ऐसी चुदाई तो सोची ही न थी
विजित पाटिल
मैं और मेरी पत्नी, शादी के बाद एक नए घर में खारघर, नवी मुंबई में रहने गए। मैं घर के कामों के लिए कामवाली ढूँढ रहा था।
एक दिन मुझे लिफ्ट में एक कामवाली लड़की मिली।
उसका नाम निशा था, वो हमारे ही बिल्डिंग में काम करती थी।
मैंने उसे काम के लिए पूछा तो एक अजीब सी मुसकुराहट के साथ उसने ‘हाँ’ कह दी।
वो रोज हमारे यहाँ आती और काम करके चली जाती थी, हम दोनों पति-पत्नी को बड़ा आराम हो गया,
एक बार मेरी पत्नी को मासिक धर्म नहीं हुआ तो डॉक्टर को दिखाया और जल्दी ही डॉक्टर ने हमें खुशखबरी सुनाई कि एक नया मेहमान हमारे घर आने वाला है।
मेरी पत्नी उसके मायके आराम करने चली गई।
अब मैं घर में अकेला ही था। निशा अब मुझ से खुल कर बात करती थी। वो मेरे साथ थोड़ा घुल मिल गई थी। स्त्री-पुरुष सम्बन्ध जैसी बातें अब हमारे लिए आम हो गई थीं।
जब मैं उससे पूछता, तो वो बोलती कि उसे किडनी की कुछ प्रॉब्लम है और चुदाई नहीं कर सकती।
एक दिन अचानक निशा ने काम पर आना बंद कर दिया। मैंने कॉल किया तो किसी ने उठाया नहीं। तो मैंने दूसरी कामवाली रख ली। दो महीने यूं ही बीत गए।
उस दिन रविवार था और मैं मूवी देख रहा था कि दरवाजे की घण्टी बजी।
देखा तो बाहर निशा खड़ी थी।
वो आई, बैठी, कुछ इधर-उधर की बातें हुईं।
निशा- क्या साब, भाभी कैसी है?
मैं- सब अच्छे हैं, मजे में हैं पर मेरी लगी हुई है।
निशा- क्यों?
मैं- अब क्या बताऊँ तुझे.. अकेले का दर्द, शुरू है ‘अपना हाथ जगन्नाथ’, बस 61-62 करता रहता हूँ।
निशा- अरे अरे..!
मैं- क्या रे… तुझे तो मेरी फिकर ही नहीं है, तू तो देती नहीं।
निशा- आपको तो मेरी कंडीशन पता है ना?
मैं- अरे, किसी से दोस्ती तो करा दे।
निशा- एक दोस्त है, मस्त लड़की है.. सीमा, मैं बोलूँगी तो जरूर आएगी, आप पूछोगे ना.. तो बोलेगी ‘क्या रे, मैं क्या तुझे ऐसी-वैसी लगती हूँ?’
मैं- ठीक है यार प्लीज, जुगाड़ जमा दे बस। पैसे-वैसे लेगी क्या?
निशा- नहीं साब, बस उसे खुश कर देना।
उसके बाद निशा आपने घर काम से बचे हुए पैसे लेकर चली गई। अब, जब मैं उसे ‘सीमा’ के लिए फोन करता तो, साब कल, परसों कह कर टाल जाती। अब क्या बस 61-62 और क्या?
एक महीने बाद मुझे बेटा हुआ। मैंने निशा को भी यह बात बताई और उसे मिठाई खाने बुलाया।
वो झट से आ गई। इधर-उधर की बातें, ‘सीमा’ का किस्सा और 61-62 बस इन्हीं बातों में टाइम पास हो रहा था।
वो बोली- चलो साब.. अब मैं निकलती हूँ।
मैंने उसका हाथ पकड़ा उसे रोकने के लिए। उसका बैलेंस बिगड़ गया और वो मेरे ऊपर आ गई और छूटने का झूट-मूट का नाटक करने लगी।
वो बस नाटक कर रही है यह मैंने जान लिया। मैंने उसे बांहों में कस कर जकड़ लिया और चुम्बन किया। उसने भी मुझे अच्छा जवाब दिया।
निशा- साब, छोड़ो ना, बाजू वाली आंटी देख लेगी।
मैं- चल, बेडरूम में चल, वहाँ से किसी को कुछ दिखाई नहीं देता।
वो झूट-मूट का विरोध करके अपने आप बेडरूम में चली गई।
बस अब किस बात की देरी थी। मैंने उसे पूरा नंगा कर दिया। उसके बड़े-बड़े मम्मे एक-एक लीटर दूध के पैकेट जितने बड़े थे, चूतड़ किसी गद्दे से कम न थे।
मैं भी झट से तैयार हो गया, दो लीटर दूध कौन छोड़ता…! पी गया गटा-गट..!
अब उसकी बारी थी लॉलीपॉप चूसने की !
दोस्तो, उसके होंठों में क्या गजब का जादू था। जब तक क्रीम नहीं निकला उसने लंड छोड़ा ही नहीं।
जैसे ही मेरा गिरा, पीकर उसे भी साफ कर गई।
अब तो दस-पंद्रह मिनट का मेरे लिए ब्रेक था, तो मैंने अपनी दो उंगलियां उसकी चूत में घुसा दीं।
निशा बड़ी ही चुदक्कड़ लगती थी। उसके चूत का मुँह इतना खुला, बड़ा था कि थोड़ा जोर लगाता तो पाचों ऊँगलियाँ घुस जाएँ।
जल्दी ही उसकी प्यारी सी चूत मेरे हाथों में आते ही रस से भर गई।
अब थोड़ी देर के लिए पड़े-पड़े हम बात कर रहे थे। मैं उसके चूचियों से खेल रहा था और वो लंड से।
जैसे ही मेरा तनने लगा मैं उसके ऊपर हो गया और उसके कानों के पास चूमने लगा।
जल्दी ही वो गरम हो गई, मेरा भी लंड तन चुका था। मैंने कंडोम चढ़ाया और एक ही झटके में अपना लंड चूत में पूरा ठूंस दिया।
पूरा ढोल था ढोल…. पता नहीं उसकी चूत पर कितने लवड़ों ने मेहनत की होगी।
मैंने अपनी स्पीड बढ़ा दी। जब मैं झड़ने वाला था कि थोड़ा रुक गया और उंगली से चूत को सहलाता रहा।
जैसे ही लंड कण्ट्रोल में आया, फिर से चूत में घुसेड़ कर उसे अन्दर-बाहर करने लगा।
जल्द ही वो पूरी तरह से संतुष्ट हो गई थी और मैंने भी पानी छोड़ दिया। इस प्रकार चुदाई का पहला दौर चला।
ऐसे ही दो राउंड और हुए, डॉगी-शॉट में तो मुझे गजब का मजा आया गद्दे जैसी गांड के नीचे और एक गद्दा, उभरी हुई चूत में अन्दर-बाहर करता तना हुआ लंड.. हय मजा आ गया।
तीन राउंड चुदाई करके हम थक गए और थोड़ा आराम करके निशा चली गई।
सच कहूँ दोस्तो, मैं चुदाई करने के लिए इतना तरस रहा था।
निशा को इस तरह चोदने का तो मैंने विचार भी नहीं किया था, पर निशा इस तरह से चुदेगी, यह तो मैंने सोचा ही नहीं था।
अन्तर्वासना में यह मेरी पहली रचना है, आशा है आपको अच्छी लगी होगी, मुझे एक ईमेल जरूर कीजिए।
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