मेरा नौकर राजू और मेरी बहन-4
मेरी सेक्सी कहानी के पिछले भाग
मेरा नौकर राजू और मेरी बहन-3
में आपने पढ़ा कि मेरी छोटी बहन सीमा मुझे बता रही है कि उसके सेक्स सम्बन्ध मेरे नौकर से कैसे और कब बनने शुरू हुए थे. होली वाले दिन उसने अपनी तीन सहेलियों के साथ मिल कर अपने युवा नौकर से भांग बनवा कर पी ली और सबको चढ़ गयी. सभी लड़कियां नौकर के लंड की दिवानी हो गयी.
अब आगे:
शाम को छह बजे मैं जगी तो रंजू और चेतना घर जाने के लिए तैयार हो रही थी। राखी बाथरूम में थी, मैं अपने बेड से उठी तब राखी भी बाथरूम से बाहर आ गयी। मैं भी बाथरूम में जाकर फ्रेश हुई और राजू को आवाज दी, चाय और खाने की बहुत जरूरत थी। भांग के नशे में हम चारों ने भी दोपहर को ठीक से खाना नहीं खाया था।
कुछ देर गप्पें मारने के बाद राजू नाश्ता लेकर आया।
“यार सीमा, मेरे घर में थोड़ा काम है, मैं इस राजू को लेकर जाऊं क्या?” रंजू बोली।
“मेरे घर तुमसे भी ज्यादा काम है… मैं उसे ले जाती हूं आज थोड़ी देर के लिए!” राखी बोली।
“मेरे भी घर…” चेतना बोल ही रही थी कि राखी ने उसके हाथ पे मारते हुए बोली- तेरे घर में दामोदर है ना!
“दामोदर है… पर मैं बोर हो गयी हूँ.” चेतना बोली।
“सॉरी, आज मेरे ही घर में बहुत काम है, और वो काम उसे ही करने हैं.” मैं भी हँसती हुई बोली तो सभी हँसने लगे।
राजू ने चाय और नाश्ता टेबल पर रखा और दोपहर की प्लेट्स लेकर नीचे चला गया। उन तीनों को राजू से क्या काम था यह मुझे पता था, मुझे भी राजू से वही काम करने की इच्छा हो रही थी। उसका मजबूत लंड देख कर मेरी चुत में भी खलबली मची थी। क्यों नहीं होगी मैं भी दो महीने से भूखी थी, और मेरी चुत को घर में ही अच्छा विकल्प मिला था।
वे तीनों घर से चली गयी तो मैं भी घूमने बाहर चली गयी। थोड़ी देर टहल कदमी की, होली का दिन था तो हर जगह रंगों की बारिश हो रही थी, पूरी धरती रंगबिरंगी हो गयी थी।
जब घर लौटी तो राजू रात का खाना बना रहा था।
मैं बैडरूम में जाकर फ्रेश हुई एक अच्छी सी नाईटी पहनी, उसके अंदर सिर्फ पैंटी पहनी हुई थी। मैं टीवी देखने लगी। टीवी देखते समय मेरे मन में भी बहुत उथल पुथल हो रही थी।
दोपहर की घटना मेरे लिए एक सुखद अनुभव था। राजू का लंड मेरी आँखों के सामने तैर रहा था, मेरे मन में आग लगी थी मेरा तनबदन जल रहा था।
“मेमसाब खाना तैयार है… लगा दूँ क्या?” राजू ने दरवाजे से ही पूछा।
“हाँ… सुनो राजू, आज यहीं खाना लगा दो!” मुझे बैडरूम से बाहर जाने की इच्छा नहीं थी।
“जी मेमसाब!” कहकर राजू नीचे चला गया।
मैं आईने के सामने बैठकर सोचने लगी, कुछ करूँ या नहीं करूँ, करूँ तो कैसे करूँ, ना करूँ तो बदन को शांत कैसे करूँ, क्या करूँ!
कुछ उलझन वाली स्थति में मैं आईने में अपने शरीर को निहार रही थी। अनजाने में मेरी उँगलियों ने मेरी नाइटी के ऊपर के दो बटन खोल दिये। अब मेरे स्तनों के बीच की दरार अब साफ दिखने लगी थी। दोपहर का रंग अभी भी नहीं उतरा था पर मेरे मन में रंगों की वर्षा होने लगी थी।
“मेमसाब जरा दरवाजा…” मैंने देखा तो रूम का दरवाजा आधा लगा हुआ था। राजू ने दोनों हाथों से ट्रे पकड़ा था इसलिए उससे दरवाजा नहीं खुल रहा था।
मैंने फिर वहाँ जाकर बैडरूम का दरवाजा खोला।
राजू मुझे रगड़ता हुआ अंदर आया, उसके पसीने की खुशबू मुझे उकसाने लगी। पर किसी भी स्त्री को किसी भी मर्द के साथ खुद कुछ भी करने की इजाज़त अपना समाज नहीं देता इसलिए अपने मन पर काबू रखते हुए मैंने खुद को संभाला। मुझे वह सुख चाहिए था, पर उसके लिए खुद पहल करने की इजाजत मेरा मन मुझे नहीं दे रहा था। तो दूसरी और मेरा दूसरा मन उस सुख के किये कुछ भी करने को उकसा रहा था।
मैं वैसे ही दरवाजे पे खड़ी उसको देख रही थी।
कुछ साँवले रंग का भरवे बदन का राजू मुझे उस वक्त बहुत ही आकर्षक लग रहा था। उसकी कमीज़ और घुटनों तक की धोती मुझे उसकी ओर खींच रही थी। मेरी चुत पानी पानी हो रही थी। पर कैसे? कैसे करूँ? यह पहेली नहीं सुलझ रही थी।
पर यह करना सही होगा क्या, और नहीं किया तो खुद के शरीर पर अन्याय नहीं होगा क्या? ऐसे सवाल मेरे मन में घर बनाने लगे।
अन्ततः मैंने कुछ सोचा और राजू को बोली- राजू… वह दोपहर को क्या पिलाया तुमने?
मैं कुर्सी पर बैठते हुए बोली।
“जी भंगवा… भांग…” वह बोला।
“हाँ बहुत सही थी, अब भी पिलाओगे क्या मुझे?” मैंने पूछा।
“जी नहीं मेमसाब , हमार पास उतना ही था.” उसने साफ साफ मना कर दिया।
“झूठ मत बोलो!” मैं जरा ग़ुस्से में ही बोली।
“सच मेमसाब, उतना ही था हमार पास!” वह फिर से बोला।
“देखो जी, तनिक थोड़ा होगा ही…” मैं उसकी ही भाषा में बोली।
“मेमसाब, झूठ ना बोलूं… थोड़ा है पर…” वह डरते हुए बोला।
“पर वर कुछ नहीं, थोड़ा है ना… थोड़ा तुम पियो थोड़ा मुझे पिलाओ, जाओ जल्दी लेकर आओ.” मैं बोली।
दोपहर की भांग का नशा ही कुछ और था, हर बार विदेशी दारू पीती थी पर भांग का नशा ही कुछ और था और भांग का नशा मेरा प्लान भी सफल बनाने में मदद भी करने वाला था।
वह भांग लेने नीचे चला गया मैंने अपने नाइटी का एक और बटन खोला।
थोड़ी ही देर में भांग लेकर के ऊपर आ गया- “ईह लो मेमसाब…
राजू ने ग्लास टेबल पर रखा।
“ये क्या एक ही, तुम नहीं पिओगे क्या?” मैंने पूछा।
“आपके सामने… नहीं मेमसाब!” वह डरते हुए बोला।
“नहीं लो ना… तुम भी लो, मुझे अकेले पीना अच्छा नहीं लगता.” मैं बोली।
“ठीक है मेमसाब!” बोलकर वह नीचे चला गया।
उसके बाहर जाते ही कुर्सी से उठी और मैंने अपनी पैंटी को उतार दिया, वह पूरी गीली हो गयी थी। कबसे मैं उसके धोती को देख रही थी, आगे क्या होगा यह सोचते हुए। उसी वजह से मेरी चुत ने भरपूर पानी छोड़ा था। मैंने अपनी पैंटी को सूँघा फिर कुर्सी के पीछे फेंक दिया और कुर्सी पर बैठ गयी।
राजू ऊपर अपना ग्लास ले कर आ गया।
“अब ठीक है…” कहते हुए मैंने उसे कुर्सी पर बैठने का इशारा किया पर वह वही सामने बैड पे पास जमीन पर बैठ गया।
“अरे यहाँ बैठो!” मैंने बोला।
“ठीक है मेमसाब!” उसने बोला।
मैं भांग का एक एक घूंट बड़े आराम से पी रही थी और वो नीचे देखते हुए अपनी ग्लास में से भांग पी रहा था। हम दोनों में कुछ भी बातचीत नहीं हो रही थी, शायद वह कुछ बोलने से डर रहा रहा था और मेरे मन की दुविधा मनस्थिति मुझे कुछ बोलने नहीं दे रही थी। मुझे कुछ भी करके उसका ध्यान मेरी तरफ खींचना था।
मैंने टेबल पर रखा चम्मच नीचे गिरा दिया, उस आवाज की वजह से राजू ने मेरी तरफ देखा। उसी वक्त चम्मच उठाने के बहाने मैं झुकी और उसे मेरे स्तनों का नाईटी के अंदर से दीदार करा दिया। उसका पूरा ध्यान मेरी नाईटी की दरार पर ही था, जब मैंने उसकी तरफ देखा और उसने झट से अपनी नजर वहाँ से हटाई। पर उसने नजर हटाई वह जाकर मेरी पीछे की तरफ पड़ी मेरी पैंटी पर पड़ी। वह शरमाया होगा क्योंकि नजर हटाते हुए वह हड़बड़ाते हुए उठा और उठते समय उसकी धोती उसके ही पैरो में अटक गई और आधी खुल गई।
उसने अपने हाथ से ही धोती पकड़ कर उठा, उसको नशा नहीं हुआ था पर मेरे स्तनों की झलक पाने से और मेरी पैंटी देखने की वहज से उसके लंड पर नशा होने लगा था। उसके निक्कर में बना तम्बू साफ साफ दिखाई दे रहा था।
वह वैसे ही खड़ा हुआ और दरवाजे की और जाने लगा।
“क्या हुआ राजू?” मैंने समझ कर भी ना समझने का बहाना करते हुए बोली।
“कुछ नहीं… चलता हूं मेमसाब” शायद उसे मेरे मंसूबों का पता चल गया था, मेरी दोनो इनर्स मेरे जिस्म पर नहीं थी इसका अंदाजा हो गया था।
“अरे रुको तो” मेरे कहने पर वह रुक गया।
वह मेरी तरफ पीठ कर के खड़ा था और अपने हाथों से अपना लंड एडजस्ट कर रहा था।
मैं उठकर उसके पास गई और उसके कंधे पर हाथ रख कर अपनी और घुमाया, अब उसका चेहरा मेरी तरफ था।
“राजू, दोपहर को तुमने मेरी सहेली को अपना पूरा मक्खन खिलाया…” मैंने बोला।
“हाँ… वही चाहत थी… माफी मेमसाब!” शायद उसे लग रहा था कि मैं उस पर चिल्लाने लगूंगी इसलिए वह बहुत डर रहा था।
“नहीं करूंगी माफ…” मैं भी थोड़ा आवाज ऊंची करके बोली।
“मेमसाब वह हमार गलती नहीं थी… उन्होंने ही हमें… ” वह डरते हुए बोला।
“ठीक है… करती हूं माफ़… मगर एक शर्त पर!”
“जी हुकुम… !” वह अदब से बोला।
“मुझे भी अपना मक्खन खिलाओ!” मैं उसके गालों पर प्यार से उंगलिया घूमाते हुए बोली।
“नहीं मेमसाब… यह पाप होगा!” वह बोला।
“अरे वाह… मेरे यहाँ पर काम करते हो और मक्खन उसे खिलाते हो?” मैं नखरे करते हुए रोने का नाटक करने लगी, शायद भांग की नशा हावी हो रही थी।
“नहीं मेमसाब… मैंने इस घर का नमक खाया है.” वह समझाने लगा।
“राजू मेरी प्यास बुझा दो…” मेरा हाथ अपने आप ही उसके लंड पर चला गया।
वह अभी भी अपना हाथ अपने लंड पर रख कर खड़ा था। जैसे ही मेरा हाथ उसके हाथों पर पड़ा वैसे ही उसने अपना हाथ वहा से हटा दिया। उसका निक्कर में छुपा लंड उसने जैसे मुझे भेंट दे दिया हो उसी तरह मैं उसके लंड को उसकी निक्कर के ऊपर पकड़ लिया।
‘अहह…’ कितना बड़ा और कड़क था, दोपहर को मैंने सिर्फ आँखों से स्पर्श किया था अब हाथों में ले रही थी, पर निक्कर के ऊपर से ही। मैंने उसकी धोती खोलने के लिए धोती की गाँठ पर हाथ रखा तो उसने मेरा हाथ हटा दिया।
“नहीं मेमसाब, यह पाप है!”
“और मेमसाब की प्यास ना बुझाना महापाप है.” ऐसा कहकर मैं फिर से अपने हाथों से उसके कमर पर की धोती खोलने लगी।
राजू अब प्रतिकार नहीं कर रहा था, मैंने उसकी धोती खोल दी, अब वह मेरे सामने बस निक्कर और कुर्ती में था। वह बिना हिले खड़ा था और मुझे अपना काम करने दे रहा था। मैंने अपना हाथ उसके निक्कर के इलास्टिक के अंदर डाल दिया। मेरे नर्म हाथों का स्पर्श उसके कड़क लंड पर होते ही वह सिसकार उठा।
“मेमसाब…”
“उसकी सिसकारियों को अनसुना करते हुए उसके बालों में छुपे नाग को मैंने सीधा पकड़ा, उसके निक्कर में अब तम्बू बना हुआ था। उसके लंड का आकार अब निक्कर के अंदर से भी महसूस हो रहा था। मैंने दूसरा हाथ उसके कुर्ते के अंदर घुसाते हुए उसके मर्दाना स्तनों पे रखा और उनसे खेलने लगी।
मेरी इस हरकत से राजू मचल उठा, वह अपने हाथ मेरे स्तनों पे ले जाते हुए मेरे स्तनों को दबाने लगा। दबाने नहीं वो तो उन्हें बेदर्दी से मसलने लगा। मैं भी उसके मर्दाना हाथों से अपने स्तनों के मसलने का आनंद ले रही थी और मैं भी उसे वही आनंद दे रही थी।
थोड़ी देर बाद मैंने उसकी निक्कर को उतार दिया अब राजू नीचे से बिल्कुल नंगा हो गया था। उसका लंड अब बिल्कुल मेरे सामने नंगा डोल रहा था, मेरे हाथ और आंखें उस पर ही अटकी थी। उसने अब अपनी आंखें बंद कर दी थी और उसके हाथ मेरे स्तनों को प्यार से दबाने लगे थे।
मैं मन ही मन मुस्कुरा रही थी क्योंकि यह तगड़ा लंड मेरी चुत को कूटने वाला था और मेरी दो महीने की तड़प मिटाने वाला था। उससे भी बड़ी बात यह थी कि उस लंड की मैं मालकिन थी, वह लंड मेरे ही घर में था और जब मैं चाहू वह मेरे तन बदन की आग ठंडी करने वाला था।
मैं धीरे धीरे नीचे जाने लगी, मैं नीचे घुटनों के बल बैठ गई। अब उसका लंड मेरे सामने था, मेरे बिल्कुल सामने … सिर्फ दो चार इंच दूर, वह मेरे सामने डोल रहा था। मेरे सामने खड़ा होकर वह मुझे चिढ़ा रहा था.
नौकर के बड़े लंड से चूत चुदाई की कहानी जारी रहेगी.
मेरी कहानी पर अपने विचार मुझे मेल करें, मेरा मेल आईडी है
[email protected]
कहानी का अगला भाग: मेरा नौकर राजू और मेरी बहन-5
What did you think of this story??
Comments