प्रगति की आत्मकथा -2

(Pragati Ki Aatmkatha-2)

This story is part of a series:

प्रेषिका : शोभा मुरली
ऑफिस का एक कमरा बतौर गेस्ट-रूम इस्तेमाल होता था जिसमें बाहर से आने वाले कंपनी अधिकारी रहा करते थे। उधर रहने की सब सुविधाएँ उपलब्ध थीं। प्रगति, शेखर का हाथ पकड़ कर, उसे गेस्ट-रूम की तरफ ले जानी लगी। कमरे में पहुँचते ही उसने अन्दर से दरवाज़ा बंद कर लिया और शेखर के साथ लिपट गई।

उसकी जीभ शेखर के मुँह को टटोलने लगी। प्रगति को जैसे कोई चंडी चढ़ गई थी। उसे तेज़ उन्माद चढ़ा हुआ था। उसने जल्दी से अपने कपड़े उतारने शुरू किए और थोड़ी ही देर में नंगी हो गई। नंगी होने के बाद उसने शेखर के पांव छुए और खड़ी हो कर शेखर के कपड़े उतारने लगी। शेखर हक्का बक्का सा रह गया था। सब कुछ बहुत तेजी से हो रहा था और उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे।

वह मंत्र-मुग्ध सा खड़ा रहा। उसके भी सारे कपड़े उतर गए थे और वह पूरा नंगा हो गया था। प्रगति घुटनों के बल बैठ गई और शेखर के लिंग को दोनों हाथों से प्रणाम किया। फिर बिना किसी चेतावनी के लिंग को अपने मुँह में ले लिया। हालाँकि शेखर की शादी को 20 साल हो गए थे उसने कभी भी यह अनुभव नहीं किया था।

उसके बहुत आग्रह करने के बावजूद भी उसकी पत्नी ने उसे यह सुख नहीं दिया था। उसकी पत्नी को यह गन्दा लगता था। अर्थात, यह शेखर के लिए पहला अनुभव था और वह एकदम उत्तेजित हो गया। उसका लिंग जल्दी ही विकाराल रूप धारण करने लगा।

प्रगति ने उसके लिंग को प्यार से चूसना शुरू किया और जीभ से उसके सिरे को सहलाने लगी। अभी 2 मिनट भी नहीं हुए होंगे कि शेखर अपने पर काबू नहीं रख पाया और अपना लिंग प्रगति के मुँह से बाहर खींच कर ज़ोरदार ढंग से स्खलित हो गया। उसका सारा काम-मधु प्रगति के स्तनों और पेट पर बरस गया। शेखर अपनी जल्दबाजी से शर्मिंदा था और प्रगति को सॉरी कहते हुए बाथरूम चला गया।

प्रगति एक समझदार लड़की थी और आदमी की ताक़त और कमजोरी दोनों समझती थी। वह शेखर के पीछे बाथरूम में गई और उसको हाथ पकड़ कर बाहर ले आई। शेखर शर्मीला सा खड़ा था। प्रगति ने उसे बिस्तर पर बिठा कर धीरे से लिटा दिया। उसकी टांगें बिस्तर के किनारे से लटक रहीं थीं और लिंग मुरझाया हुआ था। प्रगति उसकी टांगों के बीच ज़मीन पर बैठ गई और एक बार फिर से उसके लिंग को अपने मुँह में लेकर चूसने लगी। मुरझाये लिंग को पूरी तरह मुँह में लेकर उसने जीभ से उसे मसलना शुरू किया।

शेखर को बहुत मज़ा आ रहा था। प्रगति ने अपने मुँह से लिंग अन्दर बाहर करना शुरू किया और बीच बीच में रुक कर अपने थूक से उसे अच्छी तरह गीला करने लगी। शेखर ख़ुशी के मारे फूला नहीं समा रहा था। उसके हाथ प्रगति के बालों को सहला रहे थे। धीरे धीरे उसके लिंग में फिर से जान आने लगी और वह बड़ा होने लगा। अब तक प्रगति ने पूरा लिंग अपने मुँह में रखा हुआ था पर जब वह बड़ा होने लगा तो मुँह के बाहर आने लगा। वह उठकर बिस्तर पर बैठ गई और झुक कर लिंग को चूसने लगी। उसके खुले बाल शेखर के पेट और जांघों पर गिर रहे थे और उसे गुदगुदी कर रहे थे।

अब शेखर का लिंग बिल्कुल तन गया था और उसकी चौड़ाई के कारण प्रगति के दांत उसके लिंग के साथ रगड़ खा रहे थे। अब तो शेखर की झेंप भी जाती रही और उसने प्रगति को एक मिनट रुकने को कहा और बिस्तर के पास खड़ा हो गया। उसने प्रगति को अपने सामने घुटने के बल बैठने को कहा और अपना लिंग उसके मुँह में डाल दिया। अब उसने प्रगति के साथ मुख-मैथुन करना शुरू किया। अपने लिंग को उसके मुँह के अन्दर बाहर करने लगा। शुरू में तो आधा लिंग ही अन्दर जा रहा था पर धीरे धीरे प्रगति अपने सिर का एंगल बदलते हुए उसका पूरा लिंग अन्दर लेने लगी। कभी कभी प्रगति को ऐसा लगता मानो लिंग उसके हलक से भी आगे जा रहा है।

शेखर को बहुत ज्यादा मज़ा आ रहा था। उसने अपने धक्के तेज़ कर दिए और मानो भूल गया कि वह प्रगति के मुँह से मैथुन कर रहा है। प्रगति को लिंग कि बड़ी साइज़ से थोड़ी तकलीफ तो हो रही थी पर उसने कुछ नहीं कहा और अपना मुँह जितना ज्यादा खोल सकती थी खोल कर शेखर के आनंद में आनंद लेने लगी।
शेखर अब दूसरी बार शिखर पर पहुँचने वाला हो रहा था, उसने प्रगति के सिर को पीछे से पकड़ लिया और जोर जोर से उसके मुँह को चोदने लगा। जब उसके लावे का उफान आने लगा उसने अपना लिंग बाहर निकालने की कोशिश की पर प्रगति ने उसे ऐसा नहीं करने दिया और दोनों हाथों से शेखर के चूतड पकड़ कर उसका लिंग अपने मुँह में जितना अन्दर कर सकती थी, कर लिया।

शेखर इसके लिए तैयार नहीं था। उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि वह किसी लड़की के मुँह में अपने लावे का फव्वारा छोड़ पायेगा। इस ख़ुशी से मानो उसका लंड डेढ़ गुना और बड़ा हो गया और उसका क्लाइमेक्स एक भूकंप के बराबर आया। प्रगति का मुँह मक्खन से भर गया पर उसने बाहर नहीं आने दिया और पूरा पी गई।

शेखर ने अपना लिंग प्रगति के मुँह से बाहर निकाला और झुक कर उसे ऊपर उठाया। प्रगति को कस कर आलिंगन में भर कर उसने उसका जोरदार चुम्बन लिया जिसमे कृतज्ञता भरी हुई थी। प्रगति के मुँह से उसके लावे की अजीब सी महक आ रही थी। दोनों ने देर तक एक दूसरे के मुँह में अपनी जीभ से गहराई से खोजबीन की और फिर थक कर लेट गए। शेखर कई सालों से एक समय में दो बार स्खलित नहीं हुआ था। उसका लिंग दोबारा खड़ा ही नहीं होता था। उसे बहुत अच्छा लग रहा था।

दिन के डेढ़ बज रहे थे। दोनों को घर जाने की जल्दी नहीं थी क्योंकि ऑफिस शाम 5 बजे तक का था और वैसे भी उन्हें ऑफिस में देर हो ही जाती थी। आमतौर पर वे 6-7 बजे ही निकल पाते थे। दोनों एक दूसरे की बाहों में लेट गए और न जाने कब सो गए।

करीब एक घंटा सोने के बाद शेखर की आँख खुली तो उसने देखा प्रगति दोनों के टिफिन खोल कर खाना टेबल पर लगा रही थी। उसने अपने को तौलिये से ढक रखा था। शेखर ने अपने ऑफिस की अलमारी से रम की बोतल और फ्रीज से कोक की बोतलें निकालीं और दोनों के लिए रम-कोक का ग्लास बनाया। प्रगति ने कभी शराब नहीं पी थी पर शेखर के आग्रह पर उसने ले ली। पहला घूँट उसे कड़वा लगा पर फिर आदत हो गई। दोनों ने रम पी और घर से लाया खाना खाया। खाने के बाद दोनों फिर लेट गए।

शेखर को अचानक ध्यान आया कि अब तक उसने प्रगति को ठीक से छुआ तक नहीं है। सारी पहल प्रगति ने ही की थी। उसने करवट बदलकर प्रगति की तरफ रुख़ किया और उसके सिर को सहलाने लगा।

प्रगति ने तौलिया लपेटा हुआ था। शेखर ने तौलिये को हटाने के लिए प्रगति को करवट दिला दी जिस से अब वह उल्टी लेटी हुई थी। शेखर ने उसके हाथ दोनों ओर फैला दिए और उसकी टांगें थोड़ी खोल दीं। अब शेखर उसकी पीठ के दोनों तरफ टांगें कर के घुटनों के बल बैठ गया और पहली बार उसने प्रगति के शरीर को छुआ। उसके लिए किसी पराई स्त्री को छूने का यह पहला अनुभव था।

कुछ पाप बड़ा आनंद देते हैं। उसके हाथ प्रगति के पूरे शरीर पर फिरने लगे। प्रगति का स्पर्श उसे अच्छा लग रहा था और उसकी पीठ और चूतड़ का दृश्य उसमें जोश पैदा कर रहा था।

प्रगति एक मलयाली लड़की थी जो नहाने के लिए साबुन का इस्तेमाल नहीं करती थी। उसे पारम्परिक मुल्तानी मिट्टी की आदत थी जिससे उसकी काया बहुत चिकनी और स्वस्थ थी। वह बालों में रोज़ नारियल तेल से मालिश करती थी जिस से उसके बाल काले और घने थे। इन मामलों में वह पुराने विचारों की थी।

उसके पुराने विचारों में अपने पति की आज्ञा मानना और उसकी इच्छा पूर्ति करना भी शामिल था। यही कारण था की इतने दिनों से वह अपने पति का अत्याचार सह रही थी। शेखर प्रगति के शरीर को देख कर और छू कर बहुत खुश था। उसे उसके पति पर रश्क भी हो रहा था और गुस्सा भी आ रहा था कि ऐसी सुन्दर पत्नी को प्यार नहीं करता था।

शेखर ने प्रगति के कन्धों और गर्दन को मलना और उनकी मालिश करना शुरू किया। कहीं कहीं गाठें थी तो उन्हें मसल कर निकालने लगा। जब हाथ सूखे लगने लगे तो बाथरूम से तेल ले आया और तेल से मालिश करने लगा। जब कंधे हो गए तो वह थोड़ा पीछे खिसक गया और पीठ पर मालिश करने लगा। जब वह मालिश के लिए ऊपर नीचे होता तो उसका लंड प्रगति की गांड से हलके से छू जाता।

प्रगति को यह स्पर्श गुदगुदाता और वह सिहर उठती और शेखर को उत्तेजना होने लगती। थोड़ी देर बाद शेखर और नीचे खिसक गया जिस से लंड और गांड का संपर्क तो टूट गया पर अब शेखर के हाथ उसकी गांड की मालिश करने लगे। उसने दोनों चूतडों को अच्छे से तेल लगाकर मसला और मसाज करने लगा। उसे बहुत मज़ा आ रहा था। प्रगति भी आनंद ले रही थी।

उसे किसी ने पहले ऐसे नहीं किया था। शेखर के मर्दाने हाथों का दबाव उसे अच्छा लग रहा था। शेखर अब उसकी जाँघों तक पहुँच गया था। शेखर की उंगलियाँ उसकी जाँघों के अंदरूनी हिस्से को टटोलने लगी। प्रगति ने अपनी टांगें थोड़ी और खोल दीं और ख़ुशी से मंद मंद करहाने लगी। शेखर ने हल्के से एक दो बार उसकी योनि को छू भर दिया और फिर उसके घुटनों और पिंडलियों को मसाज करने लगा।

प्रगति चाहती थी कि शेखर योनि से हाथ न हटाये पर कसमसा कर रह गई। शेखर भी उसे जानबूझ कर छेड़ रहा था। वह उसे अच्छी तरह उत्तेजित करना चाहता था। थोड़ी देर बाद प्रगति के पांव अपने गोदी में रख कर सहलाने लगा तो प्रगति एकदम उठ गई और अपने पांव सिकोड़ लिए। वह नहीं चाहती थी कि शेखर उसके पांव दबाये। पर शेखर ने उसे फिर से लिटा दिया और दोनों पांव के तलवों की अच्छी तरह से मालिश कर दी। प्रगति को बहुत आराम मिल रहा था और न जाने कितने वर्षों की थकावट दूर हो रही थी। अब प्रगति कृतज्ञता महसूस कर रही थी।

शेखर ने प्रगति को सीधा होने को कहा और वह एक आज्ञाकारी दासी की तरह उलट कर सीधी हो गई। शेखर ने पहली बार ध्यान से प्रगति के नंगे शरीर को सामने से देखा। जो उसने देखा उसे बहुत अच्छा लगा। उसके स्तन छोटे पर बहुत गठीले और गोलनुमा थे जिस से वह एक 16 साल की कमसिन लगती थी। चूचियां हलके कत्थई रंग की थी और स्तन पर तन कर मानो राज कर रही थी। शेखर का मन हुआ वह उनको एकदम अपने मुँह में ले ले और चूसता रहे पर उसने धीरज से काम लिया।

हाथों में तेल लगा कर उसने प्रगति की भुजाओं की मालिश की और फिर उसके स्तनों पर मसाज करने लगा। यह अंदाज़ लगाना मुश्किल था कि किसको मज़ा ज्यादा आ रहा था। थोड़ी देर मज़े लेने के बाद शेखर ने प्रगति के पेट पर हाथ फेरना शुरू किया। उसके पतले पेट पर तेल का हाथ आसानी से फिसल रहा था। उसने नाभि में ऊँगली घुमा कर मसाज किया और फिर हौले हौले शेखर के हाथ उसके मुख्य आकर्षण की तरफ बढ़ने लगे।

प्रगति ने पूर्वानुमान से अपनी टांगें और चौड़ी कर लीं। शेखर ने हाथों में और तेल लगाकर प्रगति की योनि के इर्द गिर्द सहलाना शुरू किया। कुछ देर तक उसने जानबूझ कर योनि को नहीं छुआ। अब प्रगति को तड़पन होने लगी और वह कसमसाने लगी। शेखर के हाथ नाभि से लेकर जांघों तक तो जाते पर योनि और उसके भग को नहीं छूते। थोड़ी देर तड़पाने के बाद जब शेखर की उँगलियाँ पहली बार योनि की पलकों को लगीं तो प्रगति उन्माद से कूक गई और उसका पूरा शरीर एक बार लहर गया। मसाज से ही शायद उसका स्खलन हो गया था, क्योंकि उसकी योनि से एक दूधिया धार बह निकली थी।

शेखर ने ज्यादा तडपाना ठीक ना समझते हुए उसकी योनि में ऊँगली से मसाज शुरू किया और दूसरे हाथ से उसकी भगनासा को सहलाने लगा। प्रगति की योनि मानो सम्भोग की भीख मांग रही थी और प्रगति की आँखें भी शेखर से यही प्रार्थना कर रही थीं। उधर शेखर का लिंग भी अंगडाई ले चुका था और धीरे धीरे अपने पूरे यौवन में आ रहा था।

शेखर ने प्रगति को बताया कि वह सम्भोग नहीं कर सकता क्योंकि उसको पास कंडोम नहीं है और वह बिना कंडोम के प्रगति को जोखिम में नहीं डालना चाहता, इसलिए वह प्रगति को उँगलियों से ही संतुष्ट कर देगा। पर प्रगति ने शेखर को बिना कंडोम के ही सम्भोग करने को कहा। उसने कहा- अगर कंडोम होता भी तो भी वह उसे इस्तेमाल नहीं करने देती। जबसे उसके बेटे की मौत हुई है उसे बच्चे की लालसा है और अगर बच्चा हो भी जाता है तो उसके घर में खुशियाँ आ जाएँगी। उसने भरोसा दिलाया कि वह कभी भी शेखर को इस के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराएगी और ना ही कभी इसका हर्जाना मांगेगी।

उसने शेखर को कहा कि अगर उसे प्रगति पर भरोसा है तो हमेशा बिना कंडोम के ही सम्भोग करेंगे। उसने यह भी कहा कि जितना सुख उसे आज मिला है उसे 14 साल की शादी में नहीं मिला और वह चाहती है कि यह सुख वह भविष्य में भी लेती रहे। उसने कहा कि शायद वह एक निम्न चरित्र की औरत जैसी लग रही होगी पर ऐसी है नहीं और उसके लिए किसी गैर-मर्द से साथ ऐसा करना पहली बार हुआ है।

शेखर ने उसे समझाया कि कई बार जल्दबाजी में लिए हुए निर्णय बाद में पछतावे का कारण बन जाते हैं इस लिए अच्छे से सोच लो।

प्रगति ने कहा कि कोई भी औरत ऐसे निर्णय बिना सोचे समझे नहीं लेती। वह पूरे होशो-हवास में है और अपने निर्णय पर अडिग है और शर्मिंदा नहीं है।

शेखर को प्रगति के इस निश्चय और आत्मविश्वास पर गर्व हुआ और उसने तेल से सनी हुई प्रगति को उठा कर सीने से लगा लिया। इस दौरान शेखर का लिंग मुरझा गया था। प्रगति ने लिंग की तरफ देखते हुए शेखर को आँखों ही आँखों में आश्वासन दिलाया कि वह उस लिंग में जान डाल देगी।
उसने शेखर को लिटा दिया और उसके ऊपर हाथों और घुटनों के बल आ गई। पहले उसने अपने बालों की लटों से उसके मुरझाये लिंग पर लहरा कर गुदगुदी की और फिर अपने स्तनों से लंड को मसलने लगी। अपनी उभरी हुई चूचियों से उसने लंड को ऊपर से नीचे तक गुलगुली की। शेखर का बेचारा लिंग इस तरह के लुभाने का आदि नहीं था और जल्दी ही मरे से अधमरा हो गया।

प्रगति ने शेखर के लंड की नींव के चारों तरफ जीभ फिराना शुरू किया और उसकी छड़ चाटने लगी। एक एक करके उसने दोनों अण्डों को मुँह में लेकर चूस लिया। अपनी गीली जीभ को लंड के सुपारे पर घुमाने लगी और फिर उसके अधमरे लंड को पूरा मुँह में लेकर चूसने लगी। इस बार चूसते वक़्त वह लंड को निगलने की कोशिश कर रही थी और हाथों से उसके अण्डों को गुदगुदा रही थी। शेखर को इतना मज़ा पहले कभी नहीं आया था। उसका लंड एक बार फिर अपनी ज़िम्मेदारी निभाने के लिए तैयार हो गया।

उसके पूरे तरह से तने हुए लंड को प्रगति ने एक बार और पुच्ची दी और शेखर को बिना बताये उसके लंड पर अपनी योनि रखकर बैठ गई। शेखर का मुश्तंड लंड उसकी गीली चूत में आसानी से घुस गया। प्रगति ने अपने कूल्हों को गोल गोल घुमा कर शेखर के लंड की चक्की चलाई और फिर ऊपर नीचे हो कर मैथुन के मज़े लूटने लगी।

शेखर भी अपनी गांड ऊपर उछाल उछाल कर प्रगति के धक्कों का जवाब देने लगा। प्रगति के स्तन मस्ती में उछल रहे थे और उसके चेहरे पर एक मादक मुस्कान थी। थोड़ी देर इस तरह करने के बाद शेखर ने प्रगति को अपनी तरफ खींच कर आलिंगनबद्ध कर लिया और उसे पकड़े हुए और बिना लंड बाहर निकाले हुए पलट गया।

अब शेखर ऊपर था प्रगति नीचे और चुदाई लगातार चल रही थी। प्रगति उसके प्रहारों का जमकर जवाब दे रही थी और अपनी तरफ से शेखर के लंड को पूरी तरह अन्दर लेने में सहायता कर रही थी। दोनों बहुत मस्त थे। यकायक प्रगति के मुँह से आवाजें आने लगीं- .. ऊऊह आः हाँ हाँ .. और ज़ोर से… हाँ हाँ .. चलते रहो… और .. और… मुझे मार डालो… मेरे मम्मे नोंचो… ऊऔउई…’

शेखर यह सुन कर और उत्तेजित हो कर ज़ोर ज़ोर से चोदने लगा। चार पांच छोटे धक्कों के बाद लंड पूरा बाहर निकाल कर पेलने लगा। जब वह ऐसा करता तो प्रगति ख़ुशी से चिल्लाती ‘ हाँ ऐसे… और करो…और करो .. ‘

शेखर का स्खलन आम तौर पर 4-5 मिनटों में हो जाया करता था पर आज चूंकि यह उसका तीसरा वार था और उसे प्रगति जैसी लड़की का सुख प्राप्त हो रहा था, उसका लंड मानो चरमोत्कर्ष तक पहुंचना ही नहीं चाहता था। यह जान कर शेखर को अपने मर्दानगी पर नया गर्व हो रहा था और वह दुगने जोश से चोद रहा था।

उसने प्रगति को अपने हाथों और घुटनों पर हो जाने को कहा और फिर पीछे से उसकी चूत में प्रवेश करके चोदने लगा। उसके हाथ प्रगति के मम्मों को गूंथ रहे थे। अब हर बार उसका लंड पूरा बाहर आता और फिर एक ही झटके में पूरा अन्दर चला जाता। शेखर ने एक ऊँगली प्रगति की योनि-मटर के आस पास घुमानी शुरू की तो प्रगति एक गेंद की तरह ऊपर नीचे फुदकने लगी। उस से इतना सारा मज़ा नहीं सहा जा रहा था।

उसकी उन्माद में ऊपर नीचे होने की गति बढ़ने लगी तो अचानक लंड फिसल कर बाहर आ गया। इस से पहले कि शेखर लंड को फिर से अन्दर डालता प्रगति ने करवट लेकर उसको अपने मुँह में ले लिया और अपने थूक से अच्छे से गीला कर दिया। और फिर अपनी चूत लंड की सीध में करके चुदने के लिए तैयार हो गई। शेखर ने प्रगति को फिर से पीठ के बल लेटने को कहा और आसानी से गीले लंड को फिच से अन्दर डाल दिया।

प्रगति आराम से लेट गई और शेखर भी उसके ऊपर पूरा लेट गया। लंड पूरा अन्दर था और शेखर का वज़न थोड़ा प्रगति के बदन पर और थोड़ा अपनी कोहनियों पर था। शेखर के सीने के नीचे प्रगति के सख्त बोबे पिचक रहे थे और तनी हुई चूचियां शेखर को छेड़ रहीं थीं। रह रह कर शेखर अपने कूल्हे ऊपर उठा कर अपने लंड को अन्दर बाहर करता रहता पर ज्यादातर बस प्रगति पर लेटा रहता। वह बस इतनी ही हरकत कर रहा था जिस से उसका लंड शिथिल ना हो। उसने प्रगति से पूछा कि वह ठीक है या उसे तकलीफ हो रही है? जवाब मैं प्रगति ने ऊपर हो कर उसके होटों पर पुच्ची दे दी।

शेखर अब बहुत आराम से सम्भोग का मज़ा ले रहा था। उसने प्रगति की भुजाओं को पूरा फैला दिया था और उसकी टांगों को जोड़ दिया था जिस से उसके लंड को योनि ने और कस लिया। जब शेखर मैथुन का धक्का मरता तो उसे तंग और कसी हुई योनि मिलती।
शेखर को ऐसा लग रहा था मानो वह किसी कुंवारी बाला का पहला प्यार हो। उधर प्रगति को टांगें बंद करने से शेखर का लंड और भी मोटा लगने लगा था। दोनों के मज़े बढ़ गए थे। कुछ देर इसी तरह मगरमच्छ की तरह मैथुन करने के बाद शेखर ने प्रगति कि टांगें एक बार फिर खोल दीं और नीचे खिसक कर उसकी योनि मटर पर जीभ फेरने लगा।

प्रगति को मानो करंट लग गया.वह उछल गई। शेखर ने उसके मटर को खूब चखा। प्रगति की चूत में पानी आने लगा और वह आपे से बाहर होने लगी। यह देखकर शेखर फिर पूरे जोश के साथ चोदने लगा। पांच-छः छोटे धक्के और दो लम्बे धक्कों का सिलसिला शुरू किया।

एक ऊँगली उसने प्रगति की गांड में घुसा दी एक अंगूठा मटर पर जमा दिया। शेखर को यह अच्छा लग रहा था कि उसे स्खलन का संकेत अभी भी नहीं मिला था। उसे एक नई जवानी का आभास होने लगा। इस अनुभूति के लिए वह प्रगति का आभार मान रहा था। उसी ने उसमें यह जादू भर दिया था। वह बेधड़क उसकी चुदाई कर रहा था।

प्रगति अब चरमोत्कर्ष की तरफ बढ़ रही थी। उसका बदन अपने आप डोले ले रहा था उसकी आँखें लाल डोरे दिखा रही थी, साँसें तेज़ हो रहीं थीं। स्तन उफ़न रहे थे और चूचियां नई ऊँचाइयाँ छू रहीं थीं। उसकी किलकारियां और सिसकियाँ एक साथ निकल रहीं थीं। प्रगति ने शेखर को कस के पकड़ लिया और उसके नाखून शेखर कि पीठ में घुस रहे थे।

वह ज़ोर से चिल्लाई और एक ऊंचा धक्का दे कर शेखर से लिपट गई और उसके लंड को चोदने से रोक दिया। उसका शरीर मरोड़ ले रहा था और उसकी आँखों में ख़ुशी के आँसू थे। थोड़ी देर में वह निढाल हो गई और बिस्तर पर गिर गई।

शेखर ने अपना लंड बाहर निकालने की कोशिश की तो प्रगति ने उसे रोक दिया, बोली कि थोड़ी देर रुक जाओ। मैं तो स्वर्ग पा चुकी हूँ पर तुम्हें पूरा आनंद लिए बिना नहीं जाने दूँगी। तुमने मेरे लिए इतना किया तो मैं भी तुम्हें क्लाइमेक्स तक देखना चाहती हूँ। शेखर ने थोड़ी देर इंतज़ार किया।

जब प्रगति की योनि थोड़ी शांत हो गई तो उसने फिर से चोदना शुरू किया। उसका लंड थोड़ा आराम करने से शिथिल हो गया था तो शेखर ने ऊपर सरक कर अपना लंड प्रगति के मम्मों के बीच में रख कर रगड़ना शुरू किया। कुछ देर बाद प्रगति ने शेखर को अपने तरफ खींच कर उसका लंड लेटे लेटे अपने मुँह में ले लिया और जीभ से उसे सहलाने लगी।

बस फिर क्या था। वह फिर से जोश में आने लगा और देखते ही देखते अपना विकराल रूप धारण कर लिया। शेखर ने मुँह से निकाल कर नीचे खिसकते हुए अपना लंड एक बार फिर प्रगति की चूत में डाल दिया और धीरे धीरे चोदने लगा।
उसकी गति धीरे धीरे तेज़ होने लगी और वार भी पूरा लम्बा होने लगा। प्रगति भी साथ दे रही थी और बीच बीच में अपनी टांगें जोड़ कर चूत तंग कर लेती थी। शेखर ने अपने शरीर को प्रगति के सिर की तरफ थोड़ा बढ़ा लिया जिससे उसका लंड घर्षण के दौरान प्रगति के मटर के साथ रगड़ रहा था। यह प्रगति के लिए एक नया और मजेदार अनुभव था।

उसने अपना सहयोग और बढ़ाया और गांड को ज़ोर से ऊपर नीचे करने लगी। अब शेखर को उन्माद आने लगा और वह नियंत्रण खोने लगा। उसके मुँह से अचानक गालियाँ निकलनी लगीं,’ साली अब बोल कैसा लग रहा है?… आआअह्ह्ह्हाअ अब कभी किसी और से मराएगी तो तेरी गांड मार दूंगा… आह्हा कैसी अच्छी चूत है !!… मज़ा आ गया… साली गांड भी मराती है क्या?… मुझसे मरवाएगी तो तुझे पता चलेगा… ऊओह .’

कहते हैं जब इंसान चरमोत्कर्ष को पाता है तो जानवर हो जाता है। कुछ ऐसा ही हाल शेखर का हो रहा था। वह एक भद्र अफसर से अनपढ़ जानवर हो गया था। थोड़ी ही देर में उसके वीर्य का गुब्बारा फट गया और वह ज़ोर से गुर्रा के प्रगति के बदन पर गिर गया और हांफने लगा। उसका वीर्य प्रगति की योनि में पिचकारी मार रहा था। शेखर क्लाइमेक्स के सुख में कंपकंपा रहा था और उसका फव्वारा अभी भी योनि को सींच रहा था। कुछ देर में वह शांत हो गया और शव की भांति प्रगति के ऊपर पड़ गया।

शेखर ने ऐसा मैथुनी भूकंप पहले नहीं देखा था। वह पूरी तरह निढाल और निहाल हो चुका था। उधर प्रगति भी पूरी तरह तृप्त थी। उसने भी इस तरह का भूचाल पहली बार अनुभव किया था। दोनों एक दूसरे को कृतज्ञ निगाहों से देख रहे थे। शेखर ने प्रगति को प्यार भरा लम्बा चुम्बन दिया। अब तक उसका लिंग शिथिल हो चुका था अतः उसने बाहर निकाला और उठ कर बैठ गया। प्रगति भी पास में बैठ गई और उसने शेखर के लिंग को झुक कर प्रणाम किया और उसके हर हिस्से को प्यार से चूमा।

शेखर ने कहा- और मत चूमो नहीं तो तुम्हें ही मुश्किल होगी।

प्रगति बोली कि ऐसी मुश्किलें तो वह रोज झेलना चाहती है। यह कह कर उसने लंड को पूरा मुँह में लेकर चूसा मानो उसकी आखिरी बूँद निकाल रही हो। उसने लंड को चाट कर साफ़ कर दिया और फिर खड़ी हो गई।

घड़ी में शाम के छः बज रहे थे। उन्होंने करीब छः घंटे रति-रस का भोग किया था। दोनों थके भी थे और चुस्त भी थे। प्रगति शेखर को बाथरूम में ले गई और उसको प्यार से नहलाया, पौंछा और तैयार किया। फिर खुद नहाई और तैयार हुई। शेखर के लिंग को पुच्ची करते हुए उसने शेखर को कहा कि अब यह मेरा है। इसका ध्यान रखना। इसे कोई तकलीफ नहीं होनी चाहिए। मैं चाहती हूँ कि यह सालों तक मेरी इसी तरह आग बुझाये।

शेखर ने उसी अंदाज़ में प्रगति की चूत और गांड पर हाथ रख कर कहा कि यह अब मेरी धरोहर हैं। इन्हें कोई और हाथ ना लगाये। प्रगति ने विश्वास दिलाया कि ऐसा ही होगा पर पूछा की गांड से क्या लेना देना? शेखर ने पूछा कि क्या अब तक उसके पति ने उसकी गांड नहीं ली?

प्रगति ने कहा- नहीं ! उनको तो यह भी नहीं पता कि यह कैसे करते हैं।

शेखर ने कहा कि अगर तुम्हे आपत्ति न हो तो मैं तुम्हें सिखाऊंगा। प्रगति राजी राजी मान गई। शेखर ने अगले शुक्रवार के लिए तैयार हो कर आने को कहा और फिर दोनों अपने अपने घर चले गए।

अगर आप जानना चाहते हैं कि अगले शुक्रवार को क्या हुआ तो मुझे ज़रूर लिखें।
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