एक चूत.. जिसने बदल दी मेरी जिंदगी

Ek Choot Jisne Badal Di Meri Jinadgi

सुदर्शन की तरफ से सभी पाठकों को प्रणाम। इस बार मैं अपने घनिष्ठ मित्र मनोज की कहानी लेकर हाजिर हूँ। आप मनोज और मेरी घनिष्ठता का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि हम दोनों आपस में छुन्नी (लुल्ली) लड़ाते हुए जवान हुए और जवानी में एक-दूसरे के लंड का सड़का मारते रहे।

यह कहानी बिल्कुल सत्यघटना पर आधारित है.. इसमें सिर्फ स्थान और नाम बदल दिए गए हैं।

आगे की कथा मनोज के शब्दों में..

दोस्तो, मेरा नाम मनोज है, मैं इलाहाबाद में रहता हूँ। इस घटना के समय मैं 23 साल का था।
इंटर के बाद मैं एक जनरल स्टोर पर काम करने लगा था। एक बार SSC स्टोरकीपर का फार्म भरा और पेपर देने गोरखपुर गया।
पेपर देकर वापिस आने के लिये इलाहाबाद का टिकट कटाया और प्लेटफॉर्म पर ट्रेन का इन्तजार करने लगा।

एक ट्रेन आधे घंटे बाद आई.. पर उसमें तिल रखने की जगह नहीं थी। दूसरी ट्रेन शाम को आई.. पर इसमें भी गेट पर बहुत भीड़ थी। मैंने इमरजेंसी खिड़की से अपना बैग एक अंकल को देकर अपनी सीट सुरक्षित करवाई और गेट से भीड़ छंटने पर अन्दर जाकर बैठ पाया।

ट्रेन चलने पर मेरे ऊपर पानी की बूँदें गिरने लगीं.. मैंने ऊपर देखा तो एक लड़की जो गहरी नींद में थी.. उसकी पानी की बोतल गिर कर उसके पेट से दब रही थी.. जिससे पानी रिस रहा था।

मैं उसको उठाने लगा। तब जिस अंकल को बैग दिया था.. उन्होंने खुद उठकर उसको उठाया।

बाद में उन्होंने मुझे बताया कि वो उनकी लड़की है..

उनसे बातें होने लगीं.. तब मुझे मालूम हुआ कि वो भी SSC स्टोर कीपर का पेपर देने आई थी।

कुछ देर बाद वो नीचे आई और उसके पापा ऊपर सोने चले गए। अब हम दोनों बात करने लगे.. हम दोनों पेपर के प्रश्न के बारे बात कर रहे थे।

इसी बातचीत से हम दोनों में काफी घनिष्ठता बन गई।
उसने बताया कि वो भी इलाहाबाद में ही रहती है। मैंने उससे उसका नम्बर माँगा तो उसने अपना फोन नंबर मुझे दे दिया।

ट्रेन बनारस लगभग रात 12 बजे पहुँची और किसी कारणवश वहाँ से आगे के लिए रद्द हो गई।
आगे इलाहाबाद के लिए ट्रेन सुबह 6 बजे थी।

फिर वहीं जमीन पर उसने चादर बिछाई, उसके पापा बोले- मैं सो चुका हूँ.. मैं बैठता हूँ। तुम दोनों सो जाओ।

उस समय कीड़े गिरने का मौसम था और कीड़ों से बचने के लिए प्लेटफार्म पर अंधेरे वाली जगह पर हम लोग लेटे थे।

मैंने अपनी चादर में हम दोनों को मिलाकर ओढ़ी। बीच में एक बार नींद खुली तो मेरे हाथ उसके उरोजों पर थे.. जो कि बेहद नरम और मुलायम थे, उसका सिर मेरे हाथ पर था।

एक हाथ से मैं धीरे-धीरे उसके उरोजों को सहलाता और दबाता रहा.. उसकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं हो रही थी। इससे अधिक कुछ नहीं हुआ।

वह एक 20-21 साल की साँवली औसत मुखाकृति वाली पर बातूनी लड़की थी।

सुबह वो बोली- मैं अपनी मौसी के घर जा रही हूँ, वो बनारस में ही रहती हैं।

मेरी जेब में सिर्फ 50 रूपए थे। हालांकि टिकट तो इलाहाबाद तक का था.. पर अगर मैं उसके साथ जाता तो पैसे थे नहीं।

मैंने बहाना किया- मुझे जरूरी काम है अतः मैं नहीं चल सकता।

वो मौसी के घर चली गई, मैं इलाहाबाद चला आया।

अब इलाहाबाद आने के बाद उससे फोन पर हमारी बात होने लगी। एक दिन उसने बताया- मैंने SSC की कोचिंग ज्वाईन कर ली है।

उस समय रात के 9:30 बज रहे थे, मैं गोदाम में सामान रखवा रहा था।
मैं सोचने लगा.. वो लड़की होकर कैरियर को लेकर इतना सजग है और मैं 3000 रूपए महीने पर जिंदगी की वाट लगा रहा हूँ।

मैंने उसी समय उससे कोचिंग का नाम पता पूछा और मालिक से पैसे एडवाँस ले कर दूसरे दिन कोचिंग में एडमिशन लेने पहुँच गया।
उधर मुझे मालूम हुआ कि उसका बैच एक सप्ताह आगे हो चुका था। सो मुझे नए बैच में जगह मिली।

मैंने शाम को उसे बताया- मैंने भी एडमिशन ले लिया है। कल तुमसे मिलना चाहता हूँ.. तुम समय निकाल कर आना।
मैं नीली टी-शर्ट और नई पैन्ट पहन कर उससे मिलने गया।
तभी उसका फोन आया- आज किसी काम से नहीं आ पाऊँगी.. कल पक्के में मिलूँगी।

मैं दूसरे दिन फिर गया और उससे मिला.. फिर कुछ ऐसा हुआ कि हम रोज ही मिलने लगे और छुट्टी में साथ ही आने लगे।

मैंने उसको प्रपोज करने के लिए एक अप्रैल का दिन चुना ताकि अगर वो गुस्सा हो तो अप्रैल फूल बोल कर बात सभाँल लूँ।

मैंने उसे एक पार्क में बुलाया और बात करते हुए उसके दोनों हाथों को पकड़कर चूमते हुए ‘आई लव यू’ बोला.. उसने भी जवाब में मेरे हाथों को चूमा।

मैंने उससे पूछा- स्टेशन पर जो हुआ था तुम्हें पता था?

वो बोली- हाँ।

मैंने उसके होंठों को चूमा फिर गालों को चूमा। उसके गाल लाल हो चुके थे।

तभी पार्क का चौकीदार बोला- अब पार्क बंद होने वाला है।

मैंने उसे बुलाया और 50 रूपए का नोट देते हुए एक घंटे का समय माँगा।

वो समझदार था.. उसने वहाँ बने एक झोपड़ी की तरफ इशारा करते हुए बोला- ठीक है.. आप दोनों वहाँ चले जाओ।

मैंने नीलम का हाथ पकड़ा और अन्दर ले आया.. उसने अपना दुपट्टा जमीन पर फैला दिया।

मैंने उसके सारे कपड़े उतार दिए। मैं उसके मम्मों को सहलाने लगा। वो मेरे लंड के टोपे के पीछे हो चुके चमड़े को शिश्नमुंड पर चढ़ाने का असफल प्रयास करती।

उसके मम्मों के निप्पलों में कठोरता आ गई थी।

कभी मैं बाईं तो कभी दाईं चूची को चुभलाने लगा। मैंने अपने हाथ को उसकी बुर पर रखा.. तो वो गर्म और गद्दीदार व गीली सी लगी।

मैं अपनी ऊँगली को उसके दाने से लगा कर उसे कुरेदने लगा और धीरे-धीरे खेलने लगा।

थोड़ी देर बाद वो बोली- मुझे नीचे अजीब सा लग रहा है।

मैंने उसकी बुर के रस से अपने लंड को गीला करके बुर के छेद में डालने की कोशिश की.. पर वो फिसल गया।

फिर मैंने उसकी बुर के गीले मुँह को रूमाल से पोंछकर धक्का लगाया.. तो इस बार लंड बुर में घुस चुका था। वो दर्द की अधिकता को मुँह बन्द करके किसी तरह सह गई।

केवल चार-पाँच धक्के में ही पूरा लंड अन्दर घुस गया। अब धीरे-धीरे मेरी रफ़्तार बढ़ने लगी। वो भी मेरा साथ देने लगी। कुछ ही देर में वो झड़ गई और उसके मात्र 5-7 मिनट बाद मैं भी झड़ गया।

फिर एक बार सीमाएँ टूटीं.. तो बारबार टूटती रहीं। लण्ड को उसकी चूत का स्वाद जो लग गया था और उसकी बुर में भी चुदास होने लगी थी।

हमारी कोचिंग सुबह 7 बजे थी.. परंतु 6 बजे पहुँचना पड़ता था.. वर्ना पीछे बैठना पड़ता था।
मैंने वहाँ के चपरासी को सैट कर लिया.. मैं उसे दारू के पैसे देता और सुबह 5.30 पीछे से अन्दर उसके कमरे में हम दोनों खूब चुदाई करते।

फिर 6 माह बाद मेरी और उसकी लड़ाई हो गई.. हमारा ब्रेकअप हो गया।

मेरा सिलेक्शन SSC 10+2 में क्लर्क के पद पर हो गया तो मैं उसको मिठाई खिलाने उसके घर गया।

मेरा यह मानना था कि आज मैं जो भी हूँ.. वो सिर्फ उसकी वजह से हूँ.. क्योंकि अगर उसको चोदने के चक्कर में कोचिंग ज्वाईन ना करता.. तो आज जनरल स्टोर में 3000 की और नौकरी 10-2 घंटे मेहनत ही करता रहता।

मैंने उससे शादी करने का भी कहा.. पर वो बोली- अब हम एक नहीं हो सकते।

मुझसे न मिलने की चाहत में उसने अपना मोबाइल नंबर भी बदल दिया है।

आप अपने विचार अवश्य दीजिए।

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