ट्रेन में मिली एक लड़की संग मस्ती-2
(Train Me Mili Ek Ladki Sang Masti- Part 2)
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अनजान शादी-शुदा स्त्री के साथ सम्भोग जिसमें काम-वासना और सिर्फ सम्भोग का रिश्ता होता है।
मेरा नाम राहुल श्रीवास्तव है.. मैं मुंबई में रहता हूँ और सेल्स एंड मार्केटिंग कंपनी का मालिक हूँ। मैं अपने काम की वजह से पूरे भारत में घूमता हूँ। इस कारण बहुत से लड़के-लड़कियां.. भाभियां.. इत्यादि संपर्क में आते रहते हैं।
फ़रवरी माह में मेरे एक अनुभव की दास्तान
ट्रेन में मिली एक लड़की संग मस्ती
प्रकाशित हुई थी जिसका अगला भाग अब आपके सामने है।
आप सभी पाठकों से विनम्र अनुरोध है कृपया आप फ़ोन.. इमेल्स या व्हाट्सएप्प पर लड़की दिलाने या फ़ोन नम्बर जैसी निम्न कोटि की मांग न रखें.. न करें।
दोस्तो, देर से अगला पार्ट आपके समक्ष लाने के लिए माफ़ी चाहूँगा, मैं थोड़ा बिज़ी था।
इस बीच आपने मेरी दो अन्य कहानियाँ
पढ़ी और सराही.. जिसके लिए आपके प्यार और ईमेल के लिए मैं आपका शुक्रगुजार हूँ।
आपने पढ़ा था कि मैंने तुरन्त उसकी एक टिकेट 2AC में बुक करा दी, कुछ देर मैं वहाँ रुका.. हमने कॉफी, स्नैक्स लिये.. फिर थोड़ी शॉपिंग की.. और एक दूसरे को गले लगाया।
वह बोली- मुझे तो विश्वास ही नहीं होता कि आप मेरे एक बार कहने से इलाहाबाद से बनारस आ गये.. आप सच में अमेज़िंग हो!
अब आगे..
इतना सब कुछ हो गया.. पर मैंने उसका नाम नहीं बताया… उसका नाम माधुरी है।
अगले दिन उसने बनारस से ट्रेन पकड़ी और मैंने इलाहाबाद छिवकी से.. जब मैं उसकी बर्थ पर पहुँचा.. तो वो सो रही थी। पूरा कूपा खाली था.. मैंने उसके गाल पर हल्के से चुम्बन लिया.. तो वो उठ गई, बोली- आपके वापस जाने के बाद मुझे माइग्रेन (सर दर्द की बीमारी) उठा था.. जो अभी भी है।
मैंने उसको चाय पिलाई.. साथ में पूरी सब्जी भी खाने को दी और उसके बैग से दवा निकाल कर उसको दी।
इतना सब होने के बाद वो फिर से सो गई।
दोस्तो, मेरा तो मूड ऑफ हो गया.. सोचा क्या था.. हो क्या रहा है।
मैंने अपने लण्ड को तसल्ली दी और मैं मोबाइल में गेम खेलने लगा।
करीब दो घंटे बाद वो जगी.. तब तक सतना आने वाला था, कूपे में भी एक-दो लोग आ गए थे, कुल मिला कर खड़े लण्ड पर धोखा हो चुका था।
हम लोग वैसे ही बात कर रहे थे।
माधुरी- आपको मुंबई में काम है क्या?
मैं- नहीं.. कोई खास काम नहीं है.. कल पहुँचना होगा.. तो ऑफिस तो जाऊँगा नहीं।
माधुरी- आप तो जानते ही हो कि मेरी एक दोस्त की आज शादी है.. आप भी चलो।
मैं हैरान हो गया, मैं समझ गया कि आग दोनों तरफ लगी है।
तब तक जबलपुर आ गया.. हम दोनों ही उतर गए।
स्टेशन पर उसकी सहेली उसको लेने आई थी, वो मेरे को देख कर चौंक गई। फिर वो माधुरी को एक तरफ ले जा कर बात करने लगी। बीच-बीच में मेरी तरफ देख कर मुस्कुराती थी।
थोड़ी देर में वे दोनों मेरे नजदीक आईं और हम तीनों उसकी कार में बैठ कर उसके घर की तरफ चल पड़े।
घर जा कर फ्रेश हो कर शादी में चले गए।
वहाँ माधुरी अपनी सहेलियों में बिज़ी थी, मैं उसका इंतज़ार करता रहा।
करीब 11 बजे वो अपनी उसी सहेली के साथ आई.. हम तीनों ने खाना खाया और बात करने लगे।
तभी वो सहेली बोली- यार माधुरी.. तुम दोनों थक गए होगे.. ऐसा क्यों नहीं करते कि घर जा कर आराम करो.. मैं तो सुबह तक यहाँ रुकूँगी.. क्यों राहुल जी?
मैं- ऐसा कुछ नहीं है.. हम सब भी यहाँ रुक सकते हैं.. मेरे को कोई प्रॉब्लम नहीं है।
सहेली- माधुरी देखो.. राहुल जी तुम्हारा कितना ख्याल रख रहे हैं और तुम हो कि उनका ख्याल नहीं रख रही हो।
माधुरी ने हल्के से मुस्कुरा कर मेरी तरफ देखा आँखों ही आँखों में पूछा- घर चलें?
उसकी आँखों की चमक देख कर मैंने भी इशारा किया- हाँ..
उसकी सहेली हम दोनों के इशारा देख रही थी.. वो हँसते हुए बोली- अब जाओ भी.. मैं यहाँ सबको संभाल लूँगी।
मैं- थैंक्स..
सहेली- कोई जरूरत नहीं.. जब ‘लेना’ होगा तो मांग लूँगी।
मैं आश्चर्य से पूछा- क्या मांग लूँगी?
सहेली- ‘थैंक्स’ मांग लूँगी.. और आप क्या समझे?
यह कह कर वो अश्लील भाव से हँसने लगी।
माधुरी के गोरे गाल बिल्कुल गुलाबी हो रहे थे।
फिर हम दोनों उसकी कार लेकर घर की ओर निकल गए।
घर पहुँचे तो उस समय रात के 12 बज रहे थे। हम दोनों रास्ते भर चुपचाप रहे.. बीच-बीच में एक-दूसरे को देखते और माधुरी शर्मा कर दूसरी तरफ देख कर कार ड्राइव करने लगती।
हम दोनों ही आने पल की सोच रहे थे.. मैं खुद को कम्फर्टेबल महसूस नहीं कर रहा था। माधुरी लाल और पीले कलर की डिजायनर साड़ी में थी और उसने एक डीप गले के ब्लाउज़ पहना था जिसमें वो काफी खूबसूरत और सेक्सी दिख रही थी। उसकी चूचियां तनी हुई और माँसल दिख रही थीं.. खुला हुआ गोरा पेट मेरे को उत्तेजित कर रहा था।
ये वो बातें थीं.. जो रास्ते भर मैं सोचता या देखता आया।
घर में घुस कर दरवाजा बंद करके माधुरी सीधी टॉयलेट चली गई और मैं वहीं सोफे में बैठ कर टीवी देखने लगा। तभी माधुरी आई और मेरे बगल में बैठ गई।
उसने पूछा- कॉफी?
मैं- हाँ..
माधुरी किचन में जा कर कॉफी बनाने लगी.. मेरे से अब इंतज़ार करना मुश्किल था।
मैं उठ कर किचन में चला गया.. माधुरी ने एक बार मेरी तरफ देखा और फिर से कॉफी बनाने में लग गई।
तभी पीछे से मैंने उसको हग कर लिया और अपने गर्म होंठ उसकी गर्दन पर रगड़ने लगा।
माधुरी- आह राहुल.. क्या कर रहे हो.. रुको भी.. कॉफी गिर जाएगी।
पर मैं अब कुछ सुनने को तैयार नहीं था। मेरे लण्ड उसकी गाण्ड को टच कर रहा था। मेरे हाथ उसके खुले पेट को सहलाने लगे थे और मैं पागलों की तरह उसको पीछे से किस कर रहा था।
ब्लाउज़ के आस-पास खुले जिस्म को मैं लगातार चूमे जा रहा था।
माधुरी- रुको न..
मैं- अब इंतज़ार नहीं होता डियर.. अब मत तड़पाओ.. आ भी जाओ..
यह कह कर गैस बंद करके उसको बांहों में उठा कर बिस्तर पर लिटा दिया। मैं अपने ऊपर के कपड़े उतार कर उसके ऊपर आ गया और उसके लबों को चूसना शुरू कर दिया।
वो भी बेचैन थी.. उसके हाथ मेरी नग्न पीठ पर कस गए। दोनों ने एक-दूसरे को किस करना.. चूमना शुरू कर दिया।
अब दोनों ही एक-दूसरे के जीभ को चूस रहे थे.. एक-दूसरे के मुँह के अन्दर ‘एक्स्प्लोर’ कर रहे थे।
माधुरी की आँखें बंद थीं, उसके गोरे गालों की लालिमा मेरे को उकसा रही थी, साड़ी का पल्लू हट गया था, उसकी चूचियां जो 36D की थीं.. अब मेरी आँखों के सामने थीं।
उसके चूचियों के बीच का कटाव देख कर मेरे होंठ खुद ब खुद वहाँ चले गए। मेरे होंठों के स्पर्श होते ही माधुरी के मुँह से एक जोर की आवाज़ आई- अह्ह्ह.. ओह्ह्ह.. राहुल मत करो प्लीज़..
मेरे हाथों ने उसकी चूचियों को ग्रिप में ले कर दबाना-मसलना शुरू कर दिया।
माधुरी की आवाज़ भी बढ़ने लगी- ओह्ह आअह्ह.. रुक्को ओ ओ.. उअहहह..
तब तक मेरे दूसरे हाथ ने पीछे जा कर उसके ब्लाउज़ को खोलना शुरू कर दिया। माधुरी ने भी सहयोग किया और अगले ही पल ब्लाउज़ एक कोने में पड़ा था।
जालीदार लाल ब्रा में कसे उसकी तनी हुई चूचियां उसको बहुत मादक बना रही थी। मैं भी इंतज़ार नहीं कर पाया और ब्रा के ऊपर से ही मैंने उसकी एक चूची को मुँह में भर लिया और चूसने लगा।
न चाहते हुए भी शायद वो ‘आह.. ओह्ह..’ करने लगी। उसके हाथों की पकड़ मेरे बालों में कसने लगी। वो उत्तेजना में छटपटा रही थी। उसके मुँह से मादक सिसकारियाँ निकल रही थीं ‘ओह्ह आह.. रुको न.. क्या कर रहे हो.. प्लीज मत करो न..’
उसके नाख़ून मेरी नग्न पीठ पर धंस रहे थे.. जो पीड़ा कम और आनन्द ज्यादा दे रहे थे। उसकी अधखुली साड़ी अस्त-व्यस्त हो रही थी.. जिसको मैंने हटा दिया। अब वो मात्र ब्रा और पेटीकोट में थी। नारी सुलभ लज़्ज़ा उसकी आँखों में थी।
मेरे हाथ उसके बदन में रेंग रहे थे.. मेरे होंठ उसके नग्न जिस्म को चूस रहे थे। मेरी आँखों में वासना और प्यार दोनों था, मेरा लण्ड पैन्ट के अन्दर कुलबुला रहा था।
मैंने उसको पीठ के बल लिटा दिया और उसके जिस्म के हर अंग को चूसने लगा। उसकी मचलती सिसकारियाँ मुझे पागल बना रही थीं।
उसका पेटीकोट थोड़ा ऊपर हो गया था उसमें से झाँकती सफ़ेद पिंडलियाँ.. मक्खन सी चिकनी जाँघें.. मैं बरबस उन पर आकर्षित होकर उसे चूमने लगा।
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माधुरी- राहुल आहह.. बस भी करो आअह्ह..
मैं अपनी पूरी जीभ निकाल कर उसकी रान को चाटने लगा।
धीरे-धीरे मैं ऊपर को बढ़ रहा था.. जहाँ उसकी लाल पैंटी पहरेदार बन कर खड़ी थी। लाल पैंटी के ऊपर से ही मैं उसकी योनि की महक लेने लगा।
आह दोस्तो.. मदहोशी सी छा गई.. क्या महक थी!
मैंने उसका पेटीकोट का नाड़ा खींचकर उसका पेटीकोट पैंटी सहित एक बार में ही उतार दिया।
अब वो पूर्णतया नग्न थी मेरे सामने… मैंने उसकी आँखों में देखा.. नारी-सुलभ लज़्ज़ा से उसने आँखें बंद कर लीं.. अपनी जांघों को भींच लिया, चूचियों को अपने हाथों से छिपा लिया।
उसकी इस अदा पर मुझको बहुत प्यार आया।
अब इस मदमस्त माल की चूत ठोकने की बारी आ गई थी, अगले भाग में चूत की चुदाई ठुकाई लिखूंगा.. तब तक अन्तर्वासना की अन्य कहानियाँ पढ़ते रहिए… कहीं जाइएगा मत!
आपके ईमेल की प्रतीक्षा में आपका राहुल
कहानी जारी है।
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