आधी हकीकत रिश्तों की फजीहत -5
(Aadhi Haquikat Rishton ki Fajihat- Part 5)
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स्वाति ने अपने मन का बोझ कम करने के लिए मुझे अपने अतीत के बारे में विस्तार से बताना शुरू किया, जिसमें उसने यौन उत्पीड़न फिर रेशमा सैम से नजदीकी बाताई, फिर रेशमा के अपने भाई सैम के साथ शारीरिक संबंध की दास्तां खुद रेशमा ने अपने मुँह से सुनाई।
अब आगे…
रेशमा- सच यार स्वाति, प्रथम सहवास कोई कभी नहीं भूल सकता!
रेशमा की कहानी सुन कर मेरी पेंटी गीली हो चुकी थी और मेरा एक हाथ मेरे सख्त हो चुके स्तन को दबाने में लगा था।
तभी रेशमा ने अपना हाथ मेरे स्तन को मसल रहे हाथ के ऊपर रखा और दबाते हुए कहा- स्वाति, जब तन की आग लगती है ना तो कुछ नहीं सूझता!
मैं (स्वाति) कुछ ना कह सकी और रेशमा थोड़ा और खिसक कर मेरे पास आई और मेरे गालों को चूमते हुए बोली- सच रे स्वाति, भाई का लिंग बहुत मजेदार है तू भी एक बार अंदर ले ही ले!
मैं जैसे चौंक पड़ी- नन…ना… नहीं.. मैं ये सब नहीं कर सकती…
तभी सैम आ गया, पता नहीं वो हमें कबसे देख रहा था.. मैं थोड़ी सी सकपका सी गई।
सैम ने मुझे कंधे से पकड़ कर खड़ी किया और मेरी आँखों में देखते हुए रेशमा से कहा- नहीं रेशमा, स्वाति को किसी चीज के लिए मत कहो, मैं इसे प्यार करता हूँ, इसके शरीर को पाना मेरी चाहत नहीं..
फिर मुझसे कहा- स्वाति तुम मेरे लिए क्या हो, यह मेरे लिए लफ्ज़ों में ब्यां कर पाना मुश्किल है, तुम मुझ पर यकीन करो या ना करो यह तुम्हारी मर्जी… तुम बेझिझक यहाँ से जा सकती हो।
मैं बुत बनी कुछ देर यूं ही खड़ी रही, आँखों से अश्रू धार बह निकली और अनायास ही मैं सैम से लिपट गई, उसके सीने पर मुँह छिपा लिया। ऐसा करने से मेरा सर उसके गले तक आ रहा था.. क्योंकि आज भले ही मेरी ऊंचाई 5.5 है पर उस समय रेशमा के बराबर ही 5.3 की थी, मेरा रंग रेशमा जितना गोरा नहीं था, क्योंकि मैं दूधिया गोरी थी और रेशमा सफेद गोरी..
मैं थोड़ी पतली दुबली थी, कूल्हे ज्यादा नहीं निकले थे पर सीने के उभार स्पष्ट कठोर कसे हुए नुकीले और उभरे हुए थे, 30-32 के बीच के रहे होंगे क्योंकि 32 नं. की ब्रेजियर मुझे थोड़ी ढीली होती थी और 30 नं. की थोड़ी कसी.. और मेरी उम्र इतनी भी नहीं थी कि मैं ब्रा की ए बी सी डी साईजों के बारे में जान सकूं!
गर्दन सुराही दार ऊँची उठी हुई, पेट अंदर चिपका हुआ… आँखों में कटार सा पैनापन, गाल गुलाबी और माथे पर पसीना आ जाये तो देखने वाले के लिंग से रस टपक पड़ता था, मतलब मैं बिना मेकअप ही ज्यादा अच्छी लगती थी।
तब मैं लिपस्टिक कभी नहीं लगाती थी, अब तो कभी कभी लगा भी लेती हूँ,, लेकिन बिना लिपस्टिक के ही होंठों का रस हर वक्त टपकता नजर आता था, दाग धब्बे का तो शरीर में कहीं निशान ही नहीं है.. त्वचा कांच या संगमरमर सी बिल्कुल नहीं थी.. बल्कि कोमल जैसे पपीते को काटने से लगता है.. अगर आँख बंद करके कोई छुये तो उसे मेरी त्वचा से साल भर की गुड़िया का अहसास होगा…
कुल मिलाकर मैं फूलों सी नाजुक.. घास सी लोचदार.. चंद्र आभा लिये हुए कमसिन कली अभी सैम के सीने से लिपटी हुई थी।
सैम का हाथ मेरे पीठ को सहलाता हुआ सीधे आकर मेरी कमर पर रुक गया…
मैंने रोते हुए कहा- सैम तुम सच बोलो या झूठ, यह तो तुम्हारा खुदा जानेगा..पर हाँ मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ, मैंने तुम्हें अपनी रुह में हक देने का फैसला कर लिया है।
सैम ने मेरा चेहरा अपनी हथेलियों में थामते हुए कहा- स्वाति आई लव यू!
और उसकी आँखें डबडबा सी गई.. लगा कि सागर छलक जायेगा।
पर मैंने कांपते हुए उसके लबों पर अपने सिसकते हुए होंठ रख दिये.. पहले हमने एक दूसरे के होठों को चूमा, चूसा, फिर पता नहीं कब जीभ को एक दूसरे के मुंह में घुसाने लगे।
इतने में जब पीछे से रेशमा मुझ से सट गई और अपने दोनों हाथों से मेरे उरोजों को दबाने लगी तब हमारी लय टूटी और मैंने मुस्कुरा कर रेशमा के गाल को किस किया और थैंक्स कहते हुए अपनी हथेलियों में अपना चेहरा छुपा लिया।
पर मैं आज तक नहीं समझ सकी कि मैंने रेशमा को क्यों थैंक्स कहा।
मैं कुछ देर यूं ही चेहरा ढके खड़ी रही… तभी मेरी सलवार का नाड़ा खिसकने सा एहसास हुआ.. हम स्कूल के लिए निकले थे और बंक मार के सीधे श्वेता के घर पे थे इसलिए इस समय हम लोग ड्रेस में यानि सलवार सूट में थे।
मेरी सलवार के नाड़े को सैम ने मेरे सामने घुटनों के बल बैठ कर खोला था.. मैंने सलवार पकड़ लिया.. और मना करने लगी.. पर सैम ने गिड़गिड़ाते हुए प्लीज कहा।
और मैंने अपनी पकड़ ढीली कर दी क्योंकि इस समय तक मैं खुद ही सभी चीजों के लिए तैयार थी.. बस यह है कि नखरा करना भी सेक्स की एक रस्म सी होती है.. और मैं उस रस्म को ही निभा रही थी।
सैम ने सलवार नीचे गिरते ही मेरी जांघों में अपनी बाहें लपेट ली और सहलाने चूमने लगा।
मैं इस हमले को अभी समझ भी नहीं पाई थी कि रेशमा ने मेरी कुरती के नीचे भाग को पकड़ लिया और ऊपर उठाने लगी।
मैंने शरमा कर हाथ ऊपर किये ताकि कुरती बाहर निकालते बने।
अब मैंने तेजी से जानना चाहा कि ये दोनों बहन भाई किस हालत में है.. तो मैंने पाया कि रेशमा ने अपने बड़े मम्मों को संभालने के लिए गुलाबी ब्रा पहन रखी है.. हालांकि बड़े मम्मों का मतलब 38/40 का होता है पर हम जिस उम्र में थे हमारे लिए 32/34 के मम्मे भी बड़े ही थे…
पता नहीं उसने कुरती कब उतारी, मैंने ध्यान नहीं दिया था पर अभी उसकी सलवार उतरनी बाकी थी और सैम बनियान और जांघिये में था… शरीर में कसावट थी.. पर बारहवीं का लड़का बारहवीं जैसा ही तो रहेगा… सैम मेरी जांघों को छोड़ने का नाम नहीं ले रहा था।
जब मैंने उसकी ओर दुबारा देखा तो मैं शर्म के मारे पानी पानी हो गई.. क्योंकि सैम मेरी योनि के सामने अपना मुंह रखकर अपना चेहरा थोड़ा सा ऊपर की ओर रखकर आँखें बंद करके मुंह थोड़ा सा खुला रखकर कुछ सूंघने की मुद्रा में था, जैसा हम लजीज भोजन या फूल या परफ्यूम को सूंघते हैं।
अब तक मेरी योनि ने रस बहा दिया था और मेरी पेंटी गीली हो चुकी थी। मैंने जाकी की नार्मल कट सफेद पेंटी पहन रखी थी.. जरूर ही पेंटी के ऊपर से ही दाग साफ नजर आया होगा।
मैंने सैम को उठने के लिए कहा तो उसने हड़बड़ा कर, जैसे वो नींद से जागा हो ह… ह… हाँ स्वाति कहा।
मैंने फिर कहा- सैम प्लीज वहाँ से उठो, मुझे अच्छा नहीं लग रहा है।
सैम खामोश रहा और मेरी योनि को पेंटी के ऊपर से काटते हुए मेरी पेंटी को थोड़ा खींचा जैसे हम किसी के कालर के भीतर झांकते हैं या किसी बर्तन को झांकते हैं.. लेकिन इस दौरान उसकी भुजाओं की पकड़ से मैं आजाद थी तो मैंने स्वयं ही पीछे सरक कर सैम को खुद से अलग किया।
अब तक रेशमा ने अपने पूरे कपड़े उतार दिये थे.. रेशमा को भी इस हालत में मैंने पहली बार देखा था। रेशमा ने आज की तैयारी में अपनी योनि चिकनी कर ली थी और उसके उरोजों के चारों ओर का भूरे रंग का घेरा तो कयामत ही लग रहा था।
मैंने रेशमा से कहा- बड़ी बेशर्म है री तू! खुद ही पूरे कपड़े निकाल कर ऐसे ही घूम रही है?
तो उसने कहा- तू भी आठ दस बार लंड का स्वाद चख ले, फिर देखना खुद ही चूत फैलाये लंड खोजेगी..
मैं तो शर्म और गुस्से से लाल हो गई- ये कैसी भाषा बोलने लगी है.. तो उसने कहा- मैं भी ऐसी भाषा नहीं बोलती हूँ.. पर सुना है कि इससे सेक्स का मजा बढ़ जाता है इसलिए अब बोलने लगी हूँ।
पर मैंने साफ मना कर दिया, मैंने कहा- तुम दोनो सेक्स करोगे और वो भी बिना किसी उटपटांग हरकत के! फिर अगर मुझे अच्छा लगा तो मैं साथ आ जाऊंगी और अच्छा नहीं लगा तो फिर कोई मुझे जिद नहीं करेगा।
दोनों भाई बहन ने मुझे एक साथ ओके कहा।
सैम ने मुझे अपनी बाहों में उठा लिया और बेड पर ले गया, पीछे पीछे रेशमा आई मेरा हाथ पकड़ के हटाते हुए बोली- चल हट, कोई अपनी इतनी प्यारी चीज परोस के दे रहा है और ये भाव खा रही है..
वो ये बातें मुझे जलाने चिढ़ाने के लिए बोल रही थी।
पर असलियत वो नहीं जानती थी कि दरअसल मैं खुद ही अब सेक्स के लिए तैयार थी पर उससे होने वाले दर्द का अंदाजा लगाने के लिए मैंने ऐसी शर्त रखी थी.. और मैं माहौल में ढलकर अपनी झिझक भी मिटाना चाहती थी.. साथ ही लाईव सैक्स सीन का मजा भी लेना चाहती थी।
तभी सैम ने कहा- यार स्वाति, कम से कम कपड़े तो पूरे निकाल दो..
मैं मुस्कुरा दी।
सैम ने अपनी बनियान एक झटके में निकाल फेंकी.. और मेरी सफेद ब्रा के हुक खोलने लगा। सैम मेरे सामने खड़ा था, उसकी नजर नीची और मेरी नजर ऊपर यानि हम एक दूसरे की आँखों में देख रहे थे.. मन की उत्सुकता और भाव आँखों से बयान हो रहे थे.. उसे हम लोगों से कुछ पल ज्यादा लगे हुक खोलने में… पर हुक खुल ही गया।
मैंने अपनी बाहों को मोड़ कर ब्रा को अलग करने में उसकी मदद की.. आज मैंने तीस नं. ब्रा पहनी थी और मैंने तो आप लोगों को बताया ही है कि तीस नं. मुझे कसा होता है.. तो ब्रा की पट्टी और ब्रा का निशान मेरे कोमल शरीर पर पड़ गया था.. हालांकि ब्रा खुलने से मुझे भी थोड़ी राहत महसूस हुई क्योंकि यौन उत्तेजना के कारण मेरे मम्मों का आकार और बढ़ रहा था।
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मेरी सांसें तेजी से चलने लगी थी.. ऐसे में सैम ने मेरे शरीर में ब्रा से बने निशान पर उंगली चलाई.. वो कंधे से शुरू करके मेरे उरोजों के ऊपर आकर रुका फिर उरोजों के चारो ओर उंगली घुमाई.. मेरे दोनों हाथ उसके कंधे पर थे और चेहरे को मैंने शरमा कर एक ओर कर लिया था.. मैं अपने होंठ खुद काटने लगी.. शायद ये अति उत्तेजना के पल थे।
रेशमा बाथरूम चली गई थी।
फिर सैम ने चारों ओर उंगली घुमाने के बाद पूरे मम्मे को एक साथ हाथों में भरकर दबाया और मैं ‘आहह…’ की आवाज के कसमसा के रह गई.. मेरा हाथ उसके बालों में चला गया, मैं बाल खींचते हुए उसे अपनी ओर खींचने लगी और उसने यंत्रवत मेरे निप्पल पर अपना मुंह टिका दिया।
मेरी सिसकारियाँ निकल गई.. उम्म्ह… अहह… हय… याह… ऐसा उसने तब तक किया जब तक रेशमा नहीं आ गई.. मुझे अचानक से लगा कि ये अभी क्यों आ गई.. आप सेक्स के चरमोत्कर्ष से पहले किसी तरह का व्यवधान शायद ही कभी पसंद करें.. मुझे भी अच्छा नहीं लगा!
पर सैम ने मेरे कान में यह कह कर खुशी दी कि तुम्हारे मम्में और निप्पल रेशमा से कहीं ज्यादा अच्छे हैं.. हाँ उसने बिल्कुल सही कहा था क्योंकि मेरे निप्पल मुलायम थे और सर्कल थोड़ा काला सा था मगर छोटा था।
खैर रेशमा ने कहा- भाई अभी तक आप अंडरवियर में हो? इतना कैसे बर्दाश्त कर लिया?
तब सैम ने मुस्कुरा के कहा- खुद ही देख लो..
रेशमा ने ‘हाँ क्यों नहीं…’ कहते हुए मेरा हाथ पकड़ के सैम के सामने बिठाया और खुद भी बैठ गई।
मेरी धड़कनें तेजी से चलने लगी.. जांघिये के ऊपर से उभार नजर आ रहा था पर ज्यादा बड़ा उभार नहीं था.. रेशमा तो अब बेशर्म हो ही चुकी थी, उसने एक झटके में सैम का अंडरवियर खींच दिया।
कमसिन जवानी में पहली चुदाई की कहानी जारी रहेगी!
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