बाथरूम का दर्पण-2
(Bathroom Ka Darpan- Part 2)
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मैंने सोचा कि बाथरूम में जाकर दर्पण का मुआयना करूँ और निकलूँ!
बाथरूम में गया तो रोशनदान के नीचे दर्पण दीवार के सहारे रखा था, उसके ऊपर पानी व साबुन की बूंदें थी, कुछ सादे पानी की बूंदें थी, पूरा बाथरूम साबुन की महक से महक रहा था।
मैंने बाथरूम का जायजा लिया तो एक तरफ सूखे ब्रा पेंटी पड़े हुए थे जिन पर पानी के छींटे दिखाई दे रहे थे, टोयलेट सीट के पास शेविंग का सामान रखा था, खूंटी पर सुबह वाली मेक्सी टंगी थी।
अब कुछ कुछ बातें मेरी समझ में आ रही थी। रमा का लजाना, शर्माना यानि वो कल्पना में खो गई थी कि दर्पण के सामने नहाने में कैसी लगूंगी और दर्पण के आने के बाद वह इतना उत्तेजित हुई होगी कि अपने आप को नहाने से रोक नहीं पाई होगी।
दर्पण इतना बड़ा था कि उसमें सामने की पूरी दीवार भी दिखाई दे रही होगी। उसके बाद रमा ने अपने आप को शांत करने के लिए उसने ऊँगली से या जैसे भी हस्तमैथुन भी किया होगा। अब मेरे दिमाग ने सोचा कि शायद ऐसा न हो और यह कोरी हमारी कल्पना हो!
और यदि यह सच हुआ तो निश्चित है की रमा की प्यास मुठ से नहीं बुझी होगी और बहुत कुछ हो सकता है।
अब पता यह लगाना है कि इन दो बातों में से सच क्या है।
तभी रमा वहाँ आ गई लेकिन जैसे ही उसकी नजर ब्रा पेंटी और शेविंग किट पर पड़ी, वो एकदम से हड़बड़ा गई, ऐसे खड़ी हो गई कि मुझे वह सब न दिख सके, कहा- चलो, बाहर बैठते हैं।
मैं बाहर आ गया, कुछ देर में रमा भी आ गई, अबकी बार फिर उसके गालों पर लाली और शर्म दिख रही थी, आकर मेरे सामने बैठ गई पर नजरें नहीं मिला रही थी।
मैंने लोहा गर्म देखकर सोचा कि वार कर दो, जो होगा देखा जायेगा, बात नहीं बनी तो माफी मांगकर मना लूँगा।
अब मुझे हर कदम फूंक-फूंक कर रखना था, बात की शुरुआत मैंने की, पूछा- कैसा लगा दर्पण आपको?
नाख़ून कुरेदते हुए बोली- अच्छा!
मैंने कहा- और दर्पण में देखते हुए नहाना कैसा लगा?
कुछ गुस्से में बोली- यह आप क्यों पूछ रहे हैं?
आप यह कहानी अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
मैंने कहा- देखिये, आप बुरा न मानें, लगता है आप दर्पण का पूरा मजा लेकर नहाई तो हैं ही, जैसा मैंने बाथरूम में देखा, इसलिए पूछ लिया। वैसे मैडम पूरा बाथरूम बनकर तैयार होने दीजिए, तब आप बाथरूम का असली आनन्द ले पाएँगी।
रमा ने बात को बदलते हुए पूछा- आपके घर में कौन कौन है?
मैंने कहा- मैं और मेरी बीवी जो अभी मायके गई हुई है। हमारा बाकी परिवार गाँव में रहता है।
उस समय शाम के सात बज गए थे, मैंने धुंए में वार किया- घर जाकर खाना बनाना पड़ेगा, इसलिए चलता हूँ मैडम.. सुबह मिस्त्री और बेलदार को लेकर दस बजे तक आ जाऊँगा।
तो रमा ने कहा- खाना यहीं खा लो! साहब तो आएँगे नहीं, उनके हिस्से का रखा है!
मैं यही चाह रहा था पर दिखावा किया- साहब के हिस्से का…?
बात अधूरी छोड़ दी…
रमा बोली- जब वो नहीं है और उनके हिस्से का तुम खा लोगे तो इससे किसी को क्या फर्क पड़ेगा!
कहते हुए अचानक झेंप गई यह सोचकर कि मैंने यह क्या कह दिया।
मैंने कहा- जैसा आप कहें!
अब मैं समझ गया था कि रमा मुझे रोक रही है, वो भी रात को जबकि वह अकेली है। अब शुरुआत मुझे ही करनी होगी अपनी बातों का जाल फेंककर।
फिर मैंने यहाँ-वहाँ की बातें करके उसे खोलने की कोशिश की, कुछ चुटकले भी सुनाये तो वह खुलकर हंसने भी लगी।
फ़िर कुछ वयस्क चुटकले, फिर कुछ अश्लील भी सुनाए। रात के साढ़े आठ हो चुके थे, मैंने कहा- मैडम, इतनी रात को कोई आ गया तो क्या सोचेगा?
मैडम ने कहा- यहाँ कोई नहीं आता, हमारे सारे रिश्तेदार दूरदराज में हैं, तुम ही हो जो हमारे दोस्त बन गए हो, नहीं तो यहाँ साहब के मिलने वाले भी नहीं आते।
अब मैं निश्चिंत हो गया और अगला जाल फेंका, मैंने कहा- मैडम, एक बात पूछूँ अगर आप नाराज न हो तो?
हंसकर बोली- पूछो!
मैंने कहा- आपने बाथरूम में नहाते वक्त क्या महसूस किया?
बोली- रोनी, तुम फिर वही बात करने लगे?
मैंने कहा- मैडम, अगर हमें दोस्त माना है तो प्लीज़ बताओ न!
बोली- इससे क्या होगा?
मैंने कहा- मैं अपने अनुभव को बढ़ाना चाहता हूँ बस।
रमा बोली- बाथरूम में गई, नहाई और बाहर आ गई बस।
मैंने कहा- मत बताएं, पर मैं सब जानता हूँ…
बोली- क्या जानते हो?
मैंने कहा- बात कुछ प्राइवेट है, जोर से बोल नहीं सकता, दीवार के भी कान होते हैं, सच सुनना चाहो तो मैं आपके पास आकर बताऊँ?
तो बोली- ठीक है, पर शैतानी नहीं करना। समझे?
मैंने कहा- ठीक है!
और रमा के बगल में सोफ़े पर बैठ गया, मैंने कहा- दिल थामकर सुनना और बीच में रोकना नहीं, यदि मेरी बात गलत लगे तब बोलना!
बोली- ठीक है!
अब मैंने कहा- मैडम, सुबह जब मैंने आपसे दर्पण के बारे में कहा था तो आप शरमा गई थी और मन में इस तरह से नहाने का ख्याल आया था, सच है?
तो बोली- हाँ!
मैंने कहा- शाम को जब सामान के साथ दर्पण आया तो आपने फोन किया था मैंने कह दिया कि आधा घंटे में आऊँगा, आपने सारा सामान बैठक में रखवा दिया लेकिन दर्पण को बाथरूम रखवा दिया क्यूंकि आप जल्द से जल्द अपनी कल्पना को साकार करना चाहती थी! सही है?
बोली- सही है।
‘उसके बाद आपने बाथरूम में जाकर अपने आप को निहारा और इच्छा हुई कि अभी नहा लिया जाये! आपने अपने कपड़े उतार कर खूंटी पर टांग दिए फिर ब्रा-पेंटी में अपने आपको निहारने लगी!’
यह सुनकर रमा खड़ी होकर जाने लगी, मैं भी यही चाहता था, मैंने तुरंत उनका हाथ पकड़ लिया और बोला- पहले बोलो हाँ या ना?
बोली- हाँ!
हाथ तो मैं पकड़ ही चुका था, खींच कर बिठाने लगा तो मुँह फेरकर बैठ गई।
मैंने आगे कहा- उसके बाद आपने ब्रा-पेंटी उतारकर रख दिए और दर्पण में अपने नंगे जिस्म को हर दिशा से देखा। तुम्हारी आँखों में एक नशा सा छा रहा था, तुम उत्तेजित हो गई थी, एक हाथ तुम्हारी दोनों टांगों के बीच कुछ सहला रहा था, दूसरा सीने को सहला रहा था?
इतना सुनकर वो फिर खड़ी होकर जाने का प्रयास करने लगी, हाथ छुड़ाने की कोशिश की तो मैंने फिर खींच लिया। अबकी बार वो मेरे सीने से आकर टकराई तो मैंने उसे कमर से भी पकड़ लिया, मैंने कहा- बोलो सच है?
बोली- हाँ!
‘फिर तुम्हें आईने में अपने सुन्दर जिस्म पर बढ़े हुए बाल दिखे जो तुम्हारी सुन्दरता में रुकावट बन रहे थे तो तुम शेविंग किट उठाकर ले आई और नीचे के एवं बगलों के बाल साफ किये। तब तुम्हारी उत्तेजना चरम पर पहुँच गई थी तो तुमने शावर चालू किया और ठण्डे पानी के नीचे खड़ी हो गई और नहाने लगी। बोलो, सच है?’
तो बोली- प्लीज़ छोड़ दो मुझे!
मैंने कहा- पहले जबाब दो तो आगे की बात भी बताएँ!
अब वह अचंभित थी!
मैंने कहा- बोलो?
उसने कहा- हाँ!
अब मेरे हाथ उसके बदन को धीरे से दबाने लगे थे क्यूंकि वह तो कहानी का चरमोत्कर्ष सुनने को बेताब थी।
‘फिर मैडम, नहाने से भी जब आपको ठंडक नहीं मिली तो आपने मजबूरी में वह रास्ता अपनाया…!’
इस बात को मैंने अधूरा छोड़ दिया।
वो समझ गई होगी कि मेरा मतलब मुठ से है..
‘फिर आप साबुन लगाकर नहाई, नहाकर जैसे ही चुकी, आपके घर की घण्टी बजी, आपने जल्दी से कपड़े पहने और दरवाजा खोला तो सामने मैं खड़ा था!’
इस समय मेरे होंठ उसके गालों पर रेंग रहे थे और हाथ वक्ष पर!
मैंने पूछा- यह सच है या नहीं?
अबकी बार उसने पूरी ताकत लगाकर अपने को छुड़ा लिया और…
कहानी जारी रहेगी।
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