जिस्म की मांग-3
(Jism Ki Maang-3)
प्रेषिका : लीला
एक के बाद जब मैंने दूजे से नाता जोड़ा, मतलब बाबू से नाता जोड़ा, यह जानते हुए कि वो मेरे जैसी से शादी नहीं करेगा, बस वो मेरे शौक पूरे करता था, बदले में मैं उसे अपनी जवानी देती, मुँह को जब कच्ची उम्र में सेक्स का रस चख जाए तो, ऊपर से उन मर्दों के साथ जिनके साथ मैं जानती थी कि मेरा घर नहीं बसा पायेगा, बाबू के घरवाले भी उसकी सगाई कर चुके थे।
उधर बिटटू मुझ पर पैसे लुटाने लगा, उसकी पत्नी मेरे तक होटल पहुँच गई, उसने मुझे गाली दी- कुतिया, कमीनी, यहाँ तक कि मुझे रखैल भी कह दिया।
वैसे मैं उसके कहे शब्द से सहमत थी, जब कोई लड़की शादीशुदा मर्द को अपने बिस्तर में बेरोक जगह दे तो नाम यही मिलेगा। मगर मुझे यह शब्द सुन कर अलग मजा आया, मेरा सेक्स भड़का, अभी तो मैं बाबू की रखैल भी बन सकती थी, पर अब बिटटू में दम नहीं रहा था, वो दारु पीता था, नशे में रह रहकर उसका स्टेमिना ख़त्म हो चुका था। बिटटू के ढीले लौड़े से मेरा मन उब गया।
उधर बाबू ने मुझे वादा किया था कि शादी के बाद कुछ दिन बाद वो दुबारा मुझे मिलना शुरु कर देगा।
एक दिन में घर अकेली थी दादी के साथ, मेरी फुद्दी प्यासी पड़ी थी, उंगली से क्या होता है।
हमारा नौकर अपने गाँव से लौट आया था, मैं ठण्डा पानी भरने के लिए ट्यूबवेल पर गई, उसको नहाते देखा, उसने सिर्फ अंडरवीयर पहना था, जिसमें उसका लौड़ा मुझे दिलकश दिख रहा था।
मेरा मन उस पर डोल गया। उसने मुझे उसके लौड़े को देखते देख लिया, उसने साबुन लगाने के बहाने मुझे लौड़े के दर्शन करवा दिए।
लोहा गर्म था, मैंने चोट मारी थी, मैं बशर्म बन देखती रही, मैंने अपने निचले होंठों को काटा और जुबां होंठों पर फेरी।
उसने फिर से मुझे दिखाया।
“हो आये गाँव से? लगता है, खूब मस्ती की है बीवी के साथ?”
“कैसी मस्ती मालकिन?”
“चुदाई और क्या फ़ुटबाल से की होगी?”
“कहाँ मालकिन, उसकी ढीली हुई फुद्दी मजा नहीं देती !”
“तेरा लौड़ा तो ख़ासा बड़ा है, दिखाना !”
वो किनारे पर आया, बाल्टी रख कर मैंने प्यार से उस पर हाथ फेरा।
“हाय मेरी जान, देख तेरे हाथ में कितना जोशीला दिखने लगा !”
“यह बहुत बड़ा है !” मैं थोड़ी झुकी और उसकी चुम्मी ले ली।
“मुँह में ले लो न मालकिन !”
“साले, लीला नाम है मेरा !”
“बहन की लौड़ी, मुँह में ले लीला रानी !”
मैंने उसका थोड़ा चूसा, उसने मेरा कुर्ती उठाई, मेरा मम्मा चूसने लगा।
“ऐसा कर, मैं कमरे में हूँ, तू खाना खाने के लिए आ जा ! माता जी सो रही हैं !”
उसको कमरे में घुसाने से पहले मेरे कहने पर उसने हवेली का में दरवाज़ा लॉक किया, फिर हम दोनों कमरे में बंद हो गए। उसने मुझे पूरी नंगी कर दिया और मेरी फुद्दी चाटने लगा। “चाट साले ! खुल कर चाट ! इधर घूम जा साथ साथ ! मुझे अपना यह गंदा सा काला लौड़ा दे दे ! इसका रंग मेरा पसंदीदा है !”
“अच्छा साली, बहुत कमीनी है तू ! अपनी माँ चाची को पीछे छोड़ देगी !”
“मादरचोद, क्या बक रहा है?”
“और क्या ! दोनों जम कर बाहर के मर्दों से चुदवाती रही हैं अपने वक़्त में ! अब भी कौन सा कम हैं?”
उसकी बात सुन मुझे सेक्स और चढ़ने लगा- साले, अब घुसा भी दे !
उसने अपना मूसल घुसाया, मेरी फुद्दी काफी कसी थी, कई दिनों से चुदी नहीं थी ना, उसका लौड़ा भी कम मोटा नहीं था, आधा घंटा उसने मुझे एक दौर में जम कर चोदा। एक बार फिर से में किसी और के पति के साथ ही कर बैठी।
मगर क्या कहें? क्या करूँ” यह जिस्म कुछ और भी मांगता है, ज़ालिम नहीं जीने देता।
अब मैं घर में गंगा नहाने लगी और मौका ना मिलने की कोई वजह नहीं थी, जब घर दादी के संग अकेली होती तो कमरे में और अगर घर में मौका ना मिले तो चारे का खेत जिंदाबाद !
बाबू की शादी हो गई, उसकी बीवी बिटटू की बीवी से कहीं अधिक सुंदर थी, मगर शायद उनकी दिक्कत यह थी, या कई शादी शुदा मर्दों की होती है जिनकी अरेंज मैरज हो, लड़की चाहे अपने आशिक के साथ हर खेल खेली हो, जैसे मैं ! आशिक का लौड़ा भी चूसा होगा, और हो ना हो हो सकता है कि गाण्ड भी मरवाई हो, लेकिन वो जब पति की सेज पर आती है, वो उसके दिल में बसना चाहती है, लौड़ा चूसना, गाण्ड मरवाना, यह सब नहीं करती, ना रूचि दिखाती है, बस यही एक चीज़ है जो मर्द बाहर वाली की शरण लेने लगते हैं, उनको मालूम रहता है कि बीवी तो है ही है।
मैंने सोचा नहीं था कि बाबू इतनी जल्दी मेरे बिस्तर में लौटेगा, चार दिन नहीं बीते थे कि उसने अपने एक नौकरके ज़रिये मुझे फार्म हाउस बुलाया।
वो अपने कमरे में था, बिस्तर पर पसरा हुआ मिला। अपना बैग फेंक मैं भी उसके करीब लेट गई- क्या बात है मियां बाबू? इतनी जल्दी मेरी याद कहाँ से आ गई?
मेरी गाल को सहलाता हुए, बालों से खेलता हुए अंडरवीयर में तने हुए लौड़े को निकाला, मेरे हाथ में देकर बोला- इसको तेरे होंठों की याद सता रही थी !
“क्या हुआ? बीवी ने इसको अपने सुच्चे होंठों की आदत नहीं डाली?”
“साली, वो कहाँ मुँह में डालती है?”
“क्यूँ, उसके मुँह पर फेविकोल का मजबूत जोड़ लगा है?”
“समझा कर ! इतनी जल्दी कहाँ इस सब पर उतर आएगी?”
मैंने उसके हाथ से लौड़ा अपने हाथ में ले लिया, सहलाती हुई बोली- क्यूँ मियां मिट्ठू? मेरी इतनी आदत डलवा बैठा है कमीने?”
आराम से सेंडल उतार उसकी बगल में लेट कर मुठ मारते हुए चुम्मी ले डाली !
“हाय, इसी स्पर्श के लिए तड़फ रहा था मेरी लीला रानी ! जो मजा तेरे साथ लेटने में आता है ना कसम से, वो बीवी के संग भी नहीं आता !”
मैंने उसका पूरा मिट्ठू मुँह में ले लिया, चूसने लगी।
“तड़फ रहा था मैं तेरी इस चुसाई के लिए !”
“मैं भी बहुत प्यासी हूँ तेरे लौड़े के लिए !”
“तो खेल ना जितना चाहे खेल इसके साथ !”
मैंने अपनी सलवार खुद खोल डाली।
“हाय मेरी बिल्लो रानी, बहुत जल्दी है क्या?”
“हाँ, मैं ना उतारती तो जनाब आप उतार देते, या फाड़ देते !”
उसने पहले जी भर भर के मुझसे लौड़ा चुसवाया और फिर वो मेरी फुद्दी का रस चखने लगा, मतलब फुदी चाटने लगा।
“हाय, अब बस करो और इसमें घुसा दो !”
“अभी लो लीला रानी।”
उसने मेरी टाँगेँ उठवाईई और घुसा दिया, दे दनादन, दे दनादन पेलने लगा।
“और जोर ! हाँ, और जोर से करो !”
“साली तू तो रांड बन गई, किस वहशी दरिन्दे से चुदवाती रही है जो जोर जोर की आदत डल गई है?”
“बाबू, तू मेरा प्यार है, चाहे अब मैं तेरी बाहर वाली बन कर रह गई हूँ, तुझसे चुदवाते हुए मैं किसी और को सामने नहीं रखती। बस पेलता जा मुझे !
उससे चुदने के बाद मैं जब अलग हुई तो कमरे का तूफ़ान थम गया। उसने रस से लथपथ अपने लौड़े को मेरे मुँह में घुसा कर साफ़ करवाया।
“अब कब मिलना होगा जनाब को?”
“जब दिल करेगा, आंखें बंद कर याद करूँगा !”
“और मैं चली आऊँगी !”
आज मैं बाबू की रखैल बन गई थी।
कहानी जारी रहेगी।
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