जिस्म की जरूरत-1
(Jism ki Jarurat Chut Chudai Sex-1)
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दोस्तो, मैं समीर चौधरी.. सत्ताईस साल का एक सामान्य युवा लड़का जो आप सबकी तरह ऊपर वाले की बनाई इस दुनिया में मौजूद हर खूबसूरत चीज़ का तहे दिल से मज़े लेता हूँ।
ऊपरवाले की मेहरबानी रही है कि उम्र और वक़्त के हिसाब से हमेशा वो हर चीज़ मिलती रही है जो एक सुखी ज़िन्दगी की जरूरत है।
इन जरूरतों में वो जरूरत भी शामिल है जिसे हम जिस्म की जरूरत कहते हैं यानि मर्दों को औरत के खूबसूरत जिस्म से पूरी होने वाली जरूरत!
मेरे लंड को वक़्त वक़्त पर हसीन और गर्मगर्म चूतों का तोहफा मिलता रहा है फिर वो चाहे कोई जवान अनाड़ी चूत हो या फिर खेली खाई तजुर्बेदार चूत!
दिल्ली है ही ऐसी जगह जहाँ समझदार लंड को कभी भी चूत की कमी नहीं रहती।
वैसे आपको बता दूँ कि मैं रहने वाला बिहार का हूँ, बिहार की राजधानी पटना में ही मेरा जन्म हुआ लेकिन मैंने दिल्ली में अपने रिश्तेदारों के यहाँ रहकर अपनी पढ़ाई पूरी की और फिर यहीं बढ़िया सी नौकरी भी मिल गई।
दिल्ली की चकाचौंध भरी ज़िन्दगी को अलविदा कहना इतना आसान नहीं होता लेकिन किस्मत का लिखा कौन टाल सकता है।
इसे मेरी ही बेवकूफी कह सकते हैं जो मैं अपने काम को कुछ ज्यादा ही अच्छे तरीके से करता रहा और मेरे कम्पनी के ऊपर ओहदे पे बैठे लोगों ने यह सब देख लिया।
दिल्ली में बस दो साल ही हुए थे और इन दो सालों में मेरे काम से मेरे अधिकारी बहुत प्रभावित थे।
आमतौर पर ऐसी स्थिति में आपको बढ़िया सा प्रमोशन मिलता है और आपकी आमदनी भी बढ़ जाती है।
मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ लेकिन इस प्रमोशन में भी एक ट्विस्ट था।
एक सुबह जब मैं अपने दफ्तर पहुँचा तो मेरे सरे सहकर्मियों ने एक एक करके मुझे बधाइयाँ देनी शुरू कर दी।
मैं अनजानों की तरह हर किसी के बधाई का धन्यवाद करता रहा और इसका कारण जानने के लिए अपनी प्यारी सी दोस्त जो हमारी कम्पनी की एच। आर। ऑफिसर थी, उसके पास पहुँच गया।
उसने मुझे देखा तो मुस्कुराते हुए मेरी तरफ एक लिफाफा बढ़ा दिया और मेरे बोलने से पहले मुझे बधाई देते हुए अपन एक आँख मार कर हंस पड़ी।
हम दोनों के बीच यह आम बात थी, हम हमेशा एक दूसरे से इस तरह की हसीं मजाक कर लिया करते थे।
जब मैंने वो लिफाफा खोला तो मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं था क्यूंकि उस लिफाफे में एक ख़त था जिसमें लिखा था कि मुझे प्रमोशन मिली है और मेरी तन्ख्वाह डेढ़ गुना बढ़ा दी गई है।
लेकिन यह क्या… जब आगे पढ़ा तब पता चला कि यह प्रमोशन अपने साथ एक ट्विस्ट भी लेकर आया है।
हमारी कम्पनी की कई शाखाएँ हैं और उनमें से कुछ शाखाएँ अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रही थीं। तो उन्हीं में से एक शाखा बिहार के कटिहार जिले में है जहाँ हमारी कम्पनी को पिछले कई सालों से काफी नुक्सान हो रहा था।
मेरी कम्पनी ने मुझे वहाँ शिफ्ट कर दिया था। मुझे समझ में नहीं आरहा था कि मैं हंसूँ या रोऊँ…
पहली नौकरी थी और बस एक साल में ही प्रमोशन मिल रहा था तो मेरे लिए कोई फैसला लेना बड़ा ही मुश्किल हो रहा था।
मैंने अपने घर वालों से बात की और दोस्तों से भी सलाह ली।
सबने यही समझाया कि पहली नौकरी में कम से कम दो साल तक टिके रहना बहुत जरूरी होता है ताकि भविष्य में इसके फायदे उठाये जा सकें।
सबकी सलाह सुनने के बाद मैंने मन मारकर कटिहार जाने का फैसला कर लिया और तीन महीने पहले यहाँ कटिहार आ गया।
कटिहार एक छोटा सा शहर है जहाँ बड़े ही सीधे साधे लोग रहते हैं। दिल्ली की तुलना में यहाँ एक बहुत ही सुखद शान्ति का वातावरण है।
मेरी कम्पनी ने मेरे लिए दो कमरों का एक छोटा सा घर दे रखा है जहाँ मेरी जरूरत की सारी चीज़ें हैं… कमी है तो बस एक चूत की जो दिल्ली में चारों तरफ मिल जाया करती थीं।
खैर पिछले तीन महीनों से अन्तर्वासना की कहानियाँ पढ़ पढ़ कर अपने लंड के साथ खेलते हुए दिन बिता रहा था।
लेकिन शायद कामदेव को मुझ पर दया आ गई और वो हुआ जिसके लिये मैं तड़प रहा था।
हुआ यूँ कि एक शाम जब मैं ऑफिस से अपने घर वापस लौटा तो अपने घर के सामने वाले घर में काफी चहल-पहल देखी।
पता चला कि वो उसी घर में रहने वाले लोग थे जो किसी रिश्तेदार की शादी में गए हुए थे और शादी के बाद वापस लौट आये थे।
मैं अपने घर में चला गया अपने बाकी के कामों में व्यस्त हो गया।
रात के करीब नौ बजे मेरे दरवाजे पे दस्तक हुई…
‘कौन?’ मैंने पूछा।
‘भाई साहब हम आपके पड़ोसी हैं…’ एक खनकती हुई आवाज़ मेरे कानों में पड़ी।
मैंने झट से आगे बढ़ कर दरवाज़ा खोला तो बस एक पल के लिए मेरी आँखें ठहर सी गईं… मेरे सामने हरे रंग की चमकदार साड़ी में तीखे नयन नक्श लिए खुले हुए लहराते जुल्फों में करीब 25 से 30 साल की एक मदमस्त औरत हाथों में मिठाइयों से भरी थाल लिए मुस्कुरा रही थी।
मुझे अपनी तरफ यूँ घूरता देख कर उसने झेंपते हुए अपनी आँखें नीचे कर लीं और कहा- भाई साब… हम आपके पड़ोसी हैं… एक रिश्तेदार की शादी में गए हुए थे, और आज ही लौटे हैं।
‘जी..जी.. नमस्ते…’ मेरे मुख से बस इतना ही निकल सका।
‘ये कुछ मिठाइयाँ हैं.. इन्हें रख लें और थोड़ी देर में आपको हमारे घर खाने पे आना है…’ यह कहते हुए उन्होंने थाली मेरी तरफ बढ़ा दी।
मैंने थाली पकड़ते हुए उनसे कहा- यह मिठाई तक तो ठीक है भाभी जी, लेकिन खाने की क्या जरूरत है… आप लोग तो आज ही आये हैं और थके होंगे फिर यह तकलीफ उठाने की क्या जरूरत है?
‘अरे ऐसा कैसे हो सकता है… आप हमारे शहर में मेहमान हैं और मेहमानों की खातिरदारी करना तो हमारा फ़र्ज़ है…’ अपनी खिलखिलाती हुई मुस्कराहट के साथ उस महिला ने बड़े ही शालीन अंदाज़ में अपनी बात कही।
मैं तो बस उसकी मुस्कराहट पे फ़िदा ही हो गया।
‘अन्दर आइये न भाभी…’ मैंने भी सभ्यता के लिहाज़ से उनसे घर के अन्दर आने का आग्रह किया।
‘अरे नहीं… अभी ढेर सारा काम पड़ा है… आप आधे घंटे में चले आइयेगा, फिर बातें होंगी।’ उन्होंने इतना कहते हुए मुझसे विदा ली और वापस मुड़ कर अपने घर की तरफ चली गईं।
उनके मुड़ते ही मेरी आँखें अब सीधे वहाँ चली गईं जहाँ लड़कों की निगाहें अपने आप चली जाती हैं… जी हाँ, मेरी आँखें अचानक ही उनके मटकते हुए कूल्हों पर चली गईं और मेरे बदन में एक झुरझुरी सी फ़ैल गई।
उनके मस्त मटकते कूल्हे और उन कूल्हों के नीचे उनकी जानदार गोल गोल पिछवाड़े ने मुझे मंत्रमुग्ध सा कर दिया।
मैं दो पल दरवाज़े पे खड़ा उनके घर की तरफ देखता रहा और फिर एक कमीनी मुस्कान लिए अपने घर में घुस गया।
घड़ी की तरफ देखा तो घड़ी की सुइयाँ धीरे धीरे आगे की तरफ बढ़ रही थीं और मेरे दिल की धड़कनों को भी उसी तरह बढ़ा रही थीं।
एक अजीब सी हालत थी मेरी, उस हसीं भाभी से दुबारा मिलने का उत्साह और पहली बार उनके घर के लोगों से मिलने की हिचकिचाहट।
वैसे मैं बचपन से ही बहुत खुले विचारों का रहा हूँ और जल्दी ही किसी से भी घुल-मिल जाता हूँ।
खैर, दिल में कुछ उलझन और कुछ उत्साह लिए मैं तैयार होकर उनके दरवाज़े पहुँचा और धड़कते दिल के साथ उनके दरवाज़े की घण्टी बजाई।
अन्दर से किसी के क़दमों की आहट सुने दी और उस आहट ने मेरी धड़कनें और भी बढ़ा दी।
कहानी जारी रहेगी!
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