वो हसीन पल-1
सारिका कंवल
नमस्कार, आप सभी अन्तर्वासना के पाठकों ने मेरी कहानी को बहुत सराहा इसके लिए मैं आपकी बहुत आभारी हूँ।
कुछ लोगों ने मुझे मेल किया कि यह कथा काल्पनिक है, पर मैं सबको बता दूँ कि ये हकीकत की घटनाएँ हैं, जो मेरे साथ हुईं, बस मैंने थोड़ा रोमांचक बनाने के लिए इसे अपने तरह से लिखा।
हालांकि हर बात को शब्दों में लिख पाना मुश्किल होता है फिर भी मैंने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की है। कुछ लोग यह भी मुझसे पूछ रहे हैं कि मैं ऐसा क्यों कर रही हूँ तो मैं आप सबको बता दूँ कि मैं ज्यादातर अकेली रही हूँ और काम कुछ ख़ास नहीं होता, तो खाली समय में मैं नेट पर समय बिताती हूँ। इसी दौरान मैं अन्तर्वासना पढ़ने लगी, फिर मेरे दिल में भी ख़याल आया कि शायद लोगों को मेरी कहानियाँ भी पसंद आ सकती हैं, सो मैंने भी अपनी कहानियाँ लिखनी शुरू कीं।
मेरी कहानियों का मुख उदद्येश मनोरंजन है।
इस कहानी में मैं पहले खुद के बारे में संक्षेप में बता देती हूँ। फिलहाल मेरी उम्र अब 45 होने को है, मेरी लम्बाई ज्यादा नहीं केवल 5’1″ है, उम्र के हिसाब से अब मैं काफी मोटी हो गई हूँ, और रंग गेहुँआ है। पिछले कुछ महीनों से रतिक्रिया नहीं कर रही हूँ, क्योंकि पति को इसमें अब बिलकुल भी रूचि नहीं रही।
आज मैं आपको एक घटना के बारे में बताने जा रही हूँ जो अमर के साथ हुई थी।
उन दिनों घर में बैठे रहने की वजह से मेरा वजन काफी बढ़ गया था और मैं मोटी हो गई थी। अमर के साथ पहली बार सम्भोग करके मुझे अगले दिन कुछ ठीक नहीं लग रहा था, तो मैंने अमर से कुछ दिनों के लिए बातें करना बंद कर दिया था।
वो हमेशा मुझसे बातें करने का बहाना ढूंढता था। करीब एक महीना इसी तरह बीत गया। इस दौरान मैंने एक बार भी सम्भोग नहीं किया था। शायद यही वजह थी कि मैं उसके बार-बार कहने पर फिर से उससे घुलने-मिलने लगी थी।
सम्भोग में काफी अंतराल हो जाने की वजह से मैं शायद उसकी तरफ झुकती गई क्योंकि पति मेरे जरा भी सहयोग नहीं करते थे। मेरे पति दिन भर बाहर रहते और शाम काफी देर से आते थे। वैसे तो मैंने आज तक अपने पति को अपनी मुँह से सम्भोग के लिए कभी नहीं कहा, हाँ बस जब इच्छा होती तो उनसे लिपट जाया करती थी और वे मेरा इशारा समझ जाते थे। पर इन दिनों वो मेरे इशारों को नकार देते और थका हूँ कह कर सो जाते थे।
कुछ दिन इसी तरह बीत गए, पति जब काम पर चले जाते, तो अक्सर मुझे अमर फोन करते और हम घन्टों बातें करते।
कुछ दिनों के बाद अमर फिर से मुझे अकेले मिलने के लिए उकसाने लगे।
इसी बीच एक दिन दोपहर को अमर मेरे घर आए। मेरा पहला बेटा स्कूल से शाम को 4 बजे आता था तो मैं और मेरा दूसरा बेटा ही घर पर थे।
अमर ने मुझसे मेरे पति के बारे में पूछा तो मैंने उन्हें बताया- वो आजकल काम की वजह से दिन भर बाहर रहते हैं, शायद उनके माइन्स में कोई बड़ी दुर्घटना हुई है।
तब उन्होंने कहा- अच्छा..!
फिर हम थोड़ी देर बातें करते रहे, उसके बाद उन्होंने मुझसे पूछा- क्या तुम्हें अब सम्भोग की इच्छा नहीं होती?
मैंने कुछ नहीं कहा बस अपना सर झुका लिया। तब वो मेरे पास आए और मेरे बगल में बैठ गए, फिर उन्होंने मेरा हाथ थाम लिया और मुझसे बातें करने लगे।
उन्होंने मेरी बाँहों को सहलाते हुए मुझे मनाने की कोशिश करना शुरू कर दिया। मैंने तब कोई विरोध तो नहीं जताया, पर मैं खुल कर भी उनसे नहीं मिल पा रही थी।
मेरा विरोध न देख उन्होंने मुझे मेरे गले से लेकर मेरे चेहरे को चूमना शुरू कर दिया। मुझे भी उनकी इन हरकतों से कुछ होने लगा था सो मैं भी उनकी बाँहों में समाती चली गई।
हमारे घर पर प्लास्टिक की कुर्सियाँ थी और हम दोनों अलग-अलग कुर्सी पर बैठे थे। उन्होंने मुझे चूमते-चूमते मुझे अपनी गोद में बिठा लिया। मुझे उनका लिंग उनके पैंट के ऊपर से मेरे कूल्हों में महसूस हुआ, वो काफी उत्तेजित लग रहे थे और अपना लिंग मेरे कूल्हों की दरार में रगड़ने लगे।
फिर उन्होंने मेरे होंठों को अपने होंठों से चिपका लिया और मुझे चूमने लगे। थोड़ी देर में ही मैंने भी उनका साथ देना शुरू कर दिया।
तब उन्होंने मेरे स्तनों को मेरे कुर्ते के ऊपर से दबाना शुरू किया मैं हल्के दर्द से सिसकारियाँ भरने लगी।
अमर ने मेरी एक टांग को घुमा कर दूसरी तरफ कर दिया, इससे मेरी दोनों जाँघों के बीच अमर आ गया और मैं उसके गोद में थी।
हम दोनों एक-दूसरे को पागलों की तरह चूमने लगे, ऐसा लग रहा था कि जैसे बरसों के बाद दो प्रेमी मिले हों और एक-दूसरे में समा जाना चाहते हों।
मैंने अमर के चेहरे को पकड़ लिया और उसने मेरी कमर को कस लिया और फिर हम एक-दूसरे के जुबान और होंठों को चूसने लगे। अमर बार-बार अपनी कमर उचका कर अपने लिंग को मेरी योनि से स्पर्श कराने की कोशिश करता और मैं भी उसके लिंग पर दबाव बना देती। अब मेरी योनि में गीलापन आना शुरू हो गया था और मेरी पैंटी भी गीली होने लगी थी।
तभी अचानक मेरे बच्चे की रोने की आवाज आई तो मैं तुरंत अमर से अलग हो गई और अन्दर जाकर झूले से बच्चे को उठा गोद में चुप कराने लगी।
उसे भूख लग गई थी, सो मैंने अपनी कमीज ऊपर की और बिस्तर पर बैठ कर उसे दूध पिलाने लगी।
कुछ देर बाद अमर मेरे कमरे में आ गए और वासना से भरी निगाहों से मेरे स्तनों को देखने लगे।
फिर मेरे बगल में बैठ गए और मुझसे बोले- पहले से तुम्हारे स्तन काफी बड़े हो गए हैं!
मैंने कुछ जवाब नहीं दिया, फिर उन्होंने कहा- तुम्हारा वजन भी पहले से ज्यादा हो गया है।
तब मैंने भी कह दिया- हाँ.. घर में बैठे-बैठे मोटी हो गई हूँ।
तब उन्होंने कहा- मुझे तुम मोटी नहीं लग रही हो, बल्कि सेक्सी लग रही हो..!
मैं शर्मा गई और बच्चे को झूले में दुबारा सुला कर उनके पास चली आई। पता नहीं अब मैं थोड़ा सहज महसूस करने लगी थी और उस रात की तरह ही उनसे बात करने लगी।
उन्होंने मुझसे पूछा- तुम्हारे स्तनों और नितम्बों का साइज़ अब कितना हो गया है?
मैंने मुस्कुराते हुए जवाब दिया- फिलहाल तो मुझे पता नहीं, क्योंकि मैं अभी पुराने वाली ब्रा और पैंटी पहन रही हूँ और वो 34d हैं और xl की पैंटी है, पर अब वो मुझे थोड़े टाइट होते हैं..!
यह कहते ही उसने मेरा हाथ पकड़ कर अपनी और खींचा और बिस्तर पर लेट गए, मुझे अपने ऊपर लिटा लिया।
उन्होंने अपने होंठों को फिर से मेरे होंठों से लगा कर मुझे चूमना शुरू कर दिया। उन्होंने मेरे चूतड़ों को पकड़ कर अपनी ओर जोर से खींचते हुए अपना लिंग मेरी योनि में कपड़ों के ऊपर से ही चुभाना शुरू कर दिया। मैंने भी उनकी इस क्रिया की प्रतिक्रिया में मदद के इरादे से अपनी दोनों टाँगें फैला कर उनके दोनों तरफ कर दीं और अपनी योनि को उनके लिंग पर दबाती हुई कमर को नचाने लगी।
मैंने खुद को वासना की आग में जलते महसूस किया। मैंने धीरे-धीरे उनके कपड़े उतारने शुरू कर दिए। थोड़ी ही देर में वो मेरे सामने नंगे हो चुके थे।
उन्होंने भी मेरी कुर्ती निकाल दी थी और फिर ब्रा को किनारे कर उन्होंने मेरी दाईं तरफ के स्तन को निकाल दिया और सहलाने लगे।
फिर चेहरे को चूचुक के सामने रख उन्होंने मेरे चूचुक को मसला तो पतली धागे जैसे दूध का धार निकली, जो सीधे उनके चेहरे पे गिरी। फिर क्या था, वो जोश में आकर मेरे चूचुक को मुँह में लगा कर चूसने लगे, जैसे कोई बच्चा दूध पीता हो। मैंने अपनी ब्रा का हुक पीछे से खोल दिया और अपनी स्तनों को आज़ाद कर दिया। ये देख कर उन्होंने मेरी बाईं चूची को हाथ से पकड़ा और दबाने लगे और बारी-बारी से दोनों को चूसने लगे।
मुझे बड़ा मजा आने लगा था और मैं उनके सर को हाथ से सहलाने लगी और एक हाथ नीचे उनकी जाँघों के बीच ले जाकर उनके लिंग को सहलाने लगी।
मैं कभी उनके लिंग को सहलाती, कभी अन्डकोषों को दबाती, या कभी उनके सुपाड़े पर ऊँगलियां फिराती, जिससे उनके लिंग से रिसता हुआ चिपचिपा पानी मेरी ऊँगलियों पर लग जाता।
अब उन्होंने मेरी एक टांग को उठा कर घुटनों से मोड़ दिया जिससे मेरी जाँघों के बीच का हिस्सा खुल गया और उन्होंने मेरे पजामे के ऊपर से मेरी योनि को सहलाना शुरू कर दिया। कुछ देर यूँ ही सहलाने के बाद मेरे पजामे का नाड़ा खींच दिया, तो नाड़ा टूट गया। पर उन्होंने इसकी परवाह नहीं की और पजामे को ढीला करके मेरी पैंटी के अन्दर हाथ डाल कर मेरी योनि से खेलने लगे। फिर दो ऊँगलियाँ घुसा कर अन्दर-बाहर करने लगे। मुझे तो ऐसा लगने लगा जैसे मैं जन्नत में हूँ।
मैं बुरी तरह से गर्म हो चुकी थी तभी उन्होंने खुद को मुझे अलग कर दिया और अपना लिंग मेरे मुँह के पास कर दिया। मैं इशारा समझ गई, पर थोड़ा संकोच कर रही थी। तब अमर ने मेरा सर पकड़ कर अपने लिंग के तरफ खींचा और अपना लिंग मेरे होंठों से लगा दिया। मैंने उसके लिंग को पकड़ लिया और मुँह में जाने से रोका।
कहानी जारी रहेगी।
अपने विचार मुझे करने के लिए लिखिएगा जरूर।
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