टांगें फैला दी और अपने कूल्हों को मेरे लिंग की तर्ज पर हिलाने लगी और उसके मुँह से फिर से सिसकारियाँ फूटने लगी थी.
कुछ देर तक मैं ऐसे ही पिंकी की योनि को अपने लिंग से रगड़ता रहा और फिर एक पल के लिए मैं रुक कर उसके चेहरे की तरफ देखने लगा। वो आँखें बंद किये हुए थी, चेहरा उत्तेजना से एकदम गुलाबी लग रहा था, निप्पल तन्नाये खड़े थे… पिंकी पूरी तरह से उत्तेजित थी और अब वो विरोध करने की स्थिति में नहीं थी.
मैं एक पल को ठहरा… और उसी के साथ एक हाथ से उसकी कमर को कस के पकड़ लिया व दूसरे हाथ से अपने लिंग को उसकी योनि के मुहाने पर रखकर पूरी ताकत से एक जोरदार झटका मारा जिससे मेरा औसत माप का लिंग उस कच्ची कली की कसी हुई तंग योनि में बिल्कुल थोड़ा सा अन्दर घुसकर अटक गया और पिंकी के मुँह से ‘उऊऊऊ… इईईई ईई… म्मममीईईई… अआआ… ह्ह्हहह हहह…’ की एक हृदय विदारक चीख निकल गई।
पिंकी की योनि इतनी तंग व संकरी थी कि योनि की दीवारों में मेरे लिंग का सुपारा फंस सा गया था।
पिंकी ने दोनों हाथों से मेरी कमर को लिया था और कराहते हुए ‘अ.. ओओययय… क्या कर रहा…?? बहुत दुख रहा है… प्लीज..छोड़ मुझे… महेश्शश…छोड़ दे बस…’ कहते हुए उठने का प्रयास करने लगी…
लेकिन मैंने उसे दबाये रखा।
मैंने अब थोड़ा जोर का झटका देने की सोची, क्योंकि एक तो पिंकी ने दोनों हाथों से मेरी कमर को पकड़ रखा था और दूसरा मुझे पता था कि जिस तरह से उसकी योनि ने मेरे लिंग के सुपारे को जकड़ा हुआ है उस अवस्था में धीरे धीरे लिंग को अन्दर करना बहुत मुश्किल होगा।
मैंने अपनी सांस रोकी और एक जोरदार धक्का उसकी चूत पर लगा दिया… जिससे पिंकी की योनि से ‘फचाक’ की एक हल्की सी आवाज़ आई, साथ ही पिंकी के मुँह से भी ‘अआआ… ह्ह्हहह हहह… म्म्म्ममम्मीईई ईई… मर गई… महेश्शश… अआआ आआ..ह्ह…’ की एक तेज़ चीख निकल गई।
उसकी चीख ने मुझे थोड़ा डरा दिया और मैं रुक गया। मैंने झुक कर देखा तो मेरा आधा लंड पिंकी की चूत में समाया हुआ था और उसकी योनि से खून का फव्वारा सा फूट रहा था, शायद पिंकी के कौमार्य की झिल्ली के साथ उसकी योनि की नाजुक फांकें भी फट गई थी, और ऐसा होता भी क्यों ना… मेरे मुसल लिंग के सुपाड़े के समान तो उसकी सारी की सारी योनि थी।
मैं अब उसके चेहरे की तरफ देखने लगा, दर्द से वो दोहरी हो गई थी और उसकी आँखों से आँसू निकल आये थे। दर्द के कारण उसने मेरी कमर को इतनी मजबूती से जकड़ लिया था कि उसके नाखून मेरी कमर में चुभ रहे थे।
मैंने भी अब अपने लिंग को बाहर खींच लिया मगर योनि द्वार पर लगाये रखा, साथ ही पिंकी को सांत्वना देने के लिये उसके चेहरे को हाथ से सहलाते हुए उसके गालों को भी चूमने चाटने लगा जिससे पिंकी को कुछ राहत मिली और मेरी कमर पर उसकी पकड़ कुछ ढीली हो गई।
जब पिंकी का दर्द कम हो गया तो उसने अपने शरीर को भी कुछ ढीला छोड़ दिया… और जैसे ही उसने अपने शरीर को ढीला छोड़ा, मैंने एक बार फिर से जोरदार धक्का लगा दिया… जिससे पिंकी
‘अआआ… इईईई ईईईई… म्म्म्ममम्मीईईईई… मर गई… महेश्शश… अआआआ.. ह्ह…’ कह कर छटपटाने लगी और जिस हाथ मैं उसके उसके चेहरे को सहला रहा था उसे पिंकी ने इतनी जोर से काट लिया कि मेरे हाथ का मांस ही नोच डाला था और उसमें से खून बहने लगा।
मेरे हाथ में दर्द तो हो रहा था मगर वो दर्द उत्तेजना के जोश व कमसिन कुँवारी पिंकी के कौमार्य के आगे कुछ भी नहीं था।
मैं रुका नहीं और अपने लिंग को थोड़ा सा वापस निकालकर जल्दी से एक धक्का और लगा दिया इस बार मेरे लिंग का लगभग आधे ज्यादा भाग पिंकी की योनि में समा गया था, ‘आअह्ह्ह्ह… ममम्मम्मीईईई… ईईई… म्म्म..’ इतना बोलकर पिंकी ने अपना सिर बिस्तर पर गिरा दिया।
मेरा ध्यान बरबस ही उस पर चला गया, मैंने देखा कि पिंकी की आँखें सफ़ेद होकर बाहर उबल आई थीं, उसकी सांसें अटक गई थी और वो बेहोश होने लगी थी।
मैं थोड़ा डर गया, मैं रुक गया और उसके गालों पर अपने हाथ से थपकी देने लगा… थपकी देने से पिंकी ने अपनी आँखें धीरे से खोल ली और मेरी तरफ मासूमियत से देखते हुए ‘अओय… छोड़ दे बस्सस… महेश्शश… छोड़ दे मुझे… मुझसे नहीं होगा…’ कहकर बिलखने लगी।
मुझे उस पर दया आ गई, मैंने उसे पुचकारते हुए उसके होंठों को चूमा और कहा- बस मेरी जान, जो होना था वो हो चुका है, अब तुम्हें और तकलीफ नहीं होगी.
‘नहीं… प्लीज इसे बाहर निकाल ले… बहुत दर्द हो रहा है… फिर किसी दिन कर लेना…प्लीज महेश… ‘प…प्लीज महेश… मैं मर जाऊँगी…’ पिंकी ने टूटे हुए शब्दों में बिलखते हुए मुझे कहा।
पिंकी को देखकर मुझे उस पर तरस आ रहा था मगर यह दर्द पिंकी को कभी ना कभी तो सहन करना ही था। फर्क बस इतना था मैं समय से कुछ पहले कर रहा था।
एक बार तो मैंने भी सोचा कि उसकी बात मान लूँ और उसे छोड़ दूँ… फिर मेरे दिमाग में ख्याल आया कि अगर आज इसे छोड़ दिया तो फिर यह पट्ठी कभी भी मेरा लिंग लेने को तैयार नहीं होगी, इसलिए आज इसे लिंग का असली मज़ा देना ही होगा ताकि यह मेरी गुलाम बन जाए।
कुछ देर तक तो बीना कोई हरकत किये मैं ऐसे ही पड़ा रहा…
पिंकी के हाथ अब भी मेरी कमर पर कसे हुए थे और वो दर्द से कराह रही थी, उसके मुँह से घुटी घुटी और हल्की कराहें निकल रही थी।
फिर कुछ देर बाद जब पिंकी कुछ सामान्य सी हो गई तो, मैंने ऐसे ही पिंकी के बदन पर लेटे हुए अपने शरीर को धीरे धीरे आगे पीछे हिलाना शुरु कर दिया, जिससे मेरा लिंग ज्यादा तो नहीं बस थोड़ा सा ही उसकी योनि में अन्दर बाहर होने लगा.
वैसे तो मैं धक्के भी लगा सकता था मगर पिंकी की छोटी सी कुँवारी योनि पहली बार मेरे मूसल लिंग के धक्के शायद सहन नहीं कर पाती इसलिये मैं पहले उसकी योनि में अपने लिंग के जगह बनाना चाह रहा था।
इससे पहले मैंने सुमन की कुवांरी योनि को भी भोगा था मगर पिंकी की योनि सुमन के मुकाबले मे बहुत ज्याद तंग व संकरी थी, मुझे भी अपने लिंग के सुपारे में जलन व दर्द महसूस हो रहा था, शायद मेरे लिंग का सुपारा भी किसी जगह से छिल व कट गया था।
पिंकी की योनि इतनी तँग व सख्त थी कि मुझे ऐसा लग रहा था जैसे की मेरा लिंग बहुत ही तँग व सँकरी जगह में फँस गया हो उसे हिलाना भी मुश्किल हो रहा था।
मेरे आगे पीछे होने से पिंकी फिर से छटपटाने लगी और मुझे रोकने के लिये मेरी कमर को नाखूनों से नोचने लगी मगर फिर भी मैं रुका नहीं और वैसे ही धीरे धीरे अपने शरीर को आगे पीछे करते हुए उसकी छोटी सी कुंवारी योनि में अपने लिंग के लिये जगह बनाने में जुटा रहा, साथ ही उसे तसल्ली देने के लिये मैंने अब उसके होंठों को मुँह में भर लिया और बड़े प्यार से उन्हें धीरे धीरे चूसने लगा।
मेरे आगे पीछे होने से मेरा लिंग तो पिंकी की योनि के अन्दर बाहर हो ही रहा था, साथ ही मेरा शरीर भी पिंकी के नँगे बदन को मसल रहा था। पहले तो कुछ देर तक पिंकी ऐसे ही छटपटाती रही मगर फिर धीरे धीरे वो शाँत होने लगी।
मैंने भी अब शरीर को थोड़ा जोर से आगे पीछे हिलाकर अपने लिंग को योनि में ज्यादा अन्दर बाहर करना शुरु कर दिया, साथ ही पिंकी को फिर से कामोत्तेजित करने के लिए उसके संवेदनशील अंगों को भी चूमना चाटना तथा मसलना शुरु कर दिया।
मेरे आगे पीछे होने पर मेरी छाती से पिंकी के नन्हे उभार तो चटनी की तरह पिस रहे ही रहे थे, मैंने अब अपने होंठों व जीभ से उसके गालों को तो, कभी उसके कानो की लौ को भी सहलाना शुरु कर दिया।
धीरे धीरे अब पिंकी की साँसें भारी होने लगी थी और उसके बदन में भी मुझे कुछ गर्मी सी महसूस हो रही थी, शायद वो भी अब उत्तेजित होने लगी थी क्योंकि मेरी कमर पर भी उसकी पकड़ कुछ हल्की हो गई थी।
मैं भी अब वापस उसके होंठों पर आ गया फिर से उन्हें धीरे धीरे चूसने लगा।
पिंकी को भी शायद अब मजा आने लगा था इसलिये उसने अपनी आँखें बन्द करके बदन को ढीला छोड़ दिया, और उसके नितम्ब अब हल्की हल्की जुम्बिश सी करने लगे थे साथ ही वो अब हल्के हल्के मेरे होंठों को भी दबा रही थी।
जितना मेरा लिंग पिंकी की योनि में गया था, उतनी जगह तो उसने शायद योनि में बना ही ली थी, इसलिये मैं अब पिंकी के बदन पर से उठकर अपने हाथों के भार पर आ गया और धीरे धीरे अपनी कमर से धक्के लगाने शुरू कर दिये।
पिंकी को अब फिर से शायद कुछ पीड़ा हुई होगी इसलिये एक बार फिर से वो थोड़ा सा कसमसाने लगी, उसने अपने होंठों को मुझसे छुड़वा लिया और कराहते व कँपकपाती सी आवाज में कहने लगी- अआआ… ह्ह्हहह.. अ..अ…ओय… दर्द हो रहा है… धीरे…कर…ना… अआआ… ह्ह्हहह.. अब बस्सस कर… अआआ… ह्ह्हहह..
मगर मैं बिना रुके ऐसे ही उसके बदन को रगड़ते मसलते और चूमते चाटते हुए धीरे धीरे कमर से धक्के लगाता रहा… जिससे कुछ देर बाद ही पिंकी फिर से शाँत हो गई, साथ ही वो फिर से मेरा साथ देने लगी, उसके हाथ अब मेरी कमर पर से फिसल कर मेरे गले में आ गये और उसकी कराहों की जगह अब सिसकारियों ने ले ली।
मैंने भी अब धीरे धीरे अपने धक्कों की रफ्तार बढ़ा दी।
पिंकी अब पूरी तरह से उत्तेजित थी और उसे भी मजा आ रहा था इसलिये उसने अपने पैरों को मेरे पैरों में फँसा लिया और अपनी बाँहें को मेरे गले डाल कर उसने भी नीचे से धीरे धीरे अपनी कमर को हिलाना शुरु कर दिया।
पिंकी का साथ पाते ही मुझमें जोश सा आ गया और मैंने अपनी पूरी ताकत से धक्के लगाने शुरु कर दिये… मेरा लिंग अब पिंकी की योनि में अन्दर तक घर करने लगा और मेरे प्रत्येक धक्के के साथ पिंकी जोर से ‘अआआ… ह्ह्हह इईई… श्श्श्शश… अआआ… ह्ह्हहह अ.ओय.. इईईई… श्श्श्शशश… अआआ… ह्ह्हहहह इईईई… श्श्श्शशश… अआआ.. ह्ह्हह…’ की आवाज करने लगी।
पूरा कमरा पिंकी की सिसकारियों व कराहों से गूंज रहा था।
पिंकी अब मेरा पूरा साथ दे रही थी, मेरे साथ साथ उसकी कमर भी अब तेजी से चलने लगी थी। पिंकी ने अब खुद ही ऊपर हो कर मेरे होंठों को अपने मुँह में ले लिया था और उन्हें जोर से चूसने चाटने लगी, कुछ देर तक ऐसे ही हमारी धक्कमपेल चलती रही जिससे हम दोनों की ही साँसें फूल गई और बदन पसीने से भीगने लगे.
फिर अचानक से पिंकी ने अपने हाथों व पैरों से मेरे शरीर को जकड़ लिया और ‘इईईई…श्श्श्शशश… अआआ… ह्ह्हहह इईईई… श्श्श्शशश… अआआ… ह्ह्हहह इईईई… श्श्श्शशश… अआआ… ह्ह्हहह… अआआ… ह्हहह… अआआ.. ह्हहहह…’ कह कर अपनी योनि के प्रेमरस से मेरे लिंग को नहलाने लगी, मेरे शरीर से पिंकी किसी बेल की तरह लिपट गई थी और मेरे होंठों को तो उसने इतनी जोरो से चूस लिया कि उसके दाँत मेरे होंठों में चुभ गये।
पिंकी के इस उग्र चरमोत्कर्ष से मुझे कुछ दर्द तो हुआ मगर उस समय मैं भी चरम सुख के करीब ही था, और फिर एक दो धक्कों के बाद ही मैंने पिंकी के छुईमुई से नाजुक बदन को अपनी बाँहों में समेट लिया और उसकी छोटी सी योनि को अपने गर्म वीर्य से सींचने लगा.
पिंकी की छोटी सी योनि को अपने वीर्य से ऊपर तक का भर कर मैं भी उसके बदन पर निढाल होकर गिर गया।
कुछ देर तक हम दोनों ऐसे ही एक दूसरे में समाये पड़े रहे… जैसे हम दोनों ही मीलों का सफर करके आ रहे हों!
फिर पिंकी के बदन में कुछ हलचल सी हुई, वो कसमसाने लगी थी इसलिये मैं पिंकी के बदन पर से उठकर उसकी बगल लेट गया जिससे मुझे अपनी पीठ पर जोर की जलन सी होने लगी।
पिंकी ने मेरी पीठ को नाखूनों से नोच रखा था जिसमें अब पसीना लगने से मुझे जलन हो रही थी.
उत्तेजना का नशा उतर गया था इसलिये मुझे अब अपने हाथ में भी दर्द महसूस होने लगा था पिंकी ने गुस्से गुस्से में मेरे हाथ को दाँतों से काट लिया था जिसमें से खून बह कर उस पर जम गया था और मेरे होंठ भी भारी भारी से लग रहे थे, उनको भी पिंकी ने उत्तेजना वश काट लिया था, उनमें से भी खून आ रहा था और दर्द हो रहा था.
कुछ देर तो मैं पिंकी की बगल में लेटा रहा और फिर जब दर्द बर्दाश्त नहीं हुआ तो मैं उठकर बैठ गया, तभी मेरा ध्यान पिंकी की जाँघों की तरफ चला गया जो खून से लथपथ थी, जाँघों के नीचे चादर पर भी काफी खून गिरा हुआ था और पिंकी की योनि का तो बुरा हाल हो गया था, कुछ देर पहले तक जिस प्यारी सी योनि की दोनों फांकें बिल्कुल चिपकी हुई थी और उसके योनिद्वार में तो उँगली तक घुसाने की जगह नहीं थी मगर अब उसके योनिद्वार का छेद अलग ही नजर आ रहा था जिसमें से हल्का सा खून मिला वीर्य अभी तक रिस रहा था।
पिंकी की हालत देखकर मेरा दर्द अपने आप ही कम हो गया, मैं उसके चेहरे की तरफ देखने लगा, पिंकी ने अब भी आँखें बन्द की हुई थी और लम्बी लम्बी साँसें ले रही थी.
पिंकी के मासूम से चेहरे को देखकर मुझे उस पर प्यार आ रहा था और एक बार फिर से मैंने उसके गाल को चूम लिया… मगर तभी पिंकी ने मेरे गाल पर एक जोरदार तमाचा लगा दिया, पिंकी भी अब उठकर बैठ गई और उसने जब खून से लथपथ अपनी जाँघों व चादर को देखा तो बुरी तरह घबरा गई, मगर वो इस बात से नहीं घबरा रही थी कि ये खून कैसे आया, वो तो इस बात से घबरा रही थी कि कहीं ये सब मेरी भाभी ना देख ले।
मैंने पहले तो पिंकी की जाँघो व योनि को साफ करके उसे कपड़े पहना दिये और फिर उसे समझा कर घर भेज दिया कि मैं सब कुछ सम्भाल लूंगा।
इसके बाद पिंकी ने तीन चार दिन तक मुझसे ठीक से बात नहीं की मगर हफ्ता भर गुजरते गुजरते मैंने उसे फिर से मना लिया और दस बारह दिन के बाद ही हमारे फिर से साथ सम्बन्ध बन गये।
पहले दो तीन बार तो पिंकी ने सम्बन्ध बनाने के लिये मना किया मगर फिर वो भी इस जवानी के खेल का मजा लेने लगी।
हम दोनों का ही ध्यान अब पढ़ाई में कम और इस जवानी के खेल का आनन्द लूटने में ज्यादा रहने लगा जिसके कारण पिंकी तो फिर भी परीक्षा में पास हो गई मगर मैं बारहवी की परीक्षा में फेल हो गया।
फेल होने पर मुझे भैया से काफी मार भी खानी पड़ी मगर फिर भी मैं सुधरा नहीं और पिंकी के साथ मेरे सम्बन्ध बरकरार बने जब तक हम उसकी भाभी के हाथों पकड़े नहीं गये.
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