जिस्म की जरूरत-15
(Jism ki Jarurat Chut Chudai Sex-15)
This story is part of a series:
-
keyboard_arrow_left जिस्म की जरूरत-14
-
keyboard_arrow_right जिस्म की जरूरत-16
-
View all stories in series
मैं मुस्कुराने लगा और धीरे से सड़क के किनारे एक बड़े से पेड़ के नीचे कार रोक दी।
कार रुकते ही वंदन ने मेरी तरफ देखा और फिर बड़े ही प्यार से अपनी आँखें नीचे कर लीं…
उसकी इस अदा ने मुझे घायल ही कर दिया.. मैं अब भी उसे देखे जा रहा था…
कहाँ तो थोड़ी देर पहले तक मैं वंदना को इतना सीरियसली नहीं ले रहा था लेकिन कुछ घंटे साथ में बिताने के बाद ही मैं उसकी तरफ आकर्षित होता जा रहा था…
बाहर तेज़ बारिश की बूंदों की आवाज़ और अन्दर एक गहरी ख़ामोशी…
‘खूबसूरत लड़कियों को देख कर बड़े ही रोमांटिक गज़लें निकल रही थीं जनाब के गले से…’ उस ख़ामोशी को तोड़ती हुई वंदना की आवाज़ मेरे कानों में पहुँची।
जब मैंने ध्यान से देखा तो अपना सर नीचे किये हुए ही बस अपनी कातिलाना निगाहों को तिरछी करके उसने मुझे ताना मारा।
उफ्फ्फ यह अदा… ऐसे अदा तब दिखाई देती है जब आपकी प्रेमिका आपसे इस बात पर नाराज़ हो कि आपने उसके अलावा किसी और की तरफ देखा ही क्यूँ…!! वैसे इस नाराज़गी में ढेर सारा प्यार छुपा होता है…
‘अच्छा, वहाँ खूबसूरत लड़कियाँ भी थीं… मुझे तो बस एक ही नज़र आ रही थी… और मैंने तो वो ग़ज़ल भी बस उसी के लिए गाया था.’ मैंने भी उसे प्यार से देखते हुए कहा और मुस्कुरा दिया।
‘झूठे… जाइए, कोई बात नहीं करनी मुझे आपसे…’ वंदना ने बनावटी गुस्सा दिखाते हुए कहा और अपना मुँह बना लिया बिल्कुल रूठे हुए बच्चों की तरह।
तभी जोर से बिजली कड़की… बस होना क्या था, चीखती हुई वो हमसे लिपट गई…
‘हा हा हा हा… डरपोक !!’ मैंने हंसते हुए धीरे से उसे अपनी बाहों में कसते हुए कहा।
‘फिर से डरपोक कहा मुझे… अब तो पक्का बात नहीं करुँगी…’ मेरे सीने से अलग होते हुए वंदना अपनी सीट पर जाने लगी।
और तभी मैंने उसे जोर से अपनी तरफ खींचा, अपने सीने से लगा कर इतनी जोर से जकड़ लिया मानो उसे अपने अन्दर समा लेना चाहता हूँ।
यूँ अचानक खींचे जाने से वंदना थोड़ी सी हैरान तो जरूर हुई लेकिन मेरी बाहों के मजबूत पकड़ में वो अपने सम्पूर्ण समर्पण के साथ किसी लता के समान मुझसे लिपट गई और हम दोनों के बीच सिर्फ खामोशियाँ ही रह गईं।
एक तरफ तेज़ बारिश की आवाज़ थी जिसके शोर में कुछ सुनाई नहीं दे रहा था लेकिन कार के अन्दर इतनी ख़ामोशी थी कि हम दोनों की उखड़ती साँसों की आवाज़ हम साफ़ साफ़ सुन पा रहे थे… बारिश की वजह से हवा में फैली नमी के साथ मिलकर वंदना के बदन से उठ रही एक भीनी सी खुशबू सीधे मेरे अन्दर समां रही थी और मदहोश किये जा रही थी।
लगभग 10 मिनट तक हम वैसे ही एक दूसरे की बाँहों में खोये रहे… न उसने कुछ कहा न ही मैंने!
फिर धीरे से मैंने अपनी पकड़ थोड़ी ढीली की लेकिन अब भी वो मेरी बाहों में ही थी, मैंने उसके चेहरे की तरफ देखा… घना अँधेरा था, बाहर भी और कार के अन्दर भी… कुछ साफ़ तो नहीं दिख रहा था लेकिन रुक रुक कर चमकती बिजलियों की रोशनी में उसके थरथराते होंठ और बंद आँखें उस पल को इतना रोमांटिक बना रही थीं कि दिल से यह दुआ आ रही थी कि ये पल यहीं रुक जाएँ!
कुछ पल मैं यूँ ही उसे निहारता रहा… फिर अपने एक हाथ से उसके चेहरे को ऊपर उठाया… उसने अपनी आँखें नहीं खोली।
मैंने धीरे से उसकी दोनों बंद आँखों के ऊपर से ही चूमा और फिर एक बार उसके माथे को चूम लिया।
अगर सच बताऊँ तो ऐसा मेरे साथ पहली बार नहीं हुआ था जब मैं किसी लड़की के साथ ऐसी सिचुएशन में था… लेकिन आज से पहले जब भी ऐसा हुआ था तब मेरे होंठ सबसे पहले सामने वाली लड़की या औरत के होठों से ही मिलते थे और एक जोरदार चुम्बन की प्रक्रिया शुरू करता था मैं… लेकिन आज पता नहीं क्यूँ मैं ऐसी हरकतें कर रहा था मानो मैं प्रेम से अभिभूत होकर अपनी प्रेमिका को स्नेह और दुलार से चूम रहा हूँ।
उसकी आँखों और माथे पर चूमते ही वंदना ने मुझे और जोर से पकड़ लिया और गहरी साँसें लेना शुरू कर दिया… मुझे लगा कि अब वो अपनी आँखें खोलेगी… लेकिन ऐसा नहीं हुआ… मैं अचंभित सा उसे देख रहा था और तभी एक कड़कती बिजली की रोशनी में मुझे उसके दोनों आँखों के किनारे से मोतियों की तरह आँसुओं की बूँदें दिखाई दीं।
मैं समझ गया था कि ये आँसू क्यूँ निकल रहे थे… यह अलग बात है कि मैं वासना और शारीरिक प्रेम का अनुयायी रहा और आज भी हूँ लेकिन उतना ही ज्यादा भावुक भी हूँ और किसी की भावनाओं को समझने की शक्ति भी रखता हूँ…
मैंने वंदना के चेहरे के करीब जाकर उसके कान में धीरे से पूछा- ए पगली… रो क्यूँ रही हो… मेरा छूना बुरा लगा क्या… अपनी बाहों से आजाद कर दूँ क्या?
इतना सुनते ही उसने आँखें खोलीं और मेरी आँखों में झाँका… इस बार तो आँसुओं की झड़ी ही लग गई…
‘समीर… आप मुझसे दूर तो नहीं चले जाओगे ना… क्या हम ऐसे ही रहेंगे जीवन भर… क्या आप ऐसे ही प्यार करते रहेंगे मुझे…’ एक साथ न जाने कितने सवालों से वंदना ने मुझे झकझोर सा दिया और यूँ ही आँखों से बहती अविरल अश्रु धारा लिए मुझे एकटक देखती रही…
‘जीवन बस एक पल है वंदना… न इसके पीछे कुछ था और न ही इसके आगे कुछ होगा… जो है वो बस यही एक पल है… और इस पल में मैं तुम्हारे साथ हूँ… तुम मेरी बाहों में हो… बस इस पल में जियो और सबकुछ भूल जाओ… कल किसने देखा है…’ मैंने भी अपनी भावनाओं पर काबू करते हुए उसकी आँखों में देखकर कहा।
मेरी बातें सुनकर उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान उभर गई और फिर धीरे धीरे हमारे होंठ एक दूसरे के इतने करीब हो गए कि पता ही नहीं चला कब हमारे होठों ने एक दूसरे को अपने अन्दर समां लिया… हम सब कुछ भूल कर एक दूसरे से चिपक गए और यूँ एक दूसरे के होठों का रसपान करने लगे मानो कभी अलग नहीं होंगे… हमारी साँसें एक दूसरे की साँसों से टकराती और फिर एक दूसरे से मिल जातीं…
यूँ ही वंदना के होंठों को चूसते हुए मैं धीरे-धीरे वंदना के ऊपर ढलता गया और अपनी सीट से हटकर उसकी सीट के साइड में लगे लीवर को खींच कर उसकी सीट को पीछे की तरफ बिल्कुल लिटा सा दिया…
अब वंदना अपनी सीट पर बिल्कुल लेटी हुई थी और मैं उसके ऊपर अधलेटा हुआ था… हमारे होंठ अब भी एक दूसरे के साथ चिपके हुए थे, उसकी बाँहों ने मुझे जोर से जकड़ा हुआ था… और मेरे हाथ अब उसके बदन पर धीरे-धीरे फिसलने लगे… यूँ ही एक दूसरे के साथ चिपके हुए ही मेरे हाथों में उसका दुपट्टा आ गया और मैंने धीरे से उसे खींच कर अलग कर दिया…
लेकिन दुपट्टा खींचना इतना आसान नहीं था… मैं वंदना के ऊपर यूँ औंधा पड़ा हुआ था कि मेरे सीने और उसके उन्नत उभारों के बीच दुपट्टा बुरी तरह से फंस गया था और जब मैंने उसे खींचा तो सहसा ही वन्दना का ध्यान उस तरफ चला गया और उसने मेरे होठों को चूसना छोड़ दिया और अचानक से हमारी निगाहें एक दूसरे से टकरा गईं…
वंदना का दुपट्टा हटते ही उसकी दो खूबसूरत 32 साइज़ की चूचियाँ तेज़ चल रही साँसों की वजह से उभर कर मेरे सीने से कभी सट रही थीं और कभी हट रही थीं…
बड़ा ही कामुक सा दृश्य था वो..
मेरी नज़र सहसा ही उसकी उठती बैठती चूचियों पर टिक गईं। वंदना ने मुझे उसकी चूचियों को निहारते देख लिया और जब मैंने उसकी तरफ देखा तो उसने शर्मा कर मेरे सीने में अपना मुँह छुपा लिया..
यूँ लग रहा था मानो वो मेरी नई नवेली दुल्हन हो और सुहागरात को मैंने उसे पहली बार उसके कामुक बदन को निहारना शुरू किया हो…
मैंने उसे धीरे से खुद से थोड़ा सा अलग किया और झुक कर उसके होठों को एक बार फिर से अपने होठों में भर लिया… उसने भी उतने ही प्यार से मेरे होठों को फिर से चूसना शुरू कर दिया… और इसी बीच मैंने अपने दाहिने हाथ की उँगलियों से उसकी गर्दन और सीने के ऊपर चलाना शुरू किया…
मेरी छुअन ने आग में घी का काम किया और जैसे ही मेरी उँगलियों ने वंदना की चूचियों की घाटी में प्रवेश किया उसने मेरे होठों को जोर से चूसना शुरू किया… मेरी उँगलियाँ अब उसके कुरते के ऊपर से ही उसकी चूचियों की गोलाइयों का जायजा लेने लगीं और मैंने धीरे से अपनी पूरी हथेली को उसकी बाईं चूची पे रख दिया…
वंदना की धड़कनें इतनी बढ़ गईं कि मुझे बारिश के शोर में भी साफ़ साफ़ सुनाई देने लगीं…
मैंने अब अपनी हथेलियों को धीरे-धीरे उसकी चूचियों पे चलाना शुरू किया.. उसकी चूचियाँ इतनी कड़ी थीं मानो मैंने बड़े साइज़ का कोई अमरुद थामा हो.. 32 का साइज़ मेरी हथेलियों में पूरी तरह से फिट बैठ गया था और मैं मज़े से धीरे-धीरे अपना दबाव बढ़ाता गया।
मेरे हर दबाव के साथ हम दोनों का मज़ा दोगुना होता जा रहा था…
अब मैंने अपने बाएँ हाथों को वंदना के सर के नीचे से आज़ाद किया और उसकी दाईं चूची को भी थाम लिया… अब स्थिति यह थी कि मैं वंदना के होठों को खोलकर अपनी जीभ को उसके मुँह में डालकर उसके जीभ से खेल रहा था और अपने दोनों हाथों से उसकी खूबसूरत चूचियों को मसल रहा था…
वंदना के हाथ मेरी पीठ पे थे और वो मेरे शर्ट को अपनी हथेलियों में पकड़ कर खींच रही थी…
धीरे-धीरे मेरे दायें हाथ ने उसकी चूची को छोड़ दिया और नीचे की तरफ उसके पेट को सहलाने लगा… पेट को थोड़ी देर सहलाने के बाद मेरा हाथ नीचे की तरफ बढ़ चला और मैं उसके जाँघों से लेकर नीचे जहाँ तक हो सके उसकी टांगों को सहलाना शुरू किया।
टांगों से होते हुए जब मेरे हाथ नीचे से ऊपर की तरफ आने लगे तब सहसा ही मेरी उँगलियाँ उसके कुरते के नीचे घुस गईं और और अब मेरी उँगलियों ने उसके चिकने मखमली त्वचा को छुआ…
उफ्फ… कितनी रेशमी थी उसकी त्वचा… मेरी उँगलियाँ खुद बा खुद कुरते के अन्दर फिसलती चली गईं और अब मेरी पूरी हथेली उसके कुरते के अन्दर थी… मैंने बड़े ही प्रेम से उसके मखमली पेट और उसकी नाभि को सहलाया… और धीरे-धीरे उसके कुरते को ऊपर की तरफ खिसकाना शुरू किया… खिसकते खिसकते उसका कुरता इतना ऊपर उठ गया कि अप मेरी उँगलियों से उसकी सिल्की ब्रा टकरा गई…
उसकी ब्रा के सिल्की एहसास ने मेरा जोश और दोगुना कर दिया और अब मैंने कोशिश करनी शुरू कर दी ताकि मेरी पूरी हथेलियों में उसकी चूचियाँ ब्रा सहित आ सके… लेकिन वंदन ने इतना कसा हुआ कुरता पहना हुआ था कि यह मुश्किल ही नहीं नामुमकिन सा लगने लगा…
अपनी असफलता से दुखी होकर मैंने वंदना की आँखों में देखा और उसने मेरी मुश्किल को भांप लिया… अब हम दोनों ने एक दूसरे के होठों को आजाद कर दिया था और मैं इस उधेड़बुन में था कि वो खुद अपने कुरते को निकलेगी या फिर मुझे कोई इशारा देगी…
लेकिन वो बस शरारत भरे अंदाज़ में मुस्कुराती रही…
ये शायद उसका मौन निमंत्रण था जिसमें उसकी रजामंदी भी छिपी थी।
कहानी जारी रहेगी।
What did you think of this story??
Comments