जिस्म की जरूरत -27
हम वैसे ही लिपटे हुए थे, वंदु की चूचियाँ मेरे सीने में दबी हुई थी, मेरा लंड सिकुड़ कर भोली सूरत बनाकर चूत के बाहर होंठों से सटा था मानो उसकी पप्पी ले रहा हो.
मैं समीर चौधरी.. सत्ताईस साल का एक सामान्य युवा लड़का जो आप सबकी तरह ऊपर वाले की बनाई इस दुनिया में मौजूद हर खूबसूरत चीज़ का तहे दिल से मज़े लेता हूँ।
नौकरी के सिलसिले में बिहार के कटिहार में एक घर किराये पर लेकर रहने आया तो पड़ोस की एक भाभी और उनकी युवा बेटी से ताल्लुकात बढ़े। इन्हीं सम्बन्धों पर यह कहानी मैंने अन्तर्वासना के पाठकों के लिये लिखी है।
हम वैसे ही लिपटे हुए थे, वंदु की चूचियाँ मेरे सीने में दबी हुई थी, मेरा लंड सिकुड़ कर भोली सूरत बनाकर चूत के बाहर होंठों से सटा था मानो उसकी पप्पी ले रहा हो.
उसने खुद को कपड़ों से आज़ाद किया फिर यह छोटी सी पेंटी क्यूँ रहने दी? मन में कई विचार कौंधे और फिर समझ आया कि नारी सुलभ लज़्ज़ा का प्रदर्शन तो स्वाभाविक था.
वो और कोई नहीं वंदना ही थी. अभी थोड़ी देर पहले मैं उसकी माँ के मोह जाल में फंसा हुआ अपने आप को समझा रहा था और अब उसकी बेटी को सामने देख कर सब कुछ भूल गया...
गैर मर्द की बाहों में प्यार ढूंढते ढूंढते अचानक उसे अहसास हुआ कि उसका पति उसे कितना चाहता है और उसने अपने प्रेमी से दूरी बना लेने का निश्चय कर लिया.
अचानक से रेणुका ने बिजली की फुर्ती से अपना गाउन लगभग खींचते हुए निकाल फेंका और शेरनी की तरह कूद कर मेरे ऊपर झपट पड़ी... अब इस बार कुचले जाने की बारी मेरी थी।
वन्दना की मम्मी रेणुका को गोद में उठाये हुए मैं धीरे-धीरे बिस्तर की तरफ बढ़ा और हौले से उसे बिस्तर पर लिटा दिया... उनकी चिकनी जांघों को चूमते चाटते जैसे ही चूत पर जीभ लगी…
दिल्ली से मेरा यहाँ आना... रेणुका जी के साथ मिलना और फिर उनके साथ प्रेम की ऊँचाईयों को पाना... फिर वंदना का मेरी ज़िन्दगी में यूँ दाखिल होना और हमारे बीच प्रेम का परवान चढ़ना... सारी घटनाएँ बरबस मेरे होठों पे मुस्कान ले आती थीं।
पड़ोसन भाभी, जिन्हें मैं चोद चुका था, उनकी बेटी को अभी पहली बार चोद कर उनके घर छोड़ने जा रहा था तो मेरे मन में तरह तरह के विचार उमड़ रहे थे…
मैं उसके कान के पास अपना मुँह लेजा कर धीरे से बोला- थोड़ा सा सब्र रखना 'वंदु' यकीन करो मैं तुम्हें तकलीफ नहीं होने दूँगा, बस अपने बदन को बिल्कुल ढीला रखना!
मैंने अब उसकी आखिरी झिझक को दूर करना ही उचित समझा और उसका एक हाथ पकड़ कर उसे सीधे अपने ‘नवाब साब’ पर रख दिया। मेरे लिए किसी लड़की या स्त्री का मेरे लंड को छूना कोई पहली बार नहीं था लेकिन फिर भी लंड तो लंड ही होता है… जब भी कोई नया हाथ […]
एक तो पहले ही उसकी चूचियाँ चिकनी थीं, ऊपर से मेरे मुँह से निकले रस से सराबोर होकर और भी चिकनी हो गई थीं… मेरी हथेली में भरते ही उसकी चूचियों की चिकनाहट ने वो आनन्द दिया कि मैंने एक बार अपनी हथेली को जोर से भींच कर चूचियों को लगभग कुचल सा दिया। ‘आआह्हह… […]
अपनी असफलता से दुखी होकर मैंने वंदना की आँखों में देखा और उसने मेरी मुश्किल को भांप लिया… अब हम दोनों ने एक दूसरे के होठों को आजाद कर दिया था और मैं इस उधेड़बुन में था कि वो खुद अपने कुरते को निकलेगी या फिर मुझे कोई इशारा देगी… लेकिन वो बस शरारत भरे […]
मैं मुस्कुराने लगा और धीरे से सड़क के किनारे एक बड़े से पेड़ के नीचे कार रोक दी। कार रुकते ही वंदन ने मेरी तरफ देखा और फिर बड़े ही प्यार से अपनी आँखें नीचे कर लीं… उसकी इस अदा ने मुझे घायल ही कर दिया.. मैं अब भी उसे देखे जा रहा था… कहाँ […]
थोड़ी देर हम सब यूँ ही एक दूसरे के साथ हंसी मजाक करते रहे और इस पूरे समय के दरम्यान वंदना मुझसे चिपक कर रही और अपने हाथों से मेरा हाथ पकड़े रखा, उसके हाथों में मेरा हाथ यूँ देख कर लड़कियाँ तिरछी निगाहों से देख देख कर मुस्कुराती रहीं तो वहीं लड़कों की आँखों […]
मैं समझ गया था कि जिस रेणुका में मैं अपना प्यार तलाश रहा था वो रेणुका सिर्फ मुझसे अपने जिस्म की जरूरत पूरी कर रही थी… रेणुका मुझसे मिल कर धीरे धीरे अपनी कमर और चूतड़ मटकाती हुई मुझे अपनी कामुक चाल दिखा कर चली गई… मैं भारी मन से उसे जाते हुए देखता रहा.. […]
जलती हुई मोमबत्ती लेकर मैं वापस कमरे में आया और बिस्तर के बगल में रखे मेज पर उसे ठीक से लगा दिया। मोमबत्ती की हल्की सी रोशनी में वंदना का दमकता हुआ चेहरा मेरे दिल पर बिजलियाँ गिराने लगा। कसम से कह रहा हूँ, उस वक़्त उसे देख कर ऐसा लग रहा था मानो कोई […]
चाय मेरे शॉर्ट्स पे गिरी थी… लेकिन शॉर्ट्स भी छोटी थी इसलिए मेरी जाँघों का कुछ भाग भी थोड़ा सा जल गया था। मैं सोफे से उठ खड़ा हुआ- अरे आप लोग इसे क्यूँ डांट रहे हैं… ये तो बस ऐसे ही गिर गया… और हमने इसका मजाक भी उड़ा दिया इसलिए सजा तो मिलनी […]
कैसे हैं मित्रो… देरी के लिए माफ़ी चाहता हूँ, वैसे कसूर मेरा नहीं है, इस देरी की वजह है रेणुका जी और वंदना… उन दोनों की वजह से ऐसा व्यस्त हो गया हूँ कि अपनी कहानी आगे लिखने का वक़्त ही नहीं मिल रहा था। फिलहाल मैं दिल्ली में हूँ, ऑफिस से बुलावा आया था […]
मैं मज़े से उनकी चूत चाट रहा था लेकिन मुझे चूत को अच्छी तरह से चाटने में परेशानी हो रही थी। उनकी चूत अब भी बहुत सिकुड़ी हुई थी, शायद काफी दिनों से नहीं चुदने की वजह से उनकी चूत के दरवाज़े थोड़े से सिकुड़ गए थे। मैंने अपना मुँह हटाया और उनकी तरफ देखा। […]
‘उफ्फ… बड़े वो हैं आप!’ रेणुका ने लजाते हुए कहा और फिर वापस मुझसे लिपट गई। ‘हाय… वो मतलब… जरा हमें भी तो बताइए कि हम कैसे हैं..?’ मैंने उनकी चूचियों को दबाते हुए पूछा। ‘जाइए हम आपसे बात नहीं करते…’ रेणुका ने बड़े ही प्यार से कहा और मेरे सीने पे मुक्के मारने लगी। […]