बाप की हवस और बेटे का प्यार-3
(Baap Ki hawas Aur Bete Ka Pyar Part-3)
इस सेक्स स्टोरी के पिछले भाग
बाप की हवस और बेटे का प्यार-2
में अब तक आपने पढ़ा कि मनोज मुझे अन्दर ही अन्दर बहुत चाहता था और वो मुझे चोदना चाहता था. ये मैं जान चुकी थी.
अब आगे..
एक दिन जब वो घर पर ही था तो मैं उसे बोल कर गई कि मैं नहाने जा रही हूँ.. उसके बाद तुम नहा लेना और तब तक मैं नाश्ता बना दूँगी.
जब मैं नहाने गई तो मुझे लगा कि आज का दिन ही ठीक होगा मनोज को अपनी चुत का आशिक बनाने के लिए. यही सोच कर मैं जब नहा कर निकली तो तौलिया ढीला सा बँधा हुआ था, जो जोर से साँस लेने पर ही गिर सकता था. मैंने सीधा अपने कमरे में चली गई मगर जनबूझ कर अपना तौलिया इस तरह से गिरा दिया, जिससे उसकी पूरी नज़र मुझ पर पड़ जाए और वो मुझे अच्छी तरह से देख सके.
जैसे ही मेरा तौलिया नीचे गिरा, मैंने अपना पूरा चेहरा उसकी तरफ कर दिया और इस तरह से दिखाया कि जैसे वो मुझको नहीं देख रहा. मगर मैं शीशे में देख रही थी कि उसकी नज़र मेरे मम्मों और चुत पर पड़ गई है.
यह सब देख कर उसकी पैन्ट का अगले हिस्से में तंबू बनना शुरू हो गया.
मैं पूरी अनजान बन कर नंगी ही खड़ी रही और अपने बाल सवांरती रही.
उसके बाद मैंने कपड़े पहनने शुरू किए और बाहर आकर उससे कहा- अरे तुम अभी नहाने नहीं गए, मैं तो सोच रही थी कि तुम अब तक नहा चुके होगे. अब जल्दी से करो, ताकि मैं नाश्ता बना लूँ.
मगर वो उठ नहीं रहा था क्योंकि उसका लंड पूरी तरह से मेरी चूत को देखने के बाद बैठना नहीं चाहता था. उसे अब चुत ही ढीला होने के लिए चाहिए थी.
मैंने उससे कहा- अब जल्दी भी करो.
यह कह कर मैंने अपना मुँह दूसरी तरफ कर लिया ताकि वो यह ना समझे कि मैं उसके लंड को देख रही हूँ.
जैसे ही मैंने अपना मुँह मोड़ा, वो जल्दी से बाथरूम की तरफ भागा. जब वो बाथरूम में चला गया तो मैंने की-होल से देखा कि वो अपने लंड की मालिश करके उसका रस निकालना चाह रहा था.
यह सब देख आकर मैं रसोई में आ गई क्योंकि मुझे अब पता था कि अन्दर क्या हो रहा है. मनोज मेरी चूत को ख़यालों में रख कर अपने लंड को हिला रहा होगा.
नहाने के बाद हम दोनों ने नाश्ता किया. मैंने उससे पूछा कि आज का क्या प्रोग्राम है?
क्योंकि उस दिन रविवार था.
वो बोला- कुछ नहीं.. तुम बताओ?
मैंने कहा- मुझे मॉल में जाकर घर का कुछ सामान लाना है. तुम मेरे साथ चलोगे क्या?
वो बोला- अगर आपका हुक्म होगा तो चलूँगा.
मैंने कहा- नहीं, मेरा कोई हुक्म नहीं है.
“ओके मुझे साथ चलना होगा वरना आपको सामान उठाने में दिक्कत होगी.”
मैंने कहा- आज बहुत मेहरबान हो रहे हो. चलो फिर!
मनोज ने अपनी बाइक निकाली और बोला- बैठो.
मैं जैसे लड़के बाइक पर बैठते हैं.. दोनों तरफ अपनी एक एक टाँग डाल कर, वैसे बैठ गई.
अब वो जैसे ही बाइक को ब्रेक लगाता था, मैं उसके साथ लग जाती थी. मैंने कहा- ज़रा आराम से चलाओ.
उस पर वो बोला- तुम अपने हाथ मेरी कमर में फँसा लो.
मैं तो चाहती ही थी कि यह बोले. मैंने इस तरह से उसे पकड़ लिया कि मेरे मम्मे उसके शरीर से बार बार लगते थे. कुछ बाइक की वजह से, कुछ मैं अपने आप ही इस तरह से उससे चिपकती थी कि उसे मेरे मम्मों का पूरा पता लगे कि वो कैसे हैं.
मैंने उसे जितना गर्म कर सकती थी, करती रही. मैंने आज बहुत लो कट टॉप और जींस पहन रखी थी, जिससे उसे मेरे मम्मे कुछ ज़्यादा ही नज़र आ रहे थे. फिर उनका अहसास वो बाइक पर कर चुका था.
अब मैं जान चुकी थी कि इसको अगर एक भी इशारा मिल गया तो यह अपना लंड मेरी चुत में डाले बिना नहीं रह पाएगा. मगर मेरे दिल में अभी भी यह ख्याल था कि मैं इसके बाप से चुदी हुई हूँ. दुनिया की नज़र में मैं इसकी माँ लगती हूँ. अगर यह वासना में लिप्त हो कर मुझे चोद भी दे.. तो क्या यह मेरे साथ जिंदगी भर रह पाएगा.
यह ख़याल आते ही मैं सहम जाती थी और फिर उससे अपनी दूरी बना कर रखना चाहती थी. अब मैंने सोच लिया कि मैं ऐसा कुछ नहीं करूँगी, जिससे यह समझे कि मेरी चूत में इसके लंड को लेने की आग लगी हुई है.
घर आ कर मैं अपने कमरे में जाकर लेट गई और कुछ नहीं बोली. थोड़ी देर बाद मनोज आया और बोला- क्या बात है? लगता है आज कुछ उदास हो?
मैंने कहा- तुम सही कह रहे हो.
उसने पूछा- क्या बात है.. मुझे बताओ, शायद मैं उसका कोई समाधान निकाल सकूँ.
मैंने कहा- नहीं, तुम कुछ नहीं कर सकते. मैं अब वापिस जाना चाहती हूँ. अब मेरे लिए यहाँ कोई काम नहीं है और तुम भी पूरी तरह से ठीक हो. अब यहाँ रहना ठीक नहीं लगता.
मेरी बात सुन कर वो बहुत हैरान हुआ और बोला- क्यों ऐसे क्या बात हुई है.. जो एकदम से ऐसा सोच रही हो?
मैंने उससे कहा- देखो हमें सच्चाई के धरातल पर रहना चाहिए. ना तुम मुझे अपनी माँ मान सकते हो और ना ही मैं तुम्हें अपना बेटा मान सकती हूँ. तुम्हें भी पता है कि कुछ समय पहले हम दोनों एक दूसरे को किन नज़रों से देखा करते थे. मगर मेरी तकदीर मुझे कहाँ पर ले आई है.. यह मैं ही समझ सकती हूँ.. शायद और कोई नहीं समझ पाएगा. हम एक ही छत के नीचे किस रिश्ते से रह रहे हैं. ये ना मैं आज तक जान पाई हूँ और ना शायद तुम ही समझ सके हो. तुम भी जवान हो और मैं भी. हमारे कदम कभी भी डगमगा सकते हैं. जिसका नतीजा शायद पता नहीं क्या होगा. इसलिए तुम मुझे जाने से ना रोको.
मेरी बात सुन कर वो बोला- क्या तुम चाहती हो कि मैं फिर से दुबारा उसी तरह से बीमार हो जाऊं?
मैंने कहा- यह तो मैं मरते दम तक नहीं सोच सकती.
“सुनो सुधा तुम्हारी शादी मेरे बाप से एक समझौता था. उसने तुम्हें तुम्हारे चाचा से पैसे से खरीदा था. अगर तुम्हारे चाचा ने मेरे बाप से कर्ज़ा ना लिया होता तो क्या यह शादी हो सकती थी. शायद फिर मेरे साथ होती.. क्योंकि मैं खुद ही तुम्हारा हाथ माँगने वाला था. मैं तुम्हें अभी भी उन्हीं नज़रों से देखता हूँ. मुझे नहीं पता कि तुम्हारे दिल में क्या है. अगर खुल कर कहूँ तो मेरे बाप ने अपनी वासना को बुझाने के लिए अपने पैसे के बलबूते पर तुमसे शादी की थी. शादी दो दिलों का मिलन होता है. तुम सच सच बताओ क्या तुमने मेरे बाप को कभी अपने पति के रूप में देखा था.. या एक वो इंसान तो लड़की को नंगी करके अपनी हवस मिटाता था?”
अब मैं कुछ भी कहने लायक नहीं बची थी. मगर उसने पूछा- बताओ… एक बार मुझे बता दो कि तुमने अपने दिल से मेरे बाप को पति रूप में स्वीकार किया था.. बोलो चुप क्यों हो?
उसकी इन बातों को सुन कर मेरा रोना निकल आया.
मैं उससे बोली- मैंने तो शादी से पहले एक बार सोचा था कि क्यों ना रस्सी लगा कर खुद को फाँसी लगा लूँ. मगर नहीं कर पाई. तुम्हारा बाप तो शादी के लायक भी नहीं था. वो मेरे साथ कुछ भी नहीं कर पाया. पहले दिन फिर उसने किसी हकीम से दवा ले कर मेरा कुँवारापन मुझसे छीना. वो बिना दवा खाए कुछ भी नहीं कर पाता था. पहले कुछ दिनों तक तो दवा ख़ाता रहा, मगर उसके बाद तो उसने दवा खानी भी छोड़ दी और मुझ पर बहुत जुल्म करता था. वो सब मुझसे ना सुनो.. क्योंकि यह बात कहने और सुनने की नहीं है.
मनोज ने कहा- नहीं आज खुल कर बताओ और अपना दिल हल्का कर लो. फिर शायद तुम्हें जिंदगी भर यह मौका कभी ना मिले.
मैंने कहा- तुम्हारा बाप मुझे पूरी रात नंगी करके रखता था और बोलता था कि पैसे दिए हैं तुम्हें नंगी करने के.. अगर मैं कभी ना नुकर करती थी तो बोलता था कि नंगी हो जा.. वरना सुबह भी नंगी करके रखूँगा. मैं डर के मारे पूरी रात नंगी ही रहती थी. कभी वो अपना चूसने को बोलता था और कभी मेरी चूसता था. मगर मेरे साथ और कुछ भी करने से असमर्थ था.. मुझे पूरी रात नंगी रहने की वजह से और मेरी टांगों के बीच मुँह मारता रहता था, जिससे मैं पूरी गर्म हो जाती थी. मगर कर कुछ न कर सकती थी. अब बताओ ऐसे आदमी को कौन लड़की अपना पति मानेगी?
मनोज ने मुझे अपने गले से लगाते हुए कहा- मैं समझ सकता हूँ तुम्हारे साथ बहुत बड़ा जुल्म हुआ है. मेरे बाप ने अपने पैसों के बलबूते तुम्हारा मान-हरण किया था. सुधा तुम मेरी नज़रों में आज भी वो ही सुधा हो, जिसे कभी मैंने गोद में उठा कर एक पेड़ के नीचे लिटाया था. मैं तुम्हारी माँग में सिंदूर भर कर तुम्हें आज से ही अपनी पत्नी मानता हूँ.
यह कह कर उस ने मेरी माँग में सिंदूर भर दिया. फिर बोला- आज के बाद मुझे कभी याद ना दिलाना कि मेरे बाप ने तुम्हारे किसी भी अंग को हाथ लगाया था. वो सब एक भयानक सपना समझते हुए भूल जाओ.
मेरी आँखों से बस पानी ही बह रहा था और वो बोल रहा था- अब इन आँसुओं को बचा कर रखो.. शायद कभी ज़रूरत पड़े.
मैंने उसके मुँह पर हाथ रख कर कहा- ऐसा कभी ना बोलना.. वरना मैं फिर से टूट जाऊंगी.
वो मुझे अभी भी अपने आगोश में लिए हुए था और मुझे पूरी तरह से कस कर गले लगा रहा था.
मैंने कहा- अब बस भी करो.
वो- बस नहीं.. अभी तो शुरू हुआ हूँ.
यह कहते हुए उसने मुझे चूमना चाटना शुरू कर दिया.
मैं बोल रही थी कि इतने दिनों तक सब्र किए हुए थे ना.. कुछ और नहीं कर सकते. जब तक तुम पूरी तरह से मेरे साथ शादी ना कर लो, तब तक तो रूको ना.
मेरी बात का उस पर कोई असर नहीं हो रहा था. वो बोला कि उसने अदालत में एक फॉर्म भर कर दिया हुआ है, जिसमें हमारी शादी के बारे में लिखा हुआ है.
यह सुन कर मैं बहुत ही खुश हो गई कि इसने तो पहले से ही पूरा इंतज़ाम करके रखा हुआ है.
अब वो कहाँ रुकने वाला था. पूरी तरह से मेरे होंठों और गालों को चूम कर वो मेरे मम्मों तक पहुँचा और बिना कपड़े उतारे ही मम्मों को दबाने में लग गया.
मैंने कहा- मेरे कपड़े बहुत टाइट हैं.. ऐसे ना करो.
बोला- ठीक है, तुम इन्हें उतार दो.
मैंने कहा- नहीं अभी नहीं.
तब वो बोला- अच्छा फिर मुझे ही यह काम करना पड़ेगा.
उसने मेरे कपड़ों को उतारने की कोशिश की.. मगर वो नौसिखिया था. जब मुझे लगने लगा कि मेरे कपड़े फट जायेंगे तब मैंने कहा- अच्छा बाबा.. रूको मैं उतारती हूँ. मगर तुम दूसरे कमरे में जाओ.
उसका जवाब सुन कर मैं बहुत हैरान हो गई. उसने कहा- सुबह जब तौलिया जानबूझ कर उतार कर मुझे अपनी सारी दौलत दिखा रही थी, तब शरम नहीं आई.
मैंने कहा- मैंने तो कुछ नहीं दिखाया.
वो बोला- ज़्यादा चालाकी ना करो, मैं सब जानता हूँ. तुमने खुद ही हाथ मार कर अपना तौलिया नीचे गिराया था और और इस तरह से खड़ी हो गई कि मैं तुम्हें अच्छी तरह देख सकूँ और तुम शायद समझ रही थीं कि तुम मुझे नहीं देख रही हो. मैं जानता हूँ तुम शीशे से सब कुछ देख रही थीं. अब नखरे करना छोड़ो और खुद को मेरे हवाले कर दो.
मैंने कहा- ठीक है.. जब तुम जान ही चुके हो, तो मैं भी तुम्हें कुछ बता दूँगी ज़रा समय आने दो.
इतना कह कर मैंने अपने सारे कपड़े उतार दिए और खुद को मनोज के हवाले कर दिया. वो मुझे पूरी नंगी देख कर कुछ देर तक देखता रहा.
अब चुदाई का मजा आने वाला है, आप जल्दी से मुझे मेल लिखो.
[email protected]
कहानी जारी है.
कहानी का अगला भाग: बाप की हवस और बेटे का प्यार-4
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