कली से फूल-1
लेखक : रोनी सलूजा
तमाम पाठकों को मेरा प्यार भरा नमस्कार ! मेरी कहानी ‘नया मेहमान’ को पढ़ कर कई पुरुष व महिला पाठकों के इमेल आये। कुछ पुरुष मित्र लड़कियों के फोन नंबर व इमेल आईडी मांग रहे थे, कुछ लड़की पटाने के तरीके पूछ रहे थे।
महिलायें भी पीछे नहीं हैं कई महिलाओं, लड़कियों ने इमेल से संपर्क में रहने की इच्छा जताई, बहुतों ने अपनी कहानी लिखने की गुजारिश की, कई ने मिलने का प्रस्ताव रखा।
मैं उनके नाम नहीं लिख सकता परन्तु उन सभी द्वारा की गई सराहना मेरे लिए नायाब तोहफा है, मैं आप सभी का तहेदिल से शुक्रगुजार हूँ। सभी के जबाब भी नहीं दे पाता उसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।
परन्तु उनमें एक अन्तर्वासना की नियमित पाठिका शकुंतला (परिवर्तित नाम) भी है जिसने मेरी सारी कहानियाँ पढ़ीं, बाथरूम का दर्पण, 500 का नोट, रिया की तड़प और नया मेहमान के सभी पार्ट कई कई बार पढ़े। उसका कहना है कि आपकी कहानियों की शुरुआत बड़े शालीनता से होकर फिर एक अच्छे अंत के साथ खत्म होती हैं। गंदे शब्दों का इस्तेमाल कम होता है, आपने बड़े ही अच्छे तरीके से सेक्स किया, कहीं भी ऐसा नहीं लगा कि यह असम्भव है या फेंक रहे हो। मैं आपसे मिलना चाहती हूँ मैं बहुत समस्याग्रस्त हूँ।
मैंने उसे इस आश्वासन के साथ कि मैं यथा सम्भव सुझाव दूँगा, मिलना कोई इतना आसान नहीं है, उसे अपनी समस्या लिखने को कहा।
शकुंतला से हुई इमेल वार्तालाप के कुछ अंश प्रस्तुत हैं।
इस कहानी को शकुन्तला से अनुमति लेकर लिखा है।
शकुंतला का मेल: रोनी जी, मैं शकुंतला 26 वर्ष की अविवाहिता (कुंवारी) हूँ मध्यप्रदेश के … शहर में स्कूल टीचर हूँ, मेरे परिवार में मेरे साथ मेरी माँ के अलावा छोटी बहन बारहवीं, छोटा भाई दसवीं में पढ़ते हैं, परिवार की जिम्मेवारी मेरे ऊपर है, अपना खुद का मकान है जो पापा ने अपने जीते जी छह साल पहले बनवा लिया था, उसमें रहते हैं। मेरा कोई बॉय फ्रेंड नहीं है, मुझे अकेलापन खाए जा रहा है, मैं आपके साथ कुछ समय बिताना चाहती हूँ, क्या मेरे लिए कुछ समय देकर मुझे भी सुख दे सकते हो?
आपके जवाब के इंतजार में बेसब्र… शकुंतला !
मैंने जबाब दिया- शकुंतला जी, आपकी जिन्दगी तो परिवार के साथ बड़े अच्छे से गुजर रही है, अपना अकेलापन दूर करने के लिए कोई अच्छा सा लड़का देखो जो खुद भी कोई जॉब करता हो, उसे बॉयफ्रेंड बना लो और एन्जॉय करो, चाहो तो शादी कर लो, इसमें समस्या जैसी क्या बात है… रोनी
शकुंतला का मेल- रोनी जी मेरी लाइफ इतनी सरल नहीं जितनी दिखती है। मैंने प्रतिज्ञा ली है कि जब तक अपने बहन-भाई को पढ़ा लिखाकर उनका घर नहीं बसा देती, मैं शादी नहीं करुँगी, भाई को अच्छा सा जॉब दिलाना, घर में मेरे बाद माँ का और घर का ध्यान रखने वाली अच्छी सी भाभी लाना मेरा मुख्य उद्देश्य है। सोचो, इस सरल से दिखने वाले काम में भी दस बारह साल लग जाना कोई बड़ी बात नहीं है। अगर मैं शादी कर लूँ तो दो परिवारों का बोझ मुझ पर आ जायेगा फिर शायद इनकी जिन्दगी नहीं बना पाऊँगी और बॉयफ्रेंड बनाकर बदनाम नहीं होना चाहती क्योंकि इश्क और मुश्क छुपाये नहीं छुपते। फिर मेरी छोटी बहन की शादी के वक्त कोई मेरे चाल-चलन को लेकर बदनामी कर दे और बहन की शादी टूट जाये, यह सोच कर ही सिहर जाती हूँ।
आज के समय हमारे मोहल्ले में लोग हमारी बहुत इज्जत करते हैं, अपने बच्चों को बड़े विश्वास और भरोसे के साथ मेरे घर टयूशन पढ़ने भेजते हैं जो हमारी अतिरिक्त आय का साधन होता है। मेरी जरा सी परेशानी के लिए तमाम लोग सहयोग को तत्पर रहते हैं, फिर मेरे अपने परिवार के लिए मेरा समर्पण देख कर मुझे सभी एक बेटी और शिक्षक दोनों का मान सम्मान मुझे देते हैं, इसलिए रोनी जी, अपनी सुचारू जीवन शैली को प्रभावित किये बिना, अपने शहर से दूर, किसी अनजान जगह पर आपसे सिर्फ एक बार मिलने को इच्छुक हूँ। आप इस कली को कली से फूल बना दो, आप पर मुझे भरोसा है कि कम से कम बदनाम होने से तो बची रहूँगी।
आपके जवाब के इंतजार में… एक बेसब्र शकुन्तला !
मेरा जबाब- शकुंतला, जब सब कुछ इतना सुचारू चल रहा है, इज्जत के किये इतना डरती हो तो फिर क्यों शारीरिक सुख के लिए बेक़रार हो रही हो? सारा समय तो काम की व्यस्तता में निकल ही जाता होगा। देर से ही सही फिर जब शादी करोगी तब अपने सारे अरमान निकाल लेना। मैं खुद शादीशुदा हूँ, तुमसे बड़ा हूँ मेरी भावनाओं को भड़काने पर मेरे से तुम्हें क्या हासिल होगा, सिर्फ सेक्स, क्योंकि मैं प्यार व्यार के चक्कर में नहीं पड़ता, न ही मेरे पास इसके लिए समय है इसलिए अपने कैरियर पर ध्यान दो… रोनी
शकुंतला का मेल- रोनी जी, मेरी उम्र को देखो, क्या इस उम्र में मुझे सेक्स का मजा नहीं लेना चाहिए? सारा दिन तो किसी तरह कट जाता है, रात में तनहाइयाँ नागिन की तरह डसती हैं, अपने जवान होने का अहसास जागने लगता है, तन्हाई का हर पल भारी होता है, अपने कमरे में मोबाईल नेट पर अन्तर्वासना की कहानियाँ पढ़ती हूँ, अपने अनछुए उभारों को मसलती रहती हूँ, आहें भरती रहती हूँ। जब दर्द बढ़ जाता है तो अपनी योनि को अंगुली से रगड़कर अपने आप को संतुष्ट कर लिया करती हूँ। अपने फर्ज को निभाते हुए अपने बारे सोचना गलत तो नहीं है। क्या अपने लिए खुद पर चढ़ती जवानी का मजा लेना गुनाह है? यदि नहीं, तो मैं भी सम्भोग के उस चरम आनंद को प्राप्त करना चाहती हूँ क्योंकि अधेड़ पकी हुई अवस्था में शादी करके क्या सुख मिलेगा मुझे, कितना मिलेगा? सब लटका ढीला सा अहसास जिसे कोई पसंद नहीं करता, इसलिए इस जवानी को जवान जिस्म के साथ एक बार भरपूर रूप से भोगना चाहती हूँ, मैं घुट घुट कर जवानी तबाह करने और कुंठित होने से अच्छा एक बार इसका अच्छे से उपभोग करके उन यादगार लम्हों के साथ बाकी जिन्दगी हंस कर गुजारना चाहूँगी, क्या आप इतना भी नहीं कर सकते मेरे लिए?
जवाब के इंतजार में… शकुन्तला !
मैं बड़े असमंजस में था क्योंकि अब तक लड़की या महिला को पाने के लिए मैं ही प्रयत्न करता रहा हूँ, यह शकुंतला क्यों पके फल की तरह बिना मेहनत के मेरी झोली में गिर रही है? कहीं कोई मेरे खिलाफ कोई षड़यंत्र या घटिया मजाक तो नहीं कर रहा है?
मैंने शकुंतला से उसका फेसबुक आईडी माँगा जो उसने दे दिया। उसे रात दस बजे ऑनलाइन रहने को कहा।
फिर मैंने रिक्वेस्ट भेज दी, ठीक टाइम पर उसे फेसबुक पर उपलब्ध पाया, मैंने उससे चैट करके दो दिन बात की। संतुष्ट होने के बाद फोन नंबर का आदान प्रदान हुआ फिर फोन से मिलने का प्रोग्राम तय किया। इसके पहले जानना जरूरी था कि उसकी माहवारी कब हुई, सम्भोग हेतु सुरक्षित समय कब रहेगा।
उसने बताया- कल ही सिर धोया है, मतलब पांच दिन पूर्ण सुरक्षित हैं।
हम दोनों ने ही अपने शहर को छोड़ दो दिन बाद भोपाल (परिवर्तित स्थान) में बारह बजे मिलने की योजना बनाई। चूँकि यह शहर दोनों के लिए बराबर दूरी पर है या यों कह लो कि दोनों के बीच में है। क्योंकि वो बस से आएगी, मिलने का स्थान बस स्टेंड यात्री प्रतीक्षालय ही तय हुआ। मैं नहीं चाहता था कि यहाँ वहाँ घूमते देख कोई उस पर शक करे।
पहचान पूछने पर शकुंतला ने कहा कि वो सफ़ेद सलवार और मेहरून रंग की कुर्ती, सफ़ेद दुपट्टा हाथ में काला बैग लिए होगी।
मैंने कहा- मैं नीली जींस और पीली टीशर्ट पहने प्रतीक्षालय में मिलूँगा, जो भी पहले पहुँचे, प्रतीक्षा करेगा।
दो दिन बाद सुबह हमने फोन से बात की, बोला कि बारह बजे तयशुदा स्थान पर मिलेंगे।
घर पर मैंने अपनी पत्नी को झूठ बोल दिया कि भवन निर्माण का ठेका लेने भोपाल जा रहा हूँ, दो दिन का समय लग सकता है, चिंता मत करना।
फिर ठीक समय से आधे घंटे पहले भोपाल पहुँच गया और ऐसी जगह जाकर खड़ा हो गया जहाँ से यात्री प्रतीक्षालय में उपस्थित लोग मुझे तो दिखाई देंगे पर मुझे वहाँ से कोई आसानी से न देख सके।
काफी चहल-पहल थी, शकुन अभी नहीं पहुँची थी, जैसा कि तय था, वहाँ पहुँचकर मुझे फोन पर इत्तला देगी, मुझे हर पल भारी लग रहा था।
थोड़ी देर बाद एक लड़की सफ़ेद सलवार मेहरून कुर्ती सफ़ेद चुनरी हाथ में बैग लिए दिखाई दी, मेरी दिल की धड़कन बढ़ गई, उसका रंग गोरा, आँखें बड़ी, घने काले बाल कंधे तक करीने से कटे हुए, कद 4 फीट 8 इंच होगा, वजन चालीस किलो से ज्यादा नहीं होगा, आगे पीछे के उभार सामान्य, उसका फिगर 28-26-30 से अधिक नहीं होगा।पर शारीरिक तौर से ये तो मिडल स्कूल की बच्ची जैसी लग रही थी, हाँ, चेहरे पर थोड़ी गंभीरता जरुर झलक रही थी।
मैं अभी और प्रतीक्षा करना मुनासिब समझ वहीं रुक गया। तभी आगन्तुक लड़की ने अपने बैग से फोन निकालकर कोई नंबर डायल किया और कान में लगा लिया।
मेरे फोन की घन्टी बजी, देखा, शकुन का नंबर था, रिसीव किया तो बोली- मैं पहुँच गई हूँ।
मैं बोला- मैं दस मिनट में पहुँच रहा हूँ।
फिर उस लड़की ने फोन बंद करके बैग में रख लिया। मतलब यही शकुन है !
पांच सात मिनट यह सोच कि अकेली है या कोई और भी साथ है, उसकी निगरानी करता रहा पर वो तो बस अपनी घड़ी को हर मिनट में देख रही थी।
मैं घूमकर उसके पास पहुंचा और बोला- शकुन, मैं रोनी हूँ, आपको यहाँ पहुँचने में कोई तकलीफ तो नहीं हुई?
बोली- नहीं !
वहाँ पर ज्यादा देर न रुककर उसको एक रेस्टोरेंट में ले गया जहाँ हमने डोसे का आर्डर दिया। बातों बातों में शकुन का हाथ अपने हाथों में ले लिया, अपने बारे में एक दूसरे को बताया।
फिर मैंने उससे पूछा- आपने अपनी उम्र 26 बताई थी, पर अठारह से ज्यादा नहीं लगती हो?
तो शकुन बोली- बचपन से घर की जिम्मेदारी संभाल रही हूँ, पहले पिताजी बीमार रहे, चार साल उनकी देखभाल की, उनके देहांत के बाद छः साल से अनुकंपा नियुक्ति से नौकरी कर घर की देखभाल कर रही हूँ, अपने लिए समय ही कहाँ मिलता है, सो मेरा शारीरिक विकास थोड़ा कम रहा, शायद आपको मैं अच्छी नहीं लगी क्योंकि आपको तो सदैव बड़े बड़े उरोज, विशाल नितम्ब और गदराये बदन वाली भरी पूरी महिलायें जैसा कि आपकी कहानियों में पढ़ा है, पसंद होंगी।
“ऐसी बात नहीं है शकुन, तुम जैसी कमसिन लड़की से मिलकर मैं खुद स्तब्ध रह गया हूँ, आश्चर्य चकित हूँ, तुमसे मिलकर अपने आप को खुश नसीब और धन्य समझता हूँ।”
मन में सोचा कि आज मैं खुशनसीब तो वाकई था क्यूंकि मेरी वो मुराद जिसमे कम वजन वाली स्त्री की जरुरत थी जिसे गोद में लेकर सम्भोग करूँ जो चाह कर भी आज तक पूरी नहीं हुई, आज पूरी हो जाएगी।
तब तक डोसा आ गया, खाने की इच्छा नहीं थी दोनों की, सो थोड़ा खाकर तय किया कि हम लोग लॉज में रुकेंगे। लॉज में एक डबलबेडरूम लेकर उसमें गए।
शकुन स्कूल से दो दिन की छुट्टी लेकर और घर में सहेली की शादी का बहाना बनाकर आई थी। यानि चौबीस घंटे हमारे पास थे।
कहानी जारी रहेगी, अगले भाग में समाप्त होगी।
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