चूत की कहानी उसी की ज़ुबानी-3

(Choot Ki Kahani Usi Ki Jubani- Part 3)

पूनम चोपड़ा 2019-03-05 Comments

This story is part of a series:

आरती के पापा से जॉब का आश्वासन पाकर मैं उनका थॅंक्स करते हुए आरती के साथ बाहर आ गई और वो मुझे अपने साथ पास ही किसी रेस्टोरेंट में ले गई.

असली बात तो यह थी कि वो मुझसे धीरज के बारे में पूछना चाहती थी. मैं भी यह समझ रही थी मगर मैं चाहती थी कि वो खुद ही अपने मुँह से कुछ कहे.
खैर कॉफी पीते हुए उसने कहा- मेरे चोदू धीरज का क्या हाल है, कहाँ है वो आजकल? उसकी शादी हो गई क्या?
मैंने कहा- वो इंजिनियर बन गया है और मुंबई में अच्छी ख़ासी नौकरी कर रहा है. मामा मामी तो उसको शादी के लिए बहुत कहते हैं मगर वो नहीं मानता. एक दिन उससे मैंने पूछा था कि क्या बात है अगर कोई तुम्हारी नज़र में है तो बताओ. उसने कहा कि तुम्हारी सहेली आरती जैसे कोई मिले तो बात बने.

यह सुनकर आरती बहुत खुश हो गई, एकदम से उसने मुझे हग करते हुए मेरे होंठों को चूमा और बोली- यार, मैं खुद भी उस के लंड के लिए तड़फ़ रही हूँ और उसी से चुदवाना चाहती हूँ.
मैंने कहा- रूको, मैं तुम्हारी बात करवाती हूँ.
फिर मैंने धीरज से फोन कर कुछ इधर उधर की बात करके कहा- तुम्हारे लिए एक सरपराइज़ है.
इससे पहले वो कुछ बोलता, मैंने आरती को फोन पकड़ा दिया, कहा- करो उससे बात और पूछ लो कि कब चोदेगा तुमको.
उसने ‘धत्त’ कहते हुए फोन लिए और हेलो करते हुए एक कोने में जा कर बात करने लगी.

उसके हाव भाव से पता लग रहा था कि उससे बात करते हुए वो बहुत चहक रही थी. कुछ देर बाद वापिस आई और मुझे फोन वापिस करते हुए बोली- आज तो अगर मैं भगवान से कुछ और भी मांगती तो मेरी मुराद पूरी हो जाती. तुम्हारा मिलना तो आज मेरे लिए बहुत लकी है. मेरा मनपसंद लंड मुझे फिर से मिल गया.
फिर बोली- वो कल ही आयगा तुम्हारे घर पर किसी बहाने से कहेगा कि वो किसी काम से आया है, मगर असली काम तो मेरी चूत को खुश करना है.

आरती ने सही कहा था, दूसरे दिन सुबह सुबह ही वो आ गया और बोला- कंपनी का खास काम है और शाम तो वापिस जाऊँगा.
मैंने कहा- क्यों रात तो मेरे पास रहने में क्या कोई प्राब्लम है? मुझे सब पता है कि तुम आरती की चूत को चोदने आए हो. मेरी चूत को क्यों भूल जाते हो?
तब वो बोला- ठीक है, कल सुबह चला जाऊँगा. दिन में आरती और रात में पुन्नी की चूत.

वो जल्दी से तैयार हो कर घर से निकल गया.
उसके निकलते ही मैंने आरती को फोन किया- आज अपनी चूत का ध्यान रखना, धीरज का लंड बौखलाया हुआ है तुमको चोदने के लिए.
जवाब में वो बोली- मेरी फिकर ना कर … अपनी चूत को समभाल … मुझे पता है वो तेरी भी बजाएगा रात को.
“इसका मतलब कि तुम्हें उसने सब कुछ बता दिया है? कोई बात नहीं … तो अपनी चुदाई की अपनी ज़ुबानी मुझे बता देना.”
“ओके ज़रूर … तो तुम भी अपनी चुदाई मुझ से सांझी करना.”
मैंने कहा- मैं अपनी चुदाई की फिल्म बना लूँगी जो तुम को दिखाऊँगी. तुम भी अपने फोन को कुछ इस तरह से अड्जस्ट कर लेना ताकि पूरी चुदाई रेकॉर्ड हो जाए तो फिर मैं उसको देखूँगी.

शाम तो धीरज घर आया और मैंने अपने रूम का दरवाजा उसके लंड का स्वागत करने के लिए खोल रखा था. जब सबने खाना खा लिया तो मम्मी पापा अपनी चुदाई के लिए अपने बेडरूम में चले गये और धीरज अपने कमरे में जाकर अपने कपड़े चेंज करने लगा.
तब मैंने अपने रूम का दरवाजा खोल कर कहा- कोई चेंज करने की ज़रूरत नहीं, सब कुछ उतार कर मेरे पास आ जाओ.

बस फिर क्या था … आते ही मेरी चूत पर भूखे कुत्ते की तरह टूट पड़ा और चुदाई शुरू कर दी.
मैंने उससे पूछा- क्या पूरा दिन आरती की चूत चोद कर तुम्हारा दिल नहीं भरा?
वो बोला- नहीं यार, यह लंड साला चुदाई के बाद भी खड़ा रहता है. आरती को चार बार चोदा है इसने आज … मगर फिर भी दिल नहीं भरा, तुम्हारी चूत के पीछे पड़ा है.

उसने दबा कर मेरी चूत को चोदा, कभी मुझे लंड पर चढ़वाया और कभी खुद चूत पर चढ़ा, कभी गोद में ले कर चोदा तो कभी खड़ा करके चूत में लंड को पेला.
मेरा ममेरा भाई चुदाई मेरी कर रहा था और गुणगान मेरी सहेली आरती की चूत का कर रहा था.
फिर वह मुझ से बोला- यार तुम मेरी आरती से शादी का कुछ करो ना. तुम मेरे मम्मी पापा तो मनाओ तो फिर तुम आरती की मम्मी से मिलकर कुछ ऐसा करो कि वो बिना झिझक के मान जायें. मैंने कहा- मगर मुझे क्या मिलेगा?
उसने कहा- जो कहोगी.
मैंने उसको कहा- जब भी मैं बुलाऊँगी, तुम्हें मेरी चूत को चोदने आना पड़ेगा. बोलो मंजूर है?
उसने कहा- वो तो तुम ना भी कहती तो भी चोद कर ही मानूँगा.

मैं फिर कई बार आरती से मिलने के बहाने उसके घर उसकी मां को मिलने लगी और उनसे अपनी ज़रूरत से ज़्यादा जान पहचान बनाने लगी. उनको पता था कि मैं उनके पति के ऑफिस में काम करती हूँ.

एक दिन उनको बातों ही बातों में बताया कि मैं अब यहाँ से नौकरी छोड़ कर मुंबई जा रही हूँ क्योंकि मेरा भाई वहीं काम करता है और उसने मेरे लिए एक नौकरी खोज ली है.
जब आरती की माँ कुछ जानना चाहा तो मैंने धीरज की बहुत ही तारीफ की और उनके मन में ऐसे लड़के को अपना दामाद बनाने की इच्छा होने लगी. तब उन्होंने मुझसे पूछा- उसके परिवार में कौन कौन है?
तब मैंने बताया- वो अपने माता पिता का इक्लोता लड़का है और वो मेरे लिए मेरा सगा भाई है.
बातों ही बातों में उस ने मुझ से पूछा क्या आरती उस से मिली हुई है. मैंने कहा हा आंटी दोनों एक दूसरे को अच्छी तरह से जानते हैं. इस तरह से उन को फुसला कर मैंने खुद ही उन के दिल में धीरज के लिए जगह बनवा ली और उन्होंने ही शादी के लिए रिश्ते की बात की जो मंज़िल तक पहुँच गई.

आरती और धीरज दोनों ही शादी के बाद बहुत खुश थे और आज भी हैं. मगर एक बात है कोई भी लड़की शादी के बाद अपने पति को किसी दूसरी से चुदाई करते हुए नहीं देख सकती और यही बात आरती में भी है. धीरज मुझे आज भी दबा कर चोदता है. पर यह बात ना तो आरती को पता है और ना ही मेरे पति को. मेरा पति तो खैर यही समझता है कि हम दोनों सगे भाई बहन की तरह से हैं और जब वो आता है तो उस को उसी तरह से मिलता है जैसे कोई अपने साले से मिलता है.
आरती को भी यकीन हो चुका है कि धीरज का मेरे से कोई सम्बन्ध नहीं है. मगर असलियत तो यही है कि वो मेरी चूत का और मैं उसके लंड की दीवानी हूँ. हम दोनों कोई भी मौक़ा हाथ से नहीं जाने देते जब चुदाई का अवसर पास हो.

आरती की शादी हो चुकी थी और वो मस्ती से अपनी चूत को हरा भरा कर रही थी. इधर मैं भी किसी सख्त मोटे लंबे लंड की तलाश में थी जिससे शादी कर सकूँ. मगर मुझे यह भी डर था कि मेरी चूत जो पूरी तरह से फ़टी हुई है और जब लड़के को पता लगेगा कि उसको चुदी चुदाई चूत मिल रही है तो वो शायद मुझ से पूरी तरह से मस्ती ना करे. जब भी वो अपना लंड मेरी चूत में डालेगा तो उसको लगेगा कि वो किसी दूसरे की चुदी हुई चूत को ही चोद रहा है.

कुछ दिन बाद मेरे नौकरी एक बढ़िया कंपनी में लग गई और वहाँ पर एक लड़का मुझ को लाइन मारने लगा. वो बहुत मस्त था और उस पर मेरा भी दिल आया हुआ था.
एक दिन मुझे ऑफिस में कुछ देर हो गई और वो मेरे पास आकर बोला- आज तो आप काम में फँस गई. अब बहुत देर हो गई है कैसे वापिस जायेंगी.
मैंने कहा- देखती हूँ अगर कोई सवारी मिलती है तो!
उसने कहा- चलिए आज मैं आपको छोड़ देता हूँ.
मैंने ऊपर से ना नुकुर की मगर अंदर से मैं बहुत खुश थी कि आज इसके साथ जाने का मौक़ा मिला है और इसको किसी ना किसी तरह से फँसाना चाहिए और शादी के लिए तैयार करूँ.

उसने कहा- नहीं, आपको कोई सवारी ढूँढने की ज़रूरत नहीं है. मैं हूँ ना.
उसके पास बाइक थी और मैं उसके पीछे लड़कों की तरह से बैठ गई और हर झटके पर जानबूझ कर अपने मम्मों हो उसकी पीठ पर दबा देती. फिर मैंने उसको दोनों हाथों से एक घेरा बना कर उस से चिपक गई और अपने दोनों हाथ इस तरह से रखा कि वो उसके लंड के आस पास ही रहें. जब कुछ देर इसी तरह से मैं उससे चिपकी रही तो मुझे पता लग गया कि उसके लंड ने भी घंटियाँ बजानी शुरू कर दी हैं.

मुझे घर पर छोड़ने के बाद वो वापिस चला गया और मेरे घर के अंदर भी नहीं आया. मैंने उसको बहुत कहा कि एक कप कॉफी पी कर जाना. पर तब उसने कहा- आपकी कॉफी ड्यू रही मैं फिर कभी पीऊंगा, अभी मैं जल्दी में हूँ.

अब उससे मेरी मुलाकात हर रोज़ ही होती और हम लोग ऑफिस के बाद कुछ देर इधर उधर टहलते. धीरे धीरे हम लोग शाम को किसी होटल में जाकर चाय कॉफी पीकर कुछ समय साथ रहते. वो धीरे धीरे नज़दीक आता गया और हम दोनों एक दूसरे को चूमने चाटने भी लग गये. अब वो मेरी जांघों पर भी हाथ फेरने लग गया. फिर उसके हाथ मेरे मम्मों तब भी पहुँचने शुरू हो गये और मेरे हाथ उसके लंड पर.
मैं यह देखना चाहती थी कि उसका लंड कितना मोटा और लंबा है. जैसे ही मैंने अपना हाथ उसके लंड पर रखा, मुझे अहसास हो गया कि इसका लंड भी धीरज से कम नहीं है. अब मैं उसको उकसाने लगी ताकि वो मेरी सलवार को खोल कर बिना चूत को देखे अपना लन्ड मेरी चूत में डाल दे. अगर वो उसको देखेगा तो साफ पता लग जाएगा कि यह पूरी तरह से खेली खाई है जो मैं नहीं चाहती थी कि उसको पता लगे.

वो मेरे मम्मों को अब पूरी तरह से दबाता था और जब भी मौक़ा मिलता तो उन पर अपना मुँह भी मारता था.

आख़िर एक दिन उसने अपना हाथ मेरी सलवार के अंदर डाल दिया. मैंने उसको मना नहीं किया और वो बोला- यह तो पूरी गीली हुई है.
मैंने कहा- जब इसकी बहनों पर हाथ मारोगे तब यह रोएगी नहीं क्या?
वो बोला- मैंने कब इसकी बहन को कुछ किया है.
मैंने कहा- ओ बुद्धू महाराज, मेरे मम्में इसकी बहनें हैं. जब उन पर मार पड़ती है तो इसके आँसू निकलते हैं.
“ओह … तब साफ साफ बोलो ना कि इसका भी इलाज़ करना है.”
“तुम्हें नहीं पता जो मुझ से कहलवाना चाहते हो?”

उस वक़्त हम लोग किस पार्क की झाड़ियों में छिपे थे.

कहानी जारी रहेगी.
लेखिका की इमेल नहीं दी जा रही है.

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