वासना की न खत्म होती आग -6
(Vasna Ki Na Khatm Hoti Aag- Part 6)
This story is part of a series:
-
keyboard_arrow_left वासना की न खत्म होती आग -5
-
keyboard_arrow_right वासना की न खत्म होती आग -7
-
View all stories in series
अब तक आपने पढ़ा..
मैं समझ गई कि मेरी कोशिश बेकार गई.. और उन्होंने अपना बीज मेरे भीतर बो दिया.. तो अब कोई फ़ायदा नहीं..
उनकी आँखें बंद थीं और धीरे-धीरे उनका लिंग मेरी योनि के भीतर सिकुड़ कर अपनी सामान्य स्थिति में आ गया।
हम दोनों कुछ देर यूँ ही पड़े रहे.. फिर मैंने उन्हें अपने ऊपर से हटने को कहा।
वो जैसे ही हटे.. मैंने देखा तकिया पूरी तरह से भीग गया था, उनका सफ़ेद और गाढ़ा रस मेरी योनि से बह कर बाहर आने लगा.. मैं जमीन पर खड़ी हुई और तुरंत बाथरूम गई, वहाँ से खुद को साफ़ करके वापस आई.. तो देखा कि दो बज चुके हैं। हमें अपनी काम-क्रीड़ा में इसका पता ही नहीं चला।
अब आगे..
वो अभी भी नंगे बिस्तर पर सुस्ता रहे थे, मैंने कहा- मुझे जाना होगा..
और मैं अपने कपड़े समेटने लगी।
मैं जैसे ही अपनी पैन्टी लेने बिस्तर के करीब गई.. उन्होंने मुझे फिर से पकड़ लिया और बिस्तर पर खींचने लगे।
अब मैं विनती करने लगी- बहुत देर हो जाएगी सो मुझे छोड़ दें..
पर उन्होंने अपनी ताकत लगाते हुए मुझे अपने करीब लेकर मुझे सीने से चिपका लिया और बिस्तर से उठ खड़े हो गए।
उन्होंने मुझे अपनी बांहों में भींचते हुए कहा- इतनी भी जल्दी क्या है.. अभी मेरा दिल भरा नहीं है!
मैंने विनती करनी शुरू कर दी- अगर देर हुई तो मेरे घर में बच्चे और परिवार वाले शक करेंगे..
पर वो मेरी बात जैसे सुनने को तैयार ही नहीं थे, वे मुझे चूमते हुए धकेलने लगे और मैं बाथरूम के दरवाजे के पास दीवार से टकरा गई।
मैं बार-बार ‘नहीं.. नहीं..’ कर रही थी.. पर उन्होंने मुझे इतनी जोर से पकड़ रखा था कि मैं पूरी ताकत लगा कर भी अलग नहीं हो पा रही थी।
मेरे बार-बार कहने को सुन कर उन्होंने अपना मुँह मेरे मुँह से लगा दिया और मेरा मुँह बंद कर दिया। उन्होंने अब अपने हाथ मेरे पीठ से हटा के चूतड़ों पर रख दिए।
अब मेरे चूतड़ों को जोर से दबाते हुए ऐसा करने लगे.. जैसे उन्हें फैलाना चाहते हों।
मैंने अपनी टाँगें आपस में चिपका रखी थीं और मेरा पूरा बदन टाइट हो गया था। वो अब मुझे चूमते हुए अपनी जुबान मेरे मुँह में घुसाने का प्रयास करने लगे.. पर मैंने अपने दोनों होंठों को पूरी ताकत से बंद कर रखा था।
उनके काफी प्रयास के बाद भी जब मैंने अपना मुँह नहीं खोला.. तो उन्होंने मेरी निचले होंठ को अपने दोनों होंठों से दबा लिया और खींचने-चूसने लगे, फिर दाँतों से दबा कर जोर से काट लिया।
मैं दर्द से सिसियाई और मैंने अपना मुँह खोल दिया.. फिर क्या था उन्होंने तुरंत अपनी जुबान मेरे मुँह में घुसा दी और मेरी जुबान को टटोलने लगे।
मैं भी अब समझ गई कि यह इंसान मानने वाला नहीं है, मैं भी अपनी जुबान को उनकी जुबान से लड़ाने लगी।
उधर वो मेरे चूतड़ों को दबाते और खींचते हुए अपने शरीर को मेरे शरीर से चिपकाते और धकेलते रहे।
हम दोनों काफी देर तक चूमते रहे।
अभी हमें सम्भोग किए मुश्किल से आधा घंटा ही हुआ होगा कि मुझे महसूस होने लगा कि उनका लिंग खड़ा हो रहा और मेरी नाभि को सहला रहा।
मेरी लम्बाई उनसे काफी कम थी.. सो उनका लिंग मेरी नाभि को छू रहा था। उनका अंदाज भी ऐसा था जैसे मेरी नाभि को ही सम्भोग केंद्र समझ लिया हो।
मैंने अपने पेट पर ज्यादा दबाव देख कर उनका लिंग हाथ से पकड़ लिया और हिलाने लगी। मेरे द्वारा उनके लिंग को कुछ ही पलों तक हिलाने से उनका लिंग पूरी तरह सख्त होकर खड़ा हो गया.. जो कि मेरी योनि में घुसने को तैयार हो चुका था।
उन्होंने मुझे चूमना छोड़ कर.. मेरे स्तनों को चूसना शुरू कर दिया। वे बारी-बारी से झुक कर थोड़ा थोड़ा चूस कर मुझे गरम करने लगे।
उनका हाथ मेरे चूतड़ों से हट कर मेरी जांघों में चला गया और कस के पकड़ कर उन्हें फैलाने की कोशिश करने लगे।
यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
मैं भी अब थोड़ा जोश में आने लगी और मेरी योनि फिर से गीली होनी शुरू हो गई, मैंने भी अपनी टाँगें फैला दीं और योनि उनके आगे खोल दी।
वो अब मेरी दोनों टाँगों के बीच चले आए और कमर थोड़ा झुका कर मेरी योनि के बराबर खड़े होकर अपने लिंग को मेरी योनि पर धकेलने लगे।
मैंने उनका लिंग अभी भी पकड़ रखा था और हिला रही थी.. पर जैसे ही उनका लिंग मेरी योनि के भग्नासे को छुआ.. मैं ऊपर से लेकर नीचे तक गनगना गई।
मैं तो पहली बार से भी ज्यादा खुद को गर्म महसूस करने लगी और उनके लिंग को पकड़ कर अपनी योनि की दरार के बीच ऊपर-नीचे रगड़ने लगी।
मैंने अपनी योनि को आगे की तरफ कर दिया.. और उनके लिंग के सुपाड़े को अपनी दाने जैसी चीज़ पर रगड़ने लगी।
वो अब मेरी जाँघों को छोड़ कर मेरे स्तनों को जोर-जोर से मसल कर मेरे चूचुकों को दाँतों से दबा-दबा कर खींचने और चूसने लगे।
मुझे अपने स्तनों में दर्द को तो एहसास हो ही रहा था.. पर उस दर्द में भी.. पता नहीं गर्म होने की वजह से मजा आ रहा था।
मैं जोर-जोर से लम्बी साँसें ले रही थी और मेरी सिसकियां उनकी हरकतों के साथ ताल मिला रही थीं।
मैं अब पूरी तरह से बेकरार सी हो गई और मैंने अपनी एक टांग पास में पड़ी कुर्सी पर रख अपनी योनि के छेद को लिंग के निशाने पर रख दिया.. और लिंग पकड़ कर सुपारे को योनि में घुसा लिया।
फिर मैंने उनके चूतड़ों को दोनों हाथ पीछे ले जाकर खुद को एक टांग से सहारा देकर अपनी योनि उनके तरफ धकेला.. लिंग आधा सरसराता हुआ मेरी योनि में घुस गया।
पता नहीं उनको मेरी योनि में लिंग घुसा हुआ महसूस हुआ या नहीं.. क्योंकि वो अभी भी मेरे स्तनों से खेलने और चूसने में व्यस्त थे।
मैंने खुद ही अपनी योनि को उनके लिंग पर धकेलना शुरू कर दिया और लिंग अन्दर-बाहर होने लगा।
पर शायद उनके दिमाग में कुछ और ही चल रहा था, उन्होंने मेरी योनि से अपना लिंग बाहर खींच लिया और मुझे चूमते हुए नीचे बैठ गए।
उन्होंने पहले मेरी नाभि और पेट में ढेर सारा चुम्बन किया और फिर मेरी योनि को एक हाथ से सहला कर योनि को चूमने लगे।
थोड़ी देर बाद उन्होंने अपने दोनों हाथों से मेरी योनि के दोनों होंठों को फैला दिया और दो उंगली डाल कर अन्दर-बाहर करने लगे।
मैं तो पहले से इतनी गीली हो चुकी थी कि क्या कहूँ.. ऐसा लगने लगा था.. जैसे मेरी जान निकल जाएगी।
थोड़ी देर उंगली से खेलने के बाद मेरी योनि को उन्होंने और फैला दिया.. तो मैं कराह उठी और अपनी जुबान मेरी योनि से चिपका दी। वो मेरी योनि को चूसने लगे और जुबान को मेरी चूत के छेद पर धकेलने लगे।
उनके इस तरह करने से मैं और भी उत्तेजित हो रही थी और ऐसा लगने लगा कि अब ये मुझे ऐसे ही झड़ जाने पर मजबूर कर देंगे।
मैंने उनके सर को पकड़ा और बालों को खींचते हुए ऊपर उठाने का प्रयास करने लगी.. ताकि हम सम्भोग शुरू करें.. पर वो हिलने को तैयार नहीं थे।
मैंने अपनी एक टांग से खुद और ज्यादा सहारा नहीं दे पा रही थी कि तभी उन्होंने मेरी दूसरी टांग जो कुर्सी पर थी.. उसे उठा अपने कंधों पर रख दिया और अपना मुँह मेरी योनि से चिपका कर चूसने लगे.. ऐसे.. जैसे रस पीना चाहते हों।मेरे लिए अब बर्दाश्त करना मुश्किल था और मैंने दोनों जाँघों के बीच उन्हें कस कर दबा लिया.. पर उन पर तो कोई असर ही नहीं था।
वो अपनी जुबान को मेरी योनि के छेद में घुसाने का प्रयास करते.. तो कभी मेरी योनि के होंठों को दांतों से खींचते.. तो कभी मेरी दाने को काट लेते.. और मैं कराहती हुई मजे लेती रही।
मैं अब उनसे विनती करने लगी- आह्ह.. बस करो.. और शुरू करो न.. मुझे घर भी जाना है।
समुझे लगा कि उन्होंने मेरी बात सुन ली और मान गए, उन्होंने मेरी तरफ सर उठा कर देखा और कहा- चुदने के लिए तैयार हो?
मैंने भी उनके ही भाषा में कहा- अब तड़पाओ नहीं यार.. चोद भी दो..
फिर दोबारा उन्होंने मेरी योनि को चूमा और जुबान जैसे ही मेरे छेद पर लगाई.. मेरा फ़ोन बजने लगा।
फ़ोन की आवाज सुनते ही मेरा तो जोश ही ठंडा हो गया।
फ़ोन बगल में ही टेबल पर था और यह मेरी बड़ी जेठानी का था।
मैंने उंगली मुँह पर रख कर उन्हें चुप रहने का इशारा किया और फ़ोन उठा लिया।
जेठानी ने फ़ोन उठाते ही कहा- कब तक आओगी?
मैंने उत्तर दिया- बस एक-डेढ़ घंटे में पहुँच जाऊँगी।
तब उन्होंने कहा- मार्किट से थोड़ा मीठा और पनीर साथ ले आना।
मैंने हाँ बोल कर फ़ोन काट दिया और बोली- अब मुझे जाना होगा.. वरना घर में लोग तरह-तरह के सवाल करेंगे।
पर उन्होंने मेरी योनि को चूमते हुए कहा- अभी तो मजा आना बाकी है.. बस थोड़ी देर और रुक जाओ।
मैं तो अभी भी उसी अवस्था में थी.. मेरी एक टांग उनके कंधे पर और उनका मुँह मेरी योनि पर।
मैं ‘न.. न..’ करती रही.. फिर बोली- जल्दी करो..
वो भी मान गए.. पर इससे पहले कि वो खड़े होते.. मेरा फ़ोन फिर बजना शुरू हो गया.. इस बार तारा थी। मैंने तुरंत फ़ोन उठा लिया।
उधर से आवाज आई- हो गया या और समय लगेगा?
मैंने कहा- बस थोड़ी देर और..
उसने पूछा- अभी तक किया नहीं क्या कुछ भी?
मैंने जवाब दिया- बस थोड़ी देर और..
उसने कहा- ठीक है.. मजे ले लो.. मैं और इंतज़ार कर लूँगी।
और फ़ोन काट दिया।
मेरे फ़ोन रखते ही वो खड़े हो गए और मेरी एक टांग उठा कर कुर्सी पर रखते हुए बोले- तारा थी क्या?
मैंने कहा- हाँ।
आगे इस वासना की आग को भड़कते हुए पढ़ने के लिए अन्तर्वासना से जुड़े रहिए।
कहानी जारी है।
[email protected]
What did you think of this story??
Comments