दिल्ली की दीपिका-7
मैं बोली- कल तुम सोने के लिए जल्दी चले गए थे। मुझे तुम्हारी जरूरत पड़ी थी, तब तुम नहीं थे।
वह बोला- मैं कहीं नहीं गया था, यहीं दरवाजे के पास ही था। आपकी आवाज सुनकर तुंरत चला आता।
मैं बोली- तो तुम यह भी देख रहे थे कि हम लोग भीतर क्या कर रहे हैं ना?
वह बोला- नहीं।
मैं बोली- फिर तुमने यह भी ध्यान नहीं रखा कि मैं कैसी हूँ, किस हाल में हूँ या मुझे और किसी चीज की जरूरत तो नहीं है? मैं डैड से कहूंगी कि आप बेकार ही दीपक भैय्या पर भरोसा करते हैं। उन्होंने तो मेरा ध्यान रखा भी नहीं।
दीपक बोला- नहीं, हम आपको सब बता रहे हैं। जब आप अपने दोस्तों के साथ रूम में थी और हम यहाँ खड़े होकर इन लोगों के जाने का इंतजार कर रहे थे। तभी आपके चीखने की आवाज आई। हम डर गए कि कहीं आपके दोस्तों ने आपके साथ कोई शरारत तो नहीं कर दी है, इस डर से हमने खिड़की से झांककर भीतर देखा। हमें शर्म आई कि आपने कोई कपड़ा नहीं पहना है और आपका एक दोस्त आपके मुँह के पास खड़ा है, एक नीचे हैं, और एक पीछे। ये सब आपके साथ गंदा काम कर रहे थे। इसलिए हम पीछे आ गए, कमरे में नहीं गए। मुझे उसकी बात पर हंसी भी आई और अच्छी भी लगी, उससे कहा- वह गंदा काम नहीं है दीपक भैय्या। वह दुनिया का सबसे अच्छा काम है इसलिए यदि तुम भी उस समय अंदर आ जाते तो मैं अपने दोस्तों को भगाकर तुम्हारी बात सुनती।
उसके चेहरे पर खुशी आई पर वह गरदन झुकाकर खड़ा रहा।
मैं बोली- अच्छा आज राकेश भैय्या के साथ तुम्हारी यही बात चली क्या?
वह बोला- हम डर गए थे कि हमारे रहते हुए ही वो लोग घर में आए और ये सब किया। साहब हमको अब नहीं छोड़ेंगे और सुबह आप टाइम पर उठी ही नहीं इसलिए हमने राकेश को सब बात बताई। तब राकेश ने ही इसे जवान लोगों का मजा बताते हुए हमें चुप रहने कहा।
मैं बोली- यह सिर्फ़ जवान लोगों का मजा नहीं, सब लोगों के मजे की चीज है दीपक भैय्या। तुम इसका मजा नहीं लेते हो क्या?
दीपक बोला- ये उछलता तो बहुत है, पर हम ही इसे हाथ से हिलाकर ठण्डा कर देते हैं।
मैं बोली- क्यों, तुम इसका असली मजा क्यूं नहीं लेते? दीपक बोला- अब क्या बताएं बेबी जी, हमारी मेहरारू को हमने गाँव में अपने परिवार वालों के साथ छोड़ा है। इसलिए जब यहाँ से छुट्टी लेकर घर जाते हैं, तब हम और वो मिलकर मजा करते हैं। अब यहाँ पेट के लिए हैं तो ऐसे ही सही है।
मैं बोली- दीपक भैय्या, देखो चुदाई के उस मजे के लिए आप भी तरस रहे हो और मैं भी। तो क्यूं ना हम लोग ही आपस में इस मजे को ले लिया करें। इससे बात घर में ही रह जाएगी और किसी को पता भी नहीं चलेगा।
दीपक के चेहरे पर खुशी की चमक आ गई, वह बोला- पर साहब को यह बात पता चल गई तो हमारी तो ऐसी की तैसी हो जएगी।
मैं बोली- पता तब लगेगी ना जब मैं उन्हें कुछ बताऊँगी ! मैं कुछ नहीं बताऊँगी।
मैं महसूस कर रही थी कि यदि मैं इस तरह अपने चुदने की बात यदि और किसी से कहती तो वह अब तक मुझे आकर पकड़ लेता, चूमना चाटना शुरू कर देता। पर यह बहुत धीरे से अपनी गरदन हिलाकर सहमति भर जाहिर कर रहा है।
मैं बोली- आज दिन भर सो कर मैं अपनी थकान उतारती हूँ फिर रात को तुम मुझे चोद कर मुझे मज़े देना और खुद भी मज़ा लेना ! ठीक है?
दीपक की खुशी उसके चेहरे से झलक रही थी, उसने अपनी गरदन हिलाकर सहमति जताई, साथ ही कहा- मुझे अकेले आपके पास आते हुए अच्छा नहीं लगेगा बेबीजी, यदि आप बोलो तो राकेश को भी साथ रहने को बोल दूँ?
मैं बोली- ठीक है, उन्हें भी बोल दीजिएगा।
यह बोलकर मैं अपने रूम की ओर बढ़ गई। रूम में आकर मैं सोई। सुबह हलाकि देर से उठी थी। पर कल की थकान ज्यादा होने के कारण जल्दी ही नींद आ गई। शाम को मेरी नींद खुली।
मेरे उठते ही दीपक चाय लेकर आया, मैंने उससे पूछा- ठीक हो ना? राकेश भैय्या को बता दिया है ना?
वह बोला- हाँ, बता दिया है, वह बस अभी थोड़ी ही देर में आ जाएगा।
मैं बोली- मैंने आपका लौड़ा देखा नहीं है, दिखाइए ना?
वह शर्माने लगा और सिर झुकाकर वहीं खड़ा रहा। मुझे गुस्सा आ गया- अरे तुम मर्द हो या नहीं।
वह सहमति में अपना सिर हिलाने लगा।
मैं बोली- अच्छा कोई बात नहीं, तुम इधर मेरे पास आओ।
वह सहमते हुए आया और पूछा- जी बताइए।
मैंने कुछ ना बोलकर उसकी पैन्ट की चैन खोली, अंदर पहनी हुई अंडरवियर को हटाई और झांटों के झुरमुट में उनींदा से उसके लण्ड को पकड़ा- हूँ… साईज तो ठीक है तुम्हारे लौड़े का, पर यह पूरा खड़ा क्यूं नहीं हो रहा है?
वह बोला- क्या पता?
पर उसके मस्त लौड़े को देख मैं भी मूड में आ गई- रूको, इसे अभी तैयार करती हूँ।
यह बोलकर मैंने उसके लौड़े पर पहले जीभ फ़ेरी, फिर उसे अपने मुंह में भर लिया।
थोड़ी ही देर में उसका लंड़ बढ़िया तैयार हो गया। मैं उसे मुँह में रखकर आगे-पीछे करने लगी।
अब वह भी जोश में आ गया, वह मेरे सिर को पकड़कर अपने लौड़े से मेरे मुँह को चोदने लगा। ऐसा थोड़ी देर चला, पर जल्दी ही उसके लौड़े से बहुत सा पानी निकल गया, मेरा मुँह उसके माल से पूरा भर गया। कुछ पेट में भी गया, पर बाकी को उठकर मैंने बेसिन में थूक दिया।
अब वह निश्चिंत था, मुझे उसके चेहरे पर संतुष्टि दिखाई दी, मैंने पूछा- कैसा लगा दीपक भैय्या?
वह बोला- बहुत अच्छा ! आप यदि साहबजी को ना बताओ तो हम आपके साथ रोज ऐसा कर सकते हैं।
मैं बोली- ठीक है। मैं किसी से भी कुछ नहीं बोलूंगी। बस आप रोज मुझे चोदते रहना। नहीं तो मैं डैड को सब बता दूंगी। चलिए अब सुरेश भैय्या आए हैं क्या? उन्हें देखिए।
दीपक अपनी पैन्ट सम्भालते हुए बाहर निकला। कुछ देर बाद उसने भीतर आकर बताया कि सुरेश भी आ गया है।
मैं बोली- क्यूँ ना साथ में पहले जश्न मना लिया जाए। भैय्या आप तीन काफी बनाकर लाइए। हम तीनों साथ में काफी पीकर जश्न की शुरूआत करेंगे।
दीपक किचन की ओर गया, मैं भी बाहर आई और सुरेश को किचन में जाते देखा तो मैंने आवाज दी- तुम किचन में क्यों जा रहे हो
सुरेश भैय्या?
सुरेश रूका और बोला- दीपक ने क्यूं बुलाया है, यह पूछने जा रहा हूँ।
मैं बोली- दीपक भैय्या ने तुम्हें फोन पर ही बोला है ना कि मैंने बुलाया है।
वह अब मेरी ओर आया, बोला- हाँ बताइए, क्या काम है?
मैं बोली- अब तुम ज्यादा होशियार बन रहे हो।वह हंसते हुए मेरे पास आया और बोला- इसे मैं पहले ही बोल चुका हूँ कि उन्हें नई-नई जवानी है इसलिए यह सब तो चलेगा ही।
मैं कमरे के अंदर आते हुए बोली- किसे चढ़ी है जवानी?
सुरेश भी मेरे पीछे आया और बोला- आपको यह जवानी ही परेशान कर रही है ना?
मैं बोली- तो तुम लोग बुढ्ढे हो गए हो क्या?
वह हंसा और बोला- जी नहीं, परेशान तो हम भी हैं अपने लौड़े से।
मैं बोली- ऐसा क्या? तो दिखाइए फिर अपना लौड़ा?
सुरेश बोला- पहले एक पप्पी तो दीजिए फिर होगा यह आपका।
मैं उसके पास आई और उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए। सुरेश ने बहुत अच्छे स्टाइल से मुझे चूमा, मेरे हाथ नीचे उसके लौड़े की ओर बढ़े, ऊपर से सहला कर मैंने महसूस किया कि वह पूरा तन गया था। मैंने दोनों हाथों से उसके पैन्ट को नीचे किया, अंडरवियर हटाकर उसके लण्ड को हाथ में लिया, महसूस किया कि यह लण्ड अब तक मेरी चूत में गए सभी लौड़ों से मोटा और लंबा है। लौड़े के खुलते और सहलाए जाते ही मेरे होठों पर सुरेश के होंठों की पकड़ हल्की हुई।
मैं अपना मुँह उसके मुँह से हटाकर नीचे हूई और उसके लौड़े को चूसना शुरू किया तो इसमें मुझे बहुत मजा आने लगा।सुरेश दीपक से ज्यादा आगे निकला। इसने झुककर मुझे उठाया और मेरे कपड़े उतारने शुरू कर दिए। मेरी टीशर्ट व ब्रा उतारने के बाद वह मेरे उरोजों को दबाने लगा। यह करते हुए ही उसने निप्पल चूसना शुरू किया।
तभी दीपक भी भीतर आ गया, हम दोनों को लगे देखकर उसे भी सहन नहीं हुआ, काफी की ट्रे वहीं मेज पर रखकर वह मेरी नंगी पीठ पर हाथ फेरने के बाद गले और मेरे दूसरे उभार को चाटने लगा। सुरेश नीचे मेरा पेट चाटते हुए घुटने के बल बैठा और मेरा बरमूडा उतारकर मेरी जाँघों से सकरा कर पैरों से बाहर कर दिया, इसके बाद मेरी पैन्टी भी उतर गई।अब मैं पूरी नंगी हो चुकी थी। दोनों मेरी चूत, चूतड़, गाण्ड, चूचे और चेहरे को चूम-चूस रहे थे। दीपक इतना ज्यादा सैक्सी होगा, यह मैंने सोचा नहीं था।
मेरे बदन पर उसकी जीभ से मेरी सैक्स की इच्छा और जाग रही थी। वह अब मेरी चूत पर ही जीभ रख कर चूसने लगा। उत्तेजना के मारे मेरा बुरा हाल था। मैंने चूत ऊपर करके उसके मुंह में ही घुसड़ने की इच्छा जताई। मेरी कमर उठी, तब सुरेश ने अपने लण्ड को मेरे मुंह में डाल दिया।
इसका लंड चूसते और अपनी चूत चटवाते हुए मेरा पानी गिरा, जिसे दीपक ने चाट लिया। दीपक मेरी चूत को अच्छे से चाटने के बाद हटा।
मैंने देखा कि वह अब अपना पैन्ट उतारकर फिर मेरी चूत पर आया। अपना लंड रखकर रगड़ा और चूत के भीतर घुसेड़ दिया। उसका लौड़ा अपने भीतर पाकर मैं उसे सहयोग देने के लिए जोर लगाने लगी। तभी मेरा मुंह सुरेश के वीर्य से भर गया।
मेरी चूत का मजा ले रहे और मुझे मजा दे रहे दीपक के लण्ड से मैं इतना आनंदित थी कि मुझे उसका वीर्य थूकने की सुध भी नहीं रही, सारे माल को मैं गटक गई।
दीपक बिना रूके अपना सारा दम यहीं लगाए जा रहा था। अब सुरेश फिर मेरे निप्पल को चूसने लगा। थोड़ी देर में दीपक भी शांत हो गया। वह बहुत देर तक मेरे ऊपर ही पड़ा रहा। अब सुरेश मेरे चूचे छोड़कर मेरी चूत पर आया।वहाँ कुछ देर प्यार जताने के बाद उसने अपना लौड़ा मेरी चूत में लगाया। यह अभी आधा भी नहीं गया था और मुझे बहुत दर्द होने लगा। मेरी कराह और अब न चोदने की बात सुनकर सुरेश ने दीपक को मेरी चूत के आसपास व गांड चाटने को कहा।
दीपक मेरे चूतड़ों की दरार व गांड के छेद में अपनी जीभ फिराने लगा।सुरेश भी अपना आधा लंड ही भीतर डालकर मुझे चोद रहा था। अब मुझे ठीक लगने लगा। कुछ ही देर में सुरेश का भी पानी छूटा पर अब मेरा मूड फिर से बन गया था, तो मैं नीचे से शाट लगाने लगी। ऐसा करते हुए मेरा माल भी गिर गया।
दीपक और सुरेश ने एक बार फिर मेरा शरीर ऊपर से नीचे तक चाटकर साफ किया।
अब दीपक ट्रे की ओर बढ़ा और बोला- ओह, कॉफी ठण्डी हो गई है। मैं गर्म करके लाता हूँ।
वह गया। मैं वाशरूम से फ्रेश होकर अपने कपड़े पहनने लगी। दीपक काफी लेकर आया। हम तीनों ने साथ बैठकर काफी पी।
दीपक बोला- अब ये सब साहबजी को पता नहीं लगेगा तो बेबीजी और हम दोनों का भी भला होता रहेगा।
मैं बोली- ठीक है ना !
इस तरह की ही सामान्य बातों के बाद हम अलग हुए। सुरेश रात को अपने घर चला गया पर दीपक ने रात में खाना देने के बाद मुझे एक बार और चोदने देने की गुजारिश करने लगा तो मैंने उसे रात को अपने पास ही बुला लिया, दो बार चोदने के बाद वह अपने कमरे में गया।
तो यह है मेरी कहानी जो अपने बहुत अच्छे दोस्त जवाहर जैन के कहने पर मैंने अन्तर्वास ना के माध्यम से आप सब लोगों के साथ शेयर की।
मेरी चुदाई की गाथा जारी रहेगी। पूर्वकाल से चले आ रहे सब रिश्ते नातों को मैंने अपनी चूत के आगे दम तोड़ते देखा है। तो मेरे वो सभी पवित्र रिश्तेदारों की बात भी आपको कभी समय मिला तो बताऊँगी।
तब तक के लिए अपनी दोस्त ‘दिल्ली की इस दीपिका’ को विदा होने की आज्ञा दीजिए…
नमस्कार !
और हाँ मेरी यह कहानी आपको कैसी लगी, प्लीज बताइएगा।
What did you think of this story??
Comments