माँ-बेटी को चोदने की इच्छा-18
(Maa Beti Ko Chodne ki Ichcha-18)
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कहानी के पिछले भाग में आपने पढ़ा:
‘अरे मैंने कंपनी पूछी है…’
तो बोली- ‘ह्यूगो बॉस’ का है।
तो मैंने भी मुस्कुरा कर बोला- फिर तो फिट है बॉस.. वैसे आज इतना सज-धज के चलोगी तो पक्का दो-चार की जान तो ले ही लोगी।
तो बोली- मुझे तो बस अपने इस आशिक से मतलब है और मैंने तुम्हारी ख़ुशी के लिए ये सब किया है ताकि तुम्हारी पहली डेट को हसीन बना सकूँ।
अब आगे..
मैंने कहा- पर इतना सब करके हम चलेंगे कैसे.. बाइक से तो जमेगा भी नहीं।
तो उसने मुझे कार की चाभी दी और बोली- मुझे तो चलानी आती नहीं.. अगर तुम्हें आती हो तो चलो.. नहीं तो फिर हम बाइक से ही चलते हैं।
तो मैंने उनसे चाभी ली और बोला- यार मैं बहुत अच्छे से चला लेता हूँ..
तो वो कुछ मुस्कुरा कर बोली- हम्म्म बिस्तर पर तो अच्छा चलाते हो.. अब रोड पर भी देख लूँगी।
मैंने उसको एक आँख मारी और फिर मैं और वो चल दिए।
माया ने अपार्टमेंट के गार्ड को चाभी दी और बोला- जाओ कार बाहर ले आओ..
वो काफी समझदार थी.. क्योंकि उसे तो चलानी आती नहीं थी और वो जाती तो कैसे लाती और मेरे साथ अगर बैठ कर निकलती तो उसे और लोग भी नोटिस करते।
मैंने उसके दिमाग की दाद तो तब दी..
जब गार्ड गाड़ी लेकर आया तो उसने झट से ही ड्राइविंग सीट के अपोजिट साइड वाला गेट खोला और मुझसे बोली- अभी मुझे देखना है कि तुम कार चलाना सीखे या अपने दोस्त की ही तरह हो.. क्योंकि विनोद केवल काम चलाऊ ही चला पाता है.. आज तक मैंने कभी भी उसे कार चलाते नहीं देखा था।
मैं भी उसकी ‘हाँ’ में ‘हाँ’ मिलाते हुए बोला- आंटी ये बात है.. तो आप बैठिए और आज मैं ही पूरी ड्राइविंग करूँगा और उसे एक आँख मार कर गाड़ी में बैठने लगा।
तो गार्ड बोला- मैडम आप रिस्क क्यों ले रही हैं.. आप ही ले जाइए न..
तो आंटी बोली- अरे बच्चे को मौका नहीं मिलेगा तो सीखेगा कैसे?
फिर मैंने गाड़ी स्टार्ट की और चल दिया.. कुछ दूर पहुँचते ही उनसे गुस्से में बोला- मैं अभी बच्चा हूँ।
तो बोली- तो क्या कहती उससे कि मेरा पति है.. और तुमने भी मुझे आंटी बुलाया था.. समझो बात बराबर।
तो मैंने बोला- अरे कोई दूसरा न सुने.. इसलिए मैं आंटी-आंटी कह रहा था.. ऐसे तो माया ही बुलाता हूँ..
‘अरे तो मैंने भी इसी लिए बोला था.. ताकि किसी को शक न हो।’
तो मैंने बोला- आप नाम भी ले सकती थी।
‘अरे बाबा.. सॉरी.. मुझे माफ़ कर दे.. गलती हो गई और रोड पर ध्यान दे।’
फिर वो मुझसे बोली- वैसे हम डिनर पर कहाँ चल रहे हैं?
तो मैंने बोला- जहाँ आप सही समझो।
उसने बोला- अब तेरी पहली डेट को कुछ स्पेशल तरीके से बनानी है.. तो कुछ स्पेशल करते हैं। एक काम करो लैंडमार्क चलते हैं।
तो मैंने बोला- इतना मेरा बजट नहीं है.. किसी सस्ते और अच्छे होटल में चलते हैं।
तो वो मेरे गालों पर प्यार भरी चुटकी लेकर बोली- यार तू कितना भोला है.. मैं इसी कारण तुझ पर मरने लगी हूँ.. पर अभी मैं जैसा बोलती हूँ.. वैसा ही करो, नहीं तो मुझे बुरा लगेगा।
तो मैंने बोला- पर मेरी एक शर्त है।
बोली- कैसी?
मैंने बोला- जो भी बिल होगा उसे मैं ही दूँगा.. अभी मेरे पास 2500 रूपए के आस-पास हैं तो मैं आपको 2000 रूपए दे रहा हूँ और आगे जितना भी होगा उसे आपको मैं जब बाद में दूँगा तो आप ले लोगी।
उन्होंने बोला- यार ये क्या.. मैं तुमसे प्यार करती हूँ.. ऐसा नहीं कर सकती.. मेरा सब कुछ तुम्हारा ही है।
मैंने भी बोला- वो सब ठीक है.. पर मेरी इच्छा है कि मैं भी अपनी गर्ल-फ्रेण्ड को पहली डेट पर अपने पैसों पर ले जाऊँ।
मेरे मुँह से गर्ल-फ्रेण्ड शब्द अपने लिए सुन कर उसकी आँखों में खुशी के आंसू आ गए.. जिसे मैंने भांप लिया और बोला- देखो अब रोने न लगना.. नहीं तो चेहरा अच्छा न लगेगा और मेकअप भी ख़राब हो जाएगा।
मेरी इस प्रतिक्रिया पर उसने मेरे गालों पर एक चुम्मी जड़ दी और मेरा हाथ जो कि गेयर पर था उसके ऊपर अपना हाथ रख कर मुझसे प्यार भरी बातें करने लगी।
बातों ही बातों में कब उसने अपना हाथ उठा कर मेरी जांघ पर रख कर सहलाना चालू कर दिया.. मुझे पता ही न चला।
ये सब कुछ मेरे साथ इतने रोमांटिक तरीके से मेरे साथ पहली बार हो रहा था।
मुझे तब होश आया जब उनके हाथ ने मेरी जींस के ऊपर से ही मेरे लौड़े पर दाब देना चालू किया।
यार क्या एहसास था.. बस यही लग रहा था कि ये समय यहीं रूक जाए..
खैर.. हम तब तक लैंडमार्क के पास पहुँच गए तो मैंने उन्हें ठीक से बैठने के लिए बोला और होटल के एंट्री-गेट पर उन्हें उतार कर गाड़ी पार्किंग में लगाने चला गया।
वहाँ मुझे मेरे पापा के दोस्त अपनी फैमिली के साथ मिले तो मैं तो उनको देख कर डर ही गया था.. पर ‘थैंक गॉड’ कि वो वहाँ से जा रहे थे।
किसी की बर्थ-डे पार्टी में आए थे.. उन्होंने मुझसे बात की, तो मैंने बोला- अरे मैं यहाँ बाजार में आया था बाहर पार्किंग फुल थी तो मेरे दोस्त ने बोला अन्दर ही पार्क कर दो.. उसकी ये नई कार है।
इसलिए तो वो बोले- ठीक किया.. अच्छा मैं चलता हूँ।
वो इतना कह कर जब चले गए.. तब जाकर जान में जान आई।
खैर.. मैं आप लोगों को बता दूँ कि इस होटल के बगल में कानपुर की एक बड़ा बाजार है.. जहाँ हर तरह के फैशन एशेशरीज मिलती हैं और शाम को भीड़ के कारण गाड़ी पार्किंग की समस्या यहाँ आम बात है और गलत जगह गाड़ी पार्क करने पर पुलिस उठा ले जाती है।
अब मैं अपनी कहानी पर आता हूँ।
फिर जब मैं एंट्री-गेट पर पहुँचा तो माया बोली- क्यों क्या हुआ.. बड़ा समय लगा दिया तुमने?
तो मैंने उसे पूरा वाकिया बता दिया.. जो उधर हुआ था।
तो माया बोली- चलो बढ़िया हुआ.. यहीं मिल गए.. अब हम चलते हैं।
फिर हम लोग अन्दर गए और लिफ्ट से फ़ूड कोर्ट वाली फ्लोर पर पहुँच गए। वहाँ पर हम लोगों ने एक कपल सीट ली.. वैसे तो वीकेंड पर सीट मिलना कठिन रहता है.. पर उस दिन कोई ख़ास भीड़ नहीं थी।
फिर वेटर आया और मेनू देकर चला गया तो मैंने माया से बोला- जो तुम्हें पसंद हो.. वो मंगवा लो। आज तुम्हारे मन का ही खाऊँगा।
तो माया ने वेटर को बुलाया और उसे आर्डर दिया और स्टार्टर में पनीर टिक्का मंगवाया।
सभी पाठकों के संदेशों के लिए धन्यवाद.. आपने अपने सुझाव मुझे मेरे मेल पर भेजे.. मेरे मेल पर इसी तरह अपने सुझावों को मुझसे साझा करते रहिएगा।
पुनः धन्यवाद।
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मेरी चुदाई की अभीप्सा की यह मदमस्त कहानी जारी रहेगी।
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