अनु भाभी की सूनी चुदासी चूत-2

(Anu Bhabhi Ki Sooni Chudasi Chut-2)

भोपाली 2015-05-02 Comments

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अब एक अन्तर मुझे समझ में आया कि जो कभी अपने घर से बाहर नहीं निकलती थीं.. वो मुझे अब अकसर नजर आने लगी थी। मेरी बातों का जबाब भी तुनक मिज़ाज़ में ही सही.. पर अब भाभी जवाब देने लगी थीं।
एक और ख़ास बात जो मैंने नोट की वो यह कि भाभी हर दूसरे दिन काम बतातीं और मैं उन्हें ताड़ने.. छूने की लालसा में झट से उनका काम करने को राजी हो जाता।
कभी पानी की टंकी साफ़ करने के दौरान भाभी की कमर को सहला देता.. कभी गैस की टंकी फिट करने के बहाने उनके बड़े-बड़े चूतड़ों को दबा देता।

एक दिन मैंने मस्ती में भाभी से कहा- भाभी आप इतनी पड़ी-लिखी हैं.. तो जॉब क्यों नहीं करतीं?
वो कुछ उदास हो कर बोलीं- बस यूँ ही..
मैंने कहा- भाभी आपका नाम क्या है?
उन्होंने कहा- अनु..
मैंने कहा- आप जैसी हैं वैसा ही आपका नाम भी है।

वो मुस्कुरा दीं।

मैंने फिर पूछा- भाभी आपको क्या पसंद है?
तिरछी नजरों से देख कर उन्होंने जबाब दिया- क्या करोगे जानकर?
मैं- बस ऐसे ही पूछ लिया.. भाभी सॉरी!
वो तुरंत बोलीं- मेंहदी लगवाना।
मैं- अरे वाह.. मैं भी अपने घर में दीदी को मेंहदी लगाता था।
भाभी- अच्छा..
मैंने कहा- आपको लगवाना हो.. तो बता देना..
उन्होंने नॉर्मली कहा- ठीक है बता दूँगी..

एक दिन नीचे घूमते समय अंकल बोले- सुनो मैं कल बाहर जा रहा हूँ.. घर में कोई काम की जरूरत हो तो देख लेना।
मैंने- जी अंकल..

दूसरे दिन भाभी से मैंने कहा- भाभी कुछ लाना हो तो बता देना.. आज मैं घर पर ही हूँ।
भाभी- ठीक है।
मैंने कहा- भाभी आज तो आपके कामों की छुट्टी होगी।
उन्होंने हँस कर कहा- हाँ.. टीवी देख कर टाइम पास करूँगी..
मैंने कहा- भाभी आप चाहो तो मैं मेंहदी लगाऊँ.. दिन भी कट जाएगा और आपको पसंद भी है।
वो कुछ सोच कर बोलीं- ठीक है.. ले आओ..
मैं मेंहदी लेकर आया।

जब उनके पास मैं मेंहदी लेकर पहुँचा तो वो गजब का माल लग रही थी.. एकदम सिंपल.. नीले रंग की साड़ी.. खुले घुंघराले बाल.. माथे पर पसीने की कुछ बूंदें.. कान में लटकते झुमके.. नाखूनों में लाल नेल पालिश.. साड़ी का पल्लू कमर में खोंसा हुआ.. कमर से झांकती भरी-भरी गोरी कमर.. हय..
यह नज़ारा मेरे लिए उत्तेजक साबित हो रहा था। उन्होंने मुझे अन्दर बुलाया.. मैं उनके पीछे-पीछे चल पड़ा।
वो अपने पूरे बड़े-बड़े फूले हुए डोलों को मटका-मटका कर चल रही थी, यहाँ मेरा लण्ड भी फूलता जा रहा था।

मैंने उसे फर्श पर बिठाया और उनके नाजुक हाथ को अपने हाथ में लेकर मखमल की तरह सहलाया।
समैंने कहा- आपके हाथ बहुत सुन्दर हैं!

उन्होंने तीखी व तिरछी नजरों से मुझे देखा.. मैंने चुपचाप मेंहदी लगाना शुरू की।

करीब 15 मिनट बाद लाइट भी चली गई। मैंने अपने पाँव इस तरह फैलाए.. जो सीधे भाभी के पुठ्ठों को छू रहे थे। मेरा लण्ड सख्त होता जा रहा था.. अब करीब एक घंटा बीत चुका था।

उनके माथे से पसीना बह रहा था… मैंने बिना हिचक के भाभी को देखा और उसी के पल्लू से पसीना पोंछ दिया।
मेरी इस हरकत से वो भी हड़बड़ा सी गई.. पर कुछ बोल न सकी।
उनका पल्लू तो मैंने उठा लिया था.. पर दुबारा रख न सका।
अब उनका पल्लू नीचे था.. और उनके उभार मुझे अपनी ओर खींच रहे थे।

कुछ देर बाद उनके खुले बाल उनके चेहरे पर आ रहे थे और वो मेंहदी लगे हाथों से बाल भी नहीं हटा पा रही थी।

इस बार भी मैंने मौके का फायदा उठाकर उनके चेहरे से बाल हटाने के बहाने उनका पूरा चेहरा छू लिया।
वो अब भी कुछ समझ नहीं पाई।

अब अचानक बिजली आई और उनका पल्लू उड़ गया.. ब्लाउज में उनके दूध गज़ब के दिख रहे थे। मैं अब उनकी कलाई में मेंहदी लगाने के बहाने उनसे सट कर बैठ गया.. और वो कुछ घबरा सी गई।

अब मेरे पैर.. जांघ..कंधे.. सब कुछ उनके जिस्म से चिपके हुए थे। मेरा मन अब मेंहदी लगाने में नहीं बल्कि भाभी को बार-बार छूने में लग रहा था।

धीरे-धीरे मैंने भाभी के दूधों को कोहनी से सहलाना शुरू किया। अब भाभी मेरे इरादों को भांप चुकी थीं।
कुछ देर बाद मैंने उत्तेज़ना के चलते भाभी के उभार को कोहनी से ही दबा डाला.. भाभी ने मुझे घूर कर देखा।
मैं भी उन्हें घूरने लगा।

न जाने उन वक्त इतनी हिम्मत मुझमें कहाँ से आ गई थी.. ऐसा लग रहा था कि अगले ही पल वो मुझे मार ही डालेगी।
उन्होंने मुझसे कहा- लग गई मेंहदी.. कि अभी बाकी है?
मैंने जबाब दिया- भाभी मेरा बस चले तो आपको ऐसे ही मेंहदी लगाता रहूँ।
फिर बोलीं- चल.. इतनी ही ठीक है।

वो अब उठने ही वाली थीं कि मैंने उनका हाथ पकड़ लिया।
वो बोलीं- यह क्या बदतमीजी है?

मैंने बिना जबाब दिए उसे अचानक से खींच लिया.. वो चीखी.. तो मैंने उनके होंठों को अपने होंठों से सी दिया।
मैं उनके ऊपर था.. उनका पल्लू नीचे गिरा हुआ था.. मैं उनके उभारों को मसले जा रहा था।
वो मुझसे छूटने की भरपूर कोशिश कर रही थी, वो कभी अपने पैरों को पटकतीं.. तो कभी हाथों से मुझे धक्का देतीं.. पर मैं कहाँ छोड़ने वाला था।

मैंने इतनी जोर से उसे दबा कर रखा था कि उनकी चीखें निकल रही थीं। वासना का भूत मुझ पर सवार था.. उनके अपने एक हाथ से उनके दोनों हाथों को पकड़ उनका पेटीकोट ऊपर चढ़ा दिया। अब मैं उनकी ग़ोरी-ग़ोरी जाँघों को मसलने लगा.. नोचने लगा।

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फिर उनकी पैन्टी को एक हाथ से नीचे घुटनों तक खींच कर खिसका दिया। अब मैंने अपने पैरों से पैन्टी को नीचे करने की कोशिश की और तभी उनकी पैन्टी फट कर उनके जिस्म से अलग हो गई। अभी भी मेरे होंठ उनके मोटे मुलायम गुलाबी होंठों को बुरी तरह से चूस रहे थे।

फिर क्या था.. पल भर में मैंने अपने पैन्ट की चैन खोली.. और फुंफकार रहे अपने मोटे कड़क 8 इंच के लण्ड को बाहर निकाला और उनकी चूत में एक ही झटके में पूरा घुसेड़ दिया।

एकदम से उनके मुख से आह निकली, उन्होंने मेरे होंठ को काट लिया। मैंने फिर से उनके नीचे वाले होंठ को अपने होंठ में जकड़ लिया।

मेरी चुदाई रफ़्तार पकड़ने लगी थी, भाभी की सिसकारियाँ और दर्द का अहसास मुझे पागल कर रहा था।

अब मुझे उनका काफ़ी सहयोग मिल रहा था.. मैंने भी उनके हाथों को आजाद कर दिया था, बस मैं उनके दूधों को मसले जा रहा था.. और धकापेल धक्के लगाता जा रहा था।

मेरी कुछ रफ़्तार और बढ़ी.. तो वो चीखी.. मैंने भरपूर जोर से झटका मारा.. तो वो भी ऊपर को खिसक गई। मोटे लवड़े के कारण दर्द से उनके आँसू और पसीना निकल रहे थे। मैंने अपने दाँतों को पीस कर एक और झटका मारा.. और पूरा वीर्य उनकी चूत में बह निकला।

अब मैं उनके ज़िस्म से अगल हो कर खड़ा हो गया। भाभी के ऊपर मेरी निगाहें गईं तो मेरी आँखें फटी की फटी रह गईं।
भाभी पसीने में तर थीं.. कुछ बाल चेहरे पर थे.. एक दूध लाल ब्रा और नीले ब्लाउज में से झाँक रहा था.. दूसरा उभार कंधे तक खिसकी आधे उतरे ब्लाउज में कुछ-कुछ दिखाई दे रहा था।

उनका पल्लू नीचे पड़ा हुआ था.. गुलाबी निप्पल.. जो मसल-मसल लाल कर दिए थे.. अब तने-तने से नजर आ रहे थे.. सूजे हुए मोटे-मोटे होंठ.. खुला दिख रहा पेट.. चूत का दर्शन भी पहली बार किया.. एकदम सफाचट साफ.. उभरी हुई.. चूत पर बालों का नामोनिशान नहीं था।
उनकी चूत मेरे कठोर प्रहारों से कुछ ज्यादा फूली-फूली सी दिख रही थी, चूत से रिसा हुआ मेरा वीर्य भी दिख रहा था।
उनकी भरी-भरी मोटी-मोटी कदली सी जांघें.. वो अपने पैरों की ऊँगलियों को उमेठती हुई.. मेरे अरमानों को दुबारा जगा चुकी थी।
उनका नशीला यौवन देख कर मैं मदहोश हो कर.. फिर हरा होने लगा।
अब मेरी इच्छा फ़िर से उनसे खेलने की थी।

अभी वो अचेत सी आँखें बंद करके फर्श पर लेटी हुई थीं.. जैसे कि गहरी नींद में हों। उन्हें निहारते हुए मैंने अपने पूरे कपड़ों को उतार दिया.. और सीधे भाभी के पेट पर जा कर बैठ गया।

अभी तक उनकी कोई हलचल दिखाई नहीं दी थी। मैंने उनके ब्लाउज के हुक को खोल कर ब्रा से उनके मम्मों को आजाद कर दिया। साड़ी को पल भर में उतार फेंका.. पेटीकोट के नाड़े को खोल दिया, भाभी के जिस्म को कपड़ों की कैद से पूरा स्वतंत्र कर दिया.. उनका और मेरा नंगा बदन अब एक हो गए।

मैंने अपने शरीर को उनके ऊपर फैला दिया। मैंने उसे अपनी जीभ से चाटना शुरू किया.. मेरे स्पर्श को पाकर भाभी की आँखें खुल गईं।

पर भाभी के लबों पर हल्की सी शर्म भरी मुस्कान आई और वो आँखें बंद कर निढाल हो गई थी, मैंने उनकी चूत पर हाथ फेरना शुरू किया और हाथ फेरने की बजाए मैंने अपनी जीभ को उनकी चूत में डाल दिया।

भाभी इस बार चीखी नहीं.. बल्कि उनकी चीखें सिसकारियों में तब्दील हो गईं। उनकी चूत भी अब गीली होती जा रही थी.. मैं समझ गया कि मेरा उद्देश्य पूरा हो गया।

भाभी भी आनन्द में डूबी जा रही थीं.. जैसे वो मेरे यौवन की नाव में सवार होकर अपने जिस्म की उठती लहरों से जीतना चाहती हों।
फिर क्या था.. कुछ ही देर में भाभी ने मेरे शरीर के एक-एक हिस्से को चूमना शुरू कर दिया।
मेरे लण्ड को तो वो ऐसे चूस रही थी.. मानो वो कई जन्मों की प्यासी हो!
मेरे वीर्य को भी उन्होंने पूरा चूस लिया था।

मैंने फिर अपने मुरझाए हुए लण्ड को भाभी के दूधों पर जोर-जोर से हिला-हिला कर मारा.. मेरा लण्ड फिर अपनी इच्छाओं को पूरा करने खड़ा हो गया।
भाभी ने अपने ऊपर मुझे गिरा लिया और मेरे लण्ड ने भाभी की सुन्दर चूत में प्रवेश किया।
इस बार हम दोनों करीब आधे घंटे तक एक-दूसरे के आगोश में मचलते रहे।
फिर मचलती हुई जवानी कुछ समय के लिये शांत हो गईं..

इसके बाद हम दोनों एक-दूसरे को निहारते रहे.. पर बोले कुछ नहीं.. बस भाभी ने मुझे अपने गले से लगा कर मेरा आभार सा व्यक्त किया। जिस्मानी ताल्लुकात के बाद भी हमारे बीच कभी खुल कर बात नहीं हुई.. बस वो अपने जिस्म की शांति के लिए बुलातीं और मैं उनके जिस्म की प्यास को पूरी शिद्दत से बुझाता।
हम लगभग रोजाना ही चुदाई का मजा लिया करते थे.. फिर एक दिन वो हुआ जो सोचा ना था।

प्रिय पाठक आप इस कहानी पर प्रतिक्रिया इस ई-मेल पर जरूर दें..
आपका भोपाली

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